पंजाबी बोलियां

  1. पंजाबी बोली कुल कितने प्रकार की होती है? » Punjabi Boli Kul Kitne Prakar Ki Hoti Hai
  2. Language and And Tribes
  3. उत्तर प्रदेश की भाषाएं एवं बोलियां
  4. je shyama tu mere tor vekhani punjabi boliyan bhajan lyrics
  5. कबीर दास का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं
  6. #KishtuK: अपने शौक से पंजाबी कल्चर को सहेज रही 6 साल की नन्ही यूट्यूबर
  7. राजस्थानी भाषा एवं बोलियां


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पंजाबी बोली कुल कितने प्रकार की होती है? » Punjabi Boli Kul Kitne Prakar Ki Hoti Hai

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Language and And Tribes

भाषा और जनजातियां भाषा पहाड़ी भाषा का स्रोत(SOURCE)- शौरसेनी अपभ्रंश पहाड़ी भाषा की लिपि- टांकरी डॉ जी ए गियर्सन ने हिमाचली भाषाओं का पश्चिमी पहाड़ी भाषाओं के रूप में सर्वेक्षण किया हिमाचल के जिलों में बोली जाने वाली विभिन्न बोलियां चंबा जिले में बोली जाने वाली बोलियां चम्बयाली, भटयाती, चुराही, पंगवाली, भरमौरी भटयाती- पांगी मैं बोली जाती है चुराह- भरमौर में बोली जाती है मंडी जिले में बोली जाने वाली बोलियां सुकेती मंडयाली, बालड़ी, सरघाटी कुल्लू जिले में बोली जाने वाली बोलियां कुल्लवी भाषा बोली जाती है स्थानीय बोलियां- सिराजी तथा सैजी बिलासपुर जिले में बोली जाने वाली बोलियां कहलूरी भाषा बोली जाती है कांगड़ा जिले में बोली जाने वाली बोलियां कांगड़ी बोली, बोली जाती है स्थानीय बोलियां- पालमपुरी, शिवालिक सिरमौर जिले में बोली जाने वाली बोलियां स्थानीय बोलियां- धारटी, बिशवाई सोलन महासुवी भाषा बोली जाती है स्थानीय बोलियां- हांडूंरी, भगाटी, क्योंथली किन्नौर किन्नौरी बोली जाती है स्थानीय बोलियां- छितकुली, सुनामी, होमस्कंद, संगनूर, शुम्को लाहौल-स्पीति लाहौल में लाहौली, स्पीति में तिब्बती बोली जाती है उपबोलियाँ- गेहरी, चागसा, गारा, रंगलोई, मनचाटी, हिमाचल में 88.77% लोग हिंदी, 5.83% लोग पंजाबी बोलते हैं जनजातियां हिमाचल प्रदेश के पांच प्रमुख जनजातियां है किन्नर, लाहौली, गद्दी, गुज्जर, और पंगवाल, गद्दी जनजाति निवास स्थान- भरमौर मुख्य व्यवसाय- भेड़ बकरी पालन डोरा- गद्दी स्री, पुरुष, बालक, सभी कमर पर काले रंग का रस्सा बांधे रखते हैं, इसे डोरा कहते हैं। यह लगभग एक सौ हाथ लंबा होता है, इसे गद्दी “गात्री” कहते हैं चंबा जिले के भरमौर में गद्दी को “गदियार” भी कहते हैं प्रसिद्ध गीत- राजा-गद्दण देव...

उत्तर प्रदेश की भाषाएं एवं बोलियां

नमस्कार दोस्तों, Exams Tips Hindi शिक्षात्मक वेबसाइट में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश की भाषाएं एवं बोलियां ( Uttar Pradesh Languages and Dialects Related GK) दी गई है। जैसा कि हम जानते है, उत्तर प्रदेश, भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ज़्यादा कम्पटीशन रहता है। यह लेख उन आकांक्षीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस (UPPSC), UPSSSC, विद्युत विभाग, पुलिस, टीचर, सिंचाई विभाग, लेखपाल, BDO इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। तो आइए जानते है उत्तर प्रदेश की भाषा एवं बोली से संबंधित जानकारी- उत्तर प्रदेश की भाषाएं एवं बोलियां | Languages and Dialects of Uttar Pradesh ➤ उत्तर प्रदेश भाषा के मामले में धनी प्रदेश रहा है। यहां हिंदी, उर्दू, संस्कृत, ब्रज भाषा, अंग्रेजी, बघेली, भोजपुरी, बुंदेली, कन्नौजी आदि भाषाएं बोली जाती हैं। ➤ उत्तर प्रदेश में हिंदी के अनेक महान लेखक पैदा हुए हैं। जैसे- भारतेंदु, हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, श्रीकांत वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि। उर्दू में फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, अकबराबादी, इलाहाबादी, अली सरदार जाफरी, शकील बदायूंनी, वसीम बरेलवी आदि का नाम उल्लेखनीय है। प्रदेश की क्षेत्रीय भाषाएं एवं बोलियां उत्तर प्रदेश में निम्नलिखित भाषाएं एवं बोलियां प्रचलित हैं- ➤खड़ी बोली/कौरवी- इसका उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उतरी रूप से हुआ है। ➤ इसका क्षेत्र सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, रामपुर तथा मुरादाबाद है। ➤ ब्रजभाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ ह...

je shyama tu mere tor vekhani punjabi boliyan bhajan lyrics

जे श्यामा तू मेरी तोर वेखनी, पीछे पीछे यमुना दे आंदा या मेरे नैना नाल नैन मिलांदा जा, पी पी करे पपीहा बोले, कुकड़ कूकडू कु, बोली मैं पावा नच ले गिधे विच तू, मुख मोड़ नहीं गया दिल तोड़ नि गया, चढ़ गोकुल न मथुरा च तोड़ नहीं गया, दूध देन वाली गा छड़ कदम दी छा, छड़ मानु मामे वाल झट तोड़ नि गया, कान्हा नन्द किशोर आवे पेहला पावन मोर, साढ़े दिल न चुराके लै गया चितचोर, पिंडा विचो पिंड सुनी दा बरसाना जिथे वसदी राधा रानी, जिथे वसदी राधा रानी पार किसे ने नि पाना ठाकुर सेवा ले लाभदे रोज बहाना,

कबीर दास का जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएं

जब भी हम दोहों और पदों के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहले कबीरदास का नाम ही हमारे मुख में आता है। कबीरदास ने अपने दोहों और पदों से समाज को एक नई दिशा दी है। हिंदी साहित्य के महान कवि होने के साथ ही कबीर दास विद्दंत विचारक, भक्तिकाल के प्रमुख कवि और अच्छे समाज सुधारक थे। कबीर दास की सधुक्कड़ी मुख्य भाषा थी। लेकिन हमें इनके पदों और दोहों में हिंदी भाषा की एक अलग ही झलक दिखाई देती है। कबीर दास की मुख्य रचनाओं में हमें पंजाबी, राजस्थान, अवधी, हरियाणवी, ब्रज, खड़ी बोली आदि देखने को मिलती है। इन्होंने अपनी सकारात्मक विचारों और कल्पना शक्ति से कई प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी। kabir das ka parichay कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए अपना अहम योगदान दिया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय संस्कृति को बहुत अच्छे तरीके से वर्णित किया है, जिसमें हमें उसका महत्व समझने को मिलता है। इन्होंने अपनी रचनाओं से लोगों को सकारात्मक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। कबीर दास भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से बहुत प्रभावित थे। कबीर दास का प्रभाव हमें सिख, हिन्दू, मुस्लिम आदि धर्मों में देखने को मिलता है। इन्होंने अपने जीवन में समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव आदि जैसी भयंकर बुराईयों दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कबीर दास के दोहों, पदों और उनकी रचनाओं को पढ़कर कोई भी अपने जीवन को सफल बना सकता है और अपने जीवन को एक नई दिशा में अग्रेसित कर सकता है। यहां पर हम कबीर दास की जीवनी (Kabir Das ka Jivan Parichay) के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त करने वाले है, जिसमें कबीर की शिक्षा कहां तक हुई थी, कबीरदास जी के गुरू कौन थे, उनकी पत्नी का नाम...

#KishtuK: अपने शौक से पंजाबी कल्चर को सहेज रही 6 साल की नन्ही यूट्यूबर

यूट्यूब आजकल इंटरटेनमेंट के साथ-साथ युवाओं ही नहीं, बल्कि बच्चों बूढ़ों के लिए भी स्टार्डम व पैसे कमाने का जरिया बन चुका है। सिर्फ यूट्यूब ही नहीं बल्कि बड़ों से लेकर बच्चे तक इंस्टाग्राम पर भी वीडियोज बनाकर स्टारडम हासिल कर रहे हैं। कोई कुकिंग, कोई ब्यूटी व फैशन टिप्स तो कोई हंसाकर लोगों को अपना दीवाना बना रहा है। मगर, हम आपको एक ऐसा नन्हीं बच्ची के बारे में बताने जा रहे हैं जो पंजाबी सभ्यता के जरिए लाखों लोगों का दिल जीत रही हैं। यूट्यूब व इंस्टा पर धूम मचा रही किश्टू हम बात कर रहे हैं पंजाब के नाभा शहर में रहने वाली पंजाबी यूट्यूबर कनिष्ठ कौशिक (Kanishtha Kaushik) यानि किश्टू के (Kishtu K) की, जो पंजाबी लोकगीत गाकर व उनपर झूकर लोकप्रियता हासिल कर रही हैं। सिर्फ यूट्यूब ही नहीं बल्कि इंस्टाग्राम पर भी उनके वीडियोज काफी पसंद किए जा रहे हैं। छोटी उम्र से ही बोलियां व गिद्दे पाने का शौक दूसरी क्लास में पढ़ने वाली किश्टू बोलियों और गिद्दे के जरिए पंजाबी लोकगीतों को भी सहेज रही हैं। नन्हीं किश्टू को 2 साल की उम्र से ही बोलियां व गिद्दे का शौक रहा है। नन्हीं किश्टू का सपना है कि वो टीवी पर आएं और सभी उनके साथ फोटो खिचवाएं। साथ ही वह एक्टर, सिंगर और एक अच्छी इंसान बनना चाहती हैं। परिवार के फंक्शन से बढ़ी दिलचस्पी नन्हीं किश्टू का कहना है कि जब भी परिवार में कोई समारोह, जागो वहैरह होता है तो उनकी मम्मी और मासी बोलियां गाती थीं। एक बार उनकी दीदी ने एक बोली पाई थी, जिसे सुनकर वह मम्मी के पीछे पड़ गई कि उन्हें भी याद करवाएं। फिर उनकी मम्मी की नहीं चला लेकिन उनकी बोली चल पड़ी। टीचर्स भी करते हैं सपोर्ट वह वीडियो बनाने के साथ-साथ पढ़ाई पर भी ध्यान देती हैं। यही नहीं, उनके टीचर्स भी क...

राजस्थानी भाषा एवं बोलियां

राजस्थान की भाषा व राजस्थान की बोलियाँ 👉राजस्थानी भाषा- ➯वक्ताओं की दृष्टि से भारतीय भाषाओं में राजस्थानी भाषा का 7वां स्थान तथा विश्व की भाषाओं में राजस्थानी भाषा का 16वां स्थान है। ➯उद्योतन सुरी ने 8वीं शताब्दी में अपने ग्रंथ कुवलयमाला में 18 देशी भाषाओं में मरु भाषा को भी सम्मिलित किया था। 👉उद्भव- ➯राजस्थानी भाषा का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। अर्थात् राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है। ➯डाॅ. एल.पी. टेस्सीटोरी राजस्थानी भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) शौरसेनी अपभ्रंश से मानते है। ➯डाॅ. जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन एवं डाॅ. पुरुषोत्तम मोनारिया राजस्थानी भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) नागर अपभ्रंश से मानते है। ➯के.एम. मुंशी एवं मोतीलाल मेनारिया राजस्थानी भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) गुर्जर अपभ्रंश से मानते है। ➯अधिकांश विद्वान राजस्थानी भाषा का उद्भव (उत्पत्ति) गुर्जर अपभ्रंश से मानते है। 👉उत्पत्ति काल- ➯राजस्थानी भाषा का उत्पत्ति काल 12वीं सदी का अन्तीम चरण माना जाता है। 👉स्वतंत्र अस्तीत्व- ➯16वीं सदी के बाद राजस्थानी भाषा अपने स्वतंत्र अस्तीत्व में आने लगी थी अर्थात् 16वीं सदी के बाद राजस्थानी भाषा का विकास एक स्वतंत्र भाषा के रूप में होने लगा था। ➯राजस्थानी एवं गुजराती भाषा का मिलाजुला रूप 16वीं सदी के अंत तक चलता रहा है। 👉जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन- ➯राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1912 में जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ लिंग्विस्टिक सर्वे आॅफ इण्डिया (Linguistic Survey of India) में किया था। ➯राजस्थानी भाषा या राजस्थानी बोलियों का पहली बार वैज्ञानिक अध्ययन जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने किया था। 👉राजस्थानी भाषा का वर्गीकरण- 1. सर जाॅर्ज अब्राहम ग्रि...