राधाकृष्ण गवळणी

  1. डॉ. राधाकृष्ण श्रीमाली
  2. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
  3. राधाकृष्ण प्राण मोर युगल
  4. राधाकृष्ण विवाह स्थली
  5. sant eknath maharaj
  6. राधाष्टमी


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डॉ. राधाकृष्ण श्रीमाली

डॉ राधाकृष्ण श्रीमाली (Dr. RadhaKrishma Shrimali) ज्योतिष, हस्तरेखा और वास्तु के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम थे। इन्होंने ज्योतिष, वास्तु, मंत्र-तंत्र आदि विभिन्न विषयों पर 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। Quick Info:- • नाम:- डॉ. राधाकृष्ण श्रीमाली पुत्र स्व. श्री मुलतान चंद्र श्रीमाली • जन्म:- 15 अक्टूबर, 1939 • कार्य:- ज्योतिष, 100 से अधिक पुस्तक के रचियता डॉ राधाकृष्ण श्रीमाली डॉ राधा कृष्ण श्रीमाली का जन्म 15 अक्टूबर 1939 को शारदीय नवरात्री की तृतिया तिथि रविवार के दिन गोधुली वेला में मरूभूमि फलोदी ननिहाल में महाकर्मकाण्डी, वैदज्ञ, तन्त्र अध्येता पं. मुलतान चंद्र दवे के घर में रूपा देवी के गर्भ से द्वितीय पुत्र के रूप जन्म हुआ था। श्रीमाली जी की माता धार्मिक, सरल हृदया, सौम्य स्वभाव युक्त परिश्रमी महिला थीं, वहीं मामा कर्मकाण्डी, वेद-वेदांगो के प्रणेता, आध्यात्मवाद थे, उन्हीं की देखरेख में, छत्र-छाया में प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई। जहां प्रातः उठते ही वेद ध्वनि होती थी। श्रीमाली जी ने 8 वर्ष की आयु में ही रूद्राभिषेक कंठस्थ कर लिया था। डॉ. श्रीमालीजी ने एम ए, बी. एड तक शिक्षा अच्छे अंको से प्राप्त की। ज्योतिष, कर्मकाण्ड आदि का शौक प्रारंभ से ही था। 1973 में कुसुम प्रकाशन, इलाहाबाद से पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। श्रीमाली जी की लेखनी बहुआयामी थी। उन्होंने ज्योतिष गणित, फलित, उपासना, रत्न, तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र, रमल, अंक विज्ञान, योग, दशाफल, लॉटरी, हस्त रेखा, स्त्रोत, स्वप्न, शकुन, शरीर लक्षण, चाणक्य नीति, भृर्तहरि शतक, भृगु संहिता. वंद वेदांग, नक्षत्र-विज्ञान, प्रश्न विज्ञान, प्रश्न ज्योतिष, गोचर पद्धति, शाबर मन्त्र आदि विषयों पर 100 से अधिक पुस्तकों लिखी। डा. श्रीमालीजी ...

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

प्रथम कार्यकाल राष्ट्रपति पूर्व अधिकारी कार्यालय आरम्भ उत्तराधिकारी जन्म ५ सितम्बर १८८८ मृत्यु १७ अप्रैल १९७५ (आयु: ८६ वर्ष) राजनैतिकपार्टी स्वतन्त्र जीवन संगी शिवकामु संतान ५ पुत्रियाँ-सुमि‌‌त्रा, शकुंतला, रुक्मिणी कस्तूरी तथा अन्य एवं १ पुत्र सर्वपल्ली गोपाल व्यवसाय राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाविद, विचारक धर्म डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन; (5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) अनुक्रम • 1 जन्म एवं परिवार • 1.1 विद्यार्थी जीवन • 1.2 दाम्पत्य जीवन • 2 हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन • 3 भारतीय संस्कृति • 4 जीवन दर्शन • 5 अध्यवसायी जीवन • 6 मानद उपाधियाँ • 7 राजनीतिक जीवन • 7.1 राजनयिक कार्य • 7.2 उपराष्ट्रपति • 8 शिक्षक दिवस • 9 भारत रत्न • 10 सन्दर्भ • 11 बाहरी कड़ियाँ जन्म एवं परिवार [ ] डॉ॰ राधाकृष्णन का जन्म तत्कालीन विद्यार्थी जीवन [ ] राधाकृष्णन का बाल्यकाल तिरूतनी एवं इन 12 वर्षों के अध्ययन काल में राधाकृष्णन ने दाम्पत्य जीवन [ ] उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में ही विवाह सम्पन्न हो जाता था और राधाकृष्णन भी उसके अपवाद नहीं रहे। 8 म‌ई 1903 को 14 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह 'सिवाकामू' नामक कन्या के साथ सम्पन्न हुआ । उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। अतः तीन वर्ष बाद ही उनकी पत्नी ने उनके साथ रहना आरम्भ किया। यद्यपि उनकी पत्नी सिवाकामू ने परम्परागत रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उनका हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन [ ] भारतीय संस्कृति [ ] डॉ॰ राधाकृष्णन ने यह भली भाँति जान लिया था कि जीवन बहुत ही छोटा है परन्तु इसमें व्याप्त खुशियाँ अनिश्चित हैं। इस कारण व्यक्ति को सुख-दुख में समभाव से रहना चाहिये। वस्तुतः मृत्यु एक अटल सच्चाई है, जो अमी...

राधाकृष्ण प्राण मोर युगल

Read in English राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर । जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥ कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन । रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥ श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध । चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥ गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले । अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥ ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द । आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥ श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास । सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥ भावार्थ युगलकिशोर श्री श्री राधा कृष्ण ही मेरे प्राण हैं। जीवन-मरण में उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति नहीं है ॥ कालिन्दी (यमुना) के तटपर कदम्ब के वृक्षों के वन में, मैं इस युगलजोड़ी को रत्नों के सिंहासन पर विराजमान करूँगा ॥ मैं उनके श्याम तथा गौर अंगों पर चन्दन का लेप करूँगा, और कब उनका मुखचंद्र निहारते हुए चामर ढुलाऊँगा ॥ मालती पुष्पों की माला गूँथकर दोनों के गलों में पहनाऊँगा और कर्पूर से सुगंधित ताम्बुल उनके मुखकमल में अर्पण करूँगा ॥ ललिता और विशाखा के नेतृत्वगत सभी सखियों की आज्ञा से मैं श्री श्रीराधा-कृष्ण के श्री चरणों की सेवा करूँगा ॥ श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दासों के अनुदास श्रील नरोत्तमदास ठाकुर दिवय युगलकिशोर की सेवा-अभिलाषा करते हैं ॥ Bhajan Vaishnav Bhajan Iskcon Bhajan

राधाकृष्ण विवाह स्थली

क्या श्रीकृष्ण का श्री राधा से विवाह हुआ था? यह प्रश्न हर किसी के जहन मे होता है, परन्तु बहुत कम लोगो को ही इसके बारे मे पता है, क्योंकि यह एक गुप्त रस है जिसको केवल अधिकारी जन ही जान पाए है। आज हम इसी रहस्य के बारे मे इस ब्लॉग मे पढ़ेंगे। भांडीर वन ब्रज के 137 प्राचीन वनो मे से एक है, मथुरा से करीब तीस किलोमीटर दूर मांट के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीरवन है। करीब छह एकड़ परिधि में फैले इस वन में कदंब, खंडिहार, हींस आदि के प्राचीन वृक्ष हैं। जंगली जीवन में मोर, कौआ, कबूतर और क्षेत्र के अन्य छोटे पक्षी शामिल हैं। भांडीर वन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ श्री राधा कृष्ण की एक अनुपम मूर्ति विराजमान है, यह मूर्ति खास इसलिए है क्योंकि पूरे विश्व मे केवल यही एक मात्र मूर्ति है जिसमे श्री कृष्ण श्रीराधा के मांग मे सिंदूर लगाते हुए देखें जाते है। इसके अलावा यहाँ श्रीराधाकृष्ण एक दूसरे को वरमाला पहनाते हुए भी देखे जाते है एवम् श्री गर्ग संहिता के कथानुसार ब्रम्हा जी जिन्होंने श्रीराधाकृष्ण का विवाह करवाया था, पुरोहित रूप मे विराजमान है। श्री कृष्ण श्री राधा जी की मांग भरते हुए (राधा रानी का कद लंबा होने के कारण ठाकुर जी अपनी पैरों के उंगलियों पर खड़े होकर राधा रानी की मांग भरे थे।) ये विशाल वन अब 7.5 एकड़ मे फैला हुआ है। मथुरा से अलग थलग इस वन मे सेवावितो के परिवार रहते है। इस वन के बारे मे अधीक लोग नही जानते इसलिए यहाँ ज्यादा भीड़ भी नहीं होती, किन्तु किसी भी रसिक के लिए ये स्थान अति रमणीय है क्योंकि ये श्री कृष्ण के किशोरावस्था के अनेक लीलाओ का साक्षी है। यहाँ के दर्शनीय स्थान कुछ इस प्रकार है — छाहेरी गाँव छाहेरी गाँव भांडीरवट एवं वंशीवट के बीच में बसा हुआ है। यह गा...

sant eknath maharaj

sant eknath information in marathi संत एकनाथ जन्म: १५३३, पालनपोषण भानुदास महाराज (आजोबा) आई/वडील: रुख्मिणी/सुर्यनारायण कार्यकाळ: १५३३ ते १५९९ संप्रदाय: वारकरी गुरु: जनार्दन स्वामी समाधी/निर्वाण: इ. स. १५९९, फाल्गुन व ६, कृष्णकमल तीर्थात जाऊन आत्मा ब्रम्हांडात विलीन वाड्गमय: १. एकनाथी भागवत २. भावार्थ रामायण ३. ज्ञानेश्वरी शुद्धीकर ४. रुख्मिणी स्वयंवर हे पण वाचा: संत एकनाथ यांची संपूर्ण साहित्य जन्म व बालपण – संत एकनाथ महाराज(sant eknath maharaj) त्यांचा जन्म एका खानदानी देशस्थ ब्राम्हणाच्या घरात इ.सन १५३३ पैठणात झाला. त्यांच्या आईचे नाव रूक्मिणी व वडिलांचे नाव सूर्यनारायण होते. परंतु एकनाथांच्या(sant eknath maharaj) दुर्दैवानेच ते तान्हे मूल असताना त्यांचे आईवडील देवाघरी निघून गेले, तेव्हा त्यांचा सांभाळ त्यांचे आजोबा चक्रपाणी यांनी केला. चक्रपाणी यांचे वडील म्हणजेच एकनाथांचे पणजोबा संत भानुदास हे विठ्ठल भक्त होत. एकनाथ लहानपणापासून तल्लख बुद्धीचे होते. वयाचे सहाव्या वर्षी त्यांच्या आजोबांनी त्यांची मुंज करून त्यांना शिक्षण देण्यासाठी एका विद्वान पंडितांची नेमणूक केली. त्या पंडिताकडून त्यांनी रामायण, महाभारत, ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव वगैरे ग्रंथांचा अभ्यास केला. कारण ईश्वरभक्तीचे वेड त्यांना उपजतच होते. बालवयातच ते गुरूच्या शोधात निघाले आणि दौलताबादेच्या किल्ल्यात असलेल्या जनार्दन स्वामींच्या म्हणजेच आपल्या गुरूसमोर हात जोडून उभे राहिले. तो दिवस होता फाल्गुन वद्य षष्ठीचा. जीवन – संत एकनाथ महाराज(sant eknath maharaj) (१५३३-१५९९) हे महाराष्ट्रातील वारकरी संप्रदायातील एक संत होते. त्यांचा जन्म इ.स. १५३३ मध्ये पैठण येथे झाला. एकनाथांनी देवगिरी (दौलताबाद) च्या जनार्दनस्वामींना त्...

राधाष्टमी

सनातन धर्म में श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस तिथि को श्री शास्त्रों में श्री राधा कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवम प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है। श्रीमद देवी भागवत में श्री नारायण ने नारद जी के प्रति ‘श्री राधायै स्वाहा’ षडाक्षर मंत्र की अति प्राचीन परंपरा तथा विलक्षण महिमा के वर्णन प्रसंग में श्री राधा पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता। अतः समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा की अर्चना अवश्य करें। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं। यह संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं, इसी कारण इन्हें श्री राधा कहा गया है। अनुक्रम • 1 राधा अष्टमी कथा • 1.1 श्रीराधा-माधव-युगल का ध्यान • 2 राधा अष्टमी पूजन विधि • 3 श्री राधा जी की आरती • 4 श्री राधा रानी के विशेष वंदना श्लोक • 5 श्री राधा षडाक्षर मंत्र • 6 सन्दर्भ राधा अष्टमी कथा [ ] श्रीकृष्ण भक्ति के अवतार नारदजी बोले - ‘‘हे प्रभो श्री राधिकाजी के जन्म का माहात्म्य सब प्रकार से श्रेष्ठ है। हे भक्तवत्सल! उसको मैं सुनना चाहता हूं।’’ हे महाभाग! सब व्रतों में श्रेष्ठ व्रत श्री राधाष्टमी के विषय में मुझको सुनाइए। श्री राधाजी का ध्यान कैसे किया जाता है? उनकी पूजा अथवा स्तुति किस प्रकार होती है? यह सब सुझसे कहिए। हे सदाशिव! उनकी चर्या, पूजा विधान तथा अर्चन विशेष सब कुछ मैं सुनना चाहता हूं। आप बतलाने की कृपा करें।’’ सदा श्रीराधाजन्माष्टमी के दिन व्रत रखकर उनकी पूजा करनी चाह...