मोहन राकेश की माता जी का क्या नाम था

  1. मोहन राकेश
  2. महान क्रांतिकारी राजगुरु
  3. सुहागिनें: मोहन राकेश की कहानी
  4. मोहन राकेश कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक
  5. मोहन राकेश की नाट्य स्रष्टि


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मोहन राकेश

“मोहन राकेश का अथवा–“मोहन राकेश का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।” Mohan Rakesh Mohan Rakesh मोहन राकेश आधुनिक परिवेश से जुड़कर साहित्य सृजन करने वाले गद्यकार हैं। आपने अपनी अद्वितीय प्रतिभा के बल पर हिन्दी नाटक को नवीन दिशा दी है तथा कथा साहित्य में नए युग का सूत्रपात किया है। यात्रा वृत्तान्तों में सर्वथा मौलिक तथा नवीन शैली का प्रयोग करके सराहनीय कार्य किया है। राकेश जी संस्मरण किसी घटना अथवा व्यक्ति विशेष के सजीव चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम है। पूरा नाम मोहन राकेश जन्म तिथि 8 जनवरी, 1925 जन्म स्थान अमृतसर, पंजाब मृत्यु तिथि 3 जनवरी, 1972 मृत्यु स्थान नई दिल्ली पेशा प्रसिद्धि साहित्य काल प्रमुख रचनाएँ आषाढ़ का एक दिन, आधे-अधूरे, लहरों के राजहंस विधाएं भाषा शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम.ए. सम्पादन सारिका (पत्रिका) पुरस्कार सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1968), नेहरू फेलोशिप मोहन राकेश का ‘जीवन-परिचय’ मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, 1925 ई. में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ था। इनके पिता श्री करमचन्द गुगलानी वकील थे, परंतु साहित्य और संगीत में वे अधिक रुचि रखते थे। जिसका प्रभाव मोहन राकेश जी पर भी पड़ा। 16 वर्ष की अल्पायु में मोहन राकेश के पिता का निधन हो गया था। इनके पूर्वज सिंध प्रांत के निवासी थे। मोहन राकेश की प्रारम्भिक शिक्षा अमृतसर में ही हुई। उन्होंने लाहौर के ‘ ओरियन्ट कॉलेज‘ से ‘ शास्त्री‘ की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। तत्पश्चात् राकेश जी ने अध्यापन का कार्य बम्बई, शिमला, जालन्धर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में किया, परन्तु इस कार्य में विशेष रुचि न रहने के ...

महान क्रांतिकारी राजगुरु

महानक्रांतिकारीराजगुरु– Shivaram Rajguru Biography in Hindi राजगुरुकेबारेमें– Rajguru Information in Hindi नाम (Name) शिवरामहरीराजगुरू जन्म (Birthday) २४अगस्त१९०८ माताकानाम (Mother Name) पार्वतीदेवी पिताकानाम (Father Name) हरिनारायणराजगुरू जन्मस्थल (Birthplace) खेड, पुणे (महाराष्ट्र) मृत्यू (Death) २३मार्च१९३१ महानक्रांतिकारकराजगुरूजीकाजन्म२४अगस्त१९०८को जिससेप्रेरितहोकरउन्होनेहिंदुस्तानसोशलिस्टरिपब्लिकनआर्मीनामकीसंस्थासेखुदकोजोडलिया, जोकेएकसशस्त्रक्रांतिकारीसंघटनथा।हिंदुस्तानसोशलिस्टरिपब्लिकनआर्मीमे उसकेलियेशुरुवातमेइससंघटननेलालालजपतरायजीकेनेतृत्वमेशांतीपूर्वकआंदोलनवगैरहकासहाराभीलिया, परंतुअंग्रेजोद्वाराहुयेतीव्रलाठीहमलेमेबुजुर्गलालालजपतरायजीकेनिधननेइनयुवाओकेअंदरअंग्रेजशांसनकेखिलाफतीव्रअसंतोषकोजन्मदिया।जोकेआगेइससंघटननेबलपूर्वकअंग्रेजोकोभारतसेखदेडनेकानिश्चयकिया, इसकेफलस्वरूपराजगुरूतथाउनकेसहकारीअंग्रेजोकेखिलाफविभिन्नमुहीमकोअंजामदेनेलगे। राजगुरू–एकमहानदेशभक्तक्रांतिकारक– Rajguru History in Hindi महाराष्ट्रकायेवीरक्रांतिकारकभारतमाताकासच्चासपूतथा, जिनकेदिलऔरदिमागमेहरवक़्तदेशपरमरमिटनेकाजुनूनसासवारथा।अंग्रेजोकेजुलमसेजहापुरादेशपिडीतथा, वहाइननौजवानोकेदिलमेअंग्रेजोसेशांतीपूर्वमार्गपरन्यायमांगनेकीसोचसेविश्वासउठगयाथा। इसमेलालालजपतरायपरहमलाकरनेवालेसौन्डर्सकीहत्याकरना, दिल्लीकेसेन्ट्रलअसेम्बलीमेहमलाकरनेजैसीघटनाओकोअंजामदेनेमेराजगुरूकाअहमयोगदानथा।भारतीयइतिहासमेराजगुरू, भगतसिंग, सुखदेव, चंद्रशेखरआजादजैसेक्रांतिकारकविरलेहीहुये, जिन्होनेअंतिमसासतकदेशकेप्रतीयोगदानदिया। येलोगहरवक़्तनिर्भीडथेऔरइन्हेजीवनसेज्यादादेशकेप्रतीप्रेमथा, उसकेअंजामस्वरूपइन्होनेहरकष्टसहालेकीनअंग्रेजोकेसामनेकभीभीयेलोगझुकेनही...

सुहागिनें: मोहन राकेश की कहानी

भारत की अग्रणी हिंदी महिला वेबसाइट Femina.in/hindi को सब्स्क्राइब करें. फ़ेमिना भारतीय महिलाओं के मन को समझने का काम कर रही है और इन्हीं महिलाओं के साथ-साथ बदलती रही है, ताकि वे पूरी दुनिया को ख़ुद जान सकें, समझ सकें. और यहां यह मौक़ा है आपके लिए कि आप सितारों से लेकर फ़ैशन तक, सौंदर्य से लेकर सेहत तक और लाइफ़स्टाइल से लेकर रिश्तों तक सभी के बारे में ताज़ातरीन जानकारियां सीधे अपने इनबॉक्स में पा सकें. इसके अलावा आप पाएंगे विशेषज्ञों की सलाह, सर्वे, प्रतियोगिताएं, इन्टरैक्टिव आर्टिकल्स और भी बहुत कुछ! लेखक: मोहन राकेश कमरे में दाख़िल होते ही मनोरमा चौंक गई. काशी उसकी साड़ी का पल्ला सिर पर लिए ड्रेसिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसके होंठ लिपस्टिक से रंगे थे और चेहरे पर बेहद पाउडर पुता था, जिससे उसका सांवला चेहरा डरावना लग रहा था. फिर भी वह मुग्धभाव से शीशे में अपना रूप निहार रही थी. मनोरमा उसे देखते ही आपे से बाहर हो गई. “माई,” उसने चिल्लाकर कहा,“यह क्या कर रही है?” काशी ने हड़बड़ाकर साड़ी का पल्ला सिर से हटा दिया और ड्रेसिंग टेबल के पास से हट गई. मनोरमा के ग़ुस्से के तेवर देखकर पल-भर तो वह सहमी रही, फिर अपने स्वांग का ध्यान हो आने से हंस दी. “बहनजी, माफ़ी दे दें,” उसने मिन्नत के लहज़े में कहा,“कमरा ठीक कर रही थी, शीशे के सामने आई, तो ऐसे ही मन कर आया. आप मेरी तनख़ाह में से पैसे काट लेना.” “तनख़ाह में से पैसे काट लेना!” मनोरमा और भी भड़क उठी,“पन्द्रह रुपये तनख़ाह है और बेग़म साहब साढ़े छ: रुपए लिपस्टिक के कटवाएंगी. कमबख़्त रोज़ प्लेटें तोड़ती है, मैं कुछ नहीं कहती. घी, आटा, चीनी चुराकर ले जाती है, और मैं देखकर भी नहीं देखती. सारा स्टाफ़ शिकायत करता है, कुछ काम नहीं करती, किसी का कहा नहीं...

मोहन राकेश कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक

मोहन राकेश कृत ‘आषाढ़ का एक दिन’ (नाटक) का सम्पूर्ण अध्ययन मोहन राकेश संक्षिप्त जीवनी- मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। इनका मूल नाम मदन मोहन उगलानी उर्फ़ मदन मोहन था। इनके पिता वकील होने के साथ-साथ साहित्य और संगीत प्रेमी भी थे। पिता के साहित्य में रूचि का प्रभाव मोहन राकेश पर भी पड़ा। पंजाब विश्वविधालय से उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में एम०ए० किया। एक शिक्षक होने के नाते पेशेवर जिंदगी की शुरुआत करने के साथ उनका रुझान लघु कहानियों की तरफ हुआ। बाद में उन्होंने कई नाटक और उपन्यास लिखे। अनेक वर्षों तक दिल्ली, जालंधर, शिमला और मुंबई में अध्यापन का कार्य करते रहे। साहित्यिक अभिरूचि के कारण उनका मन अध्यापन कार्य में नहीं लगा और एक अर्श तक उन्होंने सारिका पत्रिका का सम्पादन किया। इस कार्य से भी लेखन में बाधा उत्पन्न करने के कारण इससे अलग कर लिया। जीवन के अंत समय तक स्वतंत्र लेखन ही इनका जिविकोपार्जन का साधन रहा मोहन राकेश नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे। मोहन राकेश की कृतियाँ : उपन्यास:अँधेरे बंद कमरे (1961), न आने वाला कल (1970), अंतराल (1973), काँपता हुआ दरिया, नीली रौशनी की बाहें (अप्रकाशित) कहानियाँ:इंसान के खँडहर (1950), नए बादल (1957) जानवर और जानवर (1958), एक और जिंदगी (1961), फौलाद का आकाश (1966), मिस पाल (1967), मलवे का मालिक (1967), आज के साये (1967), रोंयें रेशे (1968), मिले जुले चहरे (1969), एक-एक दुनिया (1969), पहचान (1972) कहानी संग्रह:‘क्वार्टर’, ‘पहचान’ तथा‘वारिस’ नामक तीन कहानी संग्रह है। जिनमें कुल 54 कहानियाँ हैं। नाटक:आषाढ़ का एक दिन (1958), लहरों के राजहंस (1963), आधे-अधूरे (1969), पैर तले की जमीन (अधुरा कमलेश्वर जी ने पूरा ...

मोहन राकेश की नाट्य स्रष्टि

मोहन राकेश ने कुल चार नाटक लिखे हैं जिनमें से चौथा नाटक ‘पैर तले की ज़मीन‘ वे पूरा नहीं कर सके। शेष तीन नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’ और ‘आधे-अधूरे’ के माध्यम से लेखक ने क्या कहना चाहा है, इस पर इकाई में विचार किया गया है। उनके पहले दो नाटकों का कथानक इतिहास आधारित है। आप इससे पूर्व प्रसाद का नाटक ‘स्कंदगुप्त’ भी पढ़ चुके हैं, उसका कथानक भी इतिहास पर आधारित है। मोहन राकेश ने इतिहास को नाटकों का आधार क्यों बनाया और उनके माध्यम से उन्होंने जो कहना चाहा है, क्या उसका संबंध वर्तमान से है? इस इकाई में इस पहलू पर भी विचार किया गया है। मोहन राकेश के नाटक प्रसाद के नाटकों से काफी अलग हैं। प्रसाद के नाटक अपनी साहित्यिक मूल्यवत्ता के बावजूद रंगमंच पर सफल नहीं थे जबकि राकेश के नाटक दोनों दृष्टियों से सफल थे। उनकी इस सफलता का कारण नाटक और रंगमंच संबंधी उनके सोच में निहित था। इकाई का अध्ययन करने से आप मोहन राकेश के नाटक संबंधी चिंतन से भी परिचित हो सकेंगे। मोहन राकेश के सभी नाटकों की सैकड़ों प्रस्तुतियाँ प्रख्यात निर्देशिकों द्वारा सफलतापूर्वक की गई है। मोहन राकेश के नाटकों के संदर्भ में नाटक और रंगमंच के अंतःसंबंधों पर भी इकाई में विचार किया जाएगा। मोहन राकेश के नाटकों में ‘आधे-अधूरे’ का विशिष्ट स्थान है। इसका कथानक इतिहास आधारित नहीं है। इसको लेकर काफी वाद-विवाद भी होता रहा है, इसके बावजूद इसकी श्रेष्ठता और सफलता असंदिग्ध है। ‘आधे-अधूरे’ के इस महत्व पर भी इकाई में विचार गया जाएगा। मोहन राकेश का नाटक ‘आधे-अधूरे’ स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के दौर में लिखा गया है। इसका कथानक मध्य वर्ग के जीवन से संबंधित है। एक शहरी मध्यवर्गीय परिवार की कहानी इसमें कही गई है जो धीरे-धीरे टूट ...