पांचवा नवरात्र

  1. Navratri 2022 5th Day:नवरात्रि का पांचवां दिन है मां स्कंदमाता को समर्पित, जानिए पूजा विधि और कथा
  2. नवरात्रि का पांचवा दिन, स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र और उपाय जानें
  3. नवरात्र का पांचवा दिन: जानिए माँ स्कन्दमाता की पूजन विधि, मंत्र, भोग और आरती का महत्त्व
  4. नवरात्र का पांचवां दिन: स्कंदमाता का पाएं आर्शीवाद, करें केले का दान
  5. Worship Maa Skandamata On Fourth Day Of Navratri


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Navratri 2022 5th Day:नवरात्रि का पांचवां दिन है मां स्कंदमाता को समर्पित, जानिए पूजा विधि और कथा

Shardiya Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। इस साल 30 सितंबर को मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी। स्कंदमाता को मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि स्कंदमाता भक्तों की समस्त कामनाओं की पूर्ति करती हैं। मां दुर्गा के पंचम स्वरूप देवी स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशियां आती हैं। संतान प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की आराधना करना लाभकारी माना गया है। स्कंदमाता की पूजा से भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनकी पूजा से भक्त अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं मां के स्वरूप, पूजा विधि के बारे में... मां स्कंदमाता का स्वरूप स्कंदमाता का स्वरूप मन को मोह लेने वाला है। इनकी चार भुजाएं हैं। दो हाथों में इन्होंने कमल लिए हैं। मां स्कंदमाता की गोद में भगवान स्कंद बाल रूप में विराजित हैं। मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है। शेर पर सवार होकर मां दुर्गा अपने पांचवें स्वरूप यानी स्कंदमाता के रूप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। अब पूजा का संकल्प लेते हुए स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य अर्पित करें। अब धूप-दीपक से मां की आरती उतारें और आरती के बाद घर के सभी लोगों को प्रसाद बांटे और आप भी ग्रहण करें। स्कंदमाता को नीला रंग पसंद है, इसलिए आप नीले रंग के कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं। स्कंदमाता की कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब मां पार्वती ने अ...

नवरात्रि का पांचवा दिन, स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र और उपाय जानें

इस वर्ष 19 अक्टूबर 2023 को मनाया जा रहा है! देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। भगवान स्कंद जिन्हें उत्तर भारत में कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है, स्कंद की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। देवी का यह रूप गोरा या सुनहरे रंग से चमचमता है। वह सिंह पर बैठी है और उसके चार हाथ हैं। वह अपने दो हाथों में कमल धारण करती है और उसकी गोद में भगवान स्कंद या कार्तिकेय विराजमान हैं। देवी दुर्गा का यह रूप विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देवी को उनके मातृत्व रूप में दर्शाता है। स्कंदमाता का रूप दर्शाता है कि देवी अपने बच्चे की तरह पूरे ब्रह्मांड की देखभाल करती हैं। माता स्कंद माता की कृपा से मंगल ग्रह से जुड़े दोष दूर होते हैं। आप भी अपने मंगल दोष दूर करना चाहते हैं, तो माता स्कंद देवी की पूजा के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। आप पढ़िए माता का स्वरूप कितना विशाल है और जानिए आखिर क्या है माता की पूजा विधि- स्कंदमाता का स्वरूप नवरात्रि का 5 वां दिन देवी स्कंदमाता अर्थात देवी दुर्गा की 5 वीं अभिव्यक्ति और भगवान कार्तिकेय की मां को समर्पित है, जिन्हें देवताओं ने राक्षसों के खिलाफ युद्ध में अपने सेनापति के रूप में चुना था। देवी स्कंदमाता की छवि में भगवान स्कंद माता की गोद में है और और उनके दाहिने हाथ में कमल का चित्रण है। उसकी चार भुजाएं, तीन आंखें और चमकदार उज्ज्वल रंग है। उन्हें पद्मासनी भी कहा जाता है, क्योंकि उन्हें अक्सर उनकी मूर्ति में कमल के फूल पर बैठे हुए चित्रित किया जाता है। उन्हें पार्वती, माहेश्वरी या माता गौरी के रूप में भी पूजा जाता है। देवी का बायां हाथ अपने भक्तों को कृपा से वरदान देने की मुद्रा में है। नवरात्रि में स्कंदमाता का महत्व 19 अक्ट...

नवरात्र का पांचवा दिन: जानिए माँ स्कन्दमाता की पूजन विधि, मंत्र, भोग और आरती का महत्त्व

माता दुर्गा का स्वरूप ‘‘स्कन्द माता’’ के रूप में नवरात्रि के पांचवें दिन पूजा की जाती है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। तदनन्तर स्कन्द उनके पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। ये भगवान् स्कन्द कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। छान्दोग्य श्रुति के अुनसार माता होने से वे ‘‘स्कन्द माता’’ कहलाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने से संतान सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है और भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। स्कंदमाता की पूजा-आराधना करने से भक्तों के हर दुख दूर हो जाते हैं। मां अत्यंत दयालु हैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद देती हैं। ''सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।'' माँ स्कन्दमाता का स्वरुप :- स्कंदमाता का स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति के मन को मोह लेने वाला है। स्कंदमाता की दाहिनी भुजा में कमल पुष्प और बाईं भुजा वरमुद्रा में है। इनकी तीन आंखें तथा चार भुजाएं हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और यह कमलासन पर विराजित है। सिंह इनका वाहन है। इसी लिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। पुत्र स्कंद इनकी गोद में बैठे हैं, वह हाथ में तीर लिए हुए नजर आ रहे हैं। देवी मां उन्हें चौथे हाथ से आशीर्वाद देते हुए नजर आ रही हैं। आराधना महत्व :- माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण, इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है, मोक्ष मिलता है। पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, चैत्र नवरात्र के पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की सच्चे दिल से पूजा आराधना करने से जीवन में आये सभी संकट दूर होते हैं तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में से भी मुक...

नवरात्र का पांचवां दिन: स्कंदमाता का पाएं आर्शीवाद, करें केले का दान

नवरात्र के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवे स्वरुप मां स्कंदमाता की उपासना की जाती है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम किया गया है. भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. स्कंदमाता का स्वरूप स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है. उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह हर कठिनाई दूर करती हैं मां शास्त्रों में मां स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व बताया गया है. इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष मिलता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है. स्‍नेह की देवी हैं स्कंदमाता कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति मना जाता है और माता को अपने पुत्र स्कंद से अत्यधिक प्रेम है. जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है तो माता अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं. स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है. इसलिए इन्हें मां को इन चीजों का भोग लगाएं पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए. ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है. मां स्कंदमाता का मंत्र मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है. इस मंत्र के उच्चारण के साथ मां की आराधना की जाती है: सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ इसके अतिरिक्त इस मंत्र से भी मां की आराधना की जाती है: या देवी ...

Worship Maa Skandamata On Fourth Day Of Navratri

कोरोना के खतरे और खौफ के बीच ये शक्तिशाली मंत्र आपको देंगे नई ताकत माता स्वरूपा मां स्कंदमाता नवरातों की पांचवी देवी हैं मां स्कंदमाता। ये भगवान कुमार कार्तिकेय की माता हैं जिन्हें भगवान स्कंद नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। जिनमें से दो में कमल पुष्प हैं। मां स्कंदमाता का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका भी वाहन सिंह है। मां स्कंदमाता का महातम्य नवरात्रि के पाँचवें दिन स्कंदमाता के पूजन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस दिन श्रद्धा पूर्वक पूजा करने वाले की पूर्ण शुद्धि हो जाती है, और तमाम विकृत चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। माता स्कंदमाता की पूजा करने वाले को पूरा एकाग्र हो कर मां का ध्यान करना चाहिए। इससे उसकी समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। मिलती है संतान और मोक्ष माता स्वरूपा स्कंदमाता की सच्चे दिल से अराधना करने पर स्वाभाविक रूप से संतान प्राप्ति का आर्शिवाद मिलता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। साथ ही सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण सच्चे मन से मां की पूजा करने वाले व्यक्ति को दुःखों से मुक्ति प्राप्त होती है मोक्ष की प्राप्ति और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। माता के उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न होते हैं और उनके योगक्षेम का निर्वहन होता रहता है। इसीलिए विद्धान कहते हैं कि हमें मन को पवित्र रखकर माँ की अराधना करनी चाहिए, ताकि वो संसार के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ सकें।...