रैयतवाड़ी भू राजस्व व्यवस्था किसके द्वारा लागू की गई

  1. रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था
  2. [Solved] रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली किस प्रांत में लागू
  3. रैयतवाड़ी प्रथा क्या थी और किसने शुरू करवाया था
  4. रैयतवाड़ी व्यवस्था
  5. भारत में अंग्रेजों की भू
  6. रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक कौन है?
  7. [Solved] रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली किस प्रांत में लागू
  8. रैयतवाड़ी प्रथा क्या थी और किसने शुरू करवाया था
  9. रैयतवाड़ी व्यवस्था
  10. रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक कौन है?


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रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था

रैयतवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था में प्रत्येक पंजीकृत जमीन धारक को भू-स्वामी स्वीकार कर लिया गया। वह ही राज्य सरकार को भूमिकर देने के लिए उत्तरदायी था। इसके पास भूमि को बेंचने या गिरवी रखने का अधिकार था। रैयतवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था इस व्यवस्था में भू-स्वामी को अपनी भूमि से उस समय तक वंचित नहीं किया जा सकता था जब तक कि वह समय पर भूमिकर देता रहता था। भूमिकर न देने की स्थिति में उसे भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित कर दिया जाता था। चूंकि इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार का सीधे “रैय्यत” से सम्पर्क था। इसलिए इस व्यवस्था को “रैयतवाड़ी व्यवस्था” नाम दिया गया। इस व्यवस्था के जनक “टॉमस मुनरो तथा कैप्टन रीड” थे। इस व्यवस्था में लगान की दर अस्थायी एवं परिवर्तनशील थी। यह व्यवस्था मद्रास, बम्बई, पूर्वी बंगाल, असम और कुर्ग क्षेत्र में लागू की गई। यह ब्रिटिश भारत के लगभग 51% भू-भाग पर लागू की गई। पहली बार रैयतवाड़ी भूमिकर व्यवस्था को 1792 ई. में मद्रास के “बारामहल” जिले में कैप्टन रीड द्वारा लागू किया गया। जब टॉमस मुनरो बंगाल का गवर्नर (1720 से 1827 ई. तक) बना। तब उसने रैयतवाड़ी व्यवस्था को पूरे मद्रास प्रेसीडेंसी में लागू कर दिया। मद्रास में यह व्यवस्था 30 वर्षों तक लागू रही। 1855 ई. में इस व्यवस्था में सुधार भूमि पैमाइश तथा उर्वरा शक्ति के आधार पर किया गया तथा भूमिकर कुल उपज का 30% निर्धारित किया गया। परन्तु 1864 ई. में इसे बढ़ाकर 50% कर दिया गया। बम्बई प्रेसीडेंसी में “रैयतवाड़ी व्यवस्था” को 1725 ई. में लागू किया गया। बम्बई में इस व्यवस्था को लागू करने में “एल्फिंस्टन व चैपलिन रिपोर्ट” की मुख्य भूमिका रही। एल्फिंस्टन 1819 से 1827 ई. तक बम्बई प्रेसीडेंसी के गवर्नर थे। यहाँ पर भूमिकर उपज का 55% निर...

[Solved] रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली किस प्रांत में लागू

सही उत्‍तर मद्रास प्रांत है। Key Points • 1820 में मद्रास प्रांत में सर थॉमस मुनरो द्वारा रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली की शुरुआत की गई थी। • इस प्रणाली के तहत, किसान को भूमि के मालिक के रूप में मान्यता दी जाती थी और इस प्रकार उसके पास स्वामित्व का अधिकार होता था और वह भू-राजस्व के भुगतान के अधीन होता था। • इसे बाद में बॉम्बे, असम के कुछ हिस्सों और ब्रिटिश भारत के कुर्ग प्रांतों में पेश किया गया था। • मद्रास के अधिकारियों को 1820 तक रैयतवारी प्रणाली में परिवर्तित कर दिया गया था और इसकी विजय का संकेत सर थॉमस मुनरो की मद्रास के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति से था। Additional Information ब्रिटिश भारत में तीन प्रमुख भू-राजस्व प्रणालियाँ थीं: ​ इनके द्वारा पेश किया गया कार्यान्वयन के क्षेत्र स्वामित्व अधिकार जमींदारी प्रणाली लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल, बिहार, उड़ीसा, वाराणसी जमींदार रैयतवाड़ी प्रणाली सर थॉमस मुनरो मद्रास, बॉम्बे, असम, कूर्ग कृषक महलवारी प्रणाली होल्ट मैकेंज़ी उत्तर पश्चिम भारत कृषक Confusion Points रैयतवाड़ी प्रणाली मद्रास में लागू की गई और बाद में बॉम्बे, असम, उड़ीसा और कूर्ग प्रांत में पेश की गई थी।

रैयतवाड़ी प्रथा क्या थी और किसने शुरू करवाया था

रैयतवाड़ी प्रथा 1812 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी के बारामहल जिले में सर्वप्रथम लागू की गई। थॉमस मुनरो 1820 ई. से 1827 ई. के बीच मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रारंभिक प्रयोग के बाद मुनरो ने इसे 1820 ई. में संपूर्ण मद्रास में लागू कर दिया। इसके तहत कम्पनी तथा रैयतों (किसानों) के बीच सीधा समझौता या सम्बन्ध था। राजस्व के निधार्रण तथा लगान वसूली में किसी जमींदार या बिचौलिये की भूमिका नहीं होती थी। कैप्टन रीड तथा थॉमस मुनरो द्वारा प्रत्येक पंजीकृत किसान को भूमि का स्वामी माना गया। वह राजस्व सीधे कंपनी को देगा और उसे अपनी भूमि के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था लेकिन कर न देने की स्थिति में उसे भूमि से वंचित होना पङता था। इस व्यवस्था के सैद्धान्तिक पक्ष के तहत खेत की उपज का अनुमान कर उसका आधा राजस्व के रूप में जमा करना पड़ता था। रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त) – रैयतवाड़ी दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी का आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन। दूसरे शब्दों में रैयतवारी व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का प्रबंधन करती है। यह मद्रास, बंबई, आसाम, एवं सिंध का क्षेत्र में यह व्यवस्था प्रचलित थी अर्थात भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के 51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी। इस पद्धति में भूमि का मालिकाना हक किसानों के पास था। भूमि को क्रय विक्रय एवं गिरवी रखने की वस्तु बना दी ग‌ई। इस पद्धति में भू राजस्व का दर वैसे तो 1/3 होता था, लेकिन उसकी वास्तविक वसूली ज्यादा थी। इस पद्धति में भू-राजस्व का निर्धारण भूमि के उपज पर न करके भूमि पर किया जा...

रैयतवाड़ी व्यवस्था

रैयतवाड़ी व्यवस्था व्यवस्था में प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार भूमि का स्वामी होता था, जो सरकार को लगान देने के लिए उत्तरदायी होता था। भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार होता था। • भूमि कर न देने की स्थिति में भूमिदार को, भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था। • इस व्यवस्था के अंतर्गत सरकार का रैयत से सीधा सम्पर्क होता था। • रैयतवाड़ी व्यवस्था को • रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था को पहली बार 1792 ई. में मद्रास के 'बारामहल' ज़िले में लागू किया गया। • टॉमस मुनरो जिस समय मद्रास का गवर्नर था, उस समय उसने कुल उपज के तीसरे भाग को भूमि कर का आधार मानकर मद्रास में इस व्यवस्था को लागू किया। • मद्रास में यह व्यवस्था लगभग 30 वर्षों तक लागू रही। • इस व्यवस्था में सुधार के अंतर्गत 1855 ई. में भूमि की पैमाइश तथा उर्वरा शक्ति के आधार पर कुल उपज का 30% भाग लगान के रूप में निर्धारित किया गया, परन्तु • बम्बई में 1835 ई. में लेफ़्टिनेण्ट विनगेट के भूमि सर्वेक्षण के आधार पर "रैयतवाड़ी व्यवस्था" लागू की गई। • इसमें भूमि की उपज की आधी मात्रा सरकारी लगान के रूप में निश्चित की गई। • कालान्तर में इसे 66% से 100% के मध्य तक बढ़ाया गया। परिणामस्वरूप दक्कन में • बम्बई की रैयतवाड़ी पद्धति अधिक लगान एवं लगान की अनिश्चितता जैसे दोषों से युक्त थी। • किसानों को इस व्यवस्था में अधिक लगान लिए जाने के विरुद्ध न्यायालय में जाने की अनुमति नहीं थी। • • धीरे-धीरे भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं भारतीय • इससे मुद्रा अर्थव्यवस्था एवं कृषि के वाणिज्यीकरण को प्रोत्साहन मिला। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी),भारत डिस्कव...

भारत में अंग्रेजों की भू

अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में जो परंपरागत भूमि व्यवस्था कायम थी उसमें भूमि पर किसानों का अधिकार था तथा फसल का एक बात सरकार को दे दिया जाता था 1765 में इलाहाबाद की संधि के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली यद्यपि 1771 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में प्रचलित पुरानी भू राजस्व व्यवस्था को ही जारी रखा किंतु कंपनी ने भू राजस्व की दरों में वृद्धि कर दी धीरे-धीरे कंपनी के खर्चे में वृद्धि होने लगी, जिसकी भरपाई के लिए कंपनी ने भू राजस्व की दरों को बढ़ाया। ऐसा करना स्वाभाविक भी था क्योंकि भू राजस्व ही ऐसा माध्यम था जिससे कंपनी को अधिकाधिक धन प्राप्त हो सकता था। मुख्य रूप से अंग्रेजों ने भारत में तीन प्रकार की भू- राजस्व पद्धति अपनाई- • जमीदारी व्यवस्था या स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था • रैयतवाड़ी व्यवस्था • महालवाड़ी व्यवस्था 1.स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था (permanent land revenue system) - लार्ड कार्नवालिस में भू राजस्व वसूली की स्थाई व्यवस्था लागू की आरंभ में यह व्यवस्था 10 वर्ष के लिए लागू की गई थी,किंतु 1793 ईस्वी में इसे स्थाई बंदोबस्त में परिवर्तित कर दिया गया‌। -ब्रिटिश भारत के 19% भाग पर यह व्यवस्था थी बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के वाराणसी तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्रों में लागू थी। -इस व्यवस्था में जमींदारों को भू स्वामी के रूप में मान्यता दी गई इसके अंतर्गत जमीदार अपने क्षेत्रों से भू राजस्व की वसूली का 1/11 वां भाग अपने पास रखता था तथा शेष हिस्सा (10/11वा) कंपनी के पास जमा कराता था। -इस व्यवस्था के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया कि जमीदार की मृत्यु के उपरांत उसकी भूमि उसके उत्तराधिकारी ओं में चल संपत्ति की भांति विभाज्य होगी। ...

रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक कौन है?

Explanation : रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक थामस मुनरो तथा कैप्टन रीड है। 1792 ई. में कैप्टन रीड के प्रयासों से रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को सर्वप्रथम तमिलनाडु के 'बारामहल' जिले में लागू किया गया। तमिलनाडु के अलावा यह व्यवस्था मद्रास, बंबई के कुछ हिस्से, पूर्वी बंगाल, असम, कुर्ग के कुछ हिस्से में लागू की गई। इस व्यवस्था के अंतर्गत कुल ब्रिटिश भारत के भूक्षेत्र का 51 प्रतिशत हिस्सा शामिल था। रैय्यतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत रैय्यतों को भूमि का मालिकाना और कब्जादारी अधिकार दिया गया था जिसके द्वारा ये प्रत्यक्ष रूप से सीधे या व्यक्तिगत रूप से सरकार को भू-राजस्व का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे। रैय्यतवाड़ी व्यवस्था में कृषक ही भू-स्वामी होता था जिसे भूमि की कुल उपज का 55 प्रतिशत से 33 प्रतिशत के बीच लगान कंपनी को अदा करना होता था। Tags : Explanation : कालिदास चंद्रगुप्त II के शासनकाल में थे। चंद्रगुप्त द्वितीय अथवा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासनकाल 380-412 ईसवी तक रहा। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपना साम्राज्य विस्तार वैवाहिक सम्बन्ध व विजय दोनों से किया जिसमें नाग राजकुमारी कुबेर • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र बयाना था। 18वीं शताब्द की प्रमुख फसलों में धान, गेहूं, ज्वार-बाजरा इत्यादि थे। धान हिंदुस्तान के अधिकांश क्षेत्रों में उगाया जाता था जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गो • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सबसे प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : गुरु ग्रंथ साहिब में सूफी संत शेख फरीद की रचनाएं संकलित है। पंजाब के सूफी संतों में भक्त शेख फरीद जी का नाम प्रमुखता से आत...

[Solved] रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली किस प्रांत में लागू

सही उत्‍तर मद्रास प्रांत है। Key Points • 1820 में मद्रास प्रांत में सर थॉमस मुनरो द्वारा रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली की शुरुआत की गई थी। • इस प्रणाली के तहत, किसान को भूमि के मालिक के रूप में मान्यता दी जाती थी और इस प्रकार उसके पास स्वामित्व का अधिकार होता था और वह भू-राजस्व के भुगतान के अधीन होता था। • इसे बाद में बॉम्बे, असम के कुछ हिस्सों और ब्रिटिश भारत के कुर्ग प्रांतों में पेश किया गया था। • मद्रास के अधिकारियों को 1820 तक रैयतवारी प्रणाली में परिवर्तित कर दिया गया था और इसकी विजय का संकेत सर थॉमस मुनरो की मद्रास के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति से था। Additional Information ब्रिटिश भारत में तीन प्रमुख भू-राजस्व प्रणालियाँ थीं: ​ इनके द्वारा पेश किया गया कार्यान्वयन के क्षेत्र स्वामित्व अधिकार जमींदारी प्रणाली लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल, बिहार, उड़ीसा, वाराणसी जमींदार रैयतवाड़ी प्रणाली सर थॉमस मुनरो मद्रास, बॉम्बे, असम, कूर्ग कृषक महलवारी प्रणाली होल्ट मैकेंज़ी उत्तर पश्चिम भारत कृषक Confusion Points रैयतवाड़ी प्रणाली मद्रास में लागू की गई और बाद में बॉम्बे, असम, उड़ीसा और कूर्ग प्रांत में पेश की गई थी।

रैयतवाड़ी प्रथा क्या थी और किसने शुरू करवाया था

रैयतवाड़ी प्रथा 1812 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी के बारामहल जिले में सर्वप्रथम लागू की गई। थॉमस मुनरो 1820 ई. से 1827 ई. के बीच मद्रास का गवर्नर रहा। रैयतवाड़ी व्यवस्था के प्रारंभिक प्रयोग के बाद मुनरो ने इसे 1820 ई. में संपूर्ण मद्रास में लागू कर दिया। इसके तहत कम्पनी तथा रैयतों (किसानों) के बीच सीधा समझौता या सम्बन्ध था। राजस्व के निधार्रण तथा लगान वसूली में किसी जमींदार या बिचौलिये की भूमिका नहीं होती थी। कैप्टन रीड तथा थॉमस मुनरो द्वारा प्रत्येक पंजीकृत किसान को भूमि का स्वामी माना गया। वह राजस्व सीधे कंपनी को देगा और उसे अपनी भूमि के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता था लेकिन कर न देने की स्थिति में उसे भूमि से वंचित होना पङता था। इस व्यवस्था के सैद्धान्तिक पक्ष के तहत खेत की उपज का अनुमान कर उसका आधा राजस्व के रूप में जमा करना पड़ता था। रैयत(कृषक)+वाड़ी(बंदोबस्त) – रैयतवाड़ी दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें रैयत का आशय है, किसान एवं वाड़ी का आशय है, प्रबंधन अर्थात किसानों के साथ प्रबंधन। दूसरे शब्दों में रैयतवारी व्यवस्था ब्रिटिश कंपनी द्वारा प्रचलित एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राज्य या सरकार किसानों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर भू राजस्व का प्रबंधन करती है। यह मद्रास, बंबई, आसाम, एवं सिंध का क्षेत्र में यह व्यवस्था प्रचलित थी अर्थात भारत में ब्रिटिश सम्राज्य के कुल भूभाग के 51% भूमि पर यह व्यवस्था लागू थी। इस पद्धति में भूमि का मालिकाना हक किसानों के पास था। भूमि को क्रय विक्रय एवं गिरवी रखने की वस्तु बना दी ग‌ई। इस पद्धति में भू राजस्व का दर वैसे तो 1/3 होता था, लेकिन उसकी वास्तविक वसूली ज्यादा थी। इस पद्धति में भू-राजस्व का निर्धारण भूमि के उपज पर न करके भूमि पर किया जा...

रैयतवाड़ी व्यवस्था

रैयतवाड़ी व्यवस्था व्यवस्था में प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार भूमि का स्वामी होता था, जो सरकार को लगान देने के लिए उत्तरदायी होता था। भूमिदार के पास भूमि को रहने, रखने व बेचने का अधिकार होता था। • भूमि कर न देने की स्थिति में भूमिदार को, भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था। • इस व्यवस्था के अंतर्गत सरकार का रैयत से सीधा सम्पर्क होता था। • रैयतवाड़ी व्यवस्था को • रैयतवाड़ी भूमि कर व्यवस्था को पहली बार 1792 ई. में मद्रास के 'बारामहल' ज़िले में लागू किया गया। • टॉमस मुनरो जिस समय मद्रास का गवर्नर था, उस समय उसने कुल उपज के तीसरे भाग को भूमि कर का आधार मानकर मद्रास में इस व्यवस्था को लागू किया। • मद्रास में यह व्यवस्था लगभग 30 वर्षों तक लागू रही। • इस व्यवस्था में सुधार के अंतर्गत 1855 ई. में भूमि की पैमाइश तथा उर्वरा शक्ति के आधार पर कुल उपज का 30% भाग लगान के रूप में निर्धारित किया गया, परन्तु • बम्बई में 1835 ई. में लेफ़्टिनेण्ट विनगेट के भूमि सर्वेक्षण के आधार पर "रैयतवाड़ी व्यवस्था" लागू की गई। • इसमें भूमि की उपज की आधी मात्रा सरकारी लगान के रूप में निश्चित की गई। • कालान्तर में इसे 66% से 100% के मध्य तक बढ़ाया गया। परिणामस्वरूप दक्कन में • बम्बई की रैयतवाड़ी पद्धति अधिक लगान एवं लगान की अनिश्चितता जैसे दोषों से युक्त थी। • किसानों को इस व्यवस्था में अधिक लगान लिए जाने के विरुद्ध न्यायालय में जाने की अनुमति नहीं थी। • • धीरे-धीरे भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं भारतीय • इससे मुद्रा अर्थव्यवस्था एवं कृषि के वाणिज्यीकरण को प्रोत्साहन मिला। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी),भारत डिस्कव...

रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक कौन है?

Explanation : रैयतवाड़ी व्यवस्था के जनक थामस मुनरो तथा कैप्टन रीड है। 1792 ई. में कैप्टन रीड के प्रयासों से रैय्यतवाड़ी व्यवस्था को सर्वप्रथम तमिलनाडु के 'बारामहल' जिले में लागू किया गया। तमिलनाडु के अलावा यह व्यवस्था मद्रास, बंबई के कुछ हिस्से, पूर्वी बंगाल, असम, कुर्ग के कुछ हिस्से में लागू की गई। इस व्यवस्था के अंतर्गत कुल ब्रिटिश भारत के भूक्षेत्र का 51 प्रतिशत हिस्सा शामिल था। रैय्यतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत रैय्यतों को भूमि का मालिकाना और कब्जादारी अधिकार दिया गया था जिसके द्वारा ये प्रत्यक्ष रूप से सीधे या व्यक्तिगत रूप से सरकार को भू-राजस्व का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे। रैय्यतवाड़ी व्यवस्था में कृषक ही भू-स्वामी होता था जिसे भूमि की कुल उपज का 55 प्रतिशत से 33 प्रतिशत के बीच लगान कंपनी को अदा करना होता था। Tags : Explanation : कालिदास चंद्रगुप्त II के शासनकाल में थे। चंद्रगुप्त द्वितीय अथवा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का शासनकाल 380-412 ईसवी तक रहा। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपना साम्राज्य विस्तार वैवाहिक सम्बन्ध व विजय दोनों से किया जिसमें नाग राजकुमारी कुबेर • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सर्वाधिक प्रसिद्ध क्षेत्र बयाना था। 18वीं शताब्द की प्रमुख फसलों में धान, गेहूं, ज्वार-बाजरा इत्यादि थे। धान हिंदुस्तान के अधिकांश क्षेत्रों में उगाया जाता था जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गो • मुगल साम्राज्य में नील उत्पादन का सबसे प्रसिद्ध क्षेत्र कौन था? Explanation : गुरु ग्रंथ साहिब में सूफी संत शेख फरीद की रचनाएं संकलित है। पंजाब के सूफी संतों में भक्त शेख फरीद जी का नाम प्रमुखता से आत...