पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की दूसरी अवस्था है

  1. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धान्त
  2. [Solved] पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं को&nb
  3. विकास की अवस्थाओं के सिद्धान्त ,पियाजे, कोहृंबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त {Principle of Piaget, Kohlberg and Vyogtsky}
  4. संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ
  5. पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास
  6. CTET Notes in Hindi
  7. पियाजे की मानसिक विकास की अवस्थाएँ
  8. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत
  9. ज़ाँ प्याज़े
  10. जीन पियाजे ने अपना सिद्धांत कब दिया? – ElegantAnswer.com


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जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धान्त

Jean Piaget of Cognitive theory बीसवीं शताब्दी के द्वितीय शतक में जीन पियाजे (1896-1980) ने मानव विकास-विशेष तौर से किशोरावस्था के उन विभिन्न पहलुओं की ओर अपने अनेक लेखों तथा पुस्तकों के माध्यम से ध्यान दिलाया जिसकी ओर अब तक अन्य मनोवैज्ञानिकों का ध्यान नहीं गया था। माना कि पियाजे ने अधिगम आदि मनोवैज्ञानिक तथ्यों से अपने को सम्बन्धित नहीं किया फिर भी उन्होंने तर्क, चिन्तन, नैतिक निर्णय, प्रत्यय बोध जैसे अनेक अछूते मनोवैज्ञानिक तथ्यों के क्रमिक विकास का बङे ही मनोवैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया और इसी अध्ययन क्रम में उन्होंने सन् 1923 में अपनी सर्वप्रथम पुस्तक ’दा लैंगुएज ऑफ थाॅट ऑफ दा चाइल्ड’ (The Language of the Thought of the Child) लिखी। इसके बाद सन् 1976 तक के लिए 53 वर्ष तक के काल तक उन्होंने 32 पुस्तकें लिखीं। इसके बाद सन् 1976 तक के 53 वर्ष तक के काल तक उन्होंने 32 पुस्तकें लिखीं। इसमें कई मनोवैज्ञानिक प्रत्ययों के क्रमिक विकास का वर्णन किया, इस कारण आपकी मनोवैज्ञानिक विचारधाराओं को ’विकासवादी मनोविज्ञान’ का नाम दिया गया। अब हम जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धान्त के बारे में जानेंगे – जीन पियाजे द्वारा प्रतिपादित ’मानव विकास की बौद्धिक अवस्थायें’ सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। हम जीन पियाजे द्वारा प्रतिपादित विकास की अवस्थाओं की चर्चा करें इससे पूर्व यह उचित रहेगा कि हम पियाजे द्वारा प्रतिपादित मनोवैज्ञानिक विकास की सामान्य प्रवृत्ति का ज्ञान करें। संतुलनीकरण क्या है ? अब तक के मनोवैज्ञानिकों ने मानव विकास के तीन पक्ष बतलाये थे- • जैविकीय परिपक्वता (Biological Maturation), • भौतिक वातावरण के साथ अनुभव (Experience with Physical Environment) • सामाजिक वातावरण के साथ अनुभव (Exp...

[Solved] पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं को&nb

पियाजे के अनुसार, विकास कीविभिन्न अवस्थाओंमें संज्ञानात्मक विकास अलग-अलग दरों पर होता है। प्राथमिक स्तर पर न केवल बच्चों की अधिगमकी क्षमता में वृद्धि होती है बल्कि उनके चिन्तन करनेकी प्रक्रिया में गुणात्मक परिवर्तन भी होता है। Key Pointsपियाजेने संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया को विस्तृत करने के लिए पूरे सातत्य को चार अवस्थाओंमें वर्गीकृत किया है। • संवेदीगामक अवस्था(0-2 years) • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(2-7 years) • मूर्तसंक्रियात्मक अवस्था (7- 1 1 years) • औपचारिकसंक्रियात्मक अवस्था (1 1-15 years) संवेदीगामक अवस्था: यह अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्ष तक की होती है। जैसा कि इस अवस्थाके नाम से ज्ञात होताहै, इस अवस्थाके शुरुआती भाग के दौरान बच्चे मुख्य रूप से अपनी इंद्रियों के माध्यम से दुनिया का बोध कराते हैं - छूना, चखना, सुनना, देखना और महसूस करना आदि। • बच्चे के व्यवहार में अधिक सजगता या स्वाभाविक प्रतिक्रियाएँ जैसे चूसना और रोना शामिल हैं। जैसे-जैसे वे आयुमें आगे बढ़ते हैं, वे रेंगने, शरीर को हिलाने और बड़बड़ाने जैसी अधिक जटिल शारीरिक क्रियाएं करने में सक्षम हो जाते हैं। • वे धीरे-धीरे इस अवस्थाके अंत तक लक्ष्य-निर्देशित गतिविधियों में शामिल होने में सक्षम हो जाते हैं। • वे किसी का पीछा करने में सक्षम हैं, वे अपने खिलौनों को एक बॉक्स से बाहर निकालने और उन्हें वापस रखने में सक्षम हैं। इस प्रकार इन सभी संदर्भों से, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि संवेदीगामक अवस्थावह अवस्था है जिसमें बच्चा (0-2) वर्ष की आयु का होता है। Important Points • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था: इस अवस्था की समय अवधि2 वर्षसे 7 वर्षतक की होतीहै। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए इस अवस्थाको समझना महत्वपू...

विकास की अवस्थाओं के सिद्धान्त ,पियाजे, कोहृंबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त {Principle of Piaget, Kohlberg and Vyogtsky}

• मानव विकास की वृद्धि एवं विकास के कई आयाम होते हैं। • विकास की विभिन्न अवस्था में बालक में विशेष प्रकार के गुण एवं विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। इनका अध्ययन कर कई मनोवैज्ञानिकों ने विकास की अवस्थाओं के सन्दर्भ में विभिन्न प्रकार के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। • विकास की अवस्थाओं से सम्बन्धि सिद्धान्तों में जीन पियाजे, लॉरेन्त कोहृबर्ग एवं वाइगोत्स्की नामक मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रदत्त सिद्धान्त विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। • जीन पियाजे स्विट्रलैण्ड के एक मनोवैज्ञानिक थे। बालकों में बुद्धि का विकास किस ढंग से होता है, यह जानने के लिए उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते गए, उनके मानसिक विकास सम्बन्धी क्रियाओं का वे बड़ी बारीकी से अध्ययन करते रहे। इस अध्ययन के परिणामस्वरूप उन्होंने जिन विचारों का प्रतिपादन किया उन्हें पियाजे के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। • संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य बच्चों के सीखने और सूचनाएँ एकत्रित करने के तरीके से है। इसमें अवधान में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिन्तन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल हैं। • जियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के अनुसार, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा संज्ञानात्मक संरचना को संशोधित किया जाता है, समावेशन कहलाती है। • पियाजे ने अपने इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह बात सामने रखी कि बच्चों में बुद्धि का विकास उनके जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। प्रत्येक बालक अपने जन्म के समय कुछ जन्मजात प्रवत्तियों एवं सहज क्रियाओं को करने सम्बन्धी योग्यताओं जैसे चूसना, देखना, वस्तुओं को पकड़ना, वस्तुओं तक पहुँचना आदि को लेकर पैदा होता है। अतः जन्म के समय बालक पास बौद्धिक...

संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ

संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ - four stages of cognitive development पियाजे का मानना था कि सभी बच्चे संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाओं से क्रमश: गुजरते हैं। इन अवस्थाओं को सामान्यतः विशेष आयुवर्ग के साथ जोड़ा जाता है पियाजे के अनुसार बच्चे किसी एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक पहुंचने में कम या अधिक समय लगा सकता है या फिर वे किसी स्थिति में एक ही अवस्था की विशेषताएँ भी दर्शा सकते हैं या फिर किसी अन्य स्थिति में उच्चतर या निम्नतर अवस्था की विशेषताएँ भी दर्शा सकते हैं। अतः बच्चे की केवल आयु के आधार पर हम यह नहीं बता सकते कि वह किस प्रकार सोच रहा है। पियाजे आयु के स्थान पर चरण (Stage) को पसंद करते हैं जो आयु से व्यापक होता है। शैशवावस्था संवेदी पेशीय अवस्था (0-2 वर्ष) संज्ञानात्मक विकास के प्रारंभिक काल को संवेदी पेशीय अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में बच्चा अपनी सांवेदिक इंद्रियों ( देखना, सुनना, चलना, छूना, चखना आदि) एवं पेशीय गतिबिधियों द्वारा सीखता है। ये बच्चे वस्तु स्थायित्व (Object Permanence) के विकास को दर्शाते हैं। इसका अभिप्राय है कि बच्चा यह समझने लगता है कि यदि कोई वस्तु उसके सामने उपस्थित नहीं है तो भी उसका अस्तित्व रह सकता है यद्यपि बच्चा उसका इन्द्रियों से साक्षात् अनुभव नहीं भी कर पाता है। यहीं से बच्चों में मानसिक निरूपण (Mental Representation) की क्षमता का विकास होता है। वस्तु स्थायित्व (object permanence) से पहले बच्चों से चीजें लेकर छिपाना बहुत ही आसान होता है लेकिन इसके विकास के बाद बच्चे छुपायी गई वस्तु को यहां-वहां देखने और खोजने का प्रयास करने लगते हैं। इससे यह पता चलता है कि बच्चे को यह समझ है कि अपने सामने नहीं होने पर भी वस्तु मौजूद रहती है। संवेदी ...

पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास

संगठन से तात्पर्य प्रत्यक्षिकृत तथा बौद्धिक सूचनाओं को सार्थक पैटर्न जिन्हें बौद्धिक संरचनाएं कहते हैं मे व्यवस्थित करने से हैं।प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वयं की बौद्धिक संरचनाओं का निर्माण करता है।जो वातावरण के साथ समायोजन करने में उसकी ज्ञान तथा कार्यों को संगठित करती हैं। व्यक्ति मिलने वाली नवीन सूचनाओं को इन पूर्व निर्मित बौद्धिक संरचनाएं में संगठित करने का प्रयास करता है। परंतु कभी-कभी वह इस कार में सफल नहीं हो पाता है तब वह अनुकूलन करता है। प्याजे प्रथम मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने व्यक्ति को जन्म से क्रियाशील तत्व सूचना प्रक्रमणित प्राणी स्वीकार किया है। उनके अनुसारव्यक्त एकत्रित बौद्धिक सूचनाओं का वर्गीकरण करता रहता है जिससे वह अपने बाह्य जगत की परिस्थितियों के अनुरूप सहज और स्वाभाविक ढंग से उचित व्यवहार कर सकें अनुकूलन व प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान तथा नवीन अनुभव के मध्य संतुलन स्थापित करता है अनुकूलन के अंतर्गत दो प्रक्रिया है। आत्मसातकरण तथा समाविष्टकरण आत्मसात करण से तात्पर्य नवीन अनुभवों को पूर्वर्ती विद्यमान बौद्धिक संरचनाओं में व्यवस्थित करने से है जबकि समाविष्टीकरण से तात्पर्य नवीन अनुभव की दृष्टि से पूर्ववर्ती बौद्धिक संरचनाओं में सुधार करने विस्तार करने या परिवर्तन करने से है। यह विद्वन बौद्धिक संरचनाओं को परिवर्तित करने की प्रक्रिया है जिससे नवीन अनुभव अथवा ज्ञान को उचित ढंग से व्यवस्थित किया जा सके संज्ञानात्मक विकास की पूर्व संक्रियात्मक अवस्था लगभग 2 वर्ष की अवस्था से प्रारंभ होकर 7 वर्ष की अवस्था तक चलती है इस अवस्था में संकेत आत्मक कार्यों का प्रादुर्भाव तथा भाषा का प्रयोग प्रारंभ होता है इस अवस्था को दो भागों में बांटा जा सकता है प...

CTET Notes in Hindi

विकास केवल नकल (Copying) न होकर खोज (Invention) पर आधारित है। नवीनता या खोज (Novelty or Invention) को उद्दीपक-अनुक्रिया सामान्यीकरण के आधार पर नहीं समझाया जा सकता है। उदाहरण के लिए एक चार साल का बालक यदि भिन्न-भिन्न आकार के प्यालों को प्रथम बार क्रमानुसार लगा देता है, तो यह उसके बौद्धिक वृद्धि की खोज और निर्माण से सम्बन्धित है। (a) सात्मीकरण (Assimilation): सात्मीकरण का अर्थ है-बालक में उपस्थित विचार में किसी नये विचार (Idea) या वस्तु का समावेश हो जाना। पियाजे का विचार (Idea) का अर्थ बालक के प्रत्यक्षात्मक-गत्यात्मक समन्वय (PerceptualMotor Coordinations) से है। प्रत्येक बालक में प्रत्येक आयु-स्तर पर कुछ-न-कुछ क्रियाओं या ऑपरेशन्स के सेट विद्यमान होते हैं। इन पुराने ऑपरेशन्स में नये विचार या क्रियाओं का समावेश हो जाता है। (b)व्यवस्थापन तथा संतुलन स्थापित करना (Accommodationand Equilibration) व्यवस्थापन का अर्थ नयी वस्तु या विचार के साथ समायोजन करना है या अपने विचारों और क्रियाओं को नये विचारों और वस्तुओं में फिट करना है। बालकों में बौद्धिक वृद्धि जैसे-जैसे बढ़ती है वैसे-वैसे वह नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करना सीखता है। मानसिक वृद्धि में सात्मीकरण और व्यवस्थापन में उपस्थित अथवा उत्पन्न तनाव का हल (Resolution) निहित होता है। (b) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-Operational Period): यह दो से सात वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह नयी सूचनाओं और अनुभवों का संग्रह करता है। वह पहली अवस्था की अपेक्षा अधिक समस्याओं का समाधान करने योग्य हो जाता है। इस अवस्था में उसमें आत्मकेन्द्रिता (Egocentricity) का विकास होता है। इस अवधि के अन्त तक जब बालक में कुछ सामाजिक विकास उन्नत हो जा...

पियाजे की मानसिक विकास की अवस्थाएँ

आज तक ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में जितने शोध एवं अध्ययन किये गये हैं, उनमें सबसे अधिक विस्तृत, वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित अध्ययन जीन प्याजे ने किया। यही कारण है कि जीन प्याजे को मनोविज्ञान के क्षेत्र में तृतीय शक्ति (third force) के रूप में जाना जाता है। पियाजे की मानसिक विकास की अवस्थाएँ Stages of Piaget’s Cognitive Development • • • • 1. संवेदीगात्मक अवस्था: 0-2 वर्ष (Sensorimotor Stage) यह अवस्था बालक के जन्म से लेकर 2 वर्ष की अवधि तक रहती है। इस अवस्था में बालक इन्द्रियों और संवेदनाओं के द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है। इसमें जीवन के प्रथम वर्ष में बालक किसी वस्तु की अवधारणा विकसित करता है। इसके बाद बालक अपने पहुँच से परे लुप्त हुई वस्तुओं का पुनरुद्धार करने का प्रयत्न करता है। वस्तुओं का आकार अपने मस्तिष्क में ग्रहण करने के पश्चात् वह अभ्यास के अवसरों का उपयोग करता है। जन्म के समय बालक कोई ज्ञान नहीं रखता। धीर-धीरे वह ज्ञान प्राप्त करता है। यह समस्त ज्ञान इन्द्रियों और संवेदनाओं के द्वारा प्राप्त करता है। इस आयु में बालक संवेदीगात्मक अवस्था की मुख्य विशेषताएँ • शरीर पर नियन्त्रण करने की क्षमता का विकास। • वस्तुओं के स्थायित्व की अवधारणा (Concept of object permanence) का विकास। • व्यावहारिक ज्ञान की उपस्थिति तथा प्रतीकात्मक ज्ञान की अनुपस्थिति। • स्थान एवं आवश्यकताएँ भी व्यक्तिनिष्ठ होती हैं अर्थात् बालक अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ही कार्य करता है, जो वह सोचता, समझता है या चाहता है, उसे ही वह सही मानता है। दूसरों के विचारों तथा आवश्यकताओं आदि को समझने की क्षमता उसमें नहीं होती। इसे पियाजे ने आत्मकेन्द्रियता(Egocentrism) कहा है। यह इस अवस्था की प्रमुख विशेषता ह...

पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

1.5 (4) औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Stage of formal operations) पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत (Piaget’s Theory of Cognitive Development) पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत में जीन पियाजे (Jean Piaget) ने बालकों के संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) की व्याख्या करने के लिए एक चार अवस्था (four stage) सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इस सिद्धांत में पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या चार प्रमुख अवस्थाओं (stages) में बाँटकर की है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत चार अवस्था निम्न है 1. संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensory-motor state) 2. प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational stage) 3. ठोस संक्रिया की अवस्था (Stage of concrete operation). 4. औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Stage of formal operation) (1) संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensory-motor stage)- यह अवस्था जन्म से दो साल तक की होती है। इस अवस्था में शिशुओं में अन्य क्रियाओं के अलावा शारीरिक रूप से चीजों को इधर-उधर करना, वस्तुओं की पहचान करने की कोशिश करना, किसी चीज को पकड़ना और प्रायः उसे मुँह में डालकर उसका अध्ययन करना आदि प्रमुख हैं। पियाजे ने यह बताया है कि इस अवस्था में शिशुओं का बौद्धिक विकास (intellectual development) या (i) पहली अवस्था को प्रतिवर्त क्रियाओं की अवस्था (Stage of reflex activities) कहा जाता है जो जन्म से 30 दिन तक की होती है। इस अवस्था में बालक मात्र प्रतिवर्त क्रियाएँ (reflex (activities) करता है। इन प्रतिवर्त क्रियाओं में चूसने का प्रतिवर्त (sucking reflex) सबसे प्रबल होता है। (ii) दूसरी अवस्था प्रमुख वृत्तीय प्रतिक्रियाओं की अवस्था (Stage of primary circular (reactions) है जो ...

ज़ाँ प्याज़े

ज़ाँ प्याज़े जन्म ज़ाँ विलियम फ्रिट्ज प्याज़े Jean William Fritz Piaget 9 अगस्त 1896 मृत्यु 16 सितम्बर 1980 ( 1980-09-16) (उम्र84) क्षेत्र प्रसिद्धि प्रभाव प्रभावित [ [ ज़ाँ प्याज़े (Jean Piaget; French: UK p i ˈ æ ʒ eɪ US ˌ p iː ə ˈ ʒ eɪ p j ɑː ˈ ʒ eɪ पियाजे, बच्चों का निरीक्षण करने की पियाजे में विलक्षण प्रतिभा थी। उसके सावधानीपूर्वक किये गये प्रेक्षणों ने हमें यह खोजने के सूझबूझ भरे तरीके दिखाये कि बच्चे कैसे अपने संसार के साथ क्रिया करते हैं और तालमेल बिठाते हैं। पियाजे ने हमें अनुक्रम • 1 प्याज़े और शिक्षा • 1.1 खोज पद्धति से सीखना (discovery learning) • 1.2 बच्चों की सीखने की तत्परता के प्रति संवदेनशीलता • 1.3 व्यक्तिगत भेदों को स्वीकारना • 2 आलोचनाएँ • 3 प्याज़े का नैतिक विकास सिद्धान्त • 4 इन्हेंभीदेखें • 5 सन्दर्भ प्याज़े और शिक्षा [ ] [ ] पियाजे का अनुसरण करने वाली कक्षा में बच्चों को परिवेश के साथ स्वतः स्फूर्त/सहज रूप से क्रिया करते हुए चीजों को खुद से खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। पहले से तैयार ज्ञान को शाब्दिक रूप से प्रस्तुत करने के बजाय, शिक्षक ऐसी विविध गतिविधियों की सुविधा प्रदान करते हैं जो खोजने को बढ़ावा देती हैं- जैसे कला, पहेलियॉंँ, मेज वाले खेल, विभिन्न परिधान, चीजें बनाने वाले गुट्टे (building blocks), किताबें, नापने के औजार, संगीत, वाद्य तथा और भी बहुत कुछ। बच्चों की सीखने की तत्परता के प्रति संवदेनशीलता [ ] पियाजे वाली कक्षा विकास की गति को बढ़ाने की कोशिश नहीं करती। पियाजे मानते थे कि बच्चों के सीखने के उपयुक्त अनुभव उनकी तात्कालिक सोच से ही विकसित होते हैं। शिक्षक बच्चों को ध्यानपूर्वक देखते हैं, उनकी बातें सुनते हैं, और उन्हें ऐसे अन...

जीन पियाजे ने अपना सिद्धांत कब दिया? – ElegantAnswer.com

इसे सुनेंरोकेंजीन प्याजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है। जीन पियाजे का जन्म कहाँ हुआ? न्यूचैटल, स्विट्ज़रलैण्डज़ाँ प्याज़े / जन्म की जगह जीन पियाजे के कितने सिद्धांत है? इसे सुनेंरोकेंजीन पियाजे ( 1896 – 1980) एक प्रमुख स्विस( swiss) मनोवैज्ञानिक थे । जिनका प्रशिक्षण प्राणी विज्ञान में हुआ था । जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या करने के लिए चार अवस्था सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। क्षैतिज डेकर आयु घटना क्या है? इसे सुनेंरोकेंक्षैतिज décalage का एक उदाहरण मात्रा का परिवर्तन है, जिसे आम तौर पर 6 या 7 वर्ष की आयु के आसपास महारत हासिल होती है, जब वजन का संबंध होता है, 9 या 10 वर्ष की आयु में, और लगभग 11 या 12 वर्ष की उम्र में जब अपरिवर्तनीय होता है। पियाजे के अनुसार संवेगात्मक गामक अवस्था की आयु कितने वर्ष की है? इसे सुनेंरोकें(1) संवेदना गामक विकास की अवस्था (Period of Sensori-motor Development) – जन्म से लेकर चौबीस माह अर्थात् 2 वर्ष तक की अवस्था पियाजे के अनुसार संवेदना-गामक बुद्धि के विकास की अवस्था होती है। पियाजे का मानसिक विकास सिद्धांत क्या है? इसे सुनेंरोकेंजीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रमुख रूप से बच्चों एवं किशोरों के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं पर प्रकाश डालता है। पियाजे का यह सिद्धांत अवस्था सिद्धांत कहलाता है क्योंकि इस सिद्धांत में एक अवस्था से दूसरी अवस्था तक होने वाला विकास पहली अवस्था के विकास पर न...