न्यायिक पुनरावलोकन क्या है

  1. भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन का आधार क्या है
  2. न्यायिक पुनरावलोकन या समीक्षा और उसका महत्व
  3. ‘न्यायिक पुनरावलोकन’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  4. न्यायिक पुनरावलोकन
  5. भारत में न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ क्या है?
  6. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
  7. ‘न्यायिक पुनरावलोकन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


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भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन का आधार क्या है

भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन का आधार क्या है भारत के संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार प्रदान किया गया है, जिनके द्वारा दो न्यायालय केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता का परीक्षण करते हैं। यदि इस परीक्षण के परिणामस्वरूप कोई कानून, जो विधायिका के द्वारा कार्यपालिका द्वारा निर्मित हो, संविधान के किसी प्रावधान के विरुद्ध पाया जाता है, तो न्यायालय उसे अमान्य कर सकते हैं। यह अधिकार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है।

न्यायिक पुनरावलोकन या समीक्षा और उसका महत्व

‌• न्यायिक पुनरावलोकन/समीक्षा - • ‌न्यायिक समीक्षा का तात्पर्य एक ऐसी संस्थात्मक व्यवस्था से है, जिसमें न्यायालय के द्वारा, विधायिका और कार्यपालिका के द्वारा किये गए‌ कार्यों की संवैधानिकता का परीक्षण किया जाता है। इसका तात्पर्य है कि न्यायपालिका संसद एवं राज्यविधान सभा द्वारा पारित किसी भी कानून को या अन्य प्रशासनिक निर्णय को असंवैधानिक घोषित कर सकती है।‌‌ • भारतीय संविधान में न्यायिक पुनर्विलोकन की व्यवस्था अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 13, 131, 132, 226, 246 आदि में है। •‌ न्यायिक पुनरावलोकन का महत्त्व - • ‌विधायिका/कार्यपालिका के द्वारा शक्ति के संभावित दुरूपयोग को रोकने का साधन । • संविधान की सर्वोच्चता बनी रहती है। केंद्र और राज्य के मध्य शक्ति का बंटवारा होता है। • ‌न्यायिक पुनरावलोकन के द्वारा न्यायपालिका अपने संवैधानिक कार्यों को करती है। • संविधान की संघीय संरचना की स्थापना में सहायता। • ‌मौलिक अधिकारों को लागू करने में सहायक। • विधि के शासन की स्थापना करने में सहायक • सीमित सरकार की संकल्पना की स्थापना। ‌• न्यायिक पुनरावलोकन की आलोचना • ‌न्यायिक पुनरावलोकन का स्पष्ट उल्लेख न होने के कारण न्यायिक तानाशाही को बढ़ावा मिल सकता है। • ‌संसदीय लोकतंत्र होने के कारण सिद्धांततः कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त है, लेकिन न्यायपालिका कुछ कारणों से इसे अवैध घोषित कर सकती है। • ‌राजनीतिक वाद-विवादों को बढ़ावा मिलता है जो लोकतंत्र के प्रतिकूल है। परीक्षा मंथन कंप्यूटर बुक पीडीएफ | Pariksha Manthan Computer PDF Book 2021 इस पोस्ट में हम आपके आप सभी तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों के लिए लेकर आए हैं परीक्षा मंथन कंप्यूटर बुक पीडीएफ | Pariksha Manthan Computer Book 2...

‘न्यायिक पुनरावलोकन’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।

न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ: इससे आशय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान तथा उसकी सर्वोच्चता की रक्षा करने की व्यवस्था से है। यदि संघीय या राज्य विधानमंडलों द्वारा संविधान का अतिक्रमण किया जाता है, अपनी निश्चित सीमाओं के बाहर कानूनों का निर्माण किया जाता है या मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानूनों का निर्माण किया जाता है, तो संघीय संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि अथवा संघीय या राज्य प्रशासन द्वारा किए गए ऐसे प्रत्येक कार्य को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है। ‘सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ही न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति कहा जाता है। राज्यों के संबंध में इस शक्ति का प्रयोग संबंधित उच्च न्यायालय के द्वारा किया जा सकता है। महत्व- • संविधान द्वारा संघीय व राज्य सरकार के बीच जो शक्ति-विभाजन किया गया है, न्यायिक पुनर्विलोकन के आधार पर ही उसकी रक्षा संभव है। • शासन की शक्ति पर अंकुश रखने तथा नागरिक अधिकारों व स्वतंत्रताओं की रक्षा करने का कार्य भी न्यायिक पुनरावलोकन के आधार पर ही किया जा सकता है। • न्यायिक पुनरावलोकन शासन की शक्ति को मर्यादित रखने का एक प्रमुख साधन है। • न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था संविधान के संतुलन चक्र का कार्य करती है। • न्यायिक पुनरावलोकन के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय संविधान के अधिकारिक व्याख्याता तथा रक्षक के रूप में कार्य कर सकते हैं। • कानूनों की वैधानिकता के परीक्षण की शक्ति न्यायिक पुनरावलोकन में सम्बन्धित है। अनुच्छेद 131 तथा 132 सर्वोच्च न्यायालय की, संघीय तथा राज्य सरकार द्वारा निर्मित विधियों के पुनरावलोकन का अधिकार देते हैं। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि न्यायिक पुनरावलोकन के दो शक्तिशाली आधार स...

न्यायिक पुनरावलोकन

न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक पुनर्विलोकन अथवा न्यायिक पुनरीक्षा (Judicial review) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके अन्तर्गत न्यायिक पुनरावलोकन की उत्पति सामान्यतः अनुच्छेद 13 (1):- इसमें कहा गया है कि भारतीय संविधान के लागू होने के ठीक पहले भारत में प्रचलित सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जहाँ तक कि वे संविधान भाग तीन के उपबंधों से असंगत हैं। अनुच्छेद 13 (2):- राज्य ऐसी कोई विधि नहीँ बनायेगा जो मूल अधिकारों को छीनती है। इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। अनुच्छेद 13 (3):- विधि के अंतर्गत भारत में विधि के समान कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, उपनियम, अधिसूचना, रूढ़ि व प्रथा आते हैं अर्थात इनमें से किसी के भी द्वारा मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उन्हें न्यायालय में रिट के द्वारा चुनौती दी जा सकती है। अनुच्छेद 13 (4):- यह खण्ड "संविधान के 24 वें संशोधन" द्वारा जोड़ा गया है। इसके अनुसार इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किये गए संविधान संशोधन को लागू नहीं होगी। यह अनुच्छेद सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को अपनी-अपनी हद में रहने को बाध्य करता है ताकि यह एक दूसरे के क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करें। संविधान में अनुच्छेद 13, 32 ,132 ,133 व 226 के द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति दी गई है। कुछ प्रावधानों को न्यायिक पुनर्विलोकन से बाहर रखा गया है। बाहरीकड़ियाँ [ ] • • • अपने दिए गए निर्णय में न्यायिक अवलोकन को न्यायिक पुनरावलोकन में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि न्यायिक पुनरावलोकन का सम्बन्ध केवल विधि के साथ है

भारत में न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ क्या है?

(A) विधियों और कार्यपालिका के आदेशों की सांविधानियका के विषय में प्राख्यापन करने का न्यायपालिका का अधिकार (B) विधानमंडलों द्वारा निर्मित विधियों के प्रज्ञान के प्रश्नगत करने का न्यायपालिका का अधिकार (C) न्यायपालिका का सभी विधायी अधिनियमनों के राष्ट्रपति द्वारा उन पर सहमति प्रदान किए जाने के पूर्व पुनरीक्षण का अधिकार (D) न्यायपालिका का समान या भिन्न वादों में पूर्व में दिए गए स्वयं के निर्णयों के पुनरीक्षण का अधिकार न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक पुनरीक्षण उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसके अंतर्गत कार्यकारिणी के कार्यों (तथा कभी-कभी विधायिका के कार्यों) का न्यायपालिका द्वारा पुनरीक्षण का प्रावधान हो। दूसरे शब्दों में, न्यायिक पुनरावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है, जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाए कानूनी, कार्यपालिका द्वारा जारी किए गए आदेशों तथा प्रशासन द्वारा किए गए कार्यों की जांच करता है कि वे मूल ढांचे के अनुरूप हैं या नहीं। अत: विकल्प (A) सही उत्तर है। Tags :

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये। सम्बन्धित लघु उत्तरीय • न्यायिक समीक्षा के अधिकार से आप क्या समझते हैं ? • सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग कैसे करता है ? • वह अनुच्छेद कौन से हैं, जो न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान करते हैं ? • न्यायिक समीक्षा के महत्व पर टिप्पणी कीजिए। • भारत में न्यायिक पुनरावलोकन पर टिप्पणी लिखिये। • न्यायिक समीक्षा की आलोचना किस आधार पर की जाती है ? • क्या न्यायालय किसी संसदीय कानून की समीक्षा कर सकता है ? • न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ बताइये। न्यायिक समीक्षा के अधिकार से अभिप्राय भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त अनेक अधिकारों में से एक अधिकार न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) का भी अधिकार है, जो अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, यद्यपि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की यह शक्ति अत्यन्त सीमित है, किन्तु फिर भी इस शक्ति ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय को अत्यधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण बना दिया है। न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) सर्वोच्च न्यायालय की वह शक्ति है, जिसके आधार पर न्यायालय संसद द्वारा पारित कानूनों एवं सरकार के आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच करता है तथा यदि वे संविधान के प्रतिकूल हैं तो उन्हें अवैध घोषित करता है।सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा पारित कानूनों तथा सरकार द्वारा जारी किये गये आदेशों की वैधता की जांच दो आधार पर करता है. • संसद ने जो 'कानून' बनाया अथवा सरकार ने जो आदेश जारी किया उसका उसे अधिकार था या नहीं। • संसद द्वारा बनाया गया कानून तथा सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश कहीं मौलिक अधिकार...

‘न्यायिक पुनरावलोकन’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

भारत की न्यायिक पुनरावलोकन की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका से गृहीत है। संविधानवाद को अमेरिकी संविधान निर्माताओं की कई मौलिक देन हैं। अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह सौंपा गया है कि वह विधायिका तथा कार्यपालिका को नियन्त्रित करे। चूँकि अमेरिका में संविधान सर्वोपरि है, इसलिए वे संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत ही कार्य करें और सर्वोच्च न्यायालय यह देखे कि वे संविधान का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं। इस अधिकार के अन्तर्गत यदि किसी राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्मित कोई कानून संघीय संविधान अथवा संयुक्त राज्य द्वारा की गयी सन्धि के प्रतिकूल हो तथा कार्यपालिका के कार्य संविधान के प्रतिकूल हों तो संघीय न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है। न्यायालय के इसी अधिकार को न्यायिक पुनरावलोकन’ कहते हैं। कारविन के शब्दों में, “न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ न्यायालय की उस शक्ति से है जो उन्हें अपने न्याय क्षेत्र के अन्तर्गत लागू होने वाले व्यवस्थापिका के कानूनों की वैधानिकता का निर्णय देने के सम्बन्ध में तथा कानूनों को लागू करने के सम्बन्ध में प्राप्त है, जिन्हें वे अवैध व व्यर्थ समझे।’