रानी पद्मिनी की कहानी

  1. पद्मिनी की कहानी की ऐतिहासिकता
  2. रानी पद्मिनी
  3. रानी पद्मावती का रोचक इतिहास व कहानी
  4. रानी पद्मिनी की कहानी Rani Padmavati ki kahani
  5. सिंहल द्वीप की पद्मिनी : उत्तर प्रदेश की लोक
  6. रानी पद्मिनी महल
  7. रानी पद्मिनी का इतिहास
  8. रानी पद्मिनी महल
  9. रानी पद्मिनी की कहानी Rani Padmavati ki kahani
  10. सिंहल द्वीप की पद्मिनी : उत्तर प्रदेश की लोक


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पद्मिनी की कहानी की ऐतिहासिकता

पद्मिनी – चित्तौङ-आक्रमण का एक मुख्य कारण रावल रत्नसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा भी बतलाया जाता है। इसलिए पद्मिनी की कथा से संबंधित व्यक्तियों रत्नसिंह, राघव चेन, गोरा-बादल आदि की ऐतिहासिकता का विश्लेषण करना उचित ही होगा।16 वीं सदी में मलिक मुहम्मद जायसी नामक एक कवि ने 1540 ई. के आसपास पद्मावत महाकाव्य की रचना की जिसमें अलाउद्दीन के चित्तौङ-आक्रमण का प्रमुख कारण रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की आकांक्षा बतलाया गया है। जायसी की इस कहानी को कई परवर्ती मुस्लिम इतिहासकारों ने तथा राजपूतों के चारण-भाटों ने भी मूल रूप से स्वीकार कर लिया। पद्मिनी, सिंहलद्वीप (लंका) के राजा गोवर्धन की पुत्री थी और रत्नसिंह चित्तौङ का राजा था। राजा रत्नसिंह ने हीरामन नामक तोते के द्वारा पद्मिनी के सौन्दर्य और यौवन के बारे में सुना और वह पद्मिनी को प्राप्त करने के लिये सिंहलद्वीप जाने का निश्चय करता है। तदनुसार वह एक योगी का भेष धारण कर सिंहलद्वीप पहुँचता है और 12 वर्ष की तपस्या के बाद पद्मिनी को प्राप्त करने में सफल हो जाता है। गोवर्धन ने उन दोनों का विवाह कर दिया। कुछ दिनों बाद वह पद्मिनी के साथ चित्तौङ लौट आता है। पद्मिनी प्रतिदिन भिखारिनों तथा निर्धनों को भिक्षा देती है। एक दिन राघव चेतन नामक एक ब्राह्मण तांत्रिक, जो रत्नसिंह की सेवा में था और जिसे रत्नसिंह ने किसी कारणवश अपने राज्य से निष्कासित कर दिाय था, ने पद्मिनी को देख लिया और उसके अद्वितीय सौन्दर्य को देखकर मूर्छित हो गा। संभवतः इसी कारण से रत्नसिंह ने उसे अपने राज्य से निष्कासित किया हो। जो भी कारण रहा हो, राघव चेतन ने रत्नसिंह का सर्वनाश करने का संकल्प किया और वह दिल्ली चला आया। कुछ दिनों बाद उसे सुल्तान अलाउद्दीन के संपर...

रानी पद्मिनी

राजा रावल रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी चित्तौड़ की रानी थीं और अक्सर अपने भारतीय नारीत्व और बलिदान के लिए पहचानी जाती थीं। रानी पद्मिनी की महान कहानी मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा में 1540 में लिखा गया था। 12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली सल्तनत ने उत्तर भारत पर विजय प्राप्त की। 1303 ईस्वी में अला-उद-दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ पर हमला रानी पद्मिनी को पाने के लिए किया गया था। रानी पद्मिनी का विवाह रतन सिंह से हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ को हराने के लिए विश्वासघात और विवेक का एक जटिल तरीका तय किया। उन्होंने रतन सिंह को संदेश भेजा कि अगर उन्हें असाधारण सुंदरता रानी पद्मिनी का चेहरा सिर्फ एक बार देखने की अनुमति दी जाए तो वह दोस्ती की पेशकश करने को तैयार हैं और यह भी दावा किया कि वह रानी को अपनी बहन मानता है। अला-उद-दीन रानी पद्मिनी से मिलने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था। रानी पद्मिनी कमल के तालाब के पास खड़ी थी क्योंकि अला-उद-दीन दंग रह गया था और एक दर्पण में उसके प्रतिबिंब को देख रहा था, उसकी चमचमाती सुंदरता से चकित था। जब उन्हें आगे बताया गया कि वह व्यक्तिगत रूप से रानी पद्मिनी से नहीं मिल पाएंगे। जैसे ही रतन सिंह उनके साथ किले से बाहर निकले, अलाउद्दीन के लोगों ने राजा पर हमला किया और उन्हें एक कैदी के रूप में सुल्तान के शिविर में ले गए। अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी को एक पत्र भेजा कि यदि वह चाहती है कि उसका पति मुक्त हो जाए तो वह तुरंत उसके पास आए। रानी ने जवाब दिया कि वह अगली सुबह सुल्तान से मिलेंगी। अगले दिन भोर होते ही डेढ़ सौ पालकी किले से निकल कर अलाउद्दीन के शिविर की ओर चल पड़ीं। चित्तौड़ और रानी पद्मिनी पर हमला राजपूत लगभग 150 मजबूत और मजबूत सै...

रानी पद्मावती का रोचक इतिहास व कहानी

Rani Padmini / Rani Padmavati History in Hindi रानी पद्मिनी / रानी पद्मावती का इतिहास व कहानी भारतीय इतिहास के पन्नों में अत्यंत सुंदर और साहसी रानी; रानी पद्मावती का उल्लेख है। रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। रानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बाल्य काल से ही दिखने में अत्यंत सुंदर और आकर्षक थीं। उनके माता-पिता नें उन्हे बड़े लाड़-प्यार से बड़ा किया था। कहा जाता है बचपन में पद्मावती के पास एक बोलता तोता था जिसका नाम हीरामणि रखा गया था। रानी पद्मावती का स्वयंवर महाराज गंधर्वसेन नें अपनी पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए उनका स्वयंवर रचाया था जिस में भाग लेने के लिए भारत के अगल अलग हिन्दू राज्यों के राजा-महाराजा आए थे। गंधर्वसेन के राज दरबार में लगी राजा-महाराजाओं की भीड़ में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था। उसी स्वयंवर में विवाहित राजा रावल रत्न सिंह भी मौजूद थे। उन्होनें मल्खान सिंह को स्वयंवर में परास्त कर के रानी पद्मिनी पर अपना अधिकार सिद्ध किया और उनसे धाम-धूम से विवाह रचा लिया। इस तरह राजा रावल रत्न सिंह अपनी दूसरी पत्नी रानी पद्मावती को स्वयंवर में जीत कर अपनी राजधानी चित्तौड़ वापस लौट गये। चित्तौड़ राज्य प्रजा प्रेमी और न्याय पालक राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे। उनके शासन में वहाँ की प्रजा हर तरह से सुखी समपन्न थीं। राजा रावल रत्न सिंह रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। उनका भव्य दरबार एक से बढ़कर एक महावीर योद्धाओं से भरा हुआ था। चित्तौड़ की सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी। • ये भी पढ़ें: चित्तौड़...

रानी पद्मिनी की कहानी Rani Padmavati ki kahani

इतिहास में रानी पद्मिनी की कहानी |History Of Rani Padmavati / Padmini in Hindi Posted on November 30, 2017 by in भारत के इतिहास में रानी पद्मावती का उल्लेख अत्यंत सुन्दर और साहसी रानी के रूप मे है। रानी पद्मावती के पिता श्रीलंका (सिंघल) का राजा थे। । रानी पद्मावती के पिता का नाम गंधर्वसेन और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बचपन से ही अत्यंत सुन्दर थी। उनके माता पिता बहुत लाड़-प्यार से उनका पालन पोशण करके बड़ा किया था।रानी पद्मावती जब छोटी थी तब उनके पास एक बोलने वाला तोता था। उस तोता का नाम हीरामणि था। रानी पद्मावती का स्वयंवर Swayamvar of Rani Padmavati राजा गंधर्वसेऩ, पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए स्वयंवर रचा था जिसमें भाग लेने के लिए भारत के कई हिन्दू राजा अए थे। उस स्वयंवर में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था । राजा रावल रत्न सिंह भी उस स्वयंवर मे थे। राजा रावल रत्न सिंह, मल्खान सिंह को स्वयंवर मे हराकर रानी पद्मिनी के साथ धूम धाम से शादी किया। इसके बाद राजा रावल रत्न सिंह अपने राजधानी चित्तौड़ लौट आए। चित्तौड़ राज्य State of Chittor राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को कुशलता से चला रहे थे। उनके राज्य की प्रजा सुखी समपन्न थीं। उनकी सेना में बीर योद्धा भरे हुए थे। चित्तौड़ राज्य की युद्ध कला और सैन्य शक्ति दू-र तक मशहूर थी। चित्तौड़ राज्य का संगीतकार राघव चेतन Chittoor state musician Raghav Chetan राघव चेतन नाम का संगीतकार चित्तौड़ में बहुत प्रसिद्ध था। राजा रावल रत्न सिंह उन्हे बहुत सम्मान देते थे । इस लिए राघव चेतन को राज दरबार में विशेष जगह दिया गया था। राजा रावल रत्न सिंह और वहाँ के प्रजा को पता नही था कि राघव चेतन जादू टोना भी जानता हैं। ऐ...

सिंहल द्वीप की पद्मिनी : उत्तर प्रदेश की लोक

किसी जंगल में एक सुन्दर बगीचा था। उसमें बहुत-सी परियां रहती थीं। एक रात को वे उड़नखटोले में बैठकर सैर के लिए निकलीं। उड़ते-उड़ते वे एक राजा के महल की छत से होकर गुजरीं। गरमी के दिन थे, चांदनी रात थी। राजकुमार अपनी छत पर गहरी नींद में सो रहा था। परियों की रानी की निगाह इस राजकुमार पर पड़ी तो उसका दिल डोल गया। उसके जी में आया कि राजकुमार को चुपचाप उठाकर उड़ा ले जाय, परंतु उसे पृथ्वी लोक का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया। वह राजकुमार को बड़ी देर तक निहारती रही। उसक साथवाली परियों ने अपनी रानी की यह हालत भांप ली। वे मजाक करती हुई बोलीं, “रानी जी, आदमियों की दुनिया से मोह नहीं करना चाहिए। चलो, अब लौट चलें। अगर जी नहीं भरा तो कल हम आपको यही ले आयंगी।” परी रानी मुस्करा उठी। बोली, “अच्छा, चलो। मैंने कब मना किया ? लगता है, जिसने मेरे मन को मोह लिया है, उसने तुम पर भी जादू कर दिया है।” परियां यह सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और राजकुमार की प्रशंसा करती हुईं अपने देश को लौट गईं। सवेरे जब राजकुमार सोकर उठा तो उसके शरीर में बड़ी ताजगी थी। वह सोचता कि हिमालय की चोटी पर पहुंच जाऊं या एक छलांग में समुन्दर को लांघ जाऊं। तभ वजीर ने आकर उसे खबर दी कि राजा की हालत बड़ी खराब है और वह आखिरी सांस ले रहे हैं। राजकुमार की खुशी काफूर हो गयी। वह तुरंत वहां पहुंच गया। राजा ने आंखें खोलीं और राजकुमार के सिर पर हाथ रखता हुआ बोला, “बेआ, वजीर साहब तुम्हारे पिता के ही समान हैं। तुम सदा उनकी बात का ख्याल रखना।” इतना कहते-कहते राजा की आंखें सदा के लिए मुंद गयीं। राजकुमार फूट-फूटकर रोने लगा। राजा की मृत्यु पर सारे नगर ने शोक मनाया। कहने को तो राजकुमार अब राजा हो गया था, पर अपने पिता की आज्ञानुसार वह...

रानी पद्मिनी महल

चित्तौड़गढ़, रेगिस्तानी राज्य राजस्थान में स्थित सबसे सुंदर शहरों में से एक है। चित्तौड़गढ़ राजपूतों के गौरव और प्रतिष्ठा का केंद्र था तथा राजपूतों के राज्य की यह राजधानी, उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिए जानी जाती है। गंभीरी और बेराच नदियों के सगंम पर स्थित, यह शहर चित्तौड़गढ़ किले का घर है और यह एक ऐसा गढ़ है, जिसने सदियों से राजपूताना सम्मान की रक्षा की है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के मुकुट का अनमोल रत्न है, जिसे राजपूतों की बहादुरी और गौरव के लिए जाना जाता था, जिन्होंने 11वीं शताब्दी के बाद से देश पर शासन किया था। इस शहर में तीन बार घेराबंदी की गई थी और प्रत्येक बार यह शहर पराक्रमी युद्ध और बलिदान की कहानियों के साथ उभर कर सामने आया था। चित्तौड़गढ़ तब प्रसिद्ध हुआ था, जब वहाँ की हाल ही के वर्षों में, चित्तौड़गढ़ दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों के पसंदीदा स्थलों में से एक रहा है। इतना ही नहीं चित्तौड़गढ़, राजस्थान के सबसे खूबसूरत और हरे-भरे क्षेत्रों में से एक है। चित्तौड़गढ़ को संपन्न और रंगीन राजस्थानी संस्कृति का प्रदर्शन तथा सर्वश्रेष्ठ व्यंजनों का केंद्र माना जाता है। रानी पद्मिनी की सुदंरता , बुद्धिमत्ता और वीरता चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के राजा रावल रतन सिंह की पत्नी, रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध थीं। वास्तव में वह इतनी सुंदर थीं कि उन्होंने राजा रावल रतन सिंह को सिंघल राज्य आने पर मजबूर कर दिया था, जहाँ राजकुमारी पद्मिनी रहती थीं। राजा रावल रतन सिंह ने पद्मिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा और पद्मनी से विवाह कर लिया तथा रतन सिंह को इस विवाह में काफी दहेज भी मिला था। राजा रावल रतन सिंह का दरबारी राघव चेतन, जो एक जादूगर के रूप में मशहूर था। शा...

रानी पद्मिनी का इतिहास

पद्मिनीनेअपनाजीवनअपनेपितागंधर्वसेनऔरमाताचम्पावतीकेकेसाथसिंहालामेंव्यतीतकियाथा।पद्मिनीकेपासएकबोलनेवालातोता“हीरामणि”भीथा।उनकेपितानेपद्मावतीकेविवाहकेलियेस्वयंवरभीआयोजितकियाथाजिसमेआस-पासकेसभीहिन्दू-राजपूतराजाओकोआमंत्रितकियागयाथा।एकछोटेसेराज्यकेराजामलखानसिंहभीउनसेविवाहकरनेकेलियेपधारेथे। चित्तोड़केराजा 12 वीऔर 13 वीशताब्दीमेंदिल्लीसल्तनतकेआक्रमणकारीयोकीताकतधीरे-धीरेबढ़रहीथी।इसकेचलतेसुल्ताननेदोबारामेवाड़परआक्रमणकरदियाथा।इसकेबाद नेसुंदररानीपद्मावतीकोपानेकेइरादेसेचित्तोड़परभीआक्रमणकरदियाथा।यहपूरीकहानीइतिहासकारअलाउद्दीनकेलिखानपरआधारितहैजिन्होंनेइतिहासमेंराजपूतोपरहुएआक्रमणोंकोअपनेलेखोसेप्रदर्शितकियाथा। लेकिनकुछलोगोकोउनकीइनकहानियोपरजराभीभरोसानहीथाक्योकिउनकेअनुसारअलाउद्दीनकेलेखमुस्लिमसूत्रोंपरआधारितथे, जिसमेमुस्लिमोकोमहानबतायागयाथा।उनकेअनुसारअलाउद्दीननेइतिहासकेकुछतथ्योंकोअपनीकलमबनाकरकाल्पनिकसच्चाईपरआधारितकहानियाँबनायीथी। उनदिनोंचित्तोड़राजपूतराजारावलरतनसिंहकेशासनमेंथा, जोएकबहादुरऔरसाहसीयोद्धाभीथे।एकप्रियपतिहोनेकेसाथहीवेएकबेहतरशासकभीथे, इसकेसाथहीरावलसिंहकोकलामेंभीकाफीरूचिथी।उनकेदरबारमेंकाफीबुद्धिमानलोगथे, उनमेसेएकसंगीतकारराघवचेतनभीथा। ज्यादातरलोगोकोइसबातकीजानकारीआजभीनहीहैकीराघवचेतनएकजादूगरभीथे।वेअपनीइसकलाकाउपयोगशत्रुओकोचकमायाअचंभितकरनेकेलियेआपातकालीनसमयमेंहीकरतेथे। लेकिनराघवसिंहकेकारनामेसभीकेसामनेआनेकेबादराजाबहुतक्रोधितहुएऔरउन्होंनेउसेअपनेराज्यसेनिकालेजानेकाभीआदेशदियाथा।औरउनकेचेहरेकोकालाकरउन्हेंगधेपरबिठाकरराज्यमेंघुमानेकाआदेशभीदियाथा।इसघटनाकेबादवेराजाकेसबसेकट्टरदुश्मनोंमेंशामिलहोगएथे। इसकेबादराघवचेतननेदिल्लीकीतरफजानेकीठानीऔरवहाँजाकरवेदिल्लीकेसुल्तानअलाउद्दीनखिलजीकोचित्तोड़परआक्रमणकरनेकेलियेमन...

रानी पद्मिनी महल

चित्तौड़गढ़, रेगिस्तानी राज्य राजस्थान में स्थित सबसे सुंदर शहरों में से एक है। चित्तौड़गढ़ राजपूतों के गौरव और प्रतिष्ठा का केंद्र था तथा राजपूतों के राज्य की यह राजधानी, उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिए जानी जाती है। गंभीरी और बेराच नदियों के सगंम पर स्थित, यह शहर चित्तौड़गढ़ किले का घर है और यह एक ऐसा गढ़ है, जिसने सदियों से राजपूताना सम्मान की रक्षा की है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के मुकुट का अनमोल रत्न है, जिसे राजपूतों की बहादुरी और गौरव के लिए जाना जाता था, जिन्होंने 11वीं शताब्दी के बाद से देश पर शासन किया था। इस शहर में तीन बार घेराबंदी की गई थी और प्रत्येक बार यह शहर पराक्रमी युद्ध और बलिदान की कहानियों के साथ उभर कर सामने आया था। चित्तौड़गढ़ तब प्रसिद्ध हुआ था, जब वहाँ की हाल ही के वर्षों में, चित्तौड़गढ़ दुनियाभर से आने वाले पर्यटकों के पसंदीदा स्थलों में से एक रहा है। इतना ही नहीं चित्तौड़गढ़, राजस्थान के सबसे खूबसूरत और हरे-भरे क्षेत्रों में से एक है। चित्तौड़गढ़ को संपन्न और रंगीन राजस्थानी संस्कृति का प्रदर्शन तथा सर्वश्रेष्ठ व्यंजनों का केंद्र माना जाता है। रानी पद्मिनी की सुदंरता , बुद्धिमत्ता और वीरता चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के राजा रावल रतन सिंह की पत्नी, रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध थीं। वास्तव में वह इतनी सुंदर थीं कि उन्होंने राजा रावल रतन सिंह को सिंघल राज्य आने पर मजबूर कर दिया था, जहाँ राजकुमारी पद्मिनी रहती थीं। राजा रावल रतन सिंह ने पद्मिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा और पद्मनी से विवाह कर लिया तथा रतन सिंह को इस विवाह में काफी दहेज भी मिला था। राजा रावल रतन सिंह का दरबारी राघव चेतन, जो एक जादूगर के रूप में मशहूर था। शा...

रानी पद्मिनी की कहानी Rani Padmavati ki kahani

इतिहास में रानी पद्मिनी की कहानी |History Of Rani Padmavati / Padmini in Hindi Posted on November 30, 2017 by in भारत के इतिहास में रानी पद्मावती का उल्लेख अत्यंत सुन्दर और साहसी रानी के रूप मे है। रानी पद्मावती के पिता श्रीलंका (सिंघल) का राजा थे। । रानी पद्मावती के पिता का नाम गंधर्वसेन और उनकी माता का नाम चंपावती था। पद्मावती बचपन से ही अत्यंत सुन्दर थी। उनके माता पिता बहुत लाड़-प्यार से उनका पालन पोशण करके बड़ा किया था।रानी पद्मावती जब छोटी थी तब उनके पास एक बोलने वाला तोता था। उस तोता का नाम हीरामणि था। रानी पद्मावती का स्वयंवर Swayamvar of Rani Padmavati राजा गंधर्वसेऩ, पुत्री पद्मावती के विवाह के लिए स्वयंवर रचा था जिसमें भाग लेने के लिए भारत के कई हिन्दू राजा अए थे। उस स्वयंवर में एक छोटे से राज्य का पराक्रमी राजा मल्खान सिंह भी आया था । राजा रावल रत्न सिंह भी उस स्वयंवर मे थे। राजा रावल रत्न सिंह, मल्खान सिंह को स्वयंवर मे हराकर रानी पद्मिनी के साथ धूम धाम से शादी किया। इसके बाद राजा रावल रत्न सिंह अपने राजधानी चित्तौड़ लौट आए। चित्तौड़ राज्य State of Chittor राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को कुशलता से चला रहे थे। उनके राज्य की प्रजा सुखी समपन्न थीं। उनकी सेना में बीर योद्धा भरे हुए थे। चित्तौड़ राज्य की युद्ध कला और सैन्य शक्ति दू-र तक मशहूर थी। चित्तौड़ राज्य का संगीतकार राघव चेतन Chittoor state musician Raghav Chetan राघव चेतन नाम का संगीतकार चित्तौड़ में बहुत प्रसिद्ध था। राजा रावल रत्न सिंह उन्हे बहुत सम्मान देते थे । इस लिए राघव चेतन को राज दरबार में विशेष जगह दिया गया था। राजा रावल रत्न सिंह और वहाँ के प्रजा को पता नही था कि राघव चेतन जादू टोना भी जानता हैं। ऐ...

सिंहल द्वीप की पद्मिनी : उत्तर प्रदेश की लोक

किसी जंगल में एक सुन्दर बगीचा था। उसमें बहुत-सी परियां रहती थीं। एक रात को वे उड़नखटोले में बैठकर सैर के लिए निकलीं। उड़ते-उड़ते वे एक राजा के महल की छत से होकर गुजरीं। गरमी के दिन थे, चांदनी रात थी। राजकुमार अपनी छत पर गहरी नींद में सो रहा था। परियों की रानी की निगाह इस राजकुमार पर पड़ी तो उसका दिल डोल गया। उसके जी में आया कि राजकुमार को चुपचाप उठाकर उड़ा ले जाय, परंतु उसे पृथ्वी लोक का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया। वह राजकुमार को बड़ी देर तक निहारती रही। उसक साथवाली परियों ने अपनी रानी की यह हालत भांप ली। वे मजाक करती हुई बोलीं, “रानी जी, आदमियों की दुनिया से मोह नहीं करना चाहिए। चलो, अब लौट चलें। अगर जी नहीं भरा तो कल हम आपको यही ले आयंगी।” परी रानी मुस्करा उठी। बोली, “अच्छा, चलो। मैंने कब मना किया ? लगता है, जिसने मेरे मन को मोह लिया है, उसने तुम पर भी जादू कर दिया है।” परियां यह सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और राजकुमार की प्रशंसा करती हुईं अपने देश को लौट गईं। सवेरे जब राजकुमार सोकर उठा तो उसके शरीर में बड़ी ताजगी थी। वह सोचता कि हिमालय की चोटी पर पहुंच जाऊं या एक छलांग में समुन्दर को लांघ जाऊं। तभ वजीर ने आकर उसे खबर दी कि राजा की हालत बड़ी खराब है और वह आखिरी सांस ले रहे हैं। राजकुमार की खुशी काफूर हो गयी। वह तुरंत वहां पहुंच गया। राजा ने आंखें खोलीं और राजकुमार के सिर पर हाथ रखता हुआ बोला, “बेआ, वजीर साहब तुम्हारे पिता के ही समान हैं। तुम सदा उनकी बात का ख्याल रखना।” इतना कहते-कहते राजा की आंखें सदा के लिए मुंद गयीं। राजकुमार फूट-फूटकर रोने लगा। राजा की मृत्यु पर सारे नगर ने शोक मनाया। कहने को तो राजकुमार अब राजा हो गया था, पर अपने पिता की आज्ञानुसार वह...