पीएन संधि डायोड का चित्र

  1. pn संधि डायोड
  2. पीएन संधि डायोड क्या है, अग्र और पश्च अभिनति
  3. पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P
  4. pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में क्या है, कार्यविधि,‌ आवश्यकता
  5. [Solved] पी
  6. pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में क्या है, कार्यविधि,‌ आवश्यकता
  7. पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P
  8. pn संधि डायोड
  9. [Solved] पी
  10. पीएन संधि डायोड क्या है, अग्र और पश्च अभिनति


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pn संधि डायोड

जब p टाइप क्रिस्टल को विशेष विधि द्वारा n टाइप क्रिस्टल से जोड़ा जाता है। तो इस संयोजन को pn संधि डायोड (pn junction diode in hindi) कहते हैं। जैसे ही pn संधि बनती है वैसे ही आवेश वाहकों का संधि के आर-पार विसरण प्रारंभ हो जाता है। और प्रत्येक आवेश वाहक अपने-अपने पूर्णांकों से मिलकर उदासीन हो जाते हैं। और इस प्रकार pn संधि के समीप आवेश वाहक नहीं रहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट है। अब संधि के आर-पार विभवांतर उत्पन्न हो जाता है और एक अतिरिक्त विद्युत क्षेत्र E विस्थापित हो जाता है यह विद्युत क्षेत्र कुछ समय बाद इतना प्रबल हो जाता है कि आवेश वाहकों का विसरण रुक जाता है। अतः इस प्रकार pn संधि डायोड में आवेश वाहक गति करते हैं। अवक्षय परत pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें दाता वह ग्राही आयन उदासीन हो जाते हैं। अर्थात जिसमें कोई चलनशीन आवेश वाहक नहीं होते हैं। उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत की मोटाई 10 -6 मीटर की कोटी की होती है अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को रोधिका विभव या विभव प्राचीर कहते हैं। इसका मान जर्मेनियम संधि के लिए 0.3 वोल्ट तथा सिलिकॉन संधि के लिए 0.7 वोल्ट होता है। pn संधि डायोड में धारा का प्रवाह यदि संधि डायोड में कोई बाह्य बैटरी न लगी हो तो उसमें कोई धारा नहीं बहती है। pn संधि डायोड को बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है। (i) अग्र अभिनति (i) पश्च (उत्क्रम) अभिनति अग्र अभिनति जब संधि डायोड के p-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के धन सिरे से तथा n-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ा जाता है तो संधि को अग्र अभिनति कहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट है। पश्च (उत्क्रम) अभिनति में pn संधि डायोड जब संधि डायोड के p-क्षेत्र को बाह्य बैटरी...

पीएन संधि डायोड क्या है, अग्र और पश्च अभिनति

पीएन संधि डायोड किसी pn संधि के निर्माण के समय दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं। विसरण और अपवाह। p टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक कोटर (होल) होते हैं। जबकि n टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। तथा प्रत्येक आवेश वाहक अपने-अपने पूर्णांकों से मिलकर उदासीन हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों क्षेत्र विद्युत उदासीन होते हैं। किसी n टाइप के अर्धचालक में इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता कोटर की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। इसी प्रकार p टाइप के अर्धचालक में कोटर की सांद्रता इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। अतः pn संधि डायोड के निर्माण के समय, p एवं n क्षेत्रों के सिरों पर सांद्रता प्रवणता के कारण विसरण प्रारम्भ हो जाता है। कोटर p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। एवं इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। आवेश वाहकों की इस गति के कारण संधि से एक विसरण धारा प्रवाहित होती है। pn संधि डायोड में अवक्षय परत pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें चलनशीन आवेश वाहक नहीं रहते हैं। तब उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत pn संधि पर बनी दाता व ग्राही आयनों की परत होती है। अवक्षय परत की मोटाई लगभग 10 -6 मीटर होती है। विभव प्राचीर pn संधि के दोनों ओर बनी अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को विभव प्राचीर कहते हैं। इसे रोधिका विभव भी कहते हैं। एवं विभव प्राचीर का मान संधि के ताप तथा अर्धचालकों में मिश्रित अपद्रव्य की सांद्रता पर निर्भर करता है। pn संधि डायोड में विद्युत धारा का प्रवाह pn संधि डायोड को किसी बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है। 1. अग्र अभिनति 2. पश्च अभिनति 1. अग्र अभिनति जब pn संधि ड...

पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P

प्रश्न 27. पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P-N सन्धि डायोड के उपयोग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- (i) परिपथ का नामांकित चित्र, (ii) कार्यविधि, (iii) निवेशी विभव तथा निर्गत विभव का समय के साथ परिवर्तन आरेख। अथवा दिष्टकारी किसे कहते हैं ? विद्युत आरेख खींचकर P-N सन्धि डायोड की पूर्ण तरंग दिष्टकारी की क्रिया समझाइए। अथवा विद्युत आरेख खींचकर P-N सन्धि डायोड की पूर्ण दिष्टकारी की क्रिया को समझाइये। उत्तर- दिष्टकारी- ऐसा उपकरण जो प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट-धारा में परिवर्तित कर दें, उसे दिष्टकारी कहते हैं। चित्र- अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के लिए निवेशी एवं निर्गत विभव आरेख कार्यविधि- जब ट्रांसफॉर्मर T की प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वोल्टेज लगाया जाता है, तो द्वितीयक कुण्डली में भी अन्योन्य प्रेरण के कारण प्रत्यावर्ती वोल्टेज प्रेरित हो जाता है। निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के एक पूर्ण चक्र में दो अर्द्धचक्र होते हैं- एक धनात्मक तथा दूसरा ऋणात्मक। दोनों अर्द्धचक्र क्रम से चलते हैं जिसके फलस्वरूप प्रथम अर्द्धचक्र के कारण द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वोल्टेज का A सिरा धनात्मक व B सिरा ऋणात्मक तथा द्वितीय अर्द्धचक्र में A सिरा ऋणात्मक तथा B सिरा धनात्मक हो जाता है। P-N संधि डायोड व लोड प्रतिरोध के संयोजन का परिपथ प्रत्येक अर्द्धचक्र में द्वितीयक कुण्डली के मध्य बिन्दु E से पूरा हो जाता है। अब निवेशी सिगनल के प्रथम अर्द्धचक्र के कारण जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा धनात्मक होता है, तो डायोड D 1 अग्र अभिनत होता है तथा डायोड D 2 उत्क्रम अभिनत। इस प्रकार D 1 कार्य करता है तथा लोड प्रतिरोध पर धनात्मक दिष्टधारा का अर्द्धचक्र प्राप्त होता है। पुनः निवेशी सिगनल के द्वितीयक ...

pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में क्या है, कार्यविधि,‌ आवश्यकता

यदि किसी डायोड के सिरों पर कोई प्रत्यावर्ती वोल्टता प्रयुक्त की जाए, तो परिपथ में चक्र के केवल उसी भाग में धारा प्रभावित होगी। जब डायोड अग्र अभिनत है। डायोड के इस गुण के कारण ही इसका उपयोग प्रत्यावर्ती वोल्टता के दिष्टकारण करने में किया जाता है। pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में जब pn संधि डायोड अग्र दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध निम्न होता है। एवं जब pn संधि डायोड पश्च दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। इस गुण के आधार पर pn संधि डायोड, डायोड वाल्व की भांति दिष्टकारी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। pn संधि डायोड का अर्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है। ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली को टर्मिनल A और B पर वांछित प्रत्यावर्ती वोल्टता की आपूर्ति करती है। जब टर्मिनल A पर वोल्टता धनात्मक होती है तब डायोड अग्र दिशिक होता है तथा यह विद्युत धारा का चालन करता है एवं इसके विपरीत जब टर्मिनल A पर वोल्टता ऋणात्मक होती है तो डायोड पश्च दिशिक होता है और यह विद्युत धारा का चालन नहीं करता है। इसलिए प्रत्यावर्ती वोल्टता के धनात्मक अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता लोड प्रतिरोध R L के सिरों पर प्राप्त होता है। निवेशी व निर्गत वोल्टता तरंग रूप को चित्र में स्पष्ट किया गया है। अर्ध तरंग दिष्टकारी कार्यविधि निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A धनात्मक तथा टर्मिनल B ऋणात्मक होता है। तब संधि डायोड अग्र दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह होता है तथा लोड प्रतिरोध R L पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है। एवं प्रत्यावर्ती वो...

[Solved] पी

सही उत्तर डायोड डिजाइनहै। धारणा: पी-एन संधि में, छिद्र p-साइड में बहुमत वाहक होते हैं और इलेक्ट्रॉन n-साइड में बहुमत वाहक होते हैं। यह दिखाया गया है: • चूंकि जंक्शन के पास n-टाइप और p-टाइप में एक उच्च इलेक्ट्रॉन और छिद्र है, इसलिए सघनन ढाल के कारण विसरण होता है, यानी छेद p-टाइप क्षेत्र से n-टाइप क्षेत्र में फैलते हैं और इसके विपरीत भीऐसा होता है। • पी-एन जंक्शन की विभव रोधिका: p-एन जंक्शन के पार बिजली के विभवान्तर को विभव रोधिका कहा जाता है। • डोपिंग:इसकी चालकता और अन्य गुणों को बदलने के लिए एक अर्धचालक में मिलाये किये गएअशुद्धियों को डोपिंग के रूप में जाना जाता है। • विभव रोधिकानिर्भर करता है- • पीएन संधि बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री: कमरे के तापमान पर,यहसिलिकॉन के लिए 0.3 V, जर्मेनियम के लिए 0.7 V है। • डोपिंग की मात्रा: डोपिंग की मात्रा संधि में बहुसंख्यक आवेश वाहकों कीमात्रातय करेगी। • तापमान:तापमान में वृद्धि से अल्पसंख्यक आवेश वाहकों की संख्या में बदलाव होगा। • अवक्षय क्षेत्र में बना विद्युत क्षेत्र अवरोधक का काम करता है। • यह अवरोध तब बनता है जब n-क्षेत्र में कुछ मुक्त इलेक्ट्रॉन संधि में फैल जाते हैं और छिद्रों से जुड़कर नकारात्मक आयन बनाते हैं। • पीएन संधि की अवक्षयक्षेत्र में विभव रोधिका का विकास संधि के पार बहुसंख्य वाहक के प्रसार के परिणामस्वरूप होता है। स्पष्टीकरण: विभव रोधिकाi \( \right)\)द्वारा दिया गया है। यहडोपिंग केतापमान और प्रयुक्त वोल्टेज अभिनतपर निर्भर करता है जो अवरोध के पार लगाया जाता है लेकिन डायोड के आकार या डिजाइन पर नहीं लगाया जाता।

pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में क्या है, कार्यविधि,‌ आवश्यकता

यदि किसी डायोड के सिरों पर कोई प्रत्यावर्ती वोल्टता प्रयुक्त की जाए, तो परिपथ में चक्र के केवल उसी भाग में धारा प्रभावित होगी। जब डायोड अग्र अभिनत है। डायोड के इस गुण के कारण ही इसका उपयोग प्रत्यावर्ती वोल्टता के दिष्टकारण करने में किया जाता है। pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में जब pn संधि डायोड अग्र दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध निम्न होता है। एवं जब pn संधि डायोड पश्च दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। इस गुण के आधार पर pn संधि डायोड, डायोड वाल्व की भांति दिष्टकारी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। pn संधि डायोड का अर्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है। ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली को टर्मिनल A और B पर वांछित प्रत्यावर्ती वोल्टता की आपूर्ति करती है। जब टर्मिनल A पर वोल्टता धनात्मक होती है तब डायोड अग्र दिशिक होता है तथा यह विद्युत धारा का चालन करता है एवं इसके विपरीत जब टर्मिनल A पर वोल्टता ऋणात्मक होती है तो डायोड पश्च दिशिक होता है और यह विद्युत धारा का चालन नहीं करता है। इसलिए प्रत्यावर्ती वोल्टता के धनात्मक अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता लोड प्रतिरोध R L के सिरों पर प्राप्त होता है। निवेशी व निर्गत वोल्टता तरंग रूप को चित्र में स्पष्ट किया गया है। अर्ध तरंग दिष्टकारी कार्यविधि निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A धनात्मक तथा टर्मिनल B ऋणात्मक होता है। तब संधि डायोड अग्र दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह होता है तथा लोड प्रतिरोध R L पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है। एवं प्रत्यावर्ती वो...

पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P

प्रश्न 27. पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में P-N सन्धि डायोड के उपयोग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- (i) परिपथ का नामांकित चित्र, (ii) कार्यविधि, (iii) निवेशी विभव तथा निर्गत विभव का समय के साथ परिवर्तन आरेख। अथवा दिष्टकारी किसे कहते हैं ? विद्युत आरेख खींचकर P-N सन्धि डायोड की पूर्ण तरंग दिष्टकारी की क्रिया समझाइए। अथवा विद्युत आरेख खींचकर P-N सन्धि डायोड की पूर्ण दिष्टकारी की क्रिया को समझाइये। उत्तर- दिष्टकारी- ऐसा उपकरण जो प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट-धारा में परिवर्तित कर दें, उसे दिष्टकारी कहते हैं। चित्र- अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के लिए निवेशी एवं निर्गत विभव आरेख कार्यविधि- जब ट्रांसफॉर्मर T की प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वोल्टेज लगाया जाता है, तो द्वितीयक कुण्डली में भी अन्योन्य प्रेरण के कारण प्रत्यावर्ती वोल्टेज प्रेरित हो जाता है। निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के एक पूर्ण चक्र में दो अर्द्धचक्र होते हैं- एक धनात्मक तथा दूसरा ऋणात्मक। दोनों अर्द्धचक्र क्रम से चलते हैं जिसके फलस्वरूप प्रथम अर्द्धचक्र के कारण द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वोल्टेज का A सिरा धनात्मक व B सिरा ऋणात्मक तथा द्वितीय अर्द्धचक्र में A सिरा ऋणात्मक तथा B सिरा धनात्मक हो जाता है। P-N संधि डायोड व लोड प्रतिरोध के संयोजन का परिपथ प्रत्येक अर्द्धचक्र में द्वितीयक कुण्डली के मध्य बिन्दु E से पूरा हो जाता है। अब निवेशी सिगनल के प्रथम अर्द्धचक्र के कारण जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा धनात्मक होता है, तो डायोड D 1 अग्र अभिनत होता है तथा डायोड D 2 उत्क्रम अभिनत। इस प्रकार D 1 कार्य करता है तथा लोड प्रतिरोध पर धनात्मक दिष्टधारा का अर्द्धचक्र प्राप्त होता है। पुनः निवेशी सिगनल के द्वितीयक ...

pn संधि डायोड

जब p टाइप क्रिस्टल को विशेष विधि द्वारा n टाइप क्रिस्टल से जोड़ा जाता है। तो इस संयोजन को pn संधि डायोड (pn junction diode in hindi) कहते हैं। जैसे ही pn संधि बनती है वैसे ही आवेश वाहकों का संधि के आर-पार विसरण प्रारंभ हो जाता है। और प्रत्येक आवेश वाहक अपने-अपने पूर्णांकों से मिलकर उदासीन हो जाते हैं। और इस प्रकार pn संधि के समीप आवेश वाहक नहीं रहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट है। अब संधि के आर-पार विभवांतर उत्पन्न हो जाता है और एक अतिरिक्त विद्युत क्षेत्र E विस्थापित हो जाता है यह विद्युत क्षेत्र कुछ समय बाद इतना प्रबल हो जाता है कि आवेश वाहकों का विसरण रुक जाता है। अतः इस प्रकार pn संधि डायोड में आवेश वाहक गति करते हैं। अवक्षय परत pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें दाता वह ग्राही आयन उदासीन हो जाते हैं। अर्थात जिसमें कोई चलनशीन आवेश वाहक नहीं होते हैं। उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत की मोटाई 10 -6 मीटर की कोटी की होती है अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को रोधिका विभव या विभव प्राचीर कहते हैं। इसका मान जर्मेनियम संधि के लिए 0.3 वोल्ट तथा सिलिकॉन संधि के लिए 0.7 वोल्ट होता है। pn संधि डायोड में धारा का प्रवाह यदि संधि डायोड में कोई बाह्य बैटरी न लगी हो तो उसमें कोई धारा नहीं बहती है। pn संधि डायोड को बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है। (i) अग्र अभिनति (i) पश्च (उत्क्रम) अभिनति अग्र अभिनति जब संधि डायोड के p-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के धन सिरे से तथा n-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ा जाता है तो संधि को अग्र अभिनति कहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट है। पश्च (उत्क्रम) अभिनति में pn संधि डायोड जब संधि डायोड के p-क्षेत्र को बाह्य बैटरी...

[Solved] पी

सही उत्तर डायोड डिजाइनहै। धारणा: पी-एन संधि में, छिद्र p-साइड में बहुमत वाहक होते हैं और इलेक्ट्रॉन n-साइड में बहुमत वाहक होते हैं। यह दिखाया गया है: • चूंकि जंक्शन के पास n-टाइप और p-टाइप में एक उच्च इलेक्ट्रॉन और छिद्र है, इसलिए सघनन ढाल के कारण विसरण होता है, यानी छेद p-टाइप क्षेत्र से n-टाइप क्षेत्र में फैलते हैं और इसके विपरीत भीऐसा होता है। • पी-एन जंक्शन की विभव रोधिका: p-एन जंक्शन के पार बिजली के विभवान्तर को विभव रोधिका कहा जाता है। • डोपिंग:इसकी चालकता और अन्य गुणों को बदलने के लिए एक अर्धचालक में मिलाये किये गएअशुद्धियों को डोपिंग के रूप में जाना जाता है। • विभव रोधिकानिर्भर करता है- • पीएन संधि बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री: कमरे के तापमान पर,यहसिलिकॉन के लिए 0.3 V, जर्मेनियम के लिए 0.7 V है। • डोपिंग की मात्रा: डोपिंग की मात्रा संधि में बहुसंख्यक आवेश वाहकों कीमात्रातय करेगी। • तापमान:तापमान में वृद्धि से अल्पसंख्यक आवेश वाहकों की संख्या में बदलाव होगा। • अवक्षय क्षेत्र में बना विद्युत क्षेत्र अवरोधक का काम करता है। • यह अवरोध तब बनता है जब n-क्षेत्र में कुछ मुक्त इलेक्ट्रॉन संधि में फैल जाते हैं और छिद्रों से जुड़कर नकारात्मक आयन बनाते हैं। • पीएन संधि की अवक्षयक्षेत्र में विभव रोधिका का विकास संधि के पार बहुसंख्य वाहक के प्रसार के परिणामस्वरूप होता है। स्पष्टीकरण: विभव रोधिकाi \( \right)\)द्वारा दिया गया है। यहडोपिंग केतापमान और प्रयुक्त वोल्टेज अभिनतपर निर्भर करता है जो अवरोध के पार लगाया जाता है लेकिन डायोड के आकार या डिजाइन पर नहीं लगाया जाता।

पीएन संधि डायोड क्या है, अग्र और पश्च अभिनति

पीएन संधि डायोड किसी pn संधि के निर्माण के समय दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं। विसरण और अपवाह। p टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक कोटर (होल) होते हैं। जबकि n टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। तथा प्रत्येक आवेश वाहक अपने-अपने पूर्णांकों से मिलकर उदासीन हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों क्षेत्र विद्युत उदासीन होते हैं। किसी n टाइप के अर्धचालक में इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता कोटर की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। इसी प्रकार p टाइप के अर्धचालक में कोटर की सांद्रता इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। अतः pn संधि डायोड के निर्माण के समय, p एवं n क्षेत्रों के सिरों पर सांद्रता प्रवणता के कारण विसरण प्रारम्भ हो जाता है। कोटर p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। एवं इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। आवेश वाहकों की इस गति के कारण संधि से एक विसरण धारा प्रवाहित होती है। pn संधि डायोड में अवक्षय परत pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें चलनशीन आवेश वाहक नहीं रहते हैं। तब उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत pn संधि पर बनी दाता व ग्राही आयनों की परत होती है। अवक्षय परत की मोटाई लगभग 10 -6 मीटर होती है। विभव प्राचीर pn संधि के दोनों ओर बनी अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को विभव प्राचीर कहते हैं। इसे रोधिका विभव भी कहते हैं। एवं विभव प्राचीर का मान संधि के ताप तथा अर्धचालकों में मिश्रित अपद्रव्य की सांद्रता पर निर्भर करता है। pn संधि डायोड में विद्युत धारा का प्रवाह pn संधि डायोड को किसी बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है। 1. अग्र अभिनति 2. पश्च अभिनति 1. अग्र अभिनति जब pn संधि ड...