Ras ke bhed

  1. (रस) RAS in Hindi
  2. Ras ke bhed in Hindi Grammar Class 10
  3. Ras kitne prakar ke hote hain, Ras ke bhed
  4. रस किसे कहते हैं, रस के भेद
  5. रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण
  6. रस किसे कहते हैं, रस की परिभाषा दसों भेद व उदाहरण
  7. रस


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(रस) RAS in Hindi

काव्यपाठ अथवा नाटक देखने से पाठक अथवा दर्शक के मन में जो आनंद उत्पन होता है, उसे ही रस (RAS) कहते हैं रस का शाब्दिक अर्थ होता है निचोड़! काव्य में जो आनंद आता है काव्य रस होता है रस अन्तकरणः की वह शक्ति होती है जिसके कारण मन कल्पना करता है, स्वपन देखता है और काव्य के अनुसार विचरण करने लगता है अर्थात काव्य या कविता साहित्य को पढ़ते समय हमें जिस आनंद व रस कि प्राप्ति होती है उसे रस कहते हैं भरत मुनि ने सर्वप्रथम अपनी कृति नाट्यशास्त्र में रस का प्रयोग किया था परिभाषा :- जब विभाव अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट होकर नाम का स्थायी भाव उत्पन्न होता है वह रस कहलाता है रस के भेद समान्यतः रस नौ प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य रस को दसवां एवं भक्ति रस को ग्यारहवां रस माना गया हैं : रस एवं उसके स्थायी भाव क्रमश निम्न प्रकार हैं रस स्थायी भाव आसान सी पहचान श्रंगार रस रति स्त्री पुरुष का प्रेम हास्य रस हास, हँसी अंगों या वाणी के विकार से उत्पन्न उल्लास या हँसी वीर रस उत्साह दया, दान और वीरता आदि को प्रकट करने में प्रसन्नता का भाव करुण रस शोक प्रिय के वियोग या हानि के कारण व्याकुलता शांत रस निर्वेद, उदासीनता संसार के प्रति उदासीनता का भाव अदभुत रस विस्मय, आश्चर्य अनोखी वस्तु को देखकर या सुनकर आश्चर्य का भाव भयानक रस भय बड़ा अनिष्ट कर सकने में समर्थ जीव या वस्तु को देखकर उत्पन्न व्याकुलता रौद्र रस क्रोध काम बिगाड़ने वाले को दंड देने वाली मनोवृति वीभत्स रस जुगुप्सा घिनौने पदार्थ को देखकर होने वाली ग्लानि वात्सल्य रस वात्सल्यता, अनुराग संतान के प्रति माता-पिता का प्रेम भाव भक्ति रस देव रति ईश्वर के प्रति प्रेम

Ras ke bhed in Hindi Grammar Class 10

रस के भेद (Ras ke bhed) – शृंगार रस (Shringar Ras), हास्य रस (Hasya Ras), करुण रस (Karun Ras), वीर रस (Veer Ras), रौद्र रस (Rodra Ras), भयानक रस (Bhayanak Ras), वीभत्स रस (Vibhats Ras), अद्भुत रस (Adbhut Ras), शांत रस (Shant Ras), वात्सल्य रस (Vatsalya Ras),भक्ति रस ( Bhakti Ras ) रस के भेद (Ras ke bhed) • शृंगार रस (Shringar Ras) • हास्य रस (Hasya Ras) • करुण रस (Karun Ras) • वीर रस (Veer Ras) • रौद्र रस (Rodra Ras) • भयानक रस (Bhayanak Ras) • वीभत्स रस (Vibhats Ras) • अद्भुत रस (Adbhut Ras) • शांत रस (Shant Ras) • वात्सल्य रस (Vatsalya Ras) • भक्ति रस (Bhakti Ras) शृंगार रस (Shringar Ras) स्त्री-पुरुष के पारस्परिक प्रेम के वर्णन से मन में उत्पन्न होने वाले आनंद को शृंगार रस कहते हैं। → आचार्य भोज ने शृंगार रस को रस राज यानी रसों का राजा भी कहा है। → शृंगार रस का स्थायी भाव ‘रति’ है। शृंगार रस के भेद (Shringar Ras ke bhed) (1) संयोग रस (2) वियोग रस संयोग रस → जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिगंन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है, तब संयोग शृंगार रस होता है। उदाहरण → बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय। स्थायी भाव = रति आलंबन = कृष्ण आश्रय = गोपियाँ उद्दीपन = बतरस लालच अनुभाव = बाॅसुरी छिपाना, भौंहों से हँसना, मना करना, संचारी भाव = हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि वियोग रस → जहाँ पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात् नायक – नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग रस होता है। → वियोग का स्थायी भाव भी ‘रति’ होता है। हास्य रस (Hasya Ras) वाणी, वेशभूषा, विकृत आकार इत्यादि के कारण मन में हास्य का भाव उत्पन्न होता है...

Ras kitne prakar ke hote hain, Ras ke bhed

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रस किसे कहते हैं, रस के भेद

Contents • • • Ras Kise Kahate Hain : रस शब्द आनंद का पर्याय है। रस का संबंध ” स् ” धातु से माना गया है। रस का शाब्दिक अर्थ निचोड़ होता है। रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। जैसे :- आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं होता, उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना गया है। रसवादी आचार्यों ने काव्य में रस को ही मुख्य माना है। आज हम रस किसे कहते हैं ( Ras Kise Kahate Hain ), इसके कितने भेद ( Ras Ke Bhed ) हैं, उदाहरण सहित जानेंगे। रस किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं? | Ras Kise Kahate Hain रस की परिभाषा ( Ras Kise Kahate Hain ) :- काव्य के पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है, वही काव्य में रस कहलाता है। Ras Kise Kahate Hain ( दूसरे शब्दों में ) – कविता नाटक या कहानी आदि पढ़ने सुनने या देखने से जो पाठक को एक प्रकार की विलक्षण आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। • कारक किसे कहते हैं, कारक के भेद। रस के अंग | Ras Ke Ang : हिंदी व्याकरण में रस के चार अंग होते हैं:- • विभाव • अनुभाव • संचारी भाव • स्थाई भाव 1. विभाव :- विशेष रूप से भाव को प्रकट करने वालों को भी विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं :- उद्दीपन विभाव और आलंबन विभाव। 2. अनुभाव :- वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जिनसे अर्थ प्रकट होता है, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभव चार माने गए हैं :- आंगिक, वाचिक, आहार, सात्विक। 3. संचारी भाव :- रस का तीसरा अंग संचारी भाव होता है, जो स्थानीय भाव के साथ संरचण करते हैं, वे संचारी भाव कहलाते हैं। यह संचारी भाव तैंतीस कहे गए हैं :- निर्वेद, शंका, गर्व, चिंता, मोह, विषाद, दैन्य, असूया, मृत्यु, मद...

रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • रस की परिभाषा इसका उत्तर रसवादी आचार्यों ने अपनी अपनी प्रतिभा के अनुरूप दिया है। रस शब्द अनेक संदर्भों में प्रयुक्त होता है तथा प्रत्येक संदर्भ में इसका अर्थ अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए- पदार्थ की दृष्टि से रस का प्रयोग षडरस के रूप में, भक्ति में ब्रह्मानंद के लिए तथा साहित्य के क्षेत्र में काव्य स्वाद या काव्य आनंद के लिए रस का प्रयोग होता है। रस के भेद इसके मुख्यतः ग्यारह भेद हैं :- १. रस को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु • काव्य पढ़ने-सुनने अथवा देखने से श्रोता पाठक या दर्शक एक ऐसी अनुभूति पर पहुंच जाते हैं जहां चारों तरफ केवल शुद्ध आनंदमई चेतना का ही साम्राज्य रहता है। • इस भावभूमि को प्राप्त कर लेने की अवस्था को ही रस कहा जाता है। • अतः रस मूलतः आलोकिक स्थिति है यह केवल काव्य की आत्मा ही नहीं बल्कि यह काव्य का जीवन भी है इसकी अनुभूति के कारण सहृदय पाठक का हृदय आनंद से परिपूर्ण हो जाता है। • यह भाव जागृत करने के लिए उनके अनुभव का सशक्त माध्यम माना जाता है। आचार्य भरतमुनि ने सर्वप्रथम नाट्यशास्त्र रचना के अंतर्गत रस का सैद्धांतिक विश्लेषण करते हुए रस निष्पत्ति पर अपने विचार प्रस्तुत किए उनके अनुसार- विभावानुभाव संचार संयोगाद्रस निष्पत्ति • रस निष्पत्ति अर्थात- विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से ही रस की निष्पत्ति होती है, किंतु साथ ही वे स्पष्ट करते हैं कि स्थाई भाव ही विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से स्वरूप को ग्रहण करते हैं। इस प्रकार रस की अवधारणा को पूर्णता प्रदान करने में उनके चार अंगों स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है। १. स्थाई भाव स्थाई भाव रस ...

रस किसे कहते हैं, रस की परिभाषा दसों भेद व उदाहरण

Ras kise kahate hain: नमस्कार ! Hindee Vision में आपका स्वागत है। जैसा कि टाइटल सही स्पष्ट हो जाता है कि आज हम बात करने वाले हैं "रस" की और आज हम आपके इन सवालों के जवाब देंगे और आप जानेंगे कि 'रस किसे कहते है' , Ras ki paribhasha और Ras ke kitne bhed hote hai आदि। इस पोस्ट में हम आपको रस से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से प्रदान करेंगे। संस्कृत का एक श्लोक है -“रस्यते आस्वाद्यते इति रसः।” अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाय, सराह-सराह कर चखा जाय, वही 'रस' है। जिस तरह से स्वादिष्ट भोजन से जीभ और मन को तृप्ति मिलती है, ठीक उसी तरह मधुर काव्य का रसास्वादन करने से हृदय को आनंद मिलता है। यह आनंद अलौकिक और अकथनीय होता है। इसी साहित्यिक आनंद का नाम ‘रस' है। स्थायी भाव का जो कारण होता है, उसे ही 'विभाव' कहा जाता है। विभाव के दो अवांतर भेद होते हैं— आलंबन और उद्दीपन । जैसे—साँप को देखने मात्र से आपके मन में भय का संचार होता है। यहाँ आपके भय का आलंबन साँप है। अब कल्पना कीजिए कि वह स्थान सुनसान है और साँप फन फैलाकार आपके सामने है। यह दृश्य आपको और ज्यादा उत्तेजित कर देता है—यही उद्दीपन है। मान लिया जाय कि डर के मारे आपकी आँखें झिप जाती हैं और थोड़ी देर के लिए आप चेतनाशून्य हो जाते हैं। यह दशा आत्म-विस्मृति की होती है। यह अधिक देर तक रहती नहीं, एकाएक बिजली की तरह आकर फिर विलीन हो जाती है। यह क्षणिक अवस्था (आत्म-विस्मृति की) केवल भय में ही नहीं शोक, प्रेम, घृणा आदि में भी आती है। ऐसी ही वृत्ति को 'संचारीभाव' अथवा‘व्यभिचारीभाव’ कहते हैं। आवश्यक जानकारी :- इनके अलावा कई विद्वान 'भक्ति रस' व 'वात्सल्य रस' को अलग रस मानते हैं किंतु ऐसा नहीं है भक्ति रस और वात्सल्य रस भी श्रृंगार रस के अंतर्गत ...

रस

रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण, (RAS IN HINDI Grammar PDF Download) – Hello Friends,currentshub में आपका स्वागत हैं , आज हम आपके साथ रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण ( RAS IN HINDI Grammar PDF Download) महत्वपूर्ण Notes And Question – Answer शेयर कर रहे है . जो छात्र SSC CGL, MTS, CPO, RAS, UPSC, IAS and all state level competitive exams. या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उनके लिए ये Hindi Notes का PDF Download करके पढना किसी वरदान से कम नहीं होगा. आप इस सामान्य हिंदी का इतिहास एवं परिचय PDF नोट्स को नीचे दिए हुए Download Link के माध्यम से PDF Download कर सकते है. • हिंदी व्याकरण PDF नोट्स By Mohit Yadav download • • • • रस : रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। प्राचीन भारतीय वर्ष में रस का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। रस -संचार के बिना कोई भी प्रयोग सफल नहीं किया जा सकता था। रस के कारण कविता के पठन , श्रवण और नाटक के अभिनय से देखने वाले लोगों को आनन्द मिलता है। or श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंदऔर • पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थायीभाव ही विभावादि से संयुक्त होकर रस के रूप में परिणत हो जाता है। • रस को ‘काव्य की आत्मा’ या ‘प्राण तत्व’ माना जाता है। भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा- रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने ‘ नाट्यशास्त्र‘ में ...