नांगेली का इतिहास

  1. नीची जाति की महिलाएं चुकाती थीं ‘ब्रेस्ट टैक्स’! अब शॉर्ट फिल्म में दिखेगा नांगेली का संघर्ष
  2. नेपालको इतिहास
  3. नागालैण्ड का इतिहास
  4. नंद वंश
  5. भारत के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य
  6. Indian History in Hindi
  7. नांगेली से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले तक, यहां हर गुनाह के लिए महिला होना ही कसूरवार है
  8. इतिहास की परिभाषा, अर्थ, महत्व तथा इतिहास के जनक कौन है?
  9. नांगेली से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले तक, यहां हर गुनाह के लिए महिला होना ही कसूरवार है
  10. भारत के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य


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नीची जाति की महिलाएं चुकाती थीं ‘ब्रेस्ट टैक्स’! अब शॉर्ट फिल्म में दिखेगा नांगेली का संघर्ष

19वीं सदी की शुरुआत में केरल के त्रावणकोर साम्राज्य में निम्न जाति की महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर अपने वक्षों को ढकने पर टैक्स चुकाना पड़ता था। इस ‘ब्रेस्ट टैक्स’ को मुलाकरम भी कहा जाता था। यहां महिलाओं के वक्षों के आकार और साइज़ के हिसाब से टैक्स निर्धारित किया जाता था। इसी दौर में चेरथाला में नांगेली नाम की एक बेहद वीर महिला हुईं। नांगेली ने निम्न जाति की महिलाओं के साथ होते इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने ब्रेस्ट टैक्स देने से साफ इनकार कर दिया। वे इस टैक्स के खिलाफ विरोध में वक्षों को ढक कर ही पब्लिक में निकलती थीं। और तो और, उन्होंने ब्रेस्ट टैक्स लेने आए अफसर को अपने वक्ष काट कर दे दिए थे। नांगेली के इस तीखे विरोध से लोग हैरत में पड़ गए थे। नांगेली की उसी दिन ज़्यादा खून बह जाने के चलते मौत हो गई थी। नांगेली के पति चिरूकंदन अपनी पत्नी को मृत पाकर सदमे में थे और उन्होंने पत्नी की चिता में जलकर आत्मदाह कर लिया था। चिरूकंदन पहले ऐेसे व्यक्ति माने जाते हैं, जो अपनी पत्नी के लिए सती हो गए थे। नांगेली और चिरूकंदन की शहादत के बाद कई लोग इस अमानवीय ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ खड़े हुए। लोगों के विरोध-प्रदर्शन के बाद आखिरकार ब्रेस्ट टैक्स को हटाया पड़ा था। Soul2Soul पिक्चर कंपनी ने नांगेली की इस अद्भुत कहानी को एक शॉर्ट फिल्म में तब्दील किया है। इस शॉर्ट फिल्म का नाम ब्रेस्ट टैक्स है। फिल्म के लेखक और निर्देशक योगेश पागरे हैं। इस फिल्म में योगेश ने नांगेली के साहसी पति चिरूकंदन का किरदार निभाया है। फिल्म में अनुश्री कुशवाहा ने नांगेली का किरदार निभाया है। अनुश्री ने कहा कि ‘हर एक्टर अपने लिए चुनौतीपूर्ण रोल की तलाश करता है। मैं बेहद खुश हूं कि मुझे नांगेली जैसी महिला का कै...

नेपालको इतिहास

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नागालैण्ड का इतिहास

काल खण्ड [ ] • 1816 में जब • 1947 में भारत की आजादी के बाद, • 1957 में नागा नेता और • 1960 में नागा लोगो के सम्मलेन बैठक इस बात को पेश किया गया की नागालैंड को • 1 दिसम्बर 1963 में • विद्रोही गतिविधियाँ जारी रही, साथ ही क्षेत्र में डाकुओ की संख्या भी बढ़ रही थी। मोल भाव कर कुछ समय तक विद्रोह को रोका गया और मार्च 1975 में राज्य पर प्रत्यक्ष राष्ट्रपति शासन लागु किया गया। • 1975 सबसे बड़े विद्रोह समूहों के नेताओं ने अपने हथियार डालने और भारतीय संविधान को स्वीकार करने पर सहमति व्यक्त की। • 1980 में शक्तिशाली समर्थक अलगाववादी चरमपंथी समूह, सन्दर्भ [ ]

नंद वंश

पूर्ववर्ती परवर्ती अब जिस देश का हिस्सा है पुराणों में इसे नंद राजवंश के प्रथम शासक को महापद्मनंद कहा गया है तथा सर्वक्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ई.पू. उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई। यह साम्राज्य एक-रात की छत्रछाया में एक अखंड स्मित के शब्दों में कहें तो "उन्होंने 66 परस्पर विरोधी राज्यों को इस बात के लिए विवश किया कि वह आपसी उखाड़-पछाड़ न करें और स्वयं को किसी उच्चतर नियामक सत्ता के हाथों सौंप दे।" महापद्म नन्द के नव नंद प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त और अनुक्रम • 1 ऐतिहासिक स्रोत • 2 इतिहास • 2.1 सैन्य शक्ति • 2.2 नंदो की विजय • 2.3 अपार धन दौलत • 2.4 नंद वंश के शासक • 3 नंद वंश की उपलब्धियां और महत्त्व • 4 सारांश • 5 शासकों की सूची • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 सन्दर्भ ग्रन्थ • 9 बाहरी कड़ियाँ ऐतिहासिक स्रोत [ ] • नंदो को समस्त भारतीय एवं विदेशी साक्ष्य तत्कालीन महत्वपूर्ण क्षत्रिय नाई(न्यायी) होने का प्रमाणित करते हैं। • चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद का इतिहास उड़ीसा में उदयगिरि पर्वत माला से दक्षिणी भाग में एक प्राकृतिक गुफा है, इसे हाथी गुफा कहा जाता है उसमें प्राप्त पाली भाषा से मिलती-जुलती प्राकृत भाषा और ब्रम्ही लिपि के 17 पंक्तियों में लिखे अभिलेख से प्राप्त होता है जिसके पंक्ति 6 और 12 में नंदराज के बारे में कलिंग के राजा खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराया माना जाता है। इस हाथी गुफा अभिलेख को ईसा पूर्व पहली सदी का ...

भारत के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य

हर देश का राष्ट्रीय ध्वज उसकी स्वतंत्रता का प्रमाण और उसकी पहचान होता है। यही कारण है कि बचपन से हमें तिरंगे का सम्मान करने की सीख दी जाती है। हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को लोग अपने-अपने घरों, दफ्तरों, स्कूल व कॉलेज आदि में तिरंगा फेहराते तो हैं, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास की जानकारी कम लोग को ही होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए माॅमजंक्शन के इस लेख में भारत के झंडे से जुड़ी कुछ ऐसी जानकारी दी गई है, जिसके बारे में जानना हर किसी के लिए जरूरी है। इस लेख में आप तिरंगे के इतिहास के साथ जानेंगे ध्वज का विकास, उसे फहराने का सही तरीका और उससे जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य। • • • • तिरंगे का इतिहास भारत का राष्ट्रीय ध्वज आज जिस स्वरूप में उसे 22 जुलाई 1947 को कॉन्स्टिटुएंट असेंबली में हुई मीटिंग के दौरान मान्यता मिली थी। इसे तिरंगा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह तीन रंगों से मिलकर बना है – केसरिया, सफेद और हरा। साथ ही बीच में मौजूद सफेद रंग के ऊपर गहरे नीले (नेवी ब्लू) रंग का अशोक चक्र भी मौजूद होता है इस निराले तिरंगे की विकास यात्रा को जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास 1947 से पहले राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप पांच बार बदला गया था, जो इस प्रकार है • 1906 : राष्ट्रीय ध्वज पहली बार 7 अगस्त, 1906 को उस समय के कलकत्ता यानी आज के कोलकता में फहराया गया था। इस झंडे में तीन रंग थे – हरा, पीला और लाल। सबसे ऊपर हरा रंग, जिस पर कमल बने थे, बीच में पीले रंग पर “वंदे मातरम्” लिखा था और सबसे नीचे लाल रंग पर एक तरफ चांद व एक तरफ सूरज बना था। • 1917 : भारत का तीसरा झंडा 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान डॉ. एनी बैसैंट और बाल गंगाधर तिलक द्वारा फहराया गया था। इस झंडे में ...

Indian History in Hindi

भारतीय इतिहास की शुरुआत लगभग 65000 साल पहले होमो सेपियन्स के साथ हुई थी। होमो सेपियन्स अफ्रीका, दक्षिण भारत, बलूचिस्तान से होते हुए सिंधु घाटी पहुंचे और यहाँ नगरीकरण का बसाव किया जिससे सिंधु घाटी सभ्यता विकसित हुई। भारतीय इतिहास, सिंधु घाटी की रहस्यमई संस्कृति से शुरू होकर भारत के दक्षिणी इलाकों में किसान समुदाय तक फैला। भारतीय इतिहास में पाषाण युग, कांस्य युग, लौह युग का विस्तृत वर्णन मिलता है। हमारे आज के इस ब्लॉग में हम Indian history in Hindi के बारे में विस्तार से जानेंगे। भारतीय इतिहास के भाग Indian History in Hindi को तीन भागों में बांटा गया है • प्राचीन भारत • मध्यकालीन भारत • आधुनिक भारत प्राचीन भारत प्राचीन भारत का इतिहास पाषाण युग से लेकर इस्लामी आक्रमणों तक है। इस्लामी आक्रमण के बाद भारत में मध्यकालीन भारत की शरुआत हो जाती है। प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम Indian History in Hindi के इस ब्लॉग में प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम निम्नलिखित है :- • प्रागैतिहासिक कालः 400000 ई.पू.-1000 ई.पू. : इस समय में मानव ने आग और पहिये की खोज की। • सिंधु घाटी सभ्यताः 2500 ई.पू.-1500 ई.पू. : सिंधु घाटी सभ्यता सबसे पहली व्यवस्थित रूप से बसी हुई सभ्यता थी। नगरीकरण की शरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से मानी जाती है। • महाकाव्य युगः 1000 ई.पू.-600 ई.पू. : इस समय काल में वेदों का संकलन हुआ और वर्णों के भेद हुए जैसे आर्य और दास। • हिंदू धर्म और परिवर्तनः 600 ई.पू.-322 ई.पू. : इस समय में जाती प्रथा अपने चरम पर थी। समाज में आयी इस रूढ़िवादिता का परिणाम महावीर और बुद्ध का जन्म था। इस समय में महाजनपदों का गठन हुआ। 600 ई. पू.- 322 ई. पू. में बिम्बिसार, अजात शत्रु, शिसुनंगा और नंदा राजवंश का...

नांगेली से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले तक, यहां हर गुनाह के लिए महिला होना ही कसूरवार है

आपने शायद नांगेली का नाम तो सुना होगा! बहुत ज्यादा विस्तार से ना जाऊं तो नांगेली वह महिला थी जिसने अपने स्तन ढकने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी थी। 19वीं शताब्दी में छोटी जाति की महिलाओं ने अपने स्तन ढकने के लिए एक लड़ाई लड़ी थी क्योंकि उस समय उन महिलाओं को अपने स्तन ढकने के लिए स्तन कर (टैक्स) देना पड़ता था। नांगेली ने इससे तंग आकर अपने स्तन ही काट दिए थे और कर लेने आए अफसर के आगे पेश कर दिए थे, जिसके बाद नांगेली की जान चली गई लेकिन उनकी शहादत बेकार नहीं गई और आखिरकार स्तन कर हटाया गया। आज यहां इस वाकये को इसलिए साझा किया जा रहा है क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति छोटे बच्चों के स्तन को कपड़ों के ऊपर से छूता है तो वह मामला पोक्सो के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का गंभीर मामला नहीं होगा। चूंकि बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला द्वारा दिए गए इस फ़ैसले के अनुसार यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए यौन मंशा से स्किन से स्किन का संपर्क होना ज़रूरी है। उनका ये आदेश 19 जनवरी को आया था। 19वीं सदी से 21वीं सदी आ गया है लेकिन बदला क्या। पहले स्तन ढकने नहीं दिए जाते थे इसलिए महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की कोई सुध नहीं लेता था। आज कपड़े पहनने का अधिकार तो मिला लेकिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा होने पर भी उसे गंभीर नहीं समझा जा रहा जबकि इस देश की अधिकतर महिलाओं को इस तरह के अनुभव से जूझना पड़ता है। यदि बॉम्बे हाईकोर्ट की मानी जाए तो जो व्यक्ति सार्वजनिक या अकेले में भी किसी भी बच्ची को चलते-फिरते उनके स्तन को मसल दे, दबा दे, हाथ मार दे, उनकी जांघों और नितम्बों को दबोच ले तो भी वह यौन उत्पीड़न का गंभीर मामला नहीं माना जाएगा क्योंकि फै़सल...

इतिहास की परिभाषा, अर्थ, महत्व तथा इतिहास के जनक कौन है?

इतिहास अतीत की घटनाओं का अध्ययन है, जो व्यक्तिगत लोगों और समाजों से लेकर संपूर्ण सभ्यताओं तक हो सकता है। यह एक अनुशासन है जो यह देखता है कि अतीत ने हमारी वर्तमान दुनिया को कैसे आकार दिया है और वर्तमान में बेहतर निर्णय लेने के लिए हम इससे कैसे सीख सकते हैं। इतिहास यह समझने के लिए कि वे समय के साथ कैसे बदल गए हैं, विभिन्न संस्कृतियों, विश्वासों और प्रथाओं की जांच भी करता है। प्राचीन समय में घटित घटनाओं (निश्चित) तथा धारणाओं को व्यवस्थित ढंग से बुनकर कहानी के रूप में पेश करना ही इतिहास कहलाता है। इतिहास की परिभाषा क्या होता है? इतिहास किसे कहते है? इस प्रश्न के कई उत्तर हो सकते हैं, आपके सामने कई परिभाषाओं को प्रस्तुत किया गया है। इनमें से जो अच्छा लगे उनका आप चुनाव कर सकते हैं। “इतिहास ज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम मानव जाति से संबंधित पिछली घटनाओं का अध्ययन करते हैं उसे इतिहास कहते हैं।” “किसी विशेष लोगों, देश, अवधि, व्यक्ति इत्यादि से संबंधित पिछले घटनाओं की निरंतर, व्यवस्थित एवं सार्थक कथा को इतिहास कहते हैं। “ “किसी भी स्थान पर घटित घटनाओं या उससे संबंधित घटनाएँ जो किसी व्यक्ति, समाज एवं सार्वजनिक क्षेत्रों संबंधित हो तथा उन तथ्यों को क्रम अनुसार विवेचना किया जाता हो उसे इतिहास कहते हैं”। “प्राचीन से लेकर अब तक मानव-जाति से संबंधित घटनाओं का साक्ष्य या तथ्यों पर आधारित वर्णन इतिहास कह सकते हैं। “ इतिहास कितने प्रकार के होते हैं? समय के आधार पर, इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। तीन मुख्य प्रकार प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास हैं। प्राचीन इतिहास की परिभाषा: प्राचीन इतिहास अध्ययन का एक क्षेत्र है जो मध्य युग से पहले के इतिहास की अवधि को शामिल करता है, आम त...

नांगेली से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले तक, यहां हर गुनाह के लिए महिला होना ही कसूरवार है

आपने शायद नांगेली का नाम तो सुना होगा! बहुत ज्यादा विस्तार से ना जाऊं तो नांगेली वह महिला थी जिसने अपने स्तन ढकने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी थी। 19वीं शताब्दी में छोटी जाति की महिलाओं ने अपने स्तन ढकने के लिए एक लड़ाई लड़ी थी क्योंकि उस समय उन महिलाओं को अपने स्तन ढकने के लिए स्तन कर (टैक्स) देना पड़ता था। नांगेली ने इससे तंग आकर अपने स्तन ही काट दिए थे और कर लेने आए अफसर के आगे पेश कर दिए थे, जिसके बाद नांगेली की जान चली गई लेकिन उनकी शहादत बेकार नहीं गई और आखिरकार स्तन कर हटाया गया। आज यहां इस वाकये को इसलिए साझा किया जा रहा है क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति छोटे बच्चों के स्तन को कपड़ों के ऊपर से छूता है तो वह मामला पोक्सो के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का गंभीर मामला नहीं होगा। चूंकि बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला द्वारा दिए गए इस फ़ैसले के अनुसार यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए यौन मंशा से स्किन से स्किन का संपर्क होना ज़रूरी है। उनका ये आदेश 19 जनवरी को आया था। 19वीं सदी से 21वीं सदी आ गया है लेकिन बदला क्या। पहले स्तन ढकने नहीं दिए जाते थे इसलिए महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की कोई सुध नहीं लेता था। आज कपड़े पहनने का अधिकार तो मिला लेकिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा होने पर भी उसे गंभीर नहीं समझा जा रहा जबकि इस देश की अधिकतर महिलाओं को इस तरह के अनुभव से जूझना पड़ता है। यदि बॉम्बे हाईकोर्ट की मानी जाए तो जो व्यक्ति सार्वजनिक या अकेले में भी किसी भी बच्ची को चलते-फिरते उनके स्तन को मसल दे, दबा दे, हाथ मार दे, उनकी जांघों और नितम्बों को दबोच ले तो भी वह यौन उत्पीड़न का गंभीर मामला नहीं माना जाएगा क्योंकि फै़सल...

भारत के राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य

हर देश का राष्ट्रीय ध्वज उसकी स्वतंत्रता का प्रमाण और उसकी पहचान होता है। यही कारण है कि बचपन से हमें तिरंगे का सम्मान करने की सीख दी जाती है। हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को लोग अपने-अपने घरों, दफ्तरों, स्कूल व कॉलेज आदि में तिरंगा फेहराते तो हैं, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास की जानकारी कम लोग को ही होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए माॅमजंक्शन के इस लेख में भारत के झंडे से जुड़ी कुछ ऐसी जानकारी दी गई है, जिसके बारे में जानना हर किसी के लिए जरूरी है। इस लेख में आप तिरंगे के इतिहास के साथ जानेंगे ध्वज का विकास, उसे फहराने का सही तरीका और उससे जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य। • • • • तिरंगे का इतिहास भारत का राष्ट्रीय ध्वज आज जिस स्वरूप में उसे 22 जुलाई 1947 को कॉन्स्टिटुएंट असेंबली में हुई मीटिंग के दौरान मान्यता मिली थी। इसे तिरंगा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह तीन रंगों से मिलकर बना है – केसरिया, सफेद और हरा। साथ ही बीच में मौजूद सफेद रंग के ऊपर गहरे नीले (नेवी ब्लू) रंग का अशोक चक्र भी मौजूद होता है इस निराले तिरंगे की विकास यात्रा को जानने के लिए पढ़ते रहें यह लेख। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास 1947 से पहले राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप पांच बार बदला गया था, जो इस प्रकार है • 1906 : राष्ट्रीय ध्वज पहली बार 7 अगस्त, 1906 को उस समय के कलकत्ता यानी आज के कोलकता में फहराया गया था। इस झंडे में तीन रंग थे – हरा, पीला और लाल। सबसे ऊपर हरा रंग, जिस पर कमल बने थे, बीच में पीले रंग पर “वंदे मातरम्” लिखा था और सबसे नीचे लाल रंग पर एक तरफ चांद व एक तरफ सूरज बना था। • 1917 : भारत का तीसरा झंडा 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान डॉ. एनी बैसैंट और बाल गंगाधर तिलक द्वारा फहराया गया था। इस झंडे में ...