पथिक कविता की व्याख्या

  1. हिन्दी कविता "पथ भूल न जाना पथिक कहीं" का भावार्थ प्रसंग
  2. चल रे पथिक!
  3. पथिक
  4. पथिक कविता का प्रश्न उत्तर, भावार्थ, सार, व्याख्या आरोह क्लास 11
  5. पथिक कविता
  6. पाठ 16 'पथिक से' कविता की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन (व्याकरण)
  7. NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core


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हिन्दी कविता "पथ भूल न जाना पथिक कहीं" का भावार्थ प्रसंग

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • हिन्दी कविता “पथ भूल न जाना पथिक कहीं” Path bhool na jana pathik kahin पथ भूल न जाना पथिक कहीं: हिन्दी कविता वास्तव मे हिन्दी काव्य साहित्य का हीं हिस्साहै, जिसका इतिहास वैदिक काल से ही माना जाता है। दोस्तों मैं हिंदी काव्य साहित्य का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं और बचपन से हीं कविताओं से मेरा लगाव रहा है। एक कविता जो बहुत ही प्रचलित है और जब हम विद्यार्थी जिवन मे थे तब यह हमारे पाठ्यक्रम का भी थी. चूंकि अब मैं स्कुल कॉलेज का विद्यार्थी तो रहा नहीं फिर भी जीवन हमें रोज़ कुछ न कुछ सिखाती है. मेरे जीवन में बहुत सारे पल आते है जब हम खुद को हारा हुआ महसूस करता हूँ तब यह कविता बार बार मेरे लिये संजीवनी का काम करती है. मै अकसर मन ही मन इसको दुहराता हुँ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित यह कविता आज भी उतनी ही व्यवहारिक है जितना उनके समय पर रही होगी. हिंदी कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002) शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा कि “डॉ. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ एक शक्तिशाली चिह्न नहीं थे, बल्कि वे समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।” शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने अपने जीवन के दौरान कई उच्च पदों पर काम किया। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति के रूप में 1968-78 के दौरान काम किया। वे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के उपराज्यपाल भी रहे। सुमन ने 1956-61 के दौरान भारतीय दूतावास, काठमांडू (नेपाल) में प्रेस और सांस्कृतिक अटैच के रूप में काम ...

चल रे पथिक!

शिक्षा से दीक्षा से भगा कर अंधेरा चल रे पथिक! हुआ अब सवेरा डाल तू ज्ञान विज्ञान का डेरा चल रे पथिक! भाग गया अंधेरा पैसे पद पर डालते सब फेरा पर तू न भाग इनके पीछे कर्म कर भागेगा भाग्य तेरे पीछे चल रे पथिक! दूर कर अंधेरा अपनी प्रतिभा से झुका दे तू संसार को चल रे पथिक! दिखा दे तू अपने प्यार को बना अपने आवास को कवियों का डेरा जाग तू जगा तू कर दूर तुम अंधेरा। - सहज - हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए

पथिक

में ठहरे कुछ पल के मुसाफिर हम सारे। तन्मय तरंगिनी सा जो चला स्वागत को खडा उसके जलधि बांह पसारे।। पथिक ! जो पथ के कांटो से न हारकर हिम्मत रूपी यंत्र से मार्ग प्रस्तर काटकर उठे,चले,बढे जो तमभेदी मशाल बनकर। पथिक! जो चला मार्ग के व्यवधान पर पदचिन्ह अंक कर निज अहम ईश चरणन अर्पण कर मंजिल ने छुए कदम उसके स्वयं आगे बढकर।। पथिक ! जो भटका नही असफ़लता से मन को व्यथित कर कर्म से कर्म जागृत कर बढ गया जो स्व- एतबार पर तमभेदी मशाल बनकर।। कठिन परिस्थिति सम्मुख गर साधन संग न दिशा की खबर बीहड में चला जो, उम्मीद की रोशनी लेकर मंजिल ने छुए कदम उसके स्वयं आगे बढ़ कर।। सिर्फ लक्ष्य पर स्थिर रख नजर, छद्म छल से बेखबर हुआ कर्मपथ अग्रसर , वृक्ष पर पक्षी अथवा गतिमान मीन की आँख अक्षय प्रतिबिंब भेदकर पार्थ सदृश लक्ष्य भेदकर ले साँस। चला जो पथिक संभल- संभल रहा न व्यर्थ जगत में उसका आगमन औ गमन। मंजिल ने छुए ............।। - हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए

पथिक कविता का प्रश्न उत्तर, भावार्थ, सार, व्याख्या आरोह क्लास 11

रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है। हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है। इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के- कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के ॥ पथिक कविता का प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश कविवर रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित खंड-काव्य ‘पथिक’ के प्रथम सर्ग से लिया गया है। इस कविता का पथिक संसार केदुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। सागर के किनारे खड़ा पथिक उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो जाता है।कवि ने प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि – पथिक कविता का व्याख्या– आकाश में बादल हर पल नया और रंग-बिरंगा अनुपम सौंदर्य और आकार धारण कर रहे हैं। सूर्य के सामने बादलों से गिरते बूँदों कीपंक्तियाँ नाचती हुई प्रतीत हो रही हैं। नीचे नीला और आकर्षक सागर है तथा ऊपर नीला आकाश छाया हुआ है। यात्री का मन चाहता है कि वहबादल पर आरूढ़ होकर समुद्र और आकाश के बीच भ्रमण करे। सागर में घोर गर्जना करती हुई लहरें प्रवाहित हो रही हैं। मलय पर्वत से चंदन की गंध से युक्त शीतल हवा वह रही है है प्रियतमा। मेरे हृदय में हमेशा यह उत्साह भरा रहता है कि सागर की लहरों पर बैठकर इस बड़े, विस्तृत और यशयुक्त सागर के एक-एक कोने को जी भरकर देखें। पथिक कविता का विशेष —यहाँ कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का मधुर एवं मनोहारी चित्रण किया है। बादलों का मानवीकरण किया गया है। ‘वारिद-माला’ में रूपकअलंकार है। ‘नीचे-नीले, ‘मनोहर ऊपर’, ‘बैठ, बीच में विचरू’, ‘हरदम कह हौसला हृदय’, ‘विशाल, विस्तृत’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कोने-कोने’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। तत्सम प्रधान शब्दावली है। भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है। लहरों पर लहरो...

पथिक कविता

Table of Contents • • • • • • (पथिक) प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला। रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला। नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है। घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।। रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है। हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है। इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के – कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के।। भावार्थ(पथिक कविता) – पथिक कह रहा है कि आकाश में बादलों के समूह को देखकर ऐसा लगता है कि मानो बादलों का समूह प्रति क्षण नया वेश बनाकर रंग-बिरंगे और निराले रूप में सूर्य के समाने नाच रहा हो। नीचे मनोहर नीला सागर लहरा रहा है और ऊपर नीला आकाश है। ऐसे मनमोहक दृश्य के बीच मेरा मन चाहता है कि मैं भी बादलों के बीच बैठकर आनन्द विहार करूँ। कवि कहता है कि पथिक सागर की गर्जन और बहती हुई मलयानिल को लक्ष्य कर कहता है कि मेरे सामने खङा सागर गर्जन कर रहा है और मलय पर्वत से निकलकर बहने वाली मन्द-सुगन्ध हवा बह रही है। पथिक कहता है कि हे प्रिय इन्हें देखकर मेरे हृदय में यह उत्साह हमेशा भरा रहता है कि मैं इस विशाल विस्तृत और महान सागर रूपी घर के कोने-कोने में जाऊँ और इसकी लहरों में बैठकर जी भर कर इसमें घूमूँ। निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा। कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा। लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी। रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सङक अति प्यारी।। निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है। लहरों पर लहरों का आना सुन्दर, अति सुन्दर है। कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी ? अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी।। भावार्थ(पथिक कविता) – पथिक कहने लगता है कि देखो सामने सागर तल प...

पाठ 16 'पथिक से' कविता की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन (व्याकरण)

Install - vidyarthi sanskrit dictionary app पाठ 16 'पथिक से' कविता की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन (व्याकरण) || कक्षा 8 विषय हिन्दी Path 16 - 'Pathik Se' • BY:RF Temre • 279 • 0 • Copy • Share कविता का भावार्थ (1) पथ भूल न जाना पथिक कहीं पथ में काँटे तो होंगे ही, दूर्वादल, सरिता, सर होंगे। सुन्दर गिरि-वन-वापी होंगे, सुन्दर-सुन्दर निझर होंगे। सुन्दरता की मृगतृष्णा में, पथ भूल न जाना पथिक कहीं।। शब्दार्थ- पथ = मार्ग, राह। पथिक = राहगीर। काँटे = कंटकी रूपी बाधाएँ। दूर्वादल = दूब घास के कोमल पत्ते। सरिता = नदियाँ। सर = तालाब। गिरि = पर्वत। वन = जंगल। वापी = बावड़ियाँ। निर्झर = झरने। मृगतृष्णा = (एक प्रकार का भ्रम), रेगिस्तान में रेत पर सूर्य की किरणें पड़ने पर जल का भ्रम होता है। सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ ‘पथिक से’ अवतरित है। इसके रचयिता डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं। प्रसंग- कवि बता देना चाहता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं परन्तु उस मार्ग में बहुत से सुहावने दृश्य भी होते हैं जो हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन हमें उनके सौन्दर्य के भुलावे में नहीं आना चाहिए। हमें तो केवल अपने कर्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए। व्याख्या- हे पथिक ! तुम अपने मार्ग को मत भूल जाना। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ (काँट) अवश्य ही होंगी परन्तु इसके विपरीत वहाँ कोमल दूब घास के पत्ते होंगे, नदियों के अच्छे-अच्छे दृश्य भी होंगे। मनोरम तालाब भी होंगे। पर्वतों, वनों और बावड़ियों के अति सुन्दर जंगल होंगे। -वहाँ अति सुन्दर झरने भी होंगे परन्तु हे राहगीर तुझे यह ध्यान – रखना पड...

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core

Contents • 1 NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – काव्य भाग – पथिक • 1.1 कवि परिचय रामनरेश त्रिपाठी • 1.2 पाठ का साराशा • 1.3 व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न • 2 पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न • • 2.0.1 कविता के साथ • 2.0.2 कविता के आस-पास NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – काव्य भाग – पथिक कवि परिचय रामनरेश त्रिपाठी ● जीवन परिचय-रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1881 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा विधिवत् नहीं हुई। इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया। इनकी कविताओं का विषय-वस्तु देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम हैं। इन्होंने 20 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की तथा हजारों ग्रामगीतों का संकलन भी किया। इनकी मृत्यु 1962 ई० में हुई। ● रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- खड काव्य-पथिक, मिलन, स्वप्न। कविता-संग्रह-मानसी। संपादन-कविता कौमुदी, ग्रामगीत। आलोचना-गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता। ● साहित्यिक विशेषताएँ-रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने समय के समाज सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम को कविता का विषय बनाया। इनकी कविताओं में देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम, दोनों मौजूद हैं, लेकिन देश-प्रेम को विशेष स्थान दिया है- “पराधीन रहकर अपना सुख शोक न कह सकता है। यह अपमान जगत में केवल पशु ही सह सकता है।” ‘कविता कौमुदी’ संकलन में इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है। ग्रामगीतों के संकलन से इन्होंने लोकसाहित्य का संरक्षण किया। हिंदी में ये बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने कई वर्ष तक बानर नामक बाल पत्...