नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं pdf

  1. ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ
  2. नव पाषाण काल
  3. भारत में प्रागैतिहासिक युग
  4. नवपाषाण युग की प्रमुख विशेषता? » Navapashan Yug Ki Pramukh Visheshata
  5. ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं बताइए
  6. पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं
  7. नवपाषाण काल (Neolithic age) – History of India


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ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ

ताम्रपाषाण काल के बारे में जानकारी नवपाषाण काल के अन्त का वह काल खण्ड है जबकि कुछ स्थानों पर पाषाण के साथ-साथ सीमित स्तर पर धातु का इस्तेमाल किया जाता था। वास्तव में नवपाषाण काल धातुरहित स्तर माना जाता है क्योंकि इस काल में धातु के व्यापक उपयोग के संकेत नहीं मिलते , किन्तु जिन कुछ स्थानों पर पाषाण के साथ-साथ सीमित मात्रा में धातु के उपयोग के उदाहरण विद्यमान हैं। उन्हें पुरातत्ववेत्ता ताम्रपाषाण काल खण्ड के नाम से पुकारते हैं। अर्थात वह काल खण्ड जिसमें पाषाण व ताम्र दोनों का उपयोग होता हो। नवपाषाण युग के इस काल खण्ड में विकसित हुई संस्कृतियां ताम्रपाषाण संस्कृतियां कहलाती हैं। (क) उत्तर पश्चिम उत्तर पश्चिम भारत की ताम्रपाषाणकालीन बस्तियाँ ( Chaleolithic Settlements of North-West India) भारत में नवपाषाण के अन्तिम काल खण्ड में जब धातु युग प्रारम्भ हुआ , तब अनेक स्थानों पर पत्थर के साथ-साथ तांबे का इस्तेमाल प्रारम्भ हो गया। कुछ स्थानों पर पत्थर के बाद सीधा लोहे का ही इस्तेमाल हुआ। उत्तर भारत की प्रमुख ताम्रपाषाण बस्तियों का वर्णन (1) कश्मीर का ' बुर्जहोम ' • कश्मीर ने नवपाषाण काल में एक समृद्ध संस्कृति को जन्म दिया था। श्रीनगर के निकट ' बुर्जहोम ' नामक स्थान मिला है जहाँ नवपाषाण कालीन अनेक चीजें प्राप्त हुई हैं। इस युग पहले काल खण्ड में हाथ के बने मिट्टी के बर्तन तथा आरियाँ , काँटे , छुरियाँ व सुईयाँ आदि हाथ से काम करने में इस्तेमाल आने वाले औजार प्राप्त हुए हैं। इनके अतिरिक्त फसल काटने वाले पत्थर के औजार भी मिले हैं। नवपाषाण काल के अगले चरण में गारे व कच्ची ईंट के घर , चाक से बनाए गए मिट्टी के बर्तन तथा सीमित मात्रा में तांबे का उपयोग मिलता है। ( 2 ) मेहरगढ़-बलूचिस्तान • बलूच...

नव पाषाण काल

नवपाषाण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सर जान लुबाक ने अपनी पुस्तक प्री-हिस्टारिक टाइम्स में किया था। माइल्स वर्किट ने नवपाषाण काल की शुरुआत उस समय से मानी है। जब मानव ने कृषि कार्य करना, पशुओं का पालन करना, पत्थर के औजारों का घर्षण और उन पर पॉलिश करना तथा मृद्भाण्ड बनाना प्रारम्भ कर दिया था। आधुनिक मान्यताओं के अनुसार नवपाषाण शब्द उस संस्कृति का द्योतक है जब यहाँ के रहने वालों ने अनाज उगाकर तथा पशुओं को पालतू बनाकर भोजन के पर्याप्त साधन जुटा लिए थे। तथा एक स्थान पर रहकर जीवन बिताना शुरू कर दिया था तथा प्रस्तर औजारों को अधिक विकसित कर लिया था। एक स्थान पर टिककर जीवन बिताने के आधार पर ग्राम समुदायों की शुरुआत हुई। इस प्रकार कृषि प्रौद्योगिकी की भी शुरुआत हुई तथा प्राकतिक साधनों का अधिक दोहन शुरू हुआ। इस काल की समय सीमा 3500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व मानी जाती हैं। यूनानी भाषा में “Neo” शब्द का अर्थ होता है-नवीन तथा lithos शब्द का अर्थ होता है- पाषाण। अतः इन्ही शब्दों को मिलाकर Neolithic शब्द बना है जिसका अर्थ है -नवपाषाण। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। नवपाषाण काल के प्रमुख क्षेत्र 1-उत्तर पश्चिमी क्षेत्र वर्तमान अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में ऐसी गुफायें खोजी गयी हैं। जहाँ के लोगों द्वारा 7 हजार ईसा पूर्व में भेड़ व बकरियां पाली जाती थीं। यहीं से गेहूं और जौ की खेती की शुरुआत के प्रारंभिक साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र का प्रमुख स्थल है मेहरगढ़। मेहरगढ़ के उत्खनन से पता चलता कि इस क्षेत्र का नवपाषाण काल से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक एक लम्बा सांस्कृतिक इतिहास रहा है। मेहरगढ़ से तांबा गलाने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। यहाँ पर गेहूं की तीन तथा जौ की दो किस्मों की खेत...

भारत में प्रागैतिहासिक युग

भारत में प्रागैतिहासिक काल [यूपीएससी के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास के नोट्स] प्रागैतिहासिक काल का तात्पर्य उस समय से है जब कोई लेखन और विकास नहीं हुआ था। इसमें पांच काल शामिल हैं - पुरापाषाण, मध्यपाषाण, नवपाषाण, ताम्रपाषाण और लौह युग। यह प्राचीन भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है प्रागैतिहासिक भारत इतिहास इतिहास (ग्रीक शब्द से - हिस्टोरिया, जिसका अर्थ है "पूछताछ", जांच द्वारा प्राप्त ज्ञान) अतीत का अध्ययन है। इतिहास एक छत्र शब्द है जो पिछली घटनाओं के साथ-साथ इन घटनाओं के बारे में जानकारी की खोज, संग्रह, संगठन, प्रस्तुति और व्याख्या से संबंधित है। इसे पूर्व-इतिहास, आद्य-इतिहास और इतिहास में विभाजित किया गया है। 1 पूर्व-इतिहास - लेखन के आविष्कार से पहले हुई घटनाओं को पूर्व-इतिहास माना जाता है। पूर्व-इतिहास तीन पाषाण युगों द्वारा दर्शाया गया है। 2 आद्य-इतिहास - यह पूर्व-इतिहास और इतिहास के बीच की अवधि को संदर्भित करता है, जिसके दौरान एक संस्कृति या संगठन अभी तक विकसित नहीं हुआ था, लेकिन एक समकालीन साक्षर सभ्यता के लिखित अभिलेखों में इसका उल्लेख है। उदाहरण के लिए, हड़प्पा सभ्यता की लिपियों को समझा नहीं गया है, हालांकि मेसोपोटामिया के लेखन में इसके अस्तित्व का उल्लेख होने के कारण इसे प्रोटो-इतिहास का हिस्सा माना जाता है। इसी तरह, 1500-600 ईसा पूर्व की वैदिक सभ्यता को भी आद्य-इतिहास का हिस्सा माना जाता है। पुरातत्वविदों द्वारा नवपाषाण और ताम्रपाषाण संस्कृतियों को भी आद्य-इतिहास का हिस्सा माना जाता है। 3 इतिहास - लेखन के आविष्कार के बाद अतीत का अध्ययन और लिखित अभिलेखों और पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर साक्षर समाजों के अध्ययन से इतिहास बनता है। प्राचीन भारतीय इतिहास क...

नवपाषाण युग की प्रमुख विशेषता? » Navapashan Yug Ki Pramukh Visheshata

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। आपका प्रश्न है कि महाजनपद युग की राजनीतिक विशेषता क्या थी मैं आपको बताना चाहूंगा महाजनपद युग की में बड़े-बड़े सारे थे इसके अलावा यह 12 हफ्ते प्रमुख महाजनपद थे जो छोटी-छोटी राज्यों में विभक्त थे अर्थात सबसे प्रमुख राज्य महाजनपद देश महाजनपद था यह छोटे-छोटे राज्य और गांव में बैठे हुए थे aapka prashna hai ki mahajanpad yug ki raajnitik visheshata kya thi main aapko bataana chahunga mahajanpad yug ki mein bade bade saare the iske alava yah 12 hafte pramukh mahajanpad the jo choti choti rajyo mein vibhakt the arthat sabse pramukh rajya mahajanpad desh mahajanpad tha yah chote chhote rajya aur gaon mein baithe hue the आपका प्रश्न है कि महाजनपद युग की राजनीतिक विशेषता क्या थी मैं आपको बताना चाहूंगा महाजनपद य

ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं बताइए

2 इन्हें भी पढ़ें: ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं 1. हथियार एवं उपकरण उत्खनन से प्राप्त हथियार और उपकरणों के अध्ययन के आधार पर यह पाया गया कि ताम्र पाषाण काल में मानव ने पाषाण और ताम्र दोनों से बने दोनों से बने उपकरण से इस्तेमाल करते थे. इस काल के उपकरण आकार में कुछ छोटे होते थे. इसी वजह से इस काल को लघु पाषाण काल भी कहा जाता है. 4. मिट्टी के बर्तन उत्खनन के परिणामस्वरूप मिट्टी से बने प्याले, तश्तरियाँ, घड़े तथा अन्य बर्तन के प्राप्त होने से यह स्पष्ट होता है कि इस काल के लोग मिट्टी से बने बर्तनों का इस्तेमाल करते थे. इस काल में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के बर्तन, नवपाषाण काल के बर्तनों की तुलना में अधिक तराशा हुआ और खूबसूरत होते थे. इस काल के बर्तनों में पशु-पक्षियों तथा फूल-पत्तियों के आकृतियां बनी होती थी. इससे यह बात पता चलता है कि इस काल में चित्रकला भी विकसित होने लगी थी. 5. व्यवसाय एवं यातायात के साधन ताम्रपाषाण कालीन भारतीय मनुष्यों का प्रमुख व्यवसाय कृषि, पशुपालन, सूत-काटना, कपड़े बुनना आदि था. इस काल में व्यापार वस्तु विनिमय के माध्यम से होता था. यातायात के साधन के रूप में नौका और पशुओं के द्वारा खींचे जाने वाली गाड़ियां होती थी. 6. गृह निर्माण उत्खनन के परिणाम स्वरूप मिले अवशेषों से पता चलता है कि इस काल में मनुष्य घास-फूस से अपने घरों का निर्माण किया करते थे. 7. धर्म उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर हमें यह भी पता चलता है है कि ताम्रपाषाण कालीन मानव देवी-देवताओं और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते थे. उत्खनन से इस काल के ताबीज प्राप्त होने, मोहरों पर पशु का आकृति होने से यह पता चलता है कि तत्कालीन मानव जादू-टोने पर विश्वास करते थे. इसके अलावा व...

पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं

पुरापाषाण काल ( Palaeolithic) प्रौगएतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने के औजार बनाना सबसे पहले आरम्भ किया। यह काल आधुनिक काल से 25-20 लाख साल पूर्व से लेकर 12,000 साल पूर्व तक माना जाता है। इस दौरान मानव इतिहास का 99% विकास हुआ। इस काल के बाद का प्रारंभ हुआ जब मानव ने करना शुरु किया था। भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष के कुरनूल, के हुँस्न्गी, के कुलिआना, के तालाब के निकट और के में मिलते हैं। इन अवशेषो की संख्या मध्यपाषाण काल के प्राप्त अवशेषो से बहुत कम है। इस काल को जलवायु परिवर्तन तथा उस समय के पत्थर के हथियारो तथा औजारो के प्रकारों के आधार पर निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है:- (1)निम्नपुरापाषाण काल (2)मध्यपुरापाषाण काल (3)उत्तर या उच्चपुरापाषाण काल

नवपाषाण काल (Neolithic age) – History of India

नवपाषाण काल को जॉन लुबाक ने नवपाषाण संस्कृति की संज्ञा दी है। तथा गॉर्डन चाइल्ड ने भी यह कहा है। इसका कारण यह है कि इस काल में मानव खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक की श्रेणी में आ गया था। इस काल में कृषि व पशुपालन का विकास हुआ। कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य मेहरगढ (ब्लूचिस्तान, पाकिस्तान) से प्राप्त हुए हैं। इस काल में स्थाई निवास के प्रमाण मिले हैं। गेहूँ तथा जौ भी इसी काल में मिले हैं तथा खजूर की एक किस्म भी प्राप्त हुई है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ व जौ हैं। पहिए का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ। इस काल से ही पता चलता है कि मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को पालतू बनाया। कृषि कर्म से अनाज के संग्रह, भोजन की पद्धति हेतु मृदभाण्डों का निर्माण प्रारंभ हुआ। कृषि कार्य के लिए पत्थर के उपकरण अधिक धारदार व सुघङ बनने लगे । उन पर पोलिश भी होने लगी। अनाज के उत्पादन से जीवन में स्थायित्व की प्रवृत्ति आई तथा ग्राम संस्कृति की स्थापना हुई। ब्लुचिस्तान – मेहरगढ, सरायखोल कश्मीर – बुर्जहोम, गुफ्कराल उत्तरप्रदेश – कोल्डीहवा, चौपातीमांडो, महागरा बिहार – चिरांग बंगाल – ताराडीह, खेराडीह, पाण्डु,मेघालय, असम, गारोपहाङियाँ दक्षिणी भारत से – कर्वाटक, मास्की, ब्रह्मगिरी, टेक्कलकोट्टा, संगेनकल्लू आंध्रप्रदेश – उत्तनूर तमिलनाडु – पोचमपल्ली दक्षिणी भारतीय नवपाषाण स्थलों की प्रमुख विशेषता है, गोशाला की प्राप्ति एवं राख के ढेर की प्राप्ति। ★ बुर्जहोम – यहाँ से गर्त्त-आवास, विविध प्रकार के मृदभांड, पत्थर के साथ-साथ हड्डियों के औजार, गेहूं व जौ के अलावा मसूर,अरहर, का उत्पादन, औजारों पर पॉलिश आदि के अवशेष मिले हैं। यहां से मनुष्य की कब्र में कुत्ते को भी साथ दफनाए जाने के साक्ष्य मिले हैं। ★ गु...