पीतांबरा माता की कहानी

  1. पीतांबरा माता दतिया, संपूर्ण जानकारी
  2. मां पीतांबरा जयंती पर जानिए पीतांबरा पीठ के बारे में रोचक बातें
  3. पीतांबरा माता बगलामुखी
  4. चौथ माता की कथा कहानी बारह महीने की
  5. Top 5 अवसान माता की कहानी


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पीतांबरा माता दतिया, संपूर्ण जानकारी

जैसा कि आप जानते है की संपूर्ण भारतवर्ष में आदि शक्ति देवी माँ के विभिन्न मंदिर और तीर्थ स्थल है जो की कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हुए है। आज हम आपको उन्ही में से एक प्रमुख धाम माता बगलामुखी जो की दतिया (मध्य प्रदेश ) में स्थित है की बारे में में सपूर्ण जानकारी देने जा रहे है , इस पवित्र तीर्थस्थल को आम जन माता पीताम्बरा की नाम से भी जानते है जिसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है। देवी पीताम्बरा एक प्रसिद्द शक्तिपीठ है जिसकी ख्याति विश्वविख्यात है और यहाँ लाखों श्रद्धालु देश विदेश से यहाँ माता के दर्शन के लिए आते है। Peetambara Mata Statue ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर में एक विशेष तरह के भक्त बहुतायत संख्या में आते है जो राजनीतिक सत्ता का भोग अनुभव करना चाहते है। ऐसा विश्वास है की यहाँ मन से मांगी हुई मुराद अवश्य पूरी होती है एवं राजनीती से लेकर फ़िल्मी हस्तियां इस मंदिर के दर्शन करने आते है। यहाँ माता पीताम्बरा के साथ ही मंदिर में एक तरफ माता धूमाबती का भी प्रसिद्द मंदिर स्थित है जिसके भक्त देश के कोने कोने से यहाँ दर्शन करने आते है। पीतांबरा माता दतिया का इतिहास भक्तों के बीच में इस मंदिर की बढ़ती श्रद्धा और विश्वास यहाँ आने वाले यात्रियों की संख्या दिन पर दिन बाद रही है। इस मंदिर की स्थापना का श्रेय श्री तेजस्वी स्वामी जी को जाता है जिन्होंने इस मंदिर की आधारशिला सन १९३५ में रखी थी। उससे पहले यहाँ देवी के होने के कोई साक्ष्य या प्रमाण देखने को नहीं मिलते न ही देवी के किसी अवतार या प्रकट होने की कथा यहाँ प्रचलित है। ऐसा मान जाताहै की स्वामी तेजस्वी जी की प्रेरणा से ही इस मंदिर में चतुर्भुज रूप में माता पीताम्बरा की मूर्ती स्थापना हुई। चतुर्भुजी देवी के एक हाथ में गदा...

मां पीतांबरा जयंती पर जानिए पीतांबरा पीठ के बारे में रोचक बातें

Shri pitambara peeth datiaश्री पीताम्बरा पीठ दतिया : मध्यप्रदेश के दतिया शहर में पीतांबरा पीठ स्थित है। इसे शक्तिपीठ भी माना जाता है। यहां पर महाभारतकालीन वनखण्डेश्वर शिव मंदिर स्थित है। कहते हैं कि पीतांबरा पीठ क्षेत्र में श्री स्वामीजी महाराज के द्वारा मां बगलामुखी देवी और माता धूमवाती देवी की मूर्ति की स्थापना 1935 में की गयी थी। धूमावती और बगलामुखी की जयंती : 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति मां धूमावती का प्रकटोत्सव ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं जबकि हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी माह के अनुसार इस बार यह बगलामुखी जयंती 9 मई 2022 मंगलवार को मनाई जाएगी। मां बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक आठवीं महाविद्या है। देवी की उत्पत्ति : बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। एक अन्य मान्यता अनुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र, आभूषण तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। इसीलिए उनका एक नाम पितांबरा भी है। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अ...

पीतांबरा माता बगलामुखी

जालंधर . सोमवार. ५ मई, २०१४ मां बगलामुखी की साधना को पीतांबरा साधना कहा जाता है। इसमें पदार्थों का पीला होना अनिवार्य है। साधक को पीले वस्त्र धारण कर नित्य पीले पुष्पों से बगलामुखी देवी का पूजन करना चाहिए। धोती के साथ दुपट्टा या साफी का प्रयोग करना चाहिए, केवल एक वस्त्र धारण कर साधना करना वर्जित है... माता दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है। माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वादविवाद में विजय प्राप्त होती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। बगला शद संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है दुलहन। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीतांबरा भी है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। बगलामुखी देवी रत्नजडि़त सिहासन पर विराजमान होती हैं। रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होतीं है। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीपदान करें। देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है। मां बगलामुखी की साधना में...

चौथ माता की कथा कहानी बारह महीने की

चौथ माता की कथा कहानी Chauth mata ki kahani हर महीने की चौथ के व्रत के समय कही व सुनी जाती है। इसके बाद गणेश जी की कहानी सुनी जाती है। यु ट्यूब पर यह कहानी सुनने के लिए क्लिक करें – चौथ की माता की कहानी Chauth Mata ki katha kahani एक नगर में एक बूढी माँ रहती थी। वह अपने बेटे की सलामती के लिए बारह महीनों की चौथ का व्रत करती थी। हर चौथ को पंसारी से थोड़ा सा गुड़ और घी लाकर चार लड़्डू बनाती। एक बेटे को देती , एक से पूजा करती , एक हथकार के लिए निकालती और एक चाँद उगने पर खुद खा लेती थी। एक बार उसका बेटा ताई से मिलने गया। ताई ने वैसाखी चौथ का व्रत रखा था। ताई से पूछा माँ तो बारह चौथ करती है। ताई बोली तेरी माँ तेरी कमाई से तर माल खाने के लिए बारह चौथ करती है। तू परदेस जाये तो वह एक भी चौथ नहीं करेगी। लड़के को लगा ताई सच कह रही है। ( chauth mata ki kahani …. ) घर आकर माँ से कहा मैं परदेस जा रहा हूँ यहाँ तू मेरी कमाई खाने पीने में ही उड़ा देती है। माँ ने समझाकर रोकना चाहा पर बेटा नहीं माना। माँ ने उसे साथ ले जाने के लिए चौथ माता के आखे दिए और कहा मुसीबत में ये आखे तेरी मदद करेंगे। वह आखे लेकर रवाना हो गया। घूमते हुए एक नगर में पहुंचा। उसने देखा एक बूढी माँ रोती जा रही थी और पुआ बनाते जा रही थी। उसने कारण पूछा तो बूढी माँ ने कहा बेटा इस नगर की पहाड़ी पर एक दैत्य रहता है। पहले वह नगर में आकर कई लोगों को खाने के लिए मार देता था। ( chauth mata ki katha …. ) अब राजा हर घर से एक आदमी दैत्य के पास भेजता है और आज मेरे बेटे की बारी है इसलिए रो रही हूँ और उसी के लिए पुए बना रही हूँ। वह बोला तू पुए मुझे खिला दे , तेरे बेटे की जगह मैं चला जाता हूँ। बूढ़ी माँ ने खीर पुए उसे खिला दिए। खा पीकर वह सो गया...

Top 5 अवसान माता की कहानी

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