Rashmirathi tritiya sarg

  1. Rashmirathi: Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar
  2. Krishna ki Chetavani
  3. रश्मिरथी तृतीय सर्ग
  4. रश्मिरथी तृतीय सर्ग
  5. द्वितीय सर्ग ~ रश्मिरथी ~ रामधारी सिंह 'दिनकर'
  6. द्वितीय सर्ग ~ रश्मिरथी ~ रामधारी सिंह 'दिनकर'
  7. रश्मिरथी तृतीय सर्ग
  8. Rashmirathi: Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar
  9. रश्मिरथी तृतीय सर्ग
  10. Krishna ki Chetavani


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Rashmirathi: Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar

Rashmirathi is one of the classics of modern Hindi Literature. Most of our understanding of Mahabharata stems from B R Chopra’s television adaptation of Mahabharata, which is often described as a limited version of the epic. Over the years, innumerable people have written the Mahabharata from the perspective of its many characters. Rashmirathi is one such work of art by Ramdhari Singh Dinkar where Mahabharata is documented from the standpoint of one of its protagonists, Karna. This particular recitation is based on Tritya Sarg of Rashmirathi which is called ‘Krishna ki Chetavani’. It is considered to be one of the most poignant moments of Mahabharata where Krishna goes to wave a white flag to avoid the war but Duryodhan’s arrogance made him realise that war is an inevitable conclusion. Watch it here:

Krishna ki Chetavani

My understanding of poetry is limited, my understanding of the Hindi language is limited and my understanding of our mythology is limited — and I hate to admit all of that. But a few days ago, I came across an old video on YouTube in which the actor Ashutosh Rana recited a part of the Tritiya Sarg of Ramdhari Singh “Dinkar”‘s Rashmirathi, and I was immediately spellbound. Soon after, I began searching frantically for a source on the Internet that could help me appreciate this glorious piece of work even more, but, alas, I could not find one. Now, I was really interested in trying to understand this glorious piece of work as best as I could, and naturally, I felt compelled to write about it here on the Internet, not because I believed that I could do a very good job of it (and I apologise in advance for any mistakes that I mayhave unknowingly made), but because I wanted to provide an opportunity to others who are in the same boat as I. So, without much ado, I present to you my attempt with ‘Rashmirathi – Krishna ki Chetavani’: varṣoṅ tak van (jungle) meṅ ghūm-ghūm, bādhā-vighnoṅ (obstacles) ko chūm-chūm, sah dhūp-ghām (sunlight-heat), pānī-patthar, pāṅḍav āye kuchh aur nikhar (glow). saubhāgy (good luck) n sab din sotā hai, dekheṅ, āge kyā hotā hai. maitrī (friendship) kī rāh batāne ko, sabako sumārg (the good path) par lāne ko, duryodhan ko samajhāne ko, bhīṣaṇ (great/horrifying) vidhvaṅs (destruction/annihilation) bachāne ko, bhagavān hastināpur āye, pāṅḍav kā saṅdeshā (m...

रश्मिरथी तृतीय सर्ग

रश्मिरथी : इसका सरल शब्दों में अर्थ "सूर्य की सारथी" है। ध्यान रहे की यह हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। इसमें 7 सर्ग हैं। इसमें कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का सजीव चित्रण किया गया है। रश्मिरथी तृतीय सर्ग : मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। 'उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। 'दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख, चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर। शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

रश्मिरथी तृतीय सर्ग

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है रश्मिरथी तृतीय सर्ग ( Rashmirathi Krishna Ki Chetavani ) “ रश्मिरथी ” महाभारत के पात्र कर्ण के जीवन और चरित्र पर रचा गया काव्य है। जिसमें उनके जीवन से लेकर मृत्यु तक की सभी घटनाएं सम्मिलित की गयी हैं। कर्ण के द्वारा कवि ने यह सन्देश हम तक पहुँचाने का प्रयास किया है कि मानव जीवन में किसी कुल या वंश में जन्म लेने से ही श्रेष्ठता नहींं आती। व्यक्ति उत्तम बनता है अपने गुणों और व्यव्हार से। रश्मिरथी किसकी रचना है Rashmirathi Kiski Rachna Hai इस काव्य को ‘ राष्ट्रकवि ’ के नाम से प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ( Rashmirathi Written By Ramdhari Singh Dinkar ) द्वारा लिखा गया है। कर्म की महत्वता और नैतिकता का पाठ पढ़ाता यह काव्य ऐसे शब्दों से सुसज्जित है जिन्हें पढ़कर मन में उत्तम कर्म करने की प्रेरणा पैदा होती है। जीवन के कठिन समय में भी कैसे संयम बनाये रखना है, कर्ण के माध्यम से यह सन्देश जन-जन को दिया गया है। रश्मिरथी किताब खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें रश्मिरथी किसे कहा गया है रश्मिरथी का अर्थ होता है एक ऐसा रथसवार (रथी ) जिसका रथ सूर्य की किरणों ( रश्मि ) का बना हो। इस काव्य में रश्मिरथी सुर्यपुत्र कर्ण को कहा गया है क्योंकि कर्ण का चरित्र सूर्य की किरणोंकी तरह पवित्र है। और उसकी महानता सूर्य की किरणों के भांति किसी से छिपी नहींं अपितु सबके सामने है। रश्मिरथी के तृतीय सर्ग में उस समय का वर्णन किया गया है। जब पांडव अज्ञातवास पूरा कर वापस आ जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण कौरवों और पांडवों में सुलह करवाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं। भगवान् श्री कृष्णा के ...

द्वितीय सर्ग ~ रश्मिरथी ~ रामधारी सिंह 'दिनकर'

​,3,अंकेश धीमान,3,अकबर-बीरबल,15,अजीत कुमार सिंह,1,अजीत झा,1,अटल बिहारी वाजपेयी,5,अनमोल वचन,44,अनमोल विचार,2,अबुल फजल,1,अब्राहम लिँकन,1,अभियांत्रिकी,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक चतुर्वेदी,1,अभिषेक चौधरी,1,अभिषेक पंडियार,1,अमर सिंह,2,अमित शर्मा,13,अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,2,अरस्तु,1,अर्नेस्ट हैमिग्व,1,अर्पित गुप्ता,1,अलबर्ट आईन्सटाईन,1,अलिफ लैला,64,अल्बर्ट आइंस्टाईन,1,अशफाकुल्ला खान,1,अश्वपति,1,आचार्य चाणक्य,22,आचार्य विनोबा भावे,1,इंजीनियरिंग,1,इंदिरा गांधी,1,उद्धरण,42,उद्योगपति,2,उपन्यास,2,ओशो,10,ओशो कथा-सागर,11,कबीर के दोहे,2,कवीश कुमार,1,कहावतें तथा लोकोक्तियाँ,11,कुमार मुकुल,1,कृष्ण मलिक,1,केशव किशोर जैन,1,क्रोध,1,ख़लील जिब्रान,1,खेल,1,गणतंत्र दिवस,1,गणित,1,गोपाल प्रसाद व्यास,1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गौतम कुमार,1,गौतम कुमार मंडल,2,गौतम बुद्ध,1,चाणक्य नीति,25,चाणक्य सूत्र,24,चार्ल्स ब्लॉन्डिन,1,चीफ सियाटल,1,चैतन्य महाप्रभु,1,जातक कथाएँ,42,जार्ज वाशिंगटन,1,जावेद अख्तर,1,जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट,1,जैक मा,1,टी.वी.श्रीनिवास,1,टेक्नोलोजी,1,डाॅ बी.के.शर्मा,1,डॉ मुकेश बागडी़'सहज',1,डॉ मुकेश बागड़ी"सहज",1,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1,डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,1,तकनिकी,2,तानसेन,1,तीन बातें,1,त्रिशनित अरोङा,1,दशहरा,1,दसवंत,1,दार्शनिक गुर्जिएफ़,1,दिनेश गुप्ता'दिन',1,दीनबन्धु एंड्रयूज,1,दीपा करमाकर,1,दुष्यंत कुमार,3,देशभक्ति,1,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,8,नारी,1,निदा फ़ाज़ली,5,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,1,पं. विष्णु शर्मा,66,पंचतंत्र,66,पंडित मदन मोहन मालवीय,1,परमवीर चक्र,4,पीयूष गोयल,1,पुस्तक समीक्षा,1,पुस्तक-समीक्षा,1,पौराणिक कथाएं,1,प्रिंस कपूर,1,प्रेमचंद,12,प्रेरक प्रसंग,52,प्रेरणादायक कहानी,...

द्वितीय सर्ग ~ रश्मिरथी ~ रामधारी सिंह 'दिनकर'

​,3,अंकेश धीमान,3,अकबर-बीरबल,15,अजीत कुमार सिंह,1,अजीत झा,1,अटल बिहारी वाजपेयी,5,अनमोल वचन,44,अनमोल विचार,2,अबुल फजल,1,अब्राहम लिँकन,1,अभियांत्रिकी,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक चतुर्वेदी,1,अभिषेक चौधरी,1,अभिषेक पंडियार,1,अमर सिंह,2,अमित शर्मा,13,अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,2,अरस्तु,1,अर्नेस्ट हैमिग्व,1,अर्पित गुप्ता,1,अलबर्ट आईन्सटाईन,1,अलिफ लैला,64,अल्बर्ट आइंस्टाईन,1,अशफाकुल्ला खान,1,अश्वपति,1,आचार्य चाणक्य,22,आचार्य विनोबा भावे,1,इंजीनियरिंग,1,इंदिरा गांधी,1,उद्धरण,42,उद्योगपति,2,उपन्यास,2,ओशो,10,ओशो कथा-सागर,11,कबीर के दोहे,2,कवीश कुमार,1,कहावतें तथा लोकोक्तियाँ,11,कुमार मुकुल,1,कृष्ण मलिक,1,केशव किशोर जैन,1,क्रोध,1,ख़लील जिब्रान,1,खेल,1,गणतंत्र दिवस,1,गणित,1,गोपाल प्रसाद व्यास,1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गौतम कुमार,1,गौतम कुमार मंडल,2,गौतम बुद्ध,1,चाणक्य नीति,25,चाणक्य सूत्र,24,चार्ल्स ब्लॉन्डिन,1,चीफ सियाटल,1,चैतन्य महाप्रभु,1,जातक कथाएँ,42,जार्ज वाशिंगटन,1,जावेद अख्तर,1,जीन फ्राँकाईस ग्रेवलेट,1,जैक मा,1,टी.वी.श्रीनिवास,1,टेक्नोलोजी,1,डाॅ बी.के.शर्मा,1,डॉ मुकेश बागडी़'सहज',1,डॉ मुकेश बागड़ी"सहज",1,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन,1,डॉ. बी.आर. अम्बेडकर,1,तकनिकी,2,तानसेन,1,तीन बातें,1,त्रिशनित अरोङा,1,दशहरा,1,दसवंत,1,दार्शनिक गुर्जिएफ़,1,दिनेश गुप्ता'दिन',1,दीनबन्धु एंड्रयूज,1,दीपा करमाकर,1,दुष्यंत कुमार,3,देशभक्ति,1,द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी,8,नारी,1,निदा फ़ाज़ली,5,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,1,पं. विष्णु शर्मा,66,पंचतंत्र,66,पंडित मदन मोहन मालवीय,1,परमवीर चक्र,4,पीयूष गोयल,1,पुस्तक समीक्षा,1,पुस्तक-समीक्षा,1,पौराणिक कथाएं,1,प्रिंस कपूर,1,प्रेमचंद,12,प्रेरक प्रसंग,52,प्रेरणादायक कहानी,...

रश्मिरथी तृतीय सर्ग

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है रश्मिरथी तृतीय सर्ग ( Rashmirathi Krishna Ki Chetavani ) “ रश्मिरथी ” महाभारत के पात्र कर्ण के जीवन और चरित्र पर रचा गया काव्य है। जिसमें उनके जीवन से लेकर मृत्यु तक की सभी घटनाएं सम्मिलित की गयी हैं। कर्ण के द्वारा कवि ने यह सन्देश हम तक पहुँचाने का प्रयास किया है कि मानव जीवन में किसी कुल या वंश में जन्म लेने से ही श्रेष्ठता नहींं आती। व्यक्ति उत्तम बनता है अपने गुणों और व्यव्हार से। रश्मिरथी किसकी रचना है Rashmirathi Kiski Rachna Hai इस काव्य को ‘ राष्ट्रकवि ’ के नाम से प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ( Rashmirathi Written By Ramdhari Singh Dinkar ) द्वारा लिखा गया है। कर्म की महत्वता और नैतिकता का पाठ पढ़ाता यह काव्य ऐसे शब्दों से सुसज्जित है जिन्हें पढ़कर मन में उत्तम कर्म करने की प्रेरणा पैदा होती है। जीवन के कठिन समय में भी कैसे संयम बनाये रखना है, कर्ण के माध्यम से यह सन्देश जन-जन को दिया गया है। रश्मिरथी किताब खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें रश्मिरथी किसे कहा गया है रश्मिरथी का अर्थ होता है एक ऐसा रथसवार (रथी ) जिसका रथ सूर्य की किरणों ( रश्मि ) का बना हो। इस काव्य में रश्मिरथी सुर्यपुत्र कर्ण को कहा गया है क्योंकि कर्ण का चरित्र सूर्य की किरणोंकी तरह पवित्र है। और उसकी महानता सूर्य की किरणों के भांति किसी से छिपी नहींं अपितु सबके सामने है। रश्मिरथी के तृतीय सर्ग में उस समय का वर्णन किया गया है। जब पांडव अज्ञातवास पूरा कर वापस आ जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण कौरवों और पांडवों में सुलह करवाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं। भगवान् श्री कृष्णा के ...

Rashmirathi: Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar

Rashmirathi is one of the classics of modern Hindi Literature. Most of our understanding of Mahabharata stems from B R Chopra’s television adaptation of Mahabharata, which is often described as a limited version of the epic. Over the years, innumerable people have written the Mahabharata from the perspective of its many characters. Rashmirathi is one such work of art by Ramdhari Singh Dinkar where Mahabharata is documented from the standpoint of one of its protagonists, Karna. This particular recitation is based on Tritya Sarg of Rashmirathi which is called ‘Krishna ki Chetavani’. It is considered to be one of the most poignant moments of Mahabharata where Krishna goes to wave a white flag to avoid the war but Duryodhan’s arrogance made him realise that war is an inevitable conclusion. Watch it here:

रश्मिरथी तृतीय सर्ग

रश्मिरथी : इसका सरल शब्दों में अर्थ "सूर्य की सारथी" है। ध्यान रहे की यह हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। इसमें 7 सर्ग हैं। इसमें कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का सजीव चित्रण किया गया है। रश्मिरथी तृतीय सर्ग : मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- 'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। 'उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। 'दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख, चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर। शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

Krishna ki Chetavani

My understanding of poetry is limited, my understanding of the Hindi language is limited and my understanding of our mythology is limited — and I hate to admit all of that. But a few days ago, I came across an old video on YouTube in which the actor Ashutosh Rana recited a part of the Tritiya Sarg of Ramdhari Singh “Dinkar”‘s Rashmirathi, and I was immediately spellbound. Soon after, I began searching frantically for a source on the Internet that could help me appreciate this glorious piece of work even more, but, alas, I could not find one. Now, I was really interested in trying to understand this glorious piece of work as best as I could, and naturally, I felt compelled to write about it here on the Internet, not because I believed that I could do a very good job of it (and I apologise in advance for any mistakes that I mayhave unknowingly made), but because I wanted to provide an opportunity to others who are in the same boat as I. So, without much ado, I present to you my attempt with ‘Rashmirathi – Krishna ki Chetavani’: varṣoṅ tak van (jungle) meṅ ghūm-ghūm, bādhā-vighnoṅ (obstacles) ko chūm-chūm, sah dhūp-ghām (sunlight-heat), pānī-patthar, pāṅḍav āye kuchh aur nikhar (glow). saubhāgy (good luck) n sab din sotā hai, dekheṅ, āge kyā hotā hai. maitrī (friendship) kī rāh batāne ko, sabako sumārg (the good path) par lāne ko, duryodhan ko samajhāne ko, bhīṣaṇ (great/horrifying) vidhvaṅs (destruction/annihilation) bachāne ko, bhagavān hastināpur āye, pāṅḍav kā saṅdeshā (m...