पोषण अभियान

  1. पोषण अभियान
  2. विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका
  3. किशोरावस्था में पोषण
  4. महिलाओं का पोषण
  5. पोषण
  6. किशोरावस्था में पोषण
  7. महिलाओं का पोषण
  8. विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका
  9. पोषण
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पोषण अभियान

जबकि हाल के वर्षों में भारत की कुपोषण दर में सुधार हुआ है, देश अभी भी दुनिया में सबसे अधिक संख्या में अविकसित और कमजोर बच्चों का घर है। देश में पोषण की निराशाजनक स्थिति का मुकाबला करने के लिए, सरकार ने 2017 में समग्र पोषण (पोषण) अभियान ('आंदोलन') के लिए प्रधान मंत्री की व्यापक योजना शुरू की, एक प्रमुख मिशन जिसका उद्देश्य कुपोषण के प्रति देश की प्रतिक्रिया के लिए एक अभिसरण तंत्र है। यह विशेष रिपोर्ट भारत के पूर्वी राज्यों में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की जांच करती है, और उनके द्वारा अपनाई गई नवीन तकनीकों को बढ़ाने के तरीकों की रूपरेखा तैयार करती है। श्रेय: शोबा सूरी और कृति कपूर, "पोषण अभियान: महामारी के समय में कुपोषण से लड़ना," ओआरएफ विशेष रिपोर्ट संख्या 124, दिसंबर 2020, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन। परिचय भारत में बाल और मातृ कुपोषण अकेला सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम कारक है, जो भारत के कुल रोग भार के 15 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। बच्चों में कुपोषण या तो 'बौनापन' (उम्र के संबंध में कम ऊंचाई) या 'बर्बाद' (कम) के रूप में प्रकट होता है। ऊंचाई के संबंध में वजन) या दोनों। भारत दुनिया के सभी अविकसित बच्चों में से लगभग एक तिहाई (149 मिलियन में से 46.6 मिलियन) और दुनिया के आधे बच्चों (51 मिलियन में से 25.5 मिलियन) का घर है। चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) के डेटा 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी और 21 फीसदी बच्चे क्रमश: अविकसित और कमजोर हैं। वहीं, पांच साल से कम उम्र के बच्चों, वयस्क महिलाओं और वयस्क पुरुषों में मोटापे की दर बढ़कर क्रमश: 2.4 फीसदी, 20.7 फीसदी और 18.9 फीसदी हो गई है. इस प्रकार भारत कुपोषण और मोटापे के दोहरे बोझ का...

विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका

पर्यावरण विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका विश्व पर्यावरण दिवस 2023 से पहले, NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन एंड चेयर और रॉथ्सचाइल्ड एंड कंपनी इंडिया की चेयर नैना लाल किदवई से ‘हेल्थ फॉर ऑल’ थीम का पता लगाने और अगर हमारे आसपास का वातावरण स्वस्थ नहीं है तो इस लक्ष्य को हासिल करना कैसे असंभव है, के बारे में बात की. नई दिल्ली : मनुष्य का स्वास्थ्य उस ग्रह के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है जिस पर वह रहते हैं – यह एक स्थापित तथ्य है. ‘वन हेल्थ’ का कॉन्सेप्ट पृथ्वी ग्रह पर सभी लोगों, जानवरों, पौधों और उनके साझा पर्यावरण के बीच इस इंटरकनेक्टेडनेस यानी अंतर्संबंध को रिकॉग्नाइज करता है. हर साल 5 जून को मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस 2023 से पहले, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन और रॉथ्सचाइल्ड एंड कंपनी इंडिया की चेयर नैना लाल किदवई से बात की. उनसे हेल्थ फॉर ऑल थीम और कैसे यदि हमारे आसपास का वातावरण स्वस्थ नहीं है तो इस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव है, इसे लेकर बात की गई. हमने हेल्थ, हाइजीन, सैनिटेशन और सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत हुई प्रगति पर भी चर्चा की. आगे की राह पर भी चर्चा की गई. किदवई ने “सर्वाइव ऑर सिंक: एन एक्शन एजेंडा फॉर सैनिटेशन, वाटर, पॉल्यूशन एंड ग्रीन फाइनेंस” लिखी है, जो कोविड-19 महामारी से पहले की है. अब जब महामारी को हम पीछे छोड़ चुके हैं, तो भारत इस एजेंडे पर कितना आगे बढ़ चुका है और महामारी का हमारे लक्ष्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है? किदवई ने खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) भारत बनाने के लिए 2014 में भारत सरकार...

किशोरावस्था में पोषण

भारत 25.30 करोड़ किशोर-किशोरियों (10 से 19 वर्षों तक) का घर है।हम एक चौराहे पर खड़े हैं जहाँ दोनों संभावनाएँ है - हम एक पूरी पीढ़ी की क्षमता खो सकते है,या उनको पोषित करके समाज में बदलाव ला सकते हैं।जैसे-जैसे किशोर बड़े होते हैं, उनके आस-पासकावातावरण भी बदलता है और हम सबकोमिलकर किशोरावस्था की उम्र में अवसरोंकोसुनिश्चित करने की जरूरत है । किशोरावस्था पोषण की दृष्टि से एक संवेदनशीलसमय होता है, जब तेज शारीरिक विकास के कारण पौष्टिक आहार की माँग में वृद्धि होती है। किशोरावस्था के दौरान लिए गए आहार सम्बन्धीआचरणपोषणसम्बन्धीसमस्याओं में योगदान कर सकते हैं, जिसका स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता पर आजीवन असर रहता है। भारत में किशोरों का एक बड़ा भाग, 40% लड़कियाँ और 18% लड़के,एनीमिया (रक्त की कमी) से पीड़ित है। किशोरों में एनीमिया,उनके विकास, संक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरोध-शक्ति तथा ज्ञानात्मक विकास और कार्य की उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। इस समस्या की प्रतिक्रिया में, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्लू) ने जनवरी 2013 में एक राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक आयरन एवं फोलिक एसिड आपूर्ति (वीकली आयरन एवं फॉलिक एसिड सप्लिमेंटेशन(डब्लूआईएफएस)) कार्यक्रम की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम विभिन्न भारतीय राज्यों में किशोरियों में एनीमिया का समाधान करने के लिए यूनिसेफ द्वारा आयरन एवं फोलिक एसिड (आईएफए) की साप्ताहिक आपूर्ति पर मार्गदर्शी (पायलट) और कई चरणों वाली योजनाओं में वृद्धि के माध्यम से 13 वर्षों के प्रमाणिक अनुसंधान को आगे बढ़ाता है। इस योजना के अंतर्गत, प्रदान की जाने वाली सेवाओं में सम्मिलित हैं — सप्ताह में एक बार आयरनएवं फोलिक एसिड की आपूर्ति करना, वर्ष में दो बार ...

महिलाओं का पोषण

भारत में माँ बनने-योग्य आयु की एक चौथाई महिलाएँ कुपोषित है और उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 किलोग्राम/एमसे कम है(स्रोत: NFHS 4 2015-16 )।यह सभी को पता है कि एक कुपोषित माँ अवश्य ही एक कमजोर बच्चे को जन्म देती है, और कुपोषण चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। कुपोषित लड़कियों में कुपोषित मां बनने की संभावना अधिक होती है, जिससे कम वजन के बच्चों को जन्म देने की स्थिति अधिक होती हैं, और इस प्रकार कुपोषण का चक्र पीढ़ीयों तक बना रहता है। इस चक्र को कम आयु की माताओं द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है, विशेष रूप से उन किशोरियोंद्वारा, जो पूर्ण तौर पर शारीरिक रूप से विकसित होने से पहले बच्चे पैदा करना शुरू करती हैं। जब माताएँ गर्भावस्था के बीच बहुत कम अंतराल रखती हैं और अनेक बच्चे पैदा करती है, तो यह शरीर में पोषण की कमी को बढ़ाता है जो कि आगे बच्चों में भी जारी रहता है। भ्रूण का सही तौर पर विकसित नहीं हो पाना , अधिकतर माँ द्वारा गर्भ धारण करने के पहले और गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान पर्याप्त तौर पर पोषण नहीं लेने के कारण होता है। भारतीय बच्चों में कुपोषण स्तर के स्थिर बने रहने का मुख्य कारण महिलाओं के गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान उनका कुपोषित होना ठीक करने में अभी तक प्राप्त असफलता है। इसके परिणामस्वरूप,महिलाओं के पोषण — गर्भावस्था के पहले,दौरान और बाद में — को अब यूनिसेफ इंडिया की पोषण कार्यक्रम-निर्माण में एक विशेष ध्यान क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।यूनिसेफ का लक्ष्य अब वैश्विक और राष्ट्रीय सहमति पर आधारित महिलाओं के लिए पांच आवश्यक पोषण के प्रयासों की व्याप्ति को और अधिक व्यापक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है। माताओं के लिए पांच आवश्यक पोषण प्रयासों में शामिल ह...

पोषण

बच्चे के जीवित रहने, उसके स्वास्थ्य और विकास के लिए पर्याप्त और ठीक संतुलित आहार महत्वपूर्ण है। सुपोषित बच्चों की स्वस्थ, उत्पादक और सीखने के लिए तैयार रहने की संभावना अधिक होती है। अल्‍पपोषण का विपरीत प्रभाव होता है, इससे बुद्धि अवरुद्ध होती है, उत्पादकता कम होती है और गरीबी बनी रहती है। इससे बच्चे के मरने की संभावना बढ़ती है और निमोनिया, डायरिया और मलेरिया जैसे बचपन के संक्रमणों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। ऊर्जा, प्रोटीन अथवा विटामिन और खनिजों (सूक्ष्म पोषक तत्वों) के अपर्याप्त सेवन और/ अथवा अपर्याप्‍त अवशोषण की वजह से अल्‍पपोषण होता है जिससे पोषण संबंधी कमियां होती हैं। अल्‍पपोषण केवल पर्याप्‍त भोजन न खाने से ही नहीं होता। बचपन की बीमारियां, जैसे दस्त अथवा आंतों में कीड़े के संक्रमण से भी पोषक तत्वों का अवशोषण अथवा आवश्यकताएं प्रभावित हो सकती हैं। कुपोषण व्यापक शब्द है जो हर प्रकार के खराब पोषण से संबंधित है। सरल शब्दों में, कुपोषण में अल्पपोषण और अतिपोषण, दोनों शामिल हैं। पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों की कुल मौतों की एक-तिहाई अल्‍पपोषण के कारण होती है। अल्‍पपोषण केवल गरीबों को प्रभावित करने वाली स्थिति नहीं, यह भारत भर के सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में व्‍याप्‍त है। केवल पिछले 10 वर्षों में, भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में स्‍टंट बच्चों की संख्या 48 प्रतिशत से कम होकर 38 प्रतिशत हो गई है। भारत अच्छी प्रगति कर रहा है लेकिन पूरे भारत में स्टंटिंग और अन्य प्रकार के कुपोषण समाप्त करने के लिए पहले से ही सफल प्रयासों में तेजी लाने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की आवश्यकता है। स्टंटिंग और अल्‍पपोषण के अन्‍य प्रकारों के विरुद्ध लड़ाई अभी जीती नहीं गई है, अल्‍...

किशोरावस्था में पोषण

भारत 25.30 करोड़ किशोर-किशोरियों (10 से 19 वर्षों तक) का घर है।हम एक चौराहे पर खड़े हैं जहाँ दोनों संभावनाएँ है - हम एक पूरी पीढ़ी की क्षमता खो सकते है,या उनको पोषित करके समाज में बदलाव ला सकते हैं।जैसे-जैसे किशोर बड़े होते हैं, उनके आस-पासकावातावरण भी बदलता है और हम सबकोमिलकर किशोरावस्था की उम्र में अवसरोंकोसुनिश्चित करने की जरूरत है । किशोरावस्था पोषण की दृष्टि से एक संवेदनशीलसमय होता है, जब तेज शारीरिक विकास के कारण पौष्टिक आहार की माँग में वृद्धि होती है। किशोरावस्था के दौरान लिए गए आहार सम्बन्धीआचरणपोषणसम्बन्धीसमस्याओं में योगदान कर सकते हैं, जिसका स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता पर आजीवन असर रहता है। भारत में किशोरों का एक बड़ा भाग, 40% लड़कियाँ और 18% लड़के,एनीमिया (रक्त की कमी) से पीड़ित है। किशोरों में एनीमिया,उनके विकास, संक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरोध-शक्ति तथा ज्ञानात्मक विकास और कार्य की उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। इस समस्या की प्रतिक्रिया में, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्लू) ने जनवरी 2013 में एक राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक आयरन एवं फोलिक एसिड आपूर्ति (वीकली आयरन एवं फॉलिक एसिड सप्लिमेंटेशन(डब्लूआईएफएस)) कार्यक्रम की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम विभिन्न भारतीय राज्यों में किशोरियों में एनीमिया का समाधान करने के लिए यूनिसेफ द्वारा आयरन एवं फोलिक एसिड (आईएफए) की साप्ताहिक आपूर्ति पर मार्गदर्शी (पायलट) और कई चरणों वाली योजनाओं में वृद्धि के माध्यम से 13 वर्षों के प्रमाणिक अनुसंधान को आगे बढ़ाता है। इस योजना के अंतर्गत, प्रदान की जाने वाली सेवाओं में सम्मिलित हैं — सप्ताह में एक बार आयरनएवं फोलिक एसिड की आपूर्ति करना, वर्ष में दो बार ...

महिलाओं का पोषण

भारत में माँ बनने-योग्य आयु की एक चौथाई महिलाएँ कुपोषित है और उनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 किलोग्राम/एमसे कम है(स्रोत: NFHS 4 2015-16 )।यह सभी को पता है कि एक कुपोषित माँ अवश्य ही एक कमजोर बच्चे को जन्म देती है, और कुपोषण चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। कुपोषित लड़कियों में कुपोषित मां बनने की संभावना अधिक होती है, जिससे कम वजन के बच्चों को जन्म देने की स्थिति अधिक होती हैं, और इस प्रकार कुपोषण का चक्र पीढ़ीयों तक बना रहता है। इस चक्र को कम आयु की माताओं द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है, विशेष रूप से उन किशोरियोंद्वारा, जो पूर्ण तौर पर शारीरिक रूप से विकसित होने से पहले बच्चे पैदा करना शुरू करती हैं। जब माताएँ गर्भावस्था के बीच बहुत कम अंतराल रखती हैं और अनेक बच्चे पैदा करती है, तो यह शरीर में पोषण की कमी को बढ़ाता है जो कि आगे बच्चों में भी जारी रहता है। भ्रूण का सही तौर पर विकसित नहीं हो पाना , अधिकतर माँ द्वारा गर्भ धारण करने के पहले और गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान पर्याप्त तौर पर पोषण नहीं लेने के कारण होता है। भारतीय बच्चों में कुपोषण स्तर के स्थिर बने रहने का मुख्य कारण महिलाओं के गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान उनका कुपोषित होना ठीक करने में अभी तक प्राप्त असफलता है। इसके परिणामस्वरूप,महिलाओं के पोषण — गर्भावस्था के पहले,दौरान और बाद में — को अब यूनिसेफ इंडिया की पोषण कार्यक्रम-निर्माण में एक विशेष ध्यान क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।यूनिसेफ का लक्ष्य अब वैश्विक और राष्ट्रीय सहमति पर आधारित महिलाओं के लिए पांच आवश्यक पोषण के प्रयासों की व्याप्ति को और अधिक व्यापक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है। माताओं के लिए पांच आवश्यक पोषण प्रयासों में शामिल ह...

विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका

पर्यावरण विश्व पर्यावरण दिवस 2023: जलवायु अनुकूल कल बनाने में जल, स्वच्छता और हाइजीन की भूमिका विश्व पर्यावरण दिवस 2023 से पहले, NDTV-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन एंड चेयर और रॉथ्सचाइल्ड एंड कंपनी इंडिया की चेयर नैना लाल किदवई से ‘हेल्थ फॉर ऑल’ थीम का पता लगाने और अगर हमारे आसपास का वातावरण स्वस्थ नहीं है तो इस लक्ष्य को हासिल करना कैसे असंभव है, के बारे में बात की. नई दिल्ली : मनुष्य का स्वास्थ्य उस ग्रह के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है जिस पर वह रहते हैं – यह एक स्थापित तथ्य है. ‘वन हेल्थ’ का कॉन्सेप्ट पृथ्वी ग्रह पर सभी लोगों, जानवरों, पौधों और उनके साझा पर्यावरण के बीच इस इंटरकनेक्टेडनेस यानी अंतर्संबंध को रिकॉग्नाइज करता है. हर साल 5 जून को मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस 2023 से पहले, एनडीटीवी-डेटॉल बनेगा स्वस्थ इंडिया की टीम ने इंडिया सैनिटेशन कोएलिशन और रॉथ्सचाइल्ड एंड कंपनी इंडिया की चेयर नैना लाल किदवई से बात की. उनसे हेल्थ फॉर ऑल थीम और कैसे यदि हमारे आसपास का वातावरण स्वस्थ नहीं है तो इस लक्ष्य को प्राप्त करना असंभव है, इसे लेकर बात की गई. हमने हेल्थ, हाइजीन, सैनिटेशन और सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत हुई प्रगति पर भी चर्चा की. आगे की राह पर भी चर्चा की गई. किदवई ने “सर्वाइव ऑर सिंक: एन एक्शन एजेंडा फॉर सैनिटेशन, वाटर, पॉल्यूशन एंड ग्रीन फाइनेंस” लिखी है, जो कोविड-19 महामारी से पहले की है. अब जब महामारी को हम पीछे छोड़ चुके हैं, तो भारत इस एजेंडे पर कितना आगे बढ़ चुका है और महामारी का हमारे लक्ष्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है? किदवई ने खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) भारत बनाने के लिए 2014 में भारत सरकार...

पोषण

बच्चे के जीवित रहने, उसके स्वास्थ्य और विकास के लिए पर्याप्त और ठीक संतुलित आहार महत्वपूर्ण है। सुपोषित बच्चों की स्वस्थ, उत्पादक और सीखने के लिए तैयार रहने की संभावना अधिक होती है। अल्‍पपोषण का विपरीत प्रभाव होता है, इससे बुद्धि अवरुद्ध होती है, उत्पादकता कम होती है और गरीबी बनी रहती है। इससे बच्चे के मरने की संभावना बढ़ती है और निमोनिया, डायरिया और मलेरिया जैसे बचपन के संक्रमणों के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। ऊर्जा, प्रोटीन अथवा विटामिन और खनिजों (सूक्ष्म पोषक तत्वों) के अपर्याप्त सेवन और/ अथवा अपर्याप्‍त अवशोषण की वजह से अल्‍पपोषण होता है जिससे पोषण संबंधी कमियां होती हैं। अल्‍पपोषण केवल पर्याप्‍त भोजन न खाने से ही नहीं होता। बचपन की बीमारियां, जैसे दस्त अथवा आंतों में कीड़े के संक्रमण से भी पोषक तत्वों का अवशोषण अथवा आवश्यकताएं प्रभावित हो सकती हैं। कुपोषण व्यापक शब्द है जो हर प्रकार के खराब पोषण से संबंधित है। सरल शब्दों में, कुपोषण में अल्पपोषण और अतिपोषण, दोनों शामिल हैं। पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों की कुल मौतों की एक-तिहाई अल्‍पपोषण के कारण होती है। अल्‍पपोषण केवल गरीबों को प्रभावित करने वाली स्थिति नहीं, यह भारत भर के सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों में व्‍याप्‍त है। केवल पिछले 10 वर्षों में, भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में स्‍टंट बच्चों की संख्या 48 प्रतिशत से कम होकर 38 प्रतिशत हो गई है। भारत अच्छी प्रगति कर रहा है लेकिन पूरे भारत में स्टंटिंग और अन्य प्रकार के कुपोषण समाप्त करने के लिए पहले से ही सफल प्रयासों में तेजी लाने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की आवश्यकता है। स्टंटिंग और अल्‍पपोषण के अन्‍य प्रकारों के विरुद्ध लड़ाई अभी जीती नहीं गई है, अल्‍...

पोषण अभियान

जबकि हाल के वर्षों में भारत की कुपोषण दर में सुधार हुआ है, देश अभी भी दुनिया में सबसे अधिक संख्या में अविकसित और कमजोर बच्चों का घर है। देश में पोषण की निराशाजनक स्थिति का मुकाबला करने के लिए, सरकार ने 2017 में समग्र पोषण (पोषण) अभियान ('आंदोलन') के लिए प्रधान मंत्री की व्यापक योजना शुरू की, एक प्रमुख मिशन जिसका उद्देश्य कुपोषण के प्रति देश की प्रतिक्रिया के लिए एक अभिसरण तंत्र है। यह विशेष रिपोर्ट भारत के पूर्वी राज्यों में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की जांच करती है, और उनके द्वारा अपनाई गई नवीन तकनीकों को बढ़ाने के तरीकों की रूपरेखा तैयार करती है। श्रेय: शोबा सूरी और कृति कपूर, "पोषण अभियान: महामारी के समय में कुपोषण से लड़ना," ओआरएफ विशेष रिपोर्ट संख्या 124, दिसंबर 2020, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन। परिचय भारत में बाल और मातृ कुपोषण अकेला सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम कारक है, जो भारत के कुल रोग भार के 15 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। बच्चों में कुपोषण या तो 'बौनापन' (उम्र के संबंध में कम ऊंचाई) या 'बर्बाद' (कम) के रूप में प्रकट होता है। ऊंचाई के संबंध में वजन) या दोनों। भारत दुनिया के सभी अविकसित बच्चों में से लगभग एक तिहाई (149 मिलियन में से 46.6 मिलियन) और दुनिया के आधे बच्चों (51 मिलियन में से 25.5 मिलियन) का घर है। चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) के डेटा 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी और 21 फीसदी बच्चे क्रमश: अविकसित और कमजोर हैं। वहीं, पांच साल से कम उम्र के बच्चों, वयस्क महिलाओं और वयस्क पुरुषों में मोटापे की दर बढ़कर क्रमश: 2.4 फीसदी, 20.7 फीसदी और 18.9 फीसदी हो गई है. इस प्रकार भारत कुपोषण और मोटापे के दोहरे बोझ का...