रिपोर्ताज की भाषा

  1. रामविलास शर्मा
  2. गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा
  3. रिपोर्ताज का अर्थ एवं परिभाषा
  4. हिन्दी रिपोर्ताज़ का इतिहास
  5. रिपोर्ताज किसे कहते हैं ?
  6. प्रेमचंद की परिचय


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रामविलास शर्मा

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 प्रकाशित कृतियाँ • 2.1 साहित्यिक आलोचना • 2.2 भाषा-समाज और भाषाविज्ञान • 2.3 इतिहास, समाज और संस्कृति एवं दर्शन • 2.4 कविता-नाटक-उपन्यास • 2.5 आत्मकथा-साक्षात्कार-पत्रसंवाद-सम्पादकीय • 2.6 आंग्ल कृतियाँ • 2.7 सम्पादित कृतियाँ • 2.8 अनुवाद • 3 रामविलास शर्मा पर केन्द्रित विशिष्ट साहित्य • 4 हिंदी जाति की अवधारणा • 5 डॉ॰ रामविलास शर्मा और भारत का इतिहास • 6 सम्मान • 7 शताब्दी वर्ष २०१२-१३ • 8 इन्हें भी देखें • 9 सन्दर्भ • 10 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] डॉ॰ रामविलास शर्मा के साहित्यिक जीवन का आरंभ १९३४ से होता है जब वह प्रकाशित कृतियाँ [ ] शर्मा का लेखन बहुआयामी है। मुख्य रूप से साहित्य के आलोचक होते हुए भी उन्होंने भाषाविज्ञान, इतिहास तथा समाज एवं संस्कृति के सन्दर्भों में सुविस्तीर्ण लेखन किया है। उनकी पूर्व प्रकाशित कुछ पुस्तकें संशोधित-परिवर्धित रूप में भिन्न नामों से प्रकाशित हुईं। साहित्यिक आलोचना की तीन पुस्तकों -- प्रगति और परम्परा (1949), संस्कृति और साहित्य (1949) तथा साहित्य: स्थायी मूल्य और मूल्यांकन (1968) की सामग्रियाँ बाद में अन्य संकलनों में संकलित कर ली गयीं साहित्यिक आलोचना [ ] • प्रेमचन्द -1941 • भारतेन्दु युग -1943 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा -1975) • निराला -1946 • प्रेमचन्द और उनका युग -1952 • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र -1953 (परिवर्द्धित संस्करण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ -1985) • प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ -1954 • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना -1955 • विराम चिह्न -1957 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण-1985) • आस्था और सौन्दर्य -1961 (संशोधित-परिवर्द्धित संस्...

गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा

Install - vidyarthi sanskrit dictionary app गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य || secondary genres of prose literature • BY:RF Temre • 1497 • 0 • Copy • Share हिन्दी गद्य साहित्य के लघु (गौण या प्रकीर्ण) विधाएँ निम्नलिखित हैं ― जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य, पत्र-साहित्य, साक्षात्कार (इंटरव्यू-साहित्य), गद्य काव्य, डायरी, लघु कथा जीवनी― जीवनी किसी व्यक्ति के जीवन का लिखित वर्णित वृतांत है। जीवनी में जन्म से लेकर मृत्यु तक की महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से जीवनी नायक का चित्रण किया जाता है। जीवनी लेखन पूर्वाग्रह से मुक्त तथस्ट भाव से लिखना आवश्यक है। जीवनी साहित्य की रचना किसी व्यक्ति अथवा महापुरुष को केंद्र में रखकर लिखी जाती है। जीवनी साहित्य में प्रमुखता एक व्यक्ति को मिलती है जिसके जीवन की मार्मिक और सारपूर्ण घटनाओं का अंकन नहीं चित्रण होता है। इस दृष्टि से यह इतिहास और उपन्यास के बीच स्थित होती है। इसमें इतिहास का घटना क्रम तथा उपन्यास की रोचकता होती है। जीवनी में सर्वज्ञता की अपेक्षा, संवेदना और निष्पक्षता अधिक आवश्यक है। जीवनी में चरितनायक की वीर पूजा न होकर उसकी कमियाँ और विशेषताएँ भी बतायी जानी चाहिए। विषय की दृष्टि से जीवनी के भेद निम्नलिखित हैं― 1. संत चरित्र 2. ऐतिहासिक चरित्र 3. राष्ट्रनेता 4. विदेशी चरित्र 5. साहित्यिक चरित्र हिन्दी साहित्य के प्रमुख जीवनी लेखक एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं― 1. अमृतराय- प्रेमचंद की जीवनी 'कलम के सिपाही' 2. विष्णु प्रभाकर- आवारा मसीहा 3. शांति जोशी- पंत की जीवनी 4. सुशीला नायक- बाबू के कारावास की कहानी 5. गोपाल शर्मा- स...

रिपोर्ताज का अर्थ एवं परिभाषा

प्रश्न 11 . हिन्दी के रिपोर्ताज साहित्य के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए। अथवा '' रिपोर्ताज का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके तत्त्वों पर प्रकाश डालिए। अथवा '' रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं? हिन्दी के रिपोर्ताज साहित्य पर एक सारगर्भित निबन्ध लिखिए। उत्तर- रिपोर्ताज का अर्थ एवं परिभाषा हिन्दी में ' रिपोर्ताज' को ' सूचनिका' और ' रूपनिका' भी कहा जाता है, परन्तु प्रचलित शब्द ' रिपोर्ताज' ही है। कुछ लोग इसका उच्चारण "रिपोर्टाज' भी करते हैं। मूलतः ' रिपोर्ताज' शब्द फ्रेंच भाषा का है, लेकिन हिन्दी में यह अंग्रेजी शब्द ' रिपोर्ट के माध्यम से आया है। डॉ. भागीर मिश्र रिपोर्ताज को परिभाषित करते हुए लिखते हैं , " किसी घटना या दृश्य का अत्यन्त विवरणपूर्ण सूक्ष्म, रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आँखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठे।" कन्हैयालाल मिश्र ' प्रभाकर' के अनुसार, " रिपोर्ताज घटना का हो, दृश्य का हो या मेले का, उत्सव का हो, उसमें ज्ञान और आनन्द का संगम होना चाहिए।" डॉ. ओमप्रकाश सिंहल के अनुसार , " जिस रचना में वर्ण्य-विषय का आँखों देखा तथा कानों सना ऐसा विवरण प्रस्तत किया जाए कि पाठक के हृदय के तार झंकृत हो उठे और वह उसे भूल न सके, उसे रिपोर्ताज कहते हैं।" डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार , " किसी घटना या घटनाओं का ऐसा वर्णन कि वस्तुगत सत्य पाठक के हृदय को प्रभावित कर सके, रिपोर्ताज कहलाएगा।" रिपोर्ताज के तत्त्व रिपोर्ताज के प्रमुख तत्त्व निम्न प्रकार हैं (1) वस्तुमय तथ्य- रिपोर्ताज में कल्पना का स्थान नहीं होता। उसमें वस्तुस्थिति का , आँखों देखी घटना अथवा दृश्य का तथ्यात्मक चित्रण होता है। (2) कथात्मकता- उसमें वर्णन के साथ कथा तत्त्व का भी समा...

हिन्दी रिपोर्ताज़ का इतिहास

‘रिपोर्ताज’ का अर्थ एवं उद्देश्य: जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज पत्रकारिता के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव प्रफांसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को हम गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है। आरंभिक युग [ ] हिंदी खड़ी बोली गद्य के आरंभ के साथ ही अनेक नई विधाओं का चलन हुआ। इन विधाओं में कुछ तो सायास थीं और कुछ के गुण अनायास ही कुछ गद्यकारों के लेखन में आ गए थे। वास्तविक रूप में तो रिपोर्ताज का जन्म हिंदी में बहुत बाद में हुआ लेकिन भारतेंदुयुगीन साहित्य में इसकी कुछ विशेषताओं को देखा जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, भारतेंदु ने स्वयं जनवरी, 1877 की ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ में दिल्ली दरबार का वर्णन किया है, जिसमें रिपोर्ताज की झलक देखी जा सकती है। रिपोर्ताज लेखन का प्रथम सायास प्रयास शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखित ‘लक्ष्मीपुरा’ को मान जा सकता है। यह सन् 1938 में ‘रूपाभ’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके कुछ समय बाद ही ‘हंस’ पत्रिका में उनका दूसरा रिपोर्ताज ‘मौत के खिलाफ ज़िन्दगी की लड़ाई’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य में यह प्रगतिशील साहित्य के आरंभ का काल भी था। कई प्रगतिशील लेखकों ने इस विधा को समृद्ध किया। शिवदान सिंह चौहान के अतिरिक्त अमृतराय और प्रकाशचंद गुप्त ने बड़े जीवंत रिपोर्ताजों की रचना की। रांगेय राघव रिपोर्ताज की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ लेखक कहे जा सकते हैं। सन् 1946 में प्रक...

रिपोर्ताज किसे कहते हैं ?

यह गद्य में लेखन की एक विशिष्ट शैली है। रिपोर्ताज से आशय इस तरह की रचनाओं से है जो पाठकों को किसी स्थान, समारोह, प्रतियोगिता, आयोजन अथवा किसी विशेष अवसर का सजीव अनुभव कराती हैं। गद्य में पद्य की सी तरलता और प्रवाह रिपोर्ताज की विशेषता है। अच्छा रिपोर्ताज वह है जो पाठक को विषय की जानकारी भी दे और उसे पढ़ने का आनन्द भी प्रदान करे। रिपोर्ताज की एक बड़ी विशेषता इसकी जीवन्तता होती है। गतिमान रिपोर्ताज पाठक को बाॅंध लेता है। पाठक उसके प्रवाह में बंध कर खुद ब खुद विषय से जुड़ जाता है। इसलिए रिपोर्ताज लेखन में इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसमें दोहराव न हो और जानकारियों का सिलसिला बना रहे। रिपोर्ताज लेखक को विषय-वस्तु की बारीक जानकारी होनी चाहिए। विषय से जुड़ी छोटी-छोटी जानकारियाॅं ही रिपोर्ताज को रोचक बनाती है। रिपोर्ताजreportage की भाषा शैली में कथा-कहानी जैसा प्रवाह और सरलता होनी चाहिए। रिपोर्ताज मूलतः फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जो अंग्रेजी के रिपोर्ट शब्द से विकसित हुआ है। रिपोर्ट का अर्थ होता है किसी घटना का यथातथ्य वर्णन। रिपोर्ताज इसी वर्णन का कलात्मक तथा साहित्यिक रूप है। रिपोर्ताज घटना प्रधान होते हुए भी कथा तत्व से परिपूर्ण होता है। एक तरह से रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार और साहित्यकार, दोनों की भूमिकाएं निभानी होती हैं। रिपोर्ताज का अर्थरिपोर्ताज मूलत: फ्रेंच (फ्रांसीसी) भाषा का शब्द है। इसका अंग्रेजी पर्याय रिपोर्ट माना जाता है। रिपोर्ताज का अभिप्राय किसी घटना, खबर, आंखो देखा हाल का यथा तथ्य वर्णन है जिसमें संपूर्ण विवरण दृश्यमान हो जाता है। जबकि वास्तविक घटना का यथातथ्य चित्र उपस्थित करना रिपोर्ट कहलाता है। हिंदुस्तानी में इसे रपट कहते हैं। इसका सीधा संबंध समाचार ...

प्रेमचंद की परिचय

जदीद उर्दू फ़िक्शन का बादशाह “उत्कृष्ट अफ़साना वो होता है जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक तथ्य पर रखी जाये, बुरा व्यक्ति बिल्कुल ही बुरा नहीं होता, उसमें कहीं फ़रिश्ता ज़रूर छुपा होता है। उस पोशीदा और ख़्वाबीदा फ़रिश्ते को उभारना और उसका सामने लाना एक कामयाब अफ़साना निगार का शेवा है।” मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद उर्दू और हिन्दी दोनों ज़बानों के एक बड़े अफ़साना निगार और उससे भी बड़े नॉवेल निगार समझे जाते हैं। हिन्दी वाले उन्हें “उपनियास सम्राट” यानी नॉवेल निगारी का बादशाह कहते हैं। अपने लगभग 35 वर्ष के साहित्यिक जीवन में उन्होंने जो कुछ लिखा उस पर एक बुलंद राष्ट्रीय मिशन की मुहर लगी हुई है। उनकी रचनाओं में देशभक्ति का जो तीव्र भावना नज़र आती है उसकी उर्दू अफ़साना निगारी में कोई मिसाल नहीं मिलती। वो स्वतंत्रता आंदोलन के मतवाले थे यहां तक कि उन्होंने महात्मा गांधी के “असहयोग आंदोलन” पर लब्बैक कहते हुए अपनी 20 साल की अच्छी भली नौकरी से, जो उन्हें लंबी ग़रीबी और कड़ी मशक्कत के बाद हासिल हुई थी, इस्तीफ़ा दे दिया था। उनके लेखन में बीसवीं सदी के आरंभिक 30-35 वर्षों की सियासी और सामाजिक ज़िंदगी की जीती-जागती तस्वीरें मिलती हैं, उन्होंने अपने पात्र आम ज़िंदगी से एकत्र किए लेकिन ये आम पात्र प्रेमचंद के हाथों में आकर ख़ास हो जाते हैं। वो अपने पात्रों के अन्तर में झाँकते हैं, उनमें पोशीदा या छुपे हुए अच्छे-बुरे का अनुभव करते हैं, उनके अंदर जारी द्वंद्व को महसूस करते हैं और फिर उन पात्रों को इस तरह पेश करते हैं कि वो पात्र पाठक को जाने-पहचाने मालूम होने लगते हैं। नारी की महानता, उसके नारीत्व के आयाम और उसके अधिकारों की पासदारी का जैसा एहसास प्रेमचंद के यहां मिलता है वैसा और कहीं नहीं मिलता। प्रेमचंद एक आदर्शवा...