राजपूतों को विदेशी आक्रमणकारी किसने स्वीकार किया

  1. history of rajput
  2. राजपूतो का इतिहास
  3. राजस्थान में राजपूतों की उत्पत्ति (Origin of Rajputs in Rajasthan)
  4. राजपूतों के उदय के विभिन्न सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए
  5. Defeat of the Rajputs
  6. राजपूत राज्यो का उदय Rise of Rajput kingdoms
  7. राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न मत
  8. इतिहास अध्ययन


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history of rajput

3 राजपूत काल MCQ |History of Rajput Kaal objective questions • हर्षवर्धन के बाद उत्तर भारत में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के तहत छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना होने लगी। • इस तरह स्थापित राज्यों के शासक ‘ राजपूत’ कहलाए।इन राज्यों का प्रभाव छठी से बारहवीं सदी तक कायम रहा। • भारतीय इतिहास में यह काल ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है।। • ‘राजपूत’ शब्द संस्कृत के राजपुत्र का ही अपभ्रंश है।कालांतर में राजपुत्र (राजपूत) शब्द का प्रयोग जाति के रूप में होने लगा। • राजपूतों के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाति मानते हैं, तो कुछ अन्य इन्हें विदेशियों की संतान मानते हैं।कुछ विद्वान् राजपूतों को आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ट के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। प्रतिहार, चालुक्य, चौहान और परमार राजपूतों का जन्म इसी से माना जाता है। • कर्नल टॉड सरीखे विद्वान राजपूतों को शक, कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान मानते हैं। • राजपूत काल में राजपूतों के प्रमुख वंशों – चौहान,पाल,चंदेल, गहड़वाल, परमार, गुर्जर, प्रतिहार आदि ने अपने राज्य स्थापित किये। गुर्जर-प्रतिहार वंश • हरिवंश को गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है, गुर्जर-प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है। • गुर्जर-प्रतिहार वंश की प्राथमिक जानकारी पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख, बाण के हर्षचरित और ह्वेनसांग के विवरणों से प्राप्त होती है • गुर्जर-प्रतिहार राज्य उत्तर भारत के व्यापक क्षेत्र में विस्तृत था। • नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.) ने सिंध के अरब शासकों से पश्चिमी भारत की रक्षा की। • ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट प्रथम को ‘म्लेच्छों (सिंध के ...

राजपूतो का इतिहास

राजपूत(Rajput) भारतीय उपमहाद्वीप की एक योद्धा जाति हैं। ये लगभग 4 से 5 करोड़ लोगों के साथ भारत में प्रमुख जाति समूहों में से एक हैं। भारत का इतिहास अपनी विशाल और उल्लेखनीय संस्कृति के लिए जाना जाता है। इसी भारतीय इतिहास के एक अहम अध्याय में, हम राजपूतों के इतिहास(History of Rajputana) और राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में बात करेंगे। राजपूतों का नाम स्वयं में ही एक आदर्श, गौरव और अखंडता का संकेत है। राजपूत राज्य उत्तर, पश्चिमी, मध्य और पूर्वी भारत के साथ दक्षिणी और पूर्वी पाकिस्तान में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, पूर्वी पंजाब, पश्चिमी पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, उत्तराखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश और सिंध,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ शामिल हैं। वे सिंध और बलूचिस्तान के पाकिस्तानी प्रांतों में भी रहते हैं। हर्ष की मृत्यु 647 ईसवी के बाद में राजस्थान के बहुत से स्थानों पर राजपूतों की सत्ता का स्थापन हुआ। राजपूत शब्द की उत्पत्ति राष्ट्रकूट शब्द से मानी जाती है। सातवीं सदी से बारहवीं सदी तक का काल इतिहास में राजपूत काल के नाम से जाना जाता है। राजपूतों की उत्पत्ति के मामले में अनेक मत प्रचलित है। क्षत्रिय सिद्धांत: क्षत्रिय सिद्धांत राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में सबसे लोकप्रिय सिद्धांतों में से एक है। इस सिद्धांत के अनुसार राजपूत क्षत्रिय जाति के वंशज हैं। क्षत्रिय प्राचीन भारत के शासक वर्ग थे और भूमि और उसके लोगों की रक्षा के लिए जिम्मेदार थे। समय के साथ, क्षत्रिय विभिन्न उप-जातियों में विभाजित हो गए, और राजपूत इन उप-जातियों में से एक के रूप में उभरे। इस सिद्धांत के समर्थक इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि राजपूत क्षत्रिय जाति के साथ क...

राजस्थान में राजपूतों की उत्पत्ति (Origin of Rajputs in Rajasthan)

Table of Contents • • • • • • • राजस्थान में राजपूतों की उत्पत्ति (Origin of Rajputs in Rajasthan) पूर्व मध्यकालीन भारत में राजपूत शक्ति का एक ऐतिहासिक शक्ति के रूप में भारतीय इतिहास क्षितिज पर उदय हुआ। विन्सेण्ट स्मिथ ने राजपूतों के महत्व पर टिप्पणी करते हुए ठीक ही लिखा है “हर्ष की मृत्यु के पश्चात उत्तर भारत पर मुस्लिम आक्रमणों अर्थात सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक राजपूतों का महत्व इतना बढ़ गया था कि इस काल को राजपूत काल के नाम से अभिहित किया जाना चाहिये ।” यद्यपि इस काल में राजपूत वंशो का प्रभुत्व उत्तरी और पश्चिमी भारत तक ही सीमित रहा । राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न मत (Different Views of Origin of Rajputs) राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न अत्यंत विवादास्पद है। राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किये हैं। कुछ विद्वान इनकी विदेशी उत्पत्ति बताते हैं तो कुछ देशी और कुछ उन्हें देशी-विदेशी मिश्रित उत्पत्ति से सम्बन्धित बताते हैं। राजपूत शब्द राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है। ऋग्वेद में राजपुत्र और राजन्य शब्दों का बहुधा उल्लेख हुआ है और वहाँ दोनों शब्द समानार्थक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। प्राचीन भारत में क्षत्रिय शासकों के अतिरिक्त कुछ ब्राह्मणों, कुछ विदेशियों, शक, हूण, कुषाण और यवनों ने भी भारत के विभिन्न भागों में राज्य किया था। धीरे-धीरे इन शासक वंशों के मध्य परस्पर वैवाहिक सम्बन्धों के फलस्वरूप भी विलयन की प्रक्रिया हुई। शासकों तथा सामन्तों के वंशज राजपुत्र थे। जिनको राजपूतों के नाम से जाना जाने लगा। अग्निवंशीय उत्पत्ति (Origin Agri Dynasty) प्राचीन काल से विश्व के विभिन्न देशों में राजवंशो द्वारा देवी उत्पत्ति से अपने वंश की श्र...

राजपूतों के उदय के विभिन्न सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए

राजपूत शब्द की सर्वप्रथम उत्पत्ति 6 ठी शताब्दी ईस्वी में हुई थी. राजपूतों ने 6ठी शताब्दी ईस्वी से 12वीं सदी के बीच भारतीय इतिहास में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया था. राजपूतों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विद्वानों ने कई सिद्धांत का उल्लेख किया हैं. श्री कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल की थी. उनके अनुसार राजपूत कुषाण,शक और हूणों के वंशज थे. उनके अनुसार चूँकि राजपूत अग्नि की पूजा किया करते थे और यही कार्य कुषाण और शक भी करते थे. इसी कारण से उनकी उत्पति शको और कुषाणों से लगायी जाती थी. इसी तरह दूसरे सिद्धांत के अनुसार राजपूतों को किसी भी विदेशी मूल से सम्बंधित नहीं किया जाता है. बल्कि उन्हें क्षत्रिय जाति से सम्बंधित किया जाता है. इस सन्दर्भ में यह कहा जाता है की चूँकि उनके द्वारा अग्नि की पूजा की जाती थी जोकि आर्यों के द्वारा भी सम्पादित किया जाता था. अतः राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय मूल की थी. तीसरे सिद्धांत के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे. उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण सम्मिलित था. चौथा सिद्धांत अग्निकुल सिद्धांत से संबंधित है. चंदवरदायी द्वारा १२वीं शताब्दी के अन्त में रचित ग्रन्थ 'पृथ्वीराज रासो' में चालुक्य (सोलंकी), प्रतिहार, चहमान तथा परमार राजपूतों की उत्पत्ति आबू पर्वत के अग्निकुण्ड से बतलाई है, किन्तु इसी ग्रन्थ में एक अन्य स्थल पर इन्हीं राजपूतों को "रवि - शशि जाधव वंशी" कहा है. इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था. अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय. राजपूतों की उत्...

Defeat of the Rajputs

In this article we will discuss about the causes of the defeat of Rajputs against the Turks in India during the eleventh and twelfth centuries. The Indians checked the rising power of Islam successfully for nearly three hundred years on its north-west frontier of Afghanistan. The Arab invasion had remained limited to Sindh and Multan while the conquest of Afghanistan and Punjab was not easy for the Turks. The Indians of those days deserve respect for this achievement that they could fight out and resist for a long duration the power of Islam which had overwhelmed a large part of Asia, Africa and Europe by its might. But once their defence in the north-west was broken, the Indians failed bitterly against the Turks. The defeat of the Indians against Mahmud of Ghazni in the eleventh century A.D. and against Muhammad of Ghur in the twelfth century A.D. was shameful and surprising. Of course, the Indians continued to resist and tried to defend their culture against the onslaughts of the invading and firmly entrenched Islam in India but their defeat against the Turks evokes curiosity. ADVERTISEMENTS: Many Indians or we say the Rajput kingdoms who fought against the Turks were quite extensive, did not lack material and military- resources, could put up large armies in battles against their enemies, did not lack strength as well as is clear from the defeat of Muhammad in the battle of Anhilwara and the first battle of Tarain and the Rajput soldiers neither lacked courage and chiva...

राजपूत राज्यो का उदय Rise of Rajput kingdoms

Page Contents • • • • • • • • • • • • • • • • राजपूत राज्यो का उदय ( Rise of Rajput kingdoms ) हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया तेज हो गयी। किसी शक्तिशाली केन्द्रीय शक्ति के अभाव में छोटे छोटे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना होने लगी। 7-8शताब्दी में उन स्थापित राज्यों के शासक ‘ राजपूत’ कहे गए। उनका उत्तर भारत की राजनीति में बारहवीं सदी तक प्रभाव कायम रहा।भारतीय इतिहास में यह काल ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकर इसे संधिकाल का पूर्व मध्यकाल भी कहते हैं, क्योंकि यह प्राचीन काल एवं मध्यकाल के बीच कड़ी स्थापित करने का कार्य करता है।‘राजपूत’ शब्द संस्कृत के राजपुत्र का ही अपभ्रंश है। संभवतः प्राचीन काल में इस शब्द का प्रयोग किसी जाति के रूप में न होकर राजपरिवार के सदस्यों के लिए होता था, पर हर्ष की मृत्यु के बाद राजपुत्र शब्द का प्रयोग जाति के रूप में होने लगा। इन राजपुत्रों के की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाति मानते हैं, तो कुछ अन्य इन्हें विदेशियों की संतान मानते हैं। कुछ विद्वान् राजपूतों को आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ट के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। प्रतिहार, चालुक्य, चौहान और परमार राजपूतों का जन्म इसी से माना जाता है। • कर्नल टॉडजैसे विद्वान राजपूतों को शक, कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान मानते हैं। • डॉ. ईश्वरी प्रसाद तथा भंडारकरआदि विद्वान् भी राजपूतों को विदेशी मानते हैं। • जी.एन.ओझा. और पी.सी. वैद्यतथा अन्य कई इतिहासकार यही मानते हैं की राजपूत प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान हैं। • स्मिथका मानना है की राजपूत प्राचीन आदिम जातियों – गोंड, खरवार, भर...

राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न मत

राजपूतों की उत्पत्ति राजपूतों का युग भारतीय इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। भारत पर निरन्तर होने वाले मुस्लिम आक्रमणों का पाँच सदी तक मुकाबला इन वीर एवं त्यागी राजपूतों ने ही किया। उन्होंने धर्म व देश की रक्षा हेतु अपना सर्वस्य न्यौछावर कर दिया। यद्यपि वे मुसलमानों से युद्ध करके भी देश की रक्षा नहीं कर सके फिर भी भारतीय इतिहास आज भी उनकी वीरता एवं साहस की गाथाओं से चिर स्मरणीय बना हुआ है। राजपूत रण-बाँकुरे तो होते ही थे लेकिन वे वचन के भी पक्के होते थे। विश्वासघात करना व निःशस्त्र शत्रु पर प्रहार करना वे धर्म-विरुद्ध समझते थे। शरणागत की रक्षा करना वे अपना परम धर्म समझते थे और शरणागत की रक्षार्थ मर जाना वे अपना पुनीत कर्त्तव्य समझते थे। रणक्षेत्र ही उनकी कर्मभूमि थी और युद्ध भूमि में मर जाना ही वे स्वर्ग जाने का माध्यम समझते थे। कर्नल टॉड ने लिखा है-"यह स्वीकार करना पड़ता है कि उच्च साहस , देश-भक्ति , स्वामी-भक्ति , आत्म-सम्मान , अतिथि-सत्कार तथा सरलता के गुण राजपूतों में विद्यमान थे।" राजपूतों की उत्पत्ति के सिद्धान्त व मत 1. वैदिक क्षत्रियों की सन्तान- प्रत्येक शासक के दरबारी लोग उसे देव तुल्य ईश्वर द्वारा भेजा गया अथवा देवताओं की सन्तान बताते हैं। यही परम्परा राजपूतों पर भी लागू होती है। मनुस्मृति में क्षत्रियों की उत्पत्ति ब्रह्मा से बताई गई है। ऋग्वेद के अनुसार क्षत्रिय ब्रह्मा की बाँहों से उत्पन्न हुए थे। इन दोनों ग्रन्थों के आधार पर क्षत्रिय का काम निर्बल लोगों की रक्षा करना बताया गया है। सातवीं शताब्दी के बाद क्षत्रियों ने अपना महत्त्व खो दिया और वे अन्य तीनों वर्गों की रक्षा नहीं कर सके , किन्तु उनके ब्रह्मा की सन्तान होने की कहानी को महत्त्व प्राप्त होने लगा।...

इतिहास अध्ययन

इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना युद्धप्रिय राजपूत जाति का उदय एवं राजस्थान में राजपूत राज्यों की स्थापना है। गुप्तों के पतन के बाद केन्द्रीय शक्ति का अभाव उत्तरी भारत में एक प्रकार से अव्यवस्था का कारण बना। राजस्थान की गणतन्त्र जातियों ने उत्तर गुप्तों की कमजोरियों का लाभ उठाकर स्वयं को स्वतन्त्र कर लिया। यह वह समय था जब भारत पर हूण आक्रमण हो रहे थे। हूण नेता मिहिरकुल ने अपने भयंकर आक्रमण से राजस्थान को बड़ी क्षति पहुँचायी और बिखरी हुई गणतन्त्रीय व्यवस्था को जर्जरित कर दिया। परन्तु मालवा के यशोवर्मन ने हूणों को लगभग 532 ई. में परास्त करने में सफलता प्राप्त की। परन्तु इधर राजस्थान में यशोवर्मन के अधिकारी जो राजस्थानी कहलाते थे, अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होने की चेष्टा कर रहे थे। किसी भी केन्द्रीय शक्ति का न होना इनकी प्रवृत्ति के लिए सहायक बन गया। लगभग इसी समय उत्तरी भारत में हर्षवर्धन का उदय हुआ। उसके तत्त्वावधान में राजस्थान में व्यवस्था एवं शांति की लहर आयी, परतु जो बिखरी हुई अवस्था यहाँ पैदा हो गयी थी, वह सुधर नहीं सकी। इन राजनीतिक उथल-पुथल के सन्दर्भ में यहाँ के समाज में एक परिवर्तन दिखाई देता है। राजस्थान में दूसरी सदी ईसा पूर्व से छठी सदी तक विदेशी जातियाँ आती रहीं और यहाँ के स्थानीय समूह उनका मुकाबला करते रहे। परन्तु कालान्तर में इन विदेशी आक्रमणकारियों की पराजय हुई, इनमें कई मारे गये और कई यहाँ बस गये। जो शक या हूण यहाँ बचे रहे उनका यहाँ की शस्त्रोपजीवी जातियों के साथ निकट सम्पर्क स्थापित होता गया और अन्ततोगत्वा छठी शताब्दी तक स्थानीय और विदेशी योद्धाओं का भेद जाता रहा। राजपूतों की उत्पत्ति : राजपूताना के इतिहास के सन्दर्भ में राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न ...