संगतकार कविता की व्याख्या

  1. संगतकार/मंगलेश डबराल की कविता संगतकार/Sangatkar poem in Hindi/Manglesh Dabraal poem Sangatkaar class 10/Sangatkaar sarlarth
  2. भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में संगतकार का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए। from Hindi मंगलेश डबराल
  3. Sangatkar Class 10 MCQ : संगतकार MCQ
  4. संगतकार (पठित काव्यांश)
  5. Saroj Smriti Poem Summary Class 12
  6. आत्मकथ्य Class 10 Summary, Explanation, Question Answers
  7. सरोज स्मृति


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संगतकार/मंगलेश डबराल की कविता संगतकार/Sangatkar poem in Hindi/Manglesh Dabraal poem Sangatkaar class 10/Sangatkaar sarlarth

: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक " क्षितिज भाग- 2" में संकलित कविता" संगतकार" से लिया गया है। इसके रचयिता“मंगलेश डबराल जी” हैं। इस कविता में उन्होंने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्व का प्रतिपादन किया है। यह कविता मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर विचार करती है। भावार्थ : जब भी कहीं संगीत का आयोजन होता है तो मुख्य गायक के साथ संगत करने वाला अक्सर देखा जाता है। ज्यादातर लोग संगतकार पर ध्यान नहीं देते हैं और वह पृष्ठभूमि का हिस्सा मात्र बनकर रह जाता है। वह हमारे लिए एक गुमनाम चेहरा हो सकता है। हम उसके बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा सकते हैं। लेकिन मुख्य गायक की प्रसिद्धि के आलोक में हममे से बहुत कम ही लोग उस अनजाने संगतकार की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार कर पाते हैं। मुख्य गायक की गरज में वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीने काल से गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लाँघकर चला जाता है भटकता हुअ एक अनहद में तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन जब वह नौसिखिया था। भावार्थ : सदियों से यह परंपरा रही है कि मुख्य गायक के सुर में संगतकार अपना सुर मिलाता आया है। मुख्य गायक की भारी आवाज के पीछे संगतकार की आवाज दब सी जाती है। लेकिन संगतकार हर क्षण अपनी भूमिका को पूरी इमानदारी से निभाता है। जब गायक अंतरे की जटिल तानों और आलापों में खो जाता है और सुर से कहीं भटक जाता है तो ऐसे समय में संगतकार स्थायी को सँभाले रहता है। उसकी भूमिका इसी तरह की होती है जैसे कि वह आगे चलने वाले पथिक का छूटा हुआ सामान बटोरकर कर अपने ...

भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में संगतकार का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए। from Hindi मंगलेश डबराल

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये: मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी वह मुख्य गायक का छोटा भाई है या उसका शिष्य या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार मुख्य गायक की गरज़ में वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लाँघकर चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन जब वह नौसिखिया था । प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 में संकलित कविता ‘संगतकार’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री मंगलेश डबराल हैं। कवि ने मुख्य गायक के साथ गाने वाले संगतकार की विशिष्टता का वर्णन करते हुए उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया है। व्याख्या- कवि कहता है कि मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी-भरकम गाने के स्वर के साथ संगतकार की काँपती हुई-सी सुंदर और कमजोर आवाज मिल गई थी। शायद वह संगतकार गायक का छोटा भाई है या उसका कोई चेला है। हो सकता है कि वह कहीं दूर से पैदल चल कर संगीत की शिक्षा प्राप्त करने वाला गायक का अभावग्रस्त रिश्तेदार ही हो। वह संगतकार मुख्य गायक की ऊंची गंभीर आवाज में अपनी गूंज युगों से ही मिलाता आया है। अभावग्रस्त, जरूरतमंद और कमजोर सदा से ही निपुण और संपन्न की ऊँची आवाज में अपनी आवाज मिलाता ही आया है। मुख्य गायक जब स्वर को लंबा खींच कर अंतरे की जटिल तानों के जंगल में खो जाता है; संगीत के रस में डूब जाता है या संगीत के सुरों की अपनी सरगम की सीमा को पार कर ईश्वरीय आनंद की प्राप्ति में डूब जाता है और उसे अनहद का...

Sangatkar Class 10 MCQ : संगतकार MCQ

Sangatkar Class 10 MCQ , Sangatkar Class 10 MCQ Hindi Kshitij 2 chapter 9 , संगतकार कक्षा 10 MCQ , Sangatkar Class 10 MCQ संगतकार MCQ Note – • “ संगतकार” कविता का भावार्थ पढ़ने के लिए Link में Click करें – • “ संगतकार” कविता के प्रश्न उत्तर पढ़ने के लिए Link में Click करें – Next Page • “संगतकार” कविता के भावार्थ को हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click करें। YouTube channel link – ( Padhai Ki Batein / पढाई की बातें) Sangatkar Class 10 MCQ Questions , • संगतकार कविता के कवि कौन हैं – मंगलेश डबराल जी • संगतकार कौन होता हैं – जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। • कवि के अनुसार , मुख्य गायक की आवाज कैसी हैं – भारी व गंभीर • मुख्य गायक की आवाज के साथ संगतकार की आवाज कैसी सुनाई देती हैं – सुंदर , मधुर मगर हल्की – हल्की • मुख्य गायक की गरजदार आवाज में अपनी गूँज मिलाने का काम किसका है – संगतकार • किसके गायन को सफल और प्रभावी बनाने में उसके संगतकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है – मुख्य गायक के • कवि के अनुसार , संगतकार कौन हो सकता हैं – मुख्य गायक का छोटा भाई या शिष्य या कोई दूर का रिश्तेदार • संगतकार ने कब से मुख्य गायक के साथ गाना शुरू किया – जब से मुख्य गायक ने गाना शुरू किया था। • संगतकार , मुख्य गायक का साथ क्यों देता है – उसकी गायकी को प्रभावशाली बनाने के लिए • ऊंचे स्वर में गाये गये सरगम को क्या कहते हैं – तारसप्तक • संगतकार हमेशा कौन से सुर को पकड़े रहता हैं – मुख्य सुर को • मुख्य गायक को ढाँढस बँधाने का काम कौन करता है – संगतकार • मुख्य गायक के पीछे – पीछे मुख्य स्वरों को कौन दोहराता है – संगतकार • “जटिल तानों ...

संगतकार (पठित काव्यांश)

(क) जब गायक गीत गाते हुए सुरों की जटिल तानों और भाव-विभोर होकर सुरों की गहराइयों में खो जाता है तथा सरगम को लाँघता हुआ उसका ऊँचा स्वर दिव्य आनंद की अनुभूति करने लगता है। तब संगतकार स्थायी को सँभालते हुए श्रोताओं को संगीत से जोड़ने का काम करता है और मुख्य गायक को तब यह याद आता है कि वह भी एक समय नौसिखिया था और इतना महान न था। (क) उपर्युक्त पंक्तियों में उस प्राचीन परंपरा की ओर संकेत किया गया है, जिसमें मुख्य गायक ऊँचे स्वर में गाता है तो उसका भाई, रिश्तेदार या शिष्य उसके सुर में सुर मिलाकर उसे सहारा देते हैं। साथ रहकर और साथ निभाकर वह भी उस कला को सीखना चाहता है। वह मुख्य गायक की गरजती हुई आवाज़ में अपनी गूंज मिलाकर उसे सहारा देता है।

Saroj Smriti Poem Summary Class 12

1. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय 2. सरोज स्मृति कविता का सारांश 3. सरोज स्मृति कविता 4. सरोज स्मृति कविता की व्याख्या 5. सरोज स्मृति प्रश्न अभ्यास 6. कठिन शब्द और उनके अर्थ 7. Class 12 Hindi Antra All Chapter सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जीवन परिचय- Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay वसंत का महीना जैसे हम सब पसंद करते हैं, ठीक उसी प्रकार हम कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को भी पसंद करते हैं। कवि निराला का जन्म सन 1896 को कोलकाता में हुआ था और वह दिन बसंत पंचमी का दिन था। छायावादी कवि निराला को छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। कवि निराला केवल एक कवि ही नहीं थे बल्कि इन्होंने कहानी, निबंध एवं उपन्यास भी लिखा था। कोलकाता में ही बांग्ला भाषा से ही कवि निराला की आरंभिक शिक्षा की शुरुआत हुई थी एवं हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के उपरांत वे लखनऊ चले गए। निराला का विवाह पंद्रह वर्ष के उम्र में हो चुका था।‌ उनकी पत्नी मनोहरा देवी काफी शिक्षित थी एवं पत्नी के कहने पर ही कवि निराला ने हिंदी सीखना आरंभ किया था। सन 1920 से कवि निराला ने अपना लेखन कार्य आरंभ किया और लगातार लिखते गए और उनकी सबसे अच्छी एवं प्रसिद्ध रचना थी ‘सरोज स्मृति’ जो उन्होंने अपनी बेटी सरोज की याद में लिखी थी। कवि निराला का अंतिम क्षण प्रयागराज में गुजरा था। 15 अक्टूबर 1961 को निराला की मृत्यु हो गई लेकिन हिंदी साहित्य जगत में आज भी वह अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवित है। सरोज स्मृति कविता का सारांश- Saroj Smriti Poem Summary सरोज स्मृति कविता एक शोक कथा है। यह कविता कवि निराला ने अपनी इकलौती पुत्री सरोज की याद में लिखी थी। इस कविता में कवि निराला का दर्द कविता के छंदों के म...

आत्मकथ्य Class 10 Summary, Explanation, Question Answers

Atmakatha Summary, Explanation Notes, Question Answers आत्मकथ्य पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर Aatmakatha Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter 4 and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson. इस लेख में हम हिंदी कक्षा 10 अ " क्षितिज भाग 2 " के पाठ - 4 " आत्मकथ्य " के पाठ प्रवेश , पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे - • • • • • कवि परिचय कवि - जय शंकर प्रसाद आत्मकथ्य पाठ प्रवेश प्रेमचंद के संपादन ( एडिटिंग ) में हंस ( पत्रिका ) में एक आत्मकथा नाम से एक विशेष भाग निकलना तय हुआ था। उसी भाग के अंतर्गत जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे निवेदन किया कि वे भी हंस ( पत्रिका ) में अपनी आत्मकथा लिखें। परन्तु जयशंकर प्रसाद जी अपने मित्रों के इस अनुरोध से सहमत नहीं थे। क्योंकि कवि अपने धोखेबाज मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते थे और साथ ही साथ वे अपने निजी पलों को भी दुनिया के सामने नहीं बताना चाहते थे। कवि कि इसी असहमति के तर्क से पैदा हुई कविता है - आत्मकथ्य। यह कविता पहली बार 1932 में हंस के आत्मकथा के विशेष भाग में प्रकाशित की गई थी। छायावादी शैली में लिखी गई इस कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं आत्मकथा लेखन के विषय में अपनी मनोभावनाएँ व्यक्त की है। छायावादी शैली की बारीकी को ध्यान में रख कर ही अपन...

सरोज स्मृति

सरोज स्मृति ’सरोज स्मृति’ हिंदी में अपने ढंग का एकमात्र शोक काव्य है। कवि निराला द्वारा अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी इस कविता में करुणा भाव की प्रधानता है। विराग भाव के बीच नीति, शृंगार और कभी-कभी व्यंग्य और हास्यमूलक प्रसंगों को पिरोना इसकी अनोखी विशिष्टता है। यह अपने ढंग की अकेली कविता है जिसमें निराला का अपना जीवन भी आ गया है। ’सरोज स्मृति’ कवि ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज के बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं को बङे प्रभावशाली ढंग से अंकित किया है। इसमें कवि ने सरोज की बाल्यावस्था, एवं तरुणाई के बङे ही मार्मिक और पवित्र चित्र अंकित किए हैं। इस कविता में एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके संबंध, पुत्री के प्रति बहुत कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध भी प्रकट हुआ है। इस कविता के माध्यम से निराला का जीवन-संघर्ष भी प्रकट हुआ है। Net Jrf Hindi Pdf Notes वे कहते हैं – ’दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।’ इन पंक्तियों में कवि की वेदना व जीवन संघर्ष साफ झलकता है। देखा विवाह आमूल नवल, तुझ पर शुभ पङा कलश का जल। देखती मुझे तू हँसी मंद, होठों में बिजली फँसी स्पंद उर में भर झूली छबि सुंदर प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर तू खुली एक-उच्छ्वास-संग, विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग नत नयनों से आलोक उतर काँपा अधरों पर थर-थर-थर। देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति मेरे वसंत की प्रथम गीति – शृंगार, रहा जो निराकार, रह कविता में उच्छ्वसित-धार गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग- भरता प्राणों में राग-रंग, रति-रूप प्राप्त कर रहा वही, आकाश बदल कर बना माही। हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन, कोई थे नहीं, न आमंत्रण था भेजा गया, विवाह-राग भर रहा न घर निशि-दिवस जाग, प्रिय मौन एक संगीत भरा नव जीवन के स्वर पर उतरा। म...