राज्य के प्रमुख तत्व कितने हैं

  1. राष्ट्रीय शक्ति क्या है इसके तत्वों का वर्णन कीजिए?
  2. # राज्य की परिभाषा व आवश्यक तत्व
  3. निम्नलिखित में से राज्य कौन सा तत्व नहीं है? – Expert
  4. Directive Principles of State Policy
  5. कहानी के तत्व। हिंदी साहित्य में कहानी का महत्व। kahani ke tatva
  6. राज्य की नीति के निदेशक तत्व क्या हैं ?
  7. राज्य के महत्वपूर्ण तत्व क्या है? – Expert
  8. राज्य किसे कहते हैं? राज्य का अर्थ,परिभाषा, प्रमुख चार तत्व एवं कार्य क्या है?
  9. राज्य के नीति निर्देशक तत्व क्या है ?


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राष्ट्रीय शक्ति क्या है इसके तत्वों का वर्णन कीजिए?

साधारण शब्दों में व्यक्ति के संदर्भ में शक्ति से अभिप्राय है जब एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को नियन्त्रित करने और उनसे मनचाहा व्यवहार कराने और उन्हें अनचाहा व्यवहार करने से रोकने की सामर्थ्य या योग्यता से है। जब यही बात सभी व्यक्ति मिलकर राष्ट्र के बारे में अभिव्यक्त करके दूसरे राज्य/राज्यों के संदर्भ में करते हैं तो वह राष्ट्रीय शक्ति होती है। 2. पेडलफोर्ड एवं लिंकन- यह शब्द राष्ट्र की भौतिक व सैनिक शक्ति तथा सामथ्र्य का सूचक है। राष्ट्रीय शक्ति सामथ्र्य का वह योग है जो एक राज्य अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हेतु उपयोग में लाता है। जार्ज रचवार्जन बर्जर - शक्ति अपनी इच्छा को दूसरों पर लादने की क्षमता है जिसका आधार न मानने पर प्रभावशाली विरोध सहना पड़ सकता है। 3. हेंसजे मारगेन्थाऊ - शक्ति, उसे कार्यान्वित करने वालों व उनके बीच जिन पर कार्यान्वित हो रही है एक मनोवैज्ञानिक संबंध है। यह प्रथम द्वारा द्वितीय के कुछ कार्यों को उसके मस्तिष्क पर प्रभाव डालकर नियन्त्रित करने की क्षमता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शक्ति एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य को प्रभावित करने की क्षमता है। परन्तु इस क्षमता के पीछे दण्डात्मक शक्ति भी होती है उसी के डर से शक्ति प्रभावी हो सकती। बिना दण्डात्मक या प्रतिबंध लगाने की क्षमता के एक राष्ट्र दूसरे पर इसे लागू नहीं कर सकता। राष्ट्रीय शक्ति के प्रमुख तत्व शक्ति के विभिन्न तत्व होते हैं। इन्हीं तत्वों को कई बार शक्ति के निर्धारक तत्व भी कहा जाता है, परन्तु ऐसा कहना अनुचित है। क्योंकि शक्ति के तत्व अपने आप में शक्ति नहीं है, अपितु उनका होना शक्ति प्राप्त करने में सहायक होता है। अत: इन तत्वों के संबंध में बा...

# राज्य की परिभाषा व आवश्यक तत्व

“राज्य एक भूमिगत समाज है जो शासक और शासितों में बँटा होता है और अपनी सीमाओं के क्षेत्र में आने वाली अन्य संस्थाओं पर सर्वोच्चता का दावा करता है।” — लास्की राज्य क्या है यह राजनीति शास्त्र का एक जटिल प्रश्न है। प्रत्येक व्यक्ति राज्य का सदस्य होता है और राज्य शब्द का प्रयोग प्रतिदिन अनेक बार किया जाता है किन्तु राज्य क्या है यह बहुत कम लोग समझते हैं। विभिन्न राजनीतिशास्त्रियों ने राज्य को भिन्न भिन्न रुपों मे समझा है। कार्ल मार्क्स के अनुसार राज्य एक वर्गीय संस्था (Class Structure) है। कुछ विचारक मानते हैं कि राज्य ऐसी वस्तु है जो सम्पूर्ण समाज की होने के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के लिए है। कुछ इसे शक्ति की व्यवस्था मानते हैं तो कुछ इसे लोककल्याण की व्यवस्था मानते हैं। राज्य शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर ‘ State‘ लैटिन भा़षा के स्टैटस (Status) से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर से होता है परन्तु धीरे-धीरे इसका अर्थ बदला और बाद में इसका अर्थ सारे समाज के स्तर से हो गया। Table of Contents • • • • • • • • • • राज्य की परिभाषाएं प्राचीन विचारक : राजनीति विज्ञान के जनक अरस्तू ने राज्य की उत्पत्ति के पूर्व अनेक समुदायों के संगठनों की कल्पना की थी। उसके अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसमें सामाजिक जीवन से ही सद्गुणों का विकास होता है। मनुष्य परिवारों में रहता था, परिवारों से कुलों तथा कुलों से ग्रामों का विकास हुआ। अन्ततः ग्रामों का संगठन राज्य के रूप में प्रकट हुआ। इस प्रकार राज्य एक सर्वोच्च समुदाय माना गया जिसमें परिवार कुल एवं ग्राम समाहित है। अतएव अरस्तू ने राज्य की परिभाषा इस प्रकार दी है “राज्य परिवारों तथा ग्रामों का एक ऐसा समुदाय है जिसका लक्ष्य पू...

निम्नलिखित में से राज्य कौन सा तत्व नहीं है? – Expert

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • निम्नलिखित में से राज्य कौन सा तत्व नहीं है? राज्य (State) के चार अनिवार्य तत्व हैं- जनसंख्या , राज्यक्षेत्र (निश्चित भू-भाग), सरकार एवं प्रभुसत्ता या संप्रभुता । राज्य की संप्रभुता का आशय आंतरिक एवं बाह्य दोनों संप्रभुता से है। प्रशासन राज्य का अनिवार्य तत्व नहीं है । निम्न में से कौन सा तत्व नहीं है? Solution : डायमण्ड तथा ग्रेफाइट दोनों कार्बन के अपररूप हैं। अत: ये दोनों तत्व हैं। ओजोन, ऑक्सीजन का अपररूप है। अत: यह भी एक तत्व है किन्तु `SiO_2` (सिलिका) एक तत्व नहीं है। राज्य के तत्व कौन कौन से हैं? व्याख्या : राज्य में चार आवश्यक तत्व हैं। ये: (1) जनसंख्या, (2) क्षेत्र (भूमि), (3) सरकार, (4) संप्रभुता (या स्वतंत्रता)। राजत्व के लिए निम्न में से कौन सा तत्व अनिवार्य है? राजत्व के लिए कौन सा तत्व अनिवार्य है? इसे सुनेंरोकेंजनसंख्या, भूमि और सरकार यह तीनों तत्व राज्य के लिए आवश्यक हैं। बिना जनसंख्या अर्थात लोगों के राज्य की अवधारणा नहीं बन सकती। राज्य के आवश्यक तत्व कितने है? व्याख्यान माला में रासेयो कार्यक्रम अधिकारी सुशील एक्का ने कहा कि राज्य के निर्माण के लिए चार तत्वों का होना आवश्यक है। जनसंख्या, निश्चित भूभाग, सरकार और संप्रभुता। इसमें जनसंख्या प्रथम और आवश्यक तत्व है। READ: सरवन के माता पिता कौन थे और कैसे हुआ? Raj का सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? निम्न में संप्रभुता राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। संप्रभुता शब्द यह स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान भारत के लोगों द्वारा ही निर्मित है और भारत के बाहर ऐसी कोई सत्ता नही है जिस पर यह देश किसी भी रूप से निर्भर है। समूह 18 के तत्वों को क्या नाम दिय...

Directive Principles of State Policy

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक में शामिल किया गया है| राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य नीति निर्माताओं के सामने कुछ सामाजिक व आर्थिक लक्ष्यों को प्रस्तुत करना था ताकि वृहत्तर सामाजिक आर्थिक समानता की दिशा में देश में सामाजिक बदलाव लाये जा सकें| सर्वोच्च न्यायालय ने भी राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से सम्बंधित कुछ निर्णय दिए है| राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक में शामिल किया गया है| नीति निर्देशक तत्व बाध्यकारी नहीं हैं अर्थात यदि राज्य इन्हें लागू करने में असफल रहता है तो कोई भी इसके विरुद्ध न्यायालय नहीं जा सकता है| नीति निर्देशक तत्वों की स्वीकृति राजनीतिक जो ठोस संवैधानिक और नैतिक दायित्वों पर आधारित है| संविधान के अनुच्छेद-37 में कहा गया है कि विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्त्तव्य होगा| संविधान के अनुच्छेद 355 और 365 का प्रयोग इन नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए किया जा सकता है| नीति निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण नीति निर्देशक तत्वों को तीन भागों में बांटा गया है जो कि इस प्रकार हैं | 1) सामाजिक और आर्थिक चार्टर a) न्याय पर आधारित सामाजिक संरचना-अनुच्छेद 38(1) में कहा गया है कि ‘राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की ,जिसमें सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे ,भरसक प्रभावी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा|’ b) आर्थिक न्याय-अनुच्छेद 39 कहता है कि राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा कि पुरुष और स्त्री नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार...

कहानी के तत्व। हिंदी साहित्य में कहानी का महत्व। kahani ke tatva

कहानी लिखने का एक सुव्यवस्थित ढांचा होता है जिसे हम कहानी के तत्व, कहानी के प्रमुख घटक आदि के नाम से जानते हैं। साधारण रूप से कहानी के छः तत्व या घटक माने गए हैं। इसको कुछ विद्वानों ने विस्तार भी दिया है किंतु सर्वमान्य रूप से छः तत्व ही प्रमुख है। प्रस्तुत लेख में उन छह तत्वों को विस्तृत रूप से इस लेख में प्रकाश डाला गया है। यह आपके लिए कारगर लेख है इसका अध्ययन आपके ज्ञान को अवश्य ही बढ़ाएगा। Table of Contents • • • • • • • • कहानी के तत्व कहानी आधुनिक युग की विधा है इसका विस्तार मुद्रण कला के बाद हुआ है। कहानी एक बैठक में समाप्त हो जाने वाली विधा भी है, अर्थात इसका अध्ययन एक बैठक में किया जा सकता है। जबकि नाटक, उपन्यास, महाकाव्य आदि में काफी समय लगता है। इस विशेष गुण के कारण कहानी आज लोकप्रिय हो रही है। कहानी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है – १. कथावस्तु – ‘संक्षिप्तता’ कहानी के कथानक का अनिवार्य गुण है। वैसे तो कथानक की पांच दशाएं होती है • आरंभ – कहानी का आरंभ किसी समस्या, या मुद्दे को उजागर करते हुए होती है। यह विषय किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकता है। • विकास – कहानी का धीरे-धीरे विकास होता जाता है। नायक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए या विपत्ति से निकलने के लिए संघर्ष करता हुआ दिखता है। • कोतुहल – इस समय पाठक कहानी से अधिक जुड़ जाता है। यह कहानी का मूल रस प्रदान करने का समय होता है जहां पाठक स्वयं को कहानी का नायक मानने लगता है। • चरमसीमा – नायक अपने उद्देश्य की प्राप्ति तथा समस्याओं से बाहर निकलने के लिए अंतिम संघर्ष की स्थिति में रहता है। जहां पाठक स्वयं को कहानी से जोड़ कर उस पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहता है। • अंत – यहां नायक अपने उद्देश्यों की प्रा...

राज्य की नीति के निदेशक तत्व क्या हैं ?

#राज्य की नीति के निदेशक तत्व क्या हैं ? | DPSP kya hain ? ? | Directive Principles of State Policies राज्य की नीति के निदेशक तत्व शीर्षक से यह स्पष्ट होता है कि, नीतियों एवं कानूनों को प्रभावी बनाते समय राज्य इन तत्वों को ध्यान में रखेगा। ये संवैधानिक निदेश या विधायिका कार्यपालिका और प्रशासनिक मामलों में राज्य के लिए सिफारिशें हैं। इनका विस्तृत वर्णन संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक किया गया है। भारतीय संविधान राज्य की नीति के निदेशक तत्व को आयरलैंड के संविधान से ग्रहण किया गया है। नीति-निदेशक तत्व लोकतंत्र को सही अर्थों में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नीति-निदेशक तत्वों के संदर्भ में संविधान में उल्लेख है कि, ये शासन के मूलभूत आधार हैं। इन सभी निदेशों का पालन करके ही राज्य की जनता को आर्थिक तथा सामाजिक न्याय दिलाया जा सकेगा। इन निदेशक तत्वों के अनुपालन के पश्चात् भारत न केवल अधिक लोकतांत्रिक होगा बल्कि, नागरिकों के लिए कल्याणकारी भी होगा। ये तत्व देश के शासन का मूलभूत आधार हैं। अतः राज्य का कर्तव्य होगा कि, इन तत्वों का प्रयोग यथासंभव विधि निर्माण में करें। संविधान निर्माण के दौरान देश की स्वतंत्रता नवजात स्थिति में थी। ऐसे में राज्य के पास इन विस्तृत नीतिगत तत्वों को लागू करने योग्य प्रशासनिक तथा आर्थिक संसाधनों का अभाव था। इन उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने राज्य की नीति के निदेशक तत्व को अनिवार्य न बनाते हुए वैकल्पिक बनाया कि जब राज्य सक्षम होगा तब अवश्यकता अनुसार इनको लागू कर सकेगा। नीति निदेशक तत्व गैर न्याय योग्य प्रकृति के हैं अतः इनको क्रियान्वित करवाने हेतु न्यायलय नहीं की शरण में नहीं ...

राज्य के महत्वपूर्ण तत्व क्या है? – Expert

Table of Contents • • • • • • • • • • राज्य के महत्वपूर्ण तत्व क्या है? डॉ. गार्नर के अनुसार, राज्य के चार आवश्यक तत्व हैं – ( 1 ) मनुष्यों का समुदाय, ( 2 ) एक प्रदेश, जिसमें वे स्थायी रूप से निवास करते हैं, (3) आन्तरिक सम्प्रभुता तथा बाहरी नियन्त्रण से स्वतन्त्रता, (4) जनता की इच्छा को कार्यरूप में परिणित करने हेतु एक राजनीतिक संगठन । Raj का सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? निम्न में संप्रभुता राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। संप्रभुता शब्द यह स्पष्ट करता है कि भारतीय संविधान भारत के लोगों द्वारा ही निर्मित है और भारत के बाहर ऐसी कोई सत्ता नही है जिस पर यह देश किसी भी रूप से निर्भर है। राज्य के अनिवार्य तत्व कौन कौन से हैं? जनसंख्या, भूमि और सरकार यह तीनों तत्व राज्य के लिए आवश्यक हैं। बिना जनसंख्या अर्थात लोगों के राज्य की अवधारणा नहीं बन सकती। राज्य के आवश्यक तत्व में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है? संप्रभुता (Sovereignty) – संप्रभुता लैटिन भाषा के शब्द ‘सुपरेनस’ (Superanus) से लिया गया है, जिसका अर्थ सर्वोच्च सत्ता है। संप्रभुता राज्य का बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। READ: साम्यवाद का मतलब क्या होता है? Raj के कितने तत्व हैं? व्याख्यान माला में रासेयो कार्यक्रम अधिकारी सुशील एक्का ने कहा कि राज्य के निर्माण के लिए चार तत्वों का होना आवश्यक है। जनसंख्या, निश्चित भूभाग, सरकार और संप्रभुता। इसमें जनसंख्या प्रथम और आवश्यक तत्व है। आवश्यक तत्व क्या है? Solution : आवश्यक तत्व जीवद्रव के संघटन व जैविक क्रियाओं के संचालन में भाग लेते हैं । इनकी संख्या 17, दो प्रकार के होते है । दीर्घ मात्रिक तत्व, जैसे- C, H, `O_(2), N_(2)`, P, K, Mg, Ca, S आदि तथा लघु मात्रिक पोषक, तत्व जैसे- Zn, ...

राज्य किसे कहते हैं? राज्य का अर्थ,परिभाषा, प्रमुख चार तत्व एवं कार्य क्या है?

इस लेख के माध्यम से आप “राज्य (State)” के बारे में अध्ययन करेंगे। आप जानेंगे कि – राज्य किसे कहते हैं? राज्य का अर्थ क्या है? राज्य की परिभाषा क्या है? राज्य के प्रमुख चार तत्व क्या है? राज्य के कार्य क्या है? राज्य किसे कहते हैं? राज्य को अच्छी तरह से समझने के लिए आप सबसे पहले राज्य के मुख्य तत्व के बारे में जानकारी को प्राप्त करते हैं। राज्य के कार्य • बाहरी आक्रमण से राज्य की रक्षा करना। • शिक्षा की व्यवस्था करना। • स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराना। • मनोरंजन की व्यवस्था करना। • लोकतांत्रिक माहौल लागू करना। • लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना। • अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करना। • मुद्रा की व्यवस्था करना। • लोगों को उनके विभिन्न प्रतिभाओं को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करना। इस लेख के माध्यम से आपने जाना कि “राज्य (State)” किसे कहते हैं? मैं उम्मीद करता हूं कि यह लेख आपको पसंद आई होगी तथा यह आपके लिए उपयोगी भी होगा। इसी तरह के अन्य लेख को पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए …..RKRSTUDY.NET Read more… • सृजनात्मकता क्या है? :- Click Here • नैतिकता किसे कहते हैं? :- Click Here • व्यक्तित्व किसे कहते हैं? :- Click Here • प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) :- Click Here • असमानता किसे कहते हैं? :- Click Here • समानता किसे कहते हैं? :- Click Here • वंचना किसे कहते हैं? :- Click Here • आधुनिकीकरण किसे कहते हैं? :- Click Here • वैश्वीकरण किसे कहते हैं? :- • निजीकरण किसे कहते हैं? :- Click Here • शिक्षा का सार्वभौमीकरण :- Click Here • लोकतंत्र किसे कहते हैं? :- Click Here • लोकतंत्र और शिक्षा :- Click Here CTET Preparation Group CLICK HERE For YouTube Video —Click HERE

राज्य के नीति निर्देशक तत्व क्या है ?

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत दिशानिर्देशों और सिद्धांतों का एक समूह हैं जो भारतीय संविधान के भाग IV में निहित हैं। ये सिद्धांत प्रकृति में गैर-न्यायिक हैं, जिसका अर्थ है कि वे कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन वे लोगों के कल्याण के लिए नीतियां बनाने और लागू करने के लिए सरकार के लिए एक मार्गदर्शक बल के रूप में काम करते हैं। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास और राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्शों पर आधारित हैं, और एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज बनाने का लक्ष्य रखते हैं। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत आने वाले कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं: • समाज कल्याण: इसमें सभी नागरिकों, विशेष रूप से समाज के हाशिए वाले वर्गों के लिए पर्याप्त पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास का प्रावधान शामिल है। • आर्थिक न्याय: इसमें आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, संसाधनों का समान वितरण और गरीबी और बेरोजगारी का उन्मूलन शामिल है। • गांधीवादी सिद्धांत: इसमें ग्रामीण विकास, कुटीर उद्योगों और सामाजिक कल्याण के लिए स्वैच्छिक संगठनों को बढ़ावा देना शामिल है। • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा: इसमें अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना और राष्ट्रों के बीच सहयोग शामिल है। • पर्यावरण संरक्षण: इसमें पर्यावरण की सुरक्षा, प्रदूषण की रोकथाम और सतत विकास को बढ़ावा देना शामिल है। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत सरकार को नीतियों और कानूनों को बनाने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं जो लोगों और राष्ट्र के समग्र कल्याण को सुनिश्चित करते हैं। हालांकि गैर-न्यायोचित, इन सिद्धांतों को भारत में एक न्यायपूर्ण, न्यायसंगत और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण के लिए आवश्य...