रहिमन निज मन की व्यथा

  1. रहीम
  2. 50+ Popular Rahim ke Dohe with Hindi Meaning
  3. Rahim Das ke Jivan Parichay
  4. कबीरदास जी, रहीमदास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे
  5. Rahim Ke Dohe » रहीम दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित
  6. 50+ Popular Rahim ke Dohe with Hindi Meaning
  7. रहीम
  8. कबीरदास जी, रहीमदास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे
  9. Rahim Das ke Jivan Parichay
  10. Rahim Ke Dohe » रहीम दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित


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रहीम

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) जो कि रहीम के नाम से भी जाने जाते थे, अकबर के विश्वासपात्र बैरम खान के पुत्र थे और भारतवर्ष के महानतम कवियों में से एक थे। रहीम के दोहों में नीति की बातें बहुत ही सरल ढ़ंग से अभिव्यक्त हुई हैं। दोहे [ ] सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक। रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक।। (सूर्य शीत को भगा देता है, अंधकार का नाश कर देता है और सारे संसार को प्रकाश से भर देता है। पर सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू को दिन में दिखाई ही नहीं देता।) समय-लाभ सम लाभ नहिं, समय-चूक सम चूक। चतुरन-चित रहिमन लगी, समय-चूक ही हूक।। रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाड़त साथ। खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ।। रहिमन तीन प्रकार तें, हित अनहित पहिचान। पर-बस परे, परोस बस, परे मामला जान।। रन बन ब्याधि बिपत्ति में, रहिमन मरै न रोय। जो रक्षक जननी-जठर, सो हरि गये कि सोय।। यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय। बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय।। पावस देखि रहीम मन, कोकिल साधै मौन। अब दादुर बक्ता भये, हमको पूछत कौन।। रहिमन तहां न जाइये, जहां कपट को हेत। हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।। रहिमन कठिन चितान तैं, चिन्ता को चित चेत। चिता दहति निर्जीव को, चिन्ता जीव समेत।। रहिमन प्रीति सराहिये, मिलै होत रंग दून। ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।। जाकी जैसी बुद्धि है, वैसी कहै विचारि। ताको बुरा न मानिये, लेन कहां सू जाय।। अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।। सांचे ते तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम।। रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सनमान। घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान।। कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय। पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय।। छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत...

50+ Popular Rahim ke Dohe with Hindi Meaning

Rahim Ke Dohe with Meaning in Hindi अकबर के नव रत्नों में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना(1556 – 1627) मुस्लिम होने के बाद भी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। इनको तुर्की, अरबी और फारसी आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त था। इन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में विशेषकरअवधी,ब्रजभाषा और खड़ी बोली का प्रयोग किया है। अब्दुल रहीम खानेखाना अकबर के दरबार में एक कवि, सेनापति, दानवीर, कलाप्रेमी और एक कुशल विद्वान थे। रहीम के दोहों [Rahim ke Dohe] में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार इत्यादि की जुगलबंदी देखने को मिलती है। Rahiman dhaga prem ka doha भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि प्रेम का धागा बहुत कमजोर होता है। एक बार यदि वह टूट जाए तो फिर उसको जोड़ना मुश्किल होता है और यदि प्रेम का धागा जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है। 2. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि चंदन के पेड़ पर सांप के लिपटे रहने के बावजूद उसकी खुशबू पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ठीक उसी प्रकार से, सज्जन व्यक्तियों पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 3. वृक्ष कबहुं नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और नदी कभी अपना जल स्वयं नहीं संचित करती है। ठीक उसी प्रकार से, परोपकारी व्यक्ति इस धरती पर दूसरों का भला करने के लिए जन्म लेते हैं। 4. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि मोती की माला टूट जाने के बाद भी उसको दुबारा पिरो लिया जाता है क्योंकि वह सबको पसंद आती है। उसी प्रकार से यदि कोई...

Rahim Das ke Jivan Parichay

दोस्तों आप सबने रहीम दास का नाम अवश्य सुना होगा। (Rahim Das ke Jivan Parichay) जो एक कुशल सैनिक और साथ ही साथ यह एक आश्रयदाता थे। अर्थात वह लोगों को अपने यहां आश्रय प्रदान करते थे। क्या आप यह जानते हैं रहीम दास जी कौन थे? उनका जन्म कहां हुआ था? और साथ ही साथ उनकी माता का क्या नाम है? रहीम दास किसके नेतृत्व में पले – बढ़े है आदि जानकारी आपको इस आर्टीकल में दी जाएगी । बस आपसे विनम्र पूर्वक आग्रह करता हूं कि इसआर्टीकल कोआप ध्यानपूर्वक पढ़िए जिससे आपको कोई समस्या ना उत्पन्न हो। यदि आप आर्टीकल के किसी भी पार्ट को छोड़ देते हैं तब आपको समस्या होने लगेगी कीरहीम दास जी का जन्म कहां हुआ था? और उनकी माता का क्या नाम है ? इसलिए आपसे निवेदन है की आर्टीकलको लाइन टू लाइन पढ़िए जिससे आपको कोई समस्या ना हो। रहीम दास कौन थे? (Rahim Das Kon The | Who Was Rahim Das) 17 दिसंबर 1556 में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। सुल्ताना बेगम जमाल खान की छोटी बेटी थी। और रहीम दास की पत्नी का नाम महा बानो था ।वह एक सगुण भक्ति धारा के कवि थे। उनका धर्म इस्लाम था। उनकी मृत्यु 1 अक्टूबर 1627 में हुआ था। रहीम दास बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे। और अपने आप को पूरी तरह से ईश्वर के चरणों में समर्पित कर चुके थे। और साथ ही साथ मुगल सम्राट अकबर के कई अभियानों का सैनिक नेतृत्व भी कर चुके हैं ।और इनकी विशेषता यह है कि बेघर को आश्रय प्रदान करते थे। और जो दीन- दुखी व्यक्ति होते थे उनकी पूरी तरह मदद करते थे। रहीम दास के दोहे (Rahim Das Ke Dohe) वृक्ष कबहु नही फल भखै,नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने ,साधुन धरा शरीर।। अर्थात जिस प्रकार वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खा...

कबीरदास जी, रहीमदास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे

दोहों के अंदर समस्त जीवन जीने का संदेश छिपा होता है। यह जीवन को आगे बढ़ाने का एवं सफलता पाने का अचूक मंत्र होता है. हिंदी में अनेक कवियों ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को काफी सीख दी है।जिससे लोग सफलता के पथ पर भी अग्रसर हुए हैं. कई बार हम अपने अहं भाव की वजह से कई चीजों को निष्पक्ष रुप से नहीं देख पाते हैं जो हमारे इन महान कवियों एवं समाज सुधारकों ने देखा हैं. इस लेख में हिन्दी साहित्य के तीन महान कवि कबीरदास जी, रहीम दास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे से संबंधित व्याख्या दी गई है. कबीर दास जी के नीति के दोहे अर्थ समेत कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 1- प्रेम न बाड़ीऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजाजेहिरूचै, सीस देइ ले जाय।। दोहे का अर्थ: इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रेम खेत में नहीं पैदा होता है और न ही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे कोई राजा हो या फिर कोई साधारण आदमी सभी को प्यार आत्म बलिदान से ही मिलता है, क्योंकि त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता है। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं है। कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 2 – जिन ढूंढा तिनपाईयां, गहरे पानी पैठ। मैं बपुराबूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। दोहे का अर्थ: इस दोहे में कवि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ लेकर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पा पाते। Also Read: कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 3 – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलियाकोय। जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।। दोहे का अर्थ...

Rahim Ke Dohe » रहीम दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है Rahim Ke Dohe Arth Sahit | रहीम के दोहे अर्थ सहित :- रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। उनके बारे में ज्यादा जानने के लिए रहीम सांप्रदायिक सदभाव तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक थे। रहीम कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे। रहीम के दोहे आज के समय में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। आइये आनंद लेते हैं उनके कुछ शिक्षाप्रद ( Rahim Ke Dohe ) रहीम के दोहे का :- Rahim Ke Dohe : रहीम के दोहे अर्थ सहित अर्थ :- इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। 2. Aisi Baani Boliye: 2. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥ अर्थ :- अपने मन से अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दू...

50+ Popular Rahim ke Dohe with Hindi Meaning

Rahim Ke Dohe with Meaning in Hindi अकबर के नव रत्नों में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना(1556 – 1627) मुस्लिम होने के बाद भी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। इनको तुर्की, अरबी और फारसी आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त था। इन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में विशेषकरअवधी,ब्रजभाषा और खड़ी बोली का प्रयोग किया है। अब्दुल रहीम खानेखाना अकबर के दरबार में एक कवि, सेनापति, दानवीर, कलाप्रेमी और एक कुशल विद्वान थे। रहीम के दोहों [Rahim ke Dohe] में नीति, भक्ति, प्रेम और श्रृंगार इत्यादि की जुगलबंदी देखने को मिलती है। Rahiman dhaga prem ka doha भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि प्रेम का धागा बहुत कमजोर होता है। एक बार यदि वह टूट जाए तो फिर उसको जोड़ना मुश्किल होता है और यदि प्रेम का धागा जुड़ भी जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है। 2. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि चंदन के पेड़ पर सांप के लिपटे रहने के बावजूद उसकी खुशबू पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ठीक उसी प्रकार से, सज्जन व्यक्तियों पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 3. वृक्ष कबहुं नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और नदी कभी अपना जल स्वयं नहीं संचित करती है। ठीक उसी प्रकार से, परोपकारी व्यक्ति इस धरती पर दूसरों का भला करने के लिए जन्म लेते हैं। 4. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।। भावार्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि मोती की माला टूट जाने के बाद भी उसको दुबारा पिरो लिया जाता है क्योंकि वह सबको पसंद आती है। उसी प्रकार से यदि कोई...

रहीम

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) जो कि रहीम के नाम से भी जाने जाते थे, अकबर के विश्वासपात्र बैरम खान के पुत्र थे और भारतवर्ष के महानतम कवियों में से एक थे। रहीम के दोहों में नीति की बातें बहुत ही सरल ढ़ंग से अभिव्यक्त हुई हैं। दोहे [ ] सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक। रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक।। (सूर्य शीत को भगा देता है, अंधकार का नाश कर देता है और सारे संसार को प्रकाश से भर देता है। पर सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू को दिन में दिखाई ही नहीं देता।) समय-लाभ सम लाभ नहिं, समय-चूक सम चूक। चतुरन-चित रहिमन लगी, समय-चूक ही हूक।। रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाड़त साथ। खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ।। रहिमन तीन प्रकार तें, हित अनहित पहिचान। पर-बस परे, परोस बस, परे मामला जान।। रन बन ब्याधि बिपत्ति में, रहिमन मरै न रोय। जो रक्षक जननी-जठर, सो हरि गये कि सोय।। यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय। बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय।। पावस देखि रहीम मन, कोकिल साधै मौन। अब दादुर बक्ता भये, हमको पूछत कौन।। रहिमन तहां न जाइये, जहां कपट को हेत। हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।। रहिमन कठिन चितान तैं, चिन्ता को चित चेत। चिता दहति निर्जीव को, चिन्ता जीव समेत।। रहिमन प्रीति सराहिये, मिलै होत रंग दून। ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।। जाकी जैसी बुद्धि है, वैसी कहै विचारि। ताको बुरा न मानिये, लेन कहां सू जाय।। अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।। सांचे ते तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम।। रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सनमान। घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान।। कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय। पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय।। छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत...

कबीरदास जी, रहीमदास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे

दोहों के अंदर समस्त जीवन जीने का संदेश छिपा होता है। यह जीवन को आगे बढ़ाने का एवं सफलता पाने का अचूक मंत्र होता है. हिंदी में अनेक कवियों ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को काफी सीख दी है।जिससे लोग सफलता के पथ पर भी अग्रसर हुए हैं. कई बार हम अपने अहं भाव की वजह से कई चीजों को निष्पक्ष रुप से नहीं देख पाते हैं जो हमारे इन महान कवियों एवं समाज सुधारकों ने देखा हैं. इस लेख में हिन्दी साहित्य के तीन महान कवि कबीरदास जी, रहीम दास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहे से संबंधित व्याख्या दी गई है. कबीर दास जी के नीति के दोहे अर्थ समेत कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 1- प्रेम न बाड़ीऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजाजेहिरूचै, सीस देइ ले जाय।। दोहे का अर्थ: इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रेम खेत में नहीं पैदा होता है और न ही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे कोई राजा हो या फिर कोई साधारण आदमी सभी को प्यार आत्म बलिदान से ही मिलता है, क्योंकि त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता है। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं है। कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 2 – जिन ढूंढा तिनपाईयां, गहरे पानी पैठ। मैं बपुराबूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। दोहे का अर्थ: इस दोहे में कवि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ लेकर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पा पाते। Also Read: कबीर दास जी के नीति के दोहे नंबर 3 – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलियाकोय। जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।। दोहे का अर्थ...

Rahim Das ke Jivan Parichay

दोस्तों आप सबने रहीम दास का नाम अवश्य सुना होगा। (Rahim Das ke Jivan Parichay) जो एक कुशल सैनिक और साथ ही साथ यह एक आश्रयदाता थे। अर्थात वह लोगों को अपने यहां आश्रय प्रदान करते थे। क्या आप यह जानते हैं रहीम दास जी कौन थे? उनका जन्म कहां हुआ था? और साथ ही साथ उनकी माता का क्या नाम है? रहीम दास किसके नेतृत्व में पले – बढ़े है आदि जानकारी आपको इस आर्टीकल में दी जाएगी । बस आपसे विनम्र पूर्वक आग्रह करता हूं कि इसआर्टीकल कोआप ध्यानपूर्वक पढ़िए जिससे आपको कोई समस्या ना उत्पन्न हो। यदि आप आर्टीकल के किसी भी पार्ट को छोड़ देते हैं तब आपको समस्या होने लगेगी कीरहीम दास जी का जन्म कहां हुआ था? और उनकी माता का क्या नाम है ? इसलिए आपसे निवेदन है की आर्टीकलको लाइन टू लाइन पढ़िए जिससे आपको कोई समस्या ना हो। रहीम दास कौन थे? (Rahim Das Kon The | Who Was Rahim Das) 17 दिसंबर 1556 में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। सुल्ताना बेगम जमाल खान की छोटी बेटी थी। और रहीम दास की पत्नी का नाम महा बानो था ।वह एक सगुण भक्ति धारा के कवि थे। उनका धर्म इस्लाम था। उनकी मृत्यु 1 अक्टूबर 1627 में हुआ था। रहीम दास बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे। और अपने आप को पूरी तरह से ईश्वर के चरणों में समर्पित कर चुके थे। और साथ ही साथ मुगल सम्राट अकबर के कई अभियानों का सैनिक नेतृत्व भी कर चुके हैं ।और इनकी विशेषता यह है कि बेघर को आश्रय प्रदान करते थे। और जो दीन- दुखी व्यक्ति होते थे उनकी पूरी तरह मदद करते थे। रहीम दास के दोहे (Rahim Das Ke Dohe) वृक्ष कबहु नही फल भखै,नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने ,साधुन धरा शरीर।। अर्थात जिस प्रकार वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खा...

Rahim Ke Dohe » रहीम दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है Rahim Ke Dohe Arth Sahit | रहीम के दोहे अर्थ सहित :- रहीम मध्यकालीन सामंतवादी संस्कृति के कवि थे। रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न था। वे एक ही साथ सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, कवि एवं विद्वान थे। उनके बारे में ज्यादा जानने के लिए रहीम सांप्रदायिक सदभाव तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। वे भारतीय सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक थे। रहीम कलम और तलवार के धनी थे और मानव प्रेम के सूत्रधार थे। रहीम के दोहे आज के समय में भी बहुत प्रसिद्ध हैं। आइये आनंद लेते हैं उनके कुछ शिक्षाप्रद ( Rahim Ke Dohe ) रहीम के दोहे का :- Rahim Ke Dohe : रहीम के दोहे अर्थ सहित अर्थ :- इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। 2. Aisi Baani Boliye: 2. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥ अर्थ :- अपने मन से अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दू...