नित्यपाठाच्या बेचाळीस ओव्या

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नित्य पाठाच्या बेचाळीस ओव्या ॐ नमोजी अपरिमिता। आदि अनादि मायातीता। पूर्ण ब्रह्मानंदा शाश्र्वता। हेरंबतात जगद्गुरु॥ १ ॥ ज्योतिर्मयस्वरुपा पुराणपुरुषा। अनादिसिद्धा आनंदवनविलासा। मायाचक्रचाळका अविनाशा। अनंतवेषा जगत्पते॥ २ ॥ जयजय विरुपाक्षा पंचवदना। कर्माध्यक्षा शुद्धचैतन्या। मनोजदमनी मनमोहना। कर्ममोचका विश्र्वभरा॥ ३ ॥ जेथे सर्वदा शिवस्मरण । तेथे भुक्ति मुक्ति आनंद कल्याण । नाना संकटें विघ्नें दारुण । न बाधती कालत्रयीं॥ ४ ॥ संकेतें अथवा हास्येंकरुन । भलत्या मिषें घडो शिवस्मरण । न कळतां परिस लोहालागुन । झगटतां सुवर्ण करीतसे॥ ५ ॥ न कळतां प्राशितां अमृत । अमर काया होय यथार्थ । औषध नेणतां भक्षित । परी रोग हरे तत्काळ ॥ ६ ॥ जय जय मंगलधामा। निजजनतारका आत्मारामा। चराचरफलांकित कल्पद्रुमा। नामा अनामा अतीता॥ ७ ॥ हिमाचलसुतामनरंजना। स्कंदजनका शफरीध्वजदहना। ब्रह्मानंदा भाललोचना। भवभंजन महेश्र्वर ॥ ८ ॥ हे वामदेवा अघोरा। तत्पुरुषा ईशाना ईश्र्वरा। अर्धनारीनटेश्र्वरा। गिरिजारंगा गिरीशा॥ ९ ॥ धराधरेंद्र मानससरोवरीं। तू शुद्ध मराळ क्रीडसी निर्धारीं। तव अपार गुणांसी परोपरी। सर्वदा वर्णिती आम्नाय ॥ १० ॥ न कळे तुझें आदिमध्यावसान । आपणचि सर्वकर्ता कारण । कोठें प्रगटशी याचें अनुमान । ठायीं न पडे ब्रह्मांदिका॥ ११ ॥ जाणोनि भक्तांचे मानस । तेथेंचि प्रगटशी जगन्निवास । सर्वकाळ भक्तकार्यास । स्वांगे उडी घालिसी॥ १२ ॥ ' सदाशिव ' ही अक्षरें चारी। सदा उच्चारी ज्याची वैखरी। तो परमपावन संसारी। होऊनि तारी इतरांतें॥ १३ ॥ बहुत शास्रवक्ते नर । प्रायश्र्चित्तांचा करितां विचार । परी शिवनाम एक पवित्र । सर्व प्रायश्र्चित्तां आगळें॥ १४ ॥ नामाचा महिमा अद्भुत । त्यावरी प्रदोषव्रत आचरत । त्यासी सर्व सिद्धि प्राप्त होत । सत्य...

Om Namo Ji Shiva Aparimita

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शिवलीलामृत बेचाळीस ओव्या

(नित्यपाठाच्या बेचाळीस ओव्या ॥ ॐ नमोजी शिवा अपरिमिता ॥ आदि अनादि मायातीता ॥ पूर्ण ब्रह्मानंदा शाश्वता ॥ हेरंबताता जगद्गुरु ॥६१॥ ज्योतिर्मयस्वरूपा पुराणपुरुषा ॥ अनादिसिद्धा आनंदवनविलासा ॥ मायाचक्रचाळका अविनाशा ॥ अनंतवेषा जगत्पते ॥६२॥ जयजय विरूपाक्षा पंचवदना ॥ कर्माध्यक्षा शुद्ध चैतन्या ॥ मनोजदमना मनमोहना ॥ कर्ममोचका विश्वंभरा ॥६३॥ जेथे सर्वदा शिवस्मरण ॥ तेथे भुक्ति मुक्ति आनंद कल्याण ॥ नाना संकटे विघ्ने दारुण ॥ न बाधिती कालत्रयी ॥६४॥ संकेते अथवा हास्येकरून ॥ भलत्या मिषे घडो शिवस्मरण ॥ न कळता परिस लोहालागुन ॥ झगडता सुवर्ण करीतसे ॥६५॥ न कळत प्राशिता अमृत ॥ अमर काया होय यथार्थ ॥ औषध नेणता भक्षिता ॥ परी रोग हरे तत्काळ ॥६६॥ जय जय मंगलधामा ॥ निजजनतारक आत्मारामा ॥ चराचरफलांकित कल्पद्रुमा ॥ नामा अनामा अतीता ॥६७॥ हिमाचलसुतामनरंजना ॥ स्कंदजनका शफरीध्वजादहना ॥ ब्रह्मानंदा भाललोचना ॥ भवभंजना महेश्वरा ॥६८॥ हे शिवा वामदेवा अघोरा तत्पुरुषा ईशाना ईश्वरा ॥ अर्धनारीनटेश्वरा ॥ गिरुजारंगा गिरीशा ॥६९॥ धराधरेंद्रमानससरोवरी ॥ तू शुद्ध मराळ क्रीडसी निर्धारी ॥ तव अपार गुणासी परोपरी ॥ सर्वदा वर्णिती आम्नाय ॥२७०॥ नकळे तुझे आदिमध्यावसान ॥ आपणचि सर्व कर्ता कारण ॥ कोठे प्रगटशी याचे अनुमान ॥ ठायी न पडे ब्रह्मादिका ॥७१॥ जाणोनि भक्तांचे मानस ॥ तेथेंचि प्रगटशी जगन्निवास ॥ सर्वकाळ भक्तकार्यास स्वांगे उडी घालिसी ॥७२॥ सदाशिव ही अक्षरे चारी ॥ सदा उच्चारी ज्याची वैखरी ॥ तो परमपावन संसारी ॥ होऊनि तारी इतरांते ॥७३॥ बहुत शास्त्रवक्ते नर ॥ प्रायश्चित्तांचे करिता विचार ॥ परी शिवनाम एक पवित्र ॥ सर्व प्रायश्चिता आगळे ॥७४॥ नामाचा महिमा अद्भुत ॥ त्यावरी प्रदोषव्रत आचरत ॥ त्यांसी सर्व सिद्धि प्राप्त होत ॥ सत्य सत्य त्रिवा...