प्रकृति पर संस्कृत श्लोक

  1. माँ पर श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित
  2. 50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
  3. सनातन हिन्दू धर्म पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित Sanskrit Shlok on Hindu Dharma
  4. माता पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित Sanskrit Shloka On Mother With Hindi Meaning
  5. The children of Sanskrit school were made to practice shlokas for Rath Yatra
  6. स्वभाव पर संस्कृत श्लोक
  7. स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  8. कर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  9. अध्याय 3.27: प्रकृति का ज्ञान   ।   श्रीमद् भागवतम Srimad Bhagavatam Hindi Audio Book, मुखर ध्वनियों
  10. महाभारत में पंचमहाभूत Five elements in Mahabharat.


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माँ पर श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित

सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्। भावार्थ: माता का स्थान सभी तीर्थों से भी ऊपर होता है और पिता का स्थान सभी देवताओं के भी ऊपर होता है इसीलिए हर मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता के साथ अच्छे से व्यवहार करें और उनका हमेशा आदर सत्कार करें और सेवा करें। आदाय मांसमखिलं स्तनवर्जमंगे मां मुञ्च वागुरिक याहि कुरु प्रसादम्। अद्यापि शष्पकवलग्रहणानभिज्ञः मद्वर्त्मचञ्चलदृशः शिशवो मदीयाः।। भावार्थ: एक मां आदमखोर के सामने आग्रह करती है कि तुम मेरे इस शरीर के हर भाग को काट कर ले लो लेकिन मेरे दोनों स्तनों को छोड़ दो क्योंकि मेरा एक छोटा सा बच्चा है, जिसने अभी तक घास खाने के लिए नहीं सीखा है वह केवल मेरे स्तनों का दूध पीकर ही रहता है वह बड़ी व्याकुलता से मेरा इंतजार कर रहा होगा इसलिए है आदमखोर मेरे शरीर के स्तनों को छोड़ दो। मातृपितृकृताभ्यासो गुणितामेति बालकः। न गर्भच्युतिमात्रेण पुत्रो भवति पण्डितः।। भावार्थ: भारतीय माता और पिता पढ़ाई पर जोर देते हैं ताकि उनके बच्चे को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त ज्ञान और कौशल प्राप्त हो। जैसे कि राजा का सम्मान उसके राज्य में होता है, लेकिन ज्ञानी व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है। माता मित्रं पिता चेति स्वभावात् त्रतयं हितम्। कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धय:।। भावार्थ: माता-पिता और मित्र यह ऐसे लोग हैं जो आपके जीवन में काफी महत्वपूर्ण हैं और आपकी भलाई के बारे में ही हमेशा सोचते हैं आपके अच्छे स्वभाव आपके लिए अच्छी सोच यह वह बिना किसी शर्त यह अपेक्षा या व्यक्तिगत लाभ के करते हैं इसीलिए हमें दूसरों से ज्यादा अपने माता-पिता और अपने मित्र को महत्व देना चाहिए क्योंकि हमारे जीवन में दूसरे रिश्ते व...

50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

संस्कृत भाषा से ही अन्य भाषाओं का उद्गम हुआ है। यह भाषा ही नहीं है यह अपने आप में पूरे वेदो, शास्त्रों और ब्रह्मांड के संपूर्ण ज्ञान को समेटे हुए है। आज संस्कृत भाषा विलुप्त होती जा रही है जोकि हमारी भारतीय संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है यह भाषा भारत की रीड की हड्डी है इसे उन्हें जीवित करना हमारा लक्ष्य है। विषय-सूची 1 • • • • • • Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi (1) ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।। अर्थात् : गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। (2) तुलसी श्रीसखि शिवे शुभे पापहारिणी पुण्य दे। दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥ अर्थात् : हे तुलसी ! तुम लक्ष्मी की सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो। नारायण भगवान के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है। दीपक के प्रकाश को मेरे पापों को दूर करने दो, दीपक के प्रकाश को प्रणाम। (3) आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।1। अर्थात् : हे आदिदेव भास्कर! (सूर्य का एक नाम भास्कर भी है), आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है। (4) वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थात् : हे घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर, करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें ( करने की कृपा करें)। (5) ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात॥ अर्थात् : ह...

सनातन हिन्दू धर्म पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित Sanskrit Shlok on Hindu Dharma

सनातन हिन्दू धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित Sanskrit Shlok on Sanatan Hindu Dharma श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥ धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ॥ मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। सुखार्थं सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः । सुखं नास्ति विना धर्मं तस्मात् धर्मपरो भव ॥ सब प्राणियों की प्रवृत्ति सुख के लिए होती है, (और) बिना धर्म के सुख मिलता नही । इस लिए, तू धर्मपरायण बन । तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके । भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥ तर्क विहीन वैद्य, लक्षण विहीन पंडित, और भाव रहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं । अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने । अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥ इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो हि बातें स्थिर है । स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति । गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम् ॥ जो गुणवान है, धार्मिक है वही जीते हैं (या “जीये” कहे जाते हैं) । जो गुण और धर्म से रहित है उसका जीवन निष्फल है । प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषु साधनानामनेकता । उपास्यानामनियमः एतद् धर्मस्य लक्षणम् ॥ वेदों में प्रामाण्यबुद्धि, साधना के स्वरुप में विविधता, और उपास्यरुप संबंध में नियमन नहीं – ये हि धर्म...

माता पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित Sanskrit Shloka On Mother With Hindi Meaning

माता पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित (Sanskrit Shloka On Mother With Hindi Meaning) माता पर संस्कृत श्लोक वेदों, पुराणों, समृतियों, महाकाव्य में भरे पडे हैं। वहां से उद्धृत किये गये संस्कृत श्लोक, इस लेख में मातृ दिवस के शुभ अवसर पर माता पर संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ सहित (Sanskrit Shloka On Mother With Hindi Meaning) दिये गये हैं। माता पर ही प्रकृति निर्भर है । यदि संसार में माँ (माता, Mother ) नहीं माता पर संस्कृत श्लोक, Sanskrit Shloka On Mother मातुर्लोके मार्दवं साम्यशून्यम्। 1. मातृ देवो भवः। तैत्तिरीयोपनिषद् . शिक्षावल्ली. ११.२ माता ही इस संसार की देवता है। Mother is the deity of this world. 2. नास्ति मातृसमो गुरुः। महा. अनुशा. १०५.१४ इस संसार में माँ के समान कोई गुरु नहीं है। There is no teacher like mother in this world . माँ पर संस्कृत श्लोक (sanskrit shloka on mother) 3. गुरूणां चैव सर्वेषां माता परमेको गुरुः।। महा. आदि. १९५.१६ माता (माँ) सभी गुरूओं में सर्वश्रेष्ठ गुरु मानी जाती है। Mata (mother) is considered the best teacher among all teachers. 4. गुरूणां माता गरीयसी।। चा.सू. ३६२ माता (माँ) सभी गुरुओं में सर्वश्रेष्ठ है। Mata (mother) is the best of allteachers. 5. सहस्रं हि पितुर्माता गौरवेणातिरिच्यते।। बालरामायण ४.३० महत्व (गौरव) की दृष्टि से माँ (माता) पिता से हजार गुना श्रेष्ठ है। Mother (Mata) is thousand times superior to father in terms of importance (pride). 6. माता गुरुतरा भूमेः।। महा. वन. ३१३.६० माता, भूमि से भी गुरुतर (भारी) है। Mother is heavier (heavier) than the earth. सम्पूर्ण विश्व में पृथ्वी को सबसे गुरु या भारी माना जाता है परन्तु माता गौरव...

The children of Sanskrit school were made to practice shlokas for Rath Yatra

झरिया। झरिया स्टेशन रोड़ श्री सत्यनारायण मंदिर में संचालित संस्कृत पाठशाला में रविवार को रथ यात्रा को ध्यान में रखते हुए बच्चों को भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र जी का श्लोक का अभ्यास कराया गया। पाठशाला के शिक्षक हरिश जोशी अधिवक्ता ने देवी देवताओं की स्तुति, संस्कृत संभाषण, संस्कृत में अंताक्षरी, संस्कृत में फलों के नाम आदि पढ़ाया। विशाखापतनम से आये हरि बहन चावड़ा ने बच्चों के बीच प्रसाद का वितरण किया। पाठशाला में सूरज ठक्कर, रोहन कुमार, जयदेव कुमार राय, कृष्ण कुमार राय, अनमोल कुमार, अभिषेक कुमार, कुमकुम कुमारी, लक्ष्मी कुमारी, रिमी कुमारी, दिव्या कुमारी, दीपिका कुमारी, वैष्णवी कुमारी राय, तमन्ना कुमारी, प्राची कुमारी, खुशी कुमारी, बेबी कुमारी, सोनी कुमारी, नंदिता साहू, रोशनी साहू, प्रतिज्ञा कुमारी, आस्था कुमारी, स्वाति कुमारी, संजना कुमारी आदि थी।

स्वभाव पर संस्कृत श्लोक

स्वभाव पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas on Human Nature with Meaning न तेजस्तेजस्वी प्रसृतमपरेषां प्रसहते । स तस्य स्वो भावः प्रकृति नियतत्वादकृतकः ॥ तेजस्वी इन्सान दूसरे के तेज को सहन नहीं कर सकता, क्यों कि वह उसका जन्मजात, प्रकृति ने तय किया हुआ स्वभाव है । स्वभावो न उपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा । सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥ उपदेश देकर स्वभाव बदला नहीं जाता । पानी को खूब गर्म करने के बावजुद, वह फिर से (अपने स्वभावानुसार) शीत हो हि जाता है । व्याघ्रः सेवति काननं च गहनं सिंहो गुहां सेवते हंसः सेवति पद्मिनीं कुसुमितां गृधः श्मशानस्थलीम् । साधुः सेवति साधुमेव सततं नीचोऽपि नीचं जनम् या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते ॥ शेर गहरे जंगल में, और सिंह गुफा में रहता है; हंस विकसित कमलिनी के पास रहेना पसंद करता है, गीध को स्मशान अच्छा लगता है । वैसे हि साधु, साधु की और नीच पुरुष नीच की सोबत करता है; याने कि जन्मजात स्वभाव किसी से छूटता नहीं है । निम्नोन्नतं वक्ष्यति को जलानाम् विचित्रभावं मृगपक्षिणां च । माधुर्यमिक्षौ कटुतां च निम्बे स्वभावतः सर्वमिदं हि सिद्धम् ॥ पानी को ऊँचाई और गहराई किसने दिखायी ? पशु – पँछीयों में रही हुई विचित्रता उन्हें किसने सीखायी ? गन्ने में मधुरता और नीम में कटुता कौन लाया ? ये सब स्वभाव से हि सिद्ध होता है । वचो हि सत्यं परमं विभूषणम् यथांगनायाः कृशता कटौ तथा । द्विजस्य विद्यैव पुनस्तथा क्षमा शीलं हि सर्वस्य नरस्य भूषणम् ॥ जैसे पतली कमर स्त्री का और विद्या ब्राह्मण का भूषण है, वैसे सत्य और क्षमा परम् विभूषण हैं । पर शील तो शील तो सब मनुष्यों का भूषण है । हेलया राजहंसेन यत्कृतं कलकूजितम् । न तद् वर्षशतेनापि जानात्याशिक्षितुं बकः ॥ र...

स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

स्त्री (नारी) पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas on woman respect with Hindi meaning दोस्तों, भारतीय संस्कृति में नारी को देवी स्वरुप माना जाता है| नारी एक माँ, बेटी, जीवन दायनी, पत्नी, बहन जाने कितने रिश्तों को निभाती है| माँ ही बच्चे की प्रथम गुरु भी होती है| हमारे शाश्त्रों और हिन्दू ग्रंथों में नारी के महिमा को संस्कृत श्लोकों के माध्यम से व्यक्त किया है| हिंदी अर्थ:- अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। न कन्यायाः पिता विद्वान् ग्रह्णियात् – शुल्कम् अणु-अपि। गृह्णन् – शुल्कं हि लोभेन स्यान् नरो अपत्यविक्रयी ।। हिंदी अर्थ:- विद्वान् पिता, कन्यादान में कुछ भी उसके बदले में मूल्य न लेवे, यदि लोभ से कुछ ले लेता है, तो वह संतान को बेचने वाला होता हैं। बालिका अहं बालिका नव युग जनिता अहं बालिका । नाहमबला दुर्बला आदिशक्ति अहमम्बिका ।। हिंदी अर्थ:- में एक आधुनिक युग की स्त्री हूँ, में शक्तिहीन नहीं हूँ| में आदिशक्ति हूँ, में अम्बिका हूँ पितृभिर् भ्रातृभिश् च-एताः पतिभिर् देवरैस् तथा। पूज्या भूषयितव्याश् च बहुकल्याणम् ईप्सुभिः।। हिंदी अर्थ:- पिता, भाई, पति और देवर को स्त्रियों का सत्कार और आभूषण आदि से उनको भूषित करना चाहिए। इससे बड़ा शुभ फल होता है। अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः। हिंदी अर्थ:- जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजम्। एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा॥ हिंदी अर्थ:- सभी देवताओं से उत्पन्न हुआ और तीनों लोकों में व्याप्त वह अतुल्य तेज जब एकत्रित हुआ तब वह नारी बना। राष्ट्रस्य श्व: नारी अस्ति हिंदी अर्थ:- नारी की कल है ‘...

कर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।। हिंदी अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। कर्म के फल का अधिकार तेरे पास नहीं है। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और न ही कर्म न करने के भाव मन में ला। अतः कर्म कर फल की चिंता मत कर सर्वे कर्मवशा वयम्। न श्वः श्वमुपासीत। को ही मनुष्यस्य श्वो वेद। हिंदी अर्थ:- कल के भरोसे मत बैठो। कर्म करो, मनुष्य का कल किसे ज्ञात है? अकर्मा दस्युः। हिंदी अर्थ:- कर्महीन मनुष्य दुराचारी है। अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च। स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्। हिंदी अर्थ: – जैसे फूल और फल बिना किसी प्रेरणा से स्वतः समय पर उग जाते हैं, और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पहले किये हुए कर्म भी यथासमय ही अपने फल (अच्छे या बुरे) देते हैं। अर्थात कर्मों का फल अनिवार्य रूप से मिलता है। कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। हिंदी अर्थ:- अकर्म कि अपेक्षा कर्म श्रेष्ठ होता है। दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्। हिंदी अर्थ:- दिनभर ऐसा कार्य करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके। ज्ञेय: स नित्यसंन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ् क्षति | निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते || हिंदी अर्थ:- जो पुरुष न तो कर्मफलों से घृणा करता है और न कर्मफल की इच्छा करता है, वह नित्य संन्यासी जाना जाता है। हे महाबाहु अर्जुन! मनुष्य समस्त द्वन्दों से रहित होकर भवबंधन को पार कर पूर्णतया मुक्त्त हो जाता है। योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: | सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || हिंदी अर्थ:- जो भक्तिभाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा, इन्...

अध्याय 3.27: प्रकृति का ज्ञान   ।   श्रीमद् भागवतम Srimad Bhagavatam Hindi Audio Book, मुखर ध्वनियों

अध्याय 27: प्रकृति का ज्ञान श्लोक 1: भगवान् कपिल ने आगे कहा : जिस प्रकार सूर्य जल पर पडऩे वाले प्रतिबिम्ब से भिन्न रहा आता है उसी तरह जीवात्मा शरीर में स्थित होकर भी प्रकृति के गुणों से अप्रभावित रहता है, क्योंकि वह अपरिवर्तित रहता है और किसी प्रकार का इन्द्रियतुष्टि का कर्म नहीं करता। श्लोक 2: जब आत्मा प्रकृति के जादू तथा अहंकार के वशीभूत होता है और शरीर को स्व (आत्मा) मान लेता है, तो वह भौतिक कार्यकलापों में लीन रहने लगता है और अहंकारवश सोचता है कि मैं ही प्रत्येक वस्तु का कर्ता हूँ। श्लोक 3: अत: बद्धजीव भौतिक प्रकृति के गुणों के साथ अपनी संगति के कारण उच्चतर तथा निम्नतर विभिन्न योनियों में देहान्तर करता रहता है। जब तक वह भौतिक कार्यों से मुक्त नहीं हो लेता उसे अपने दोषपूर्ण कार्य के फलस्वरूप यह स्थिति स्वीकार करते रहनी पड़ती है। श्लोक 4: वास्तव में जीवात्मा इस संसार से परे है, किन्तु प्रकृति पर अधिकार जताने की अपनी मनोवृत्ति के कारण उसके संसार-चक्र की स्थिति कभी रुकती नहीं और वह सभी प्रकार की अलाभकर स्थितियों से प्रभावित होता है, जिस प्रकार कि स्वप्न में होता है। श्लोक 5: प्रत्येक बद्धजीव का कर्तव्य है कि वह भौतिक सुखोपभोग के प्रति आसक्त अपनी दूषित चेतना को विरक्तिपूर्वक अत्यन्त गभ्भीर भक्ति में लगावे। इस प्रकार उसका मन तथा चेतना पूरी तरह वश में हो जाएँगे। श्लोक 6: मनुष्य को योग पद्धति की संयम आदि विधियों के अभ्यास द्वारा श्रद्धालु बनना चाहिए और मेरे कीर्तन तथा श्रवण द्वारा अपने आपको शुद्ध भक्ति के पद तक ऊपर उठाना चाहिए। श्लोक 7: भक्तिमय सेवा सम्पन्न करने में मनुष्य को प्रत्येक जीव को समभाव से एवं किसी के प्रति शत्रुतारहित होते हुए घनिष्ठता से रहित होकर देखना होता है। उ...

महाभारत में पंचमहाभूत Five elements in Mahabharat.

पंचमहाभूत क्या हैं ? संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित, What are the 5(five) elements? 5 Elements of nature. sanskrit shlok hindi arth sahit. 5 Elements of nature अर्थात प्रकृति के पांच तत्त्व ही पंचमहाभूत हैं | अद्वैतवेदांत में इन्हीं प्रक्रृति के पांच तत्त्व से सूक्ष्म शरीर की उत्पति हुई है | अद्वैतवेदांत के अनुसार माया से उलझे हुए चैतन्य अर्थात ब्रह्म के तमोगुणप्रधान विक्षेप शक्ति से ही इन प्रकृति के पांच तत्त्व अर्थात पंचमहाभूत की उत्पति हुयी है | महाभारत (Mahabharat) में पंचमहाभूत की उत्पति के बारे में कहा गया है कि, लोक में ये पञ्च धातु ( आकाश (sky&Space), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और भूमि (Earth)) अर्थात प्रकृति के पांच तत्त्व ही पंचमहाभूत कहलाते हैं | इन्हें ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आदि में रचा था | यही पंचमहाभूत सम्पूर्ण संसार में व्याप्त हैं - त एते धातव; पञ्च ब्रह्मा यानसृजत् पुरा | आवृता यैरिमे लोका महाभूताभिसंज्ञिता:|| महाभारत शांतिपर्व 184/1 पंचमहाभूत कौन से है ?Which is Panch Mahabhut? इस पर महाभारत (Mahabharat)में कहा गया है कि, आकाश (sky&Space), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और भूमि (Earth) ये पंचमहाभूत हैं। भूमिरापस्तथा वायुरग्निराकाशमेव च। महाभारत भीष्मपर्व 5/4 महाभारत (Mahabharat) में पंचमहाभूत के बारे में कहा गया है कि, इस संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वे सब प्रकृति के पांच तत्त्व या पंचमहाभूतों से बने हैं। मनीषी इन सब पंचमहाभूतों को एक समान कहते हैं- पञ्चेमानि महाराज महाभूतानि संग्रहात्। जगतीस्थानानि सर्वाणि समान्याहुर्मनीषिणः।। महाभारत भीष्मपर्व 5/3 ये पाँच भूत असीम हैं इसलिए इनके साथ महा शब्द लगाया जाता है। इन्हीं से भूतों (प्राणियों) ...