साहित्य और कला रचना है

  1. हिन्दी साहित्य की विधाएँ, गद्य की विधाएँ : विधा
  2. आधुनिक चिंतन और साहित्य/मार्क्सवाद
  3. कला
  4. हिंदी साहित्य के लेखक, भारत के बेहतरीन लेखक और उनकी रचनाएँ
  5. भोलाराम का जीव: हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना
  6. अलंकार (साहित्य)
  7. कला और साहित्य से क्या अभिप्राय है? » Kala Aur Sahitya Se Kya Abhipray Hai


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हिन्दी साहित्य की विधाएँ, गद्य की विधाएँ : विधा

विधा (Vidha) विधा क्या है? विधा का अर्थ है, किस्म, वर्ग या श्रेणी, अर्थात विविध प्रकार की रचनाओं को उनके गुण, धर्मों के आधार पर अलग करना। हिन्दी साहित्य में विधा शब्द का प्रयोग, एक वर्गकारक के रूप में किया जाता है। विधाएँ अस्पष्ट श्रेणियाँ हैं, इनकी कोई निश्चित सीमा रेखा नहीं होती; इनकी पहचान समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर निर्मित की जाती है। विधाएँ कई तरह की होती हैं ; उदाहरण के लिए- साहित्य की विधाएँ, गद्य की विधाएं, विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि हिन्दी साहित्य की विधाएँ (Hindi Sahitya ki vidhaye) विधाओं में सृजनात्मक तथा विचारात्मक साहित्य दीर्घकाल से निरंतर विद्वानों द्वारा लिखा जा रहा है। प्रमुख हिन्दी की साहित्यिक विधाएँ इस प्रकार हैं- • • • • • • • • • • • • • • कुछ अन्य हिन्दी साहित्यिक विधाएँ: • लघुकथा, • प्रहसन (कामेडी), • विज्ञान कथा, • व्यंग्य, • पुस्तक-समीक्षा या पर्यालोचन, • साक्षात्कार। ललित कला की विधाएँ: • चित्रकला (पेंटिंग), • फोटोग्राफी। कम्प्यूटर, चलचित्र एवं खेल की विधाएँ: • क्रिया (ऐक्शन), • सिमुलेशन, • वॅस्टर्न। • रणनीति (स्ट्रेटेजी), • साहसिक यात्रा (ऐडवेंचर), • क्रत्रिम बुद्धिमता। Hindi Gadya Sahitya Ki Vidhaye हिन्दी साहित्य की प्रमुख गद्य विधाएं निम्नलिखित हैं: • नाटक, • उपन्यास, • निबंध, • कहानी, • संस्मरण, • आत्मकथा, • जीवनी, • समीक्षा, • इंटरव्यूव साहित्य (साक्षात्कार), • यात्रा-साहित्य, • डायरी-साहित्य, • रेखाचित्र, • एकांकी, • पत्र-साहित्य और • काव्य आदि। 1. नाटक गोपाल चन्द्र गिरधरदास” हैं। हिन्दी साहित्य की इस गद्य विधा की कुछ रचनाएं इस प्रकार हैं- • उपेन्द्रनाथ अश्क (अंजो दीदी), • विष्णु प्रभाकर (डॉक्टर...

आधुनिक चिंतन और साहित्य/मार्क्सवाद

सामग्री • १ आधार और अधिरचना • २ साहित्य का वर्ग आधार • २.१ उत्पादन • २.२ उत्पादन-संबंध • २.३ वर्ग निर्माण • २.४ संघर्ष • ३ साहित्य की सापेक्ष स्वायत्तता • ४ अंतर्वस्तु और रूप का संबंध • ५ साहित्य और यथार्थ • ६ मार्क्सवाद और हिंदी साहित्य • ७ संदर्भ आधार और अधिरचना [ ] मार्क्सवादी चिंतन में उत्पादन के साधन तथा उसके औजारों को 'आधार' कहा जाता है। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक संस्थाओं के ढाँचे को मार्क्स 'अधिरचना' मानते हैं। उनके अनुसार अधिरचना का कार्य वर्ग-संघर्ष को नियंत्रित करना है। 'साहित्य और कला' में अधिरचना पर विचार करते हुए कहा गया है कि- "साहित्य और कला समेत सारी विचारधाराऐं सिर्फ़ अधिरचना होती हैं और इस तरह विकास की प्रक्रिया में गौण तत्त्व होती हैं।" साहित्य का वर्ग आधार [ ] मार्क्सवाद साहित्य चिंतन के अनुसार साहित्य का वर्ग आधार उत्पादन संबंधों पर आधारित है। उत्पादन [ ] उत्पादन मनुष्य की सबसे मूलभूत तथा लाक्षणिक क्रिया है। यह एक सामाजिक प्रक्रिया है। उदाहरणस्वरूप- शिकार करके भोजन इकट्ठा करने की प्रक्रिया से उत्पादन के उपकरणों का निर्माण किया जाता है। उत्पादन मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाता है। यही मनुष्य की प्रगति का द्योतक भी है। मार्क्सवाद के अनुसार-मनुष्य का इतिहास उत्पादन का इतिहास है। उत्पादन की प्रणाली चलाने के लिए ही मनुष्य सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था का निर्माण करता है। यही व्यवस्था विचारधारा को जन्म देती है। उत्पादन-संबंध [ ] उत्पादन की क्रिया से जुड़े संबंधों को 'उत्पादन-संबंध' कहते हैं। वर्ग इन्हीं उत्पादन-संबंधों से बनते हैं। वर्ग निर्माण [ ] चूँकि मनुष्य का इतिहास उत्पादन का इतिहास है अतः इसी प्रक्रिया में वर्ग का निर्माण होता है। वर्ग-निर्माण तब होते हैं...

कला

कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है। अनुक्रम • 1 परिभाषा • 2 इतिहास • 3 वर्गीकरण • 4 कला का महत्त्व • 5 भारतीय मनीषियों के अनुसार कलाओं की सूची • 5.1 कामसूत्र के अनुसार • 5.2 शुक्रनीति के अनुसार • 5.3 अन्य • 6 सन्दर्भ • 7 इन्हें भी देखें • 8 बाहरी कड़ियाँ परिभाषा [ ] अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला है -- ( साकेत, पंचम सर्ग) दूसरे शब्दों में -: मन के अंतःकरण की सुन्दर प्रस्तुति ही कला है। इतिहास [ ] कला शब्द का प्रयोग शायद सबसे पहले " वर्गीकरण [ ] कलाओं के वर्गीकरण में मतैक्य होना सम्भव नहीं है। वर्तमान समय में कला को पाश्चात्य जगत में कला के दो भेद किये गये हैं- उपयोगी कलाएँ (Practice Arts) तथा • • • • • • • आधुनिक काल में इनमें उपरोक्त कलाओं को निम्नलिखित प्रकार से भी श्रेणीकृत कर सकते हैं- • • • • मिडिया कला - फोटोग्राफी, सिनेमेटोग्राफी, विज्ञापन • कुछ कलाओं में दृश्य और निष्पादन दोनों के तत्त्व मिश्रित होते हैं, जैसे फिल्म। कला का महत्त्व [ ] जीवन, ऊर्जा का साहित्‍य संगीत कला वि‍हीनः साक्षात् पशुः पुच्‍छ विषाणहीनः ॥ कला में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि वह लोगों को संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठाकर उसे ऐसे ऊँचे स्‍थान पर पहुँचा दे जहाँ मनुष्‍य केवल मनुष्‍य रह जाता है। कला व्‍यक्ति के मन में बनी स्‍वा...

हिंदी साहित्य के लेखक, भारत के बेहतरीन लेखक और उनकी रचनाएँ

हिंदी साहित्य काव्यांश तथा गद्यांशओं का सोने का पिटारा है । जैसे आभूषण के बिना स्त्री अधूरी होती है ठीक उसी प्रकार हिंदी साहित्य के बिना हिंदी भाषा अधूरी है। हिंदी साहित्य को सुनहरा बनाने वाले हैं हिंदी साहित्य के लेखक। हिंदी साहित्य के लेखक ने गद्यांशओ को इतना रुचिकर और आकर्षक लिख दिया है की हिंदी साहित्य को पढ़ना सभी को अच्छा लगने लगा है। हिंदी साहित्य आज से नहीं चला रहा है कहा जाता है कि आदिमानव के द्वारा पहला साहित्य प्राप्त हुआ था। ऐसा लगता है कि हिंदी साहित्य के लेखक द्वारा शब्दों को हिंदी साहित्य में मानों सुनहरे अक्षरों से लिखा हो,तो इसी के साथ आइए जानते हैं हिंदी साहित्य के लेखकों के बारे में। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • हिन्दी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का आरंभ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट् हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। विदेशी मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:- • भक्ति काल (1375-1700) • रीति काल (1700-1900) • आधुनिक काल (1850 ईस्वी के बाद) • भक्ति काल (1375 – 1500) भक्ति काल (1375-1700) हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1500 वि0 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत काल है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं – • निर्गुण भक्तिधारा • सगुण भक्तिधारा निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है, संत काव्य (जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में जाना जाता है, इस शाखा ...

भोलाराम का जीव: हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना

भारत की अग्रणी हिंदी महिला वेबसाइट Femina.in/hindi को सब्स्क्राइब करें. फ़ेमिना भारतीय महिलाओं के मन को समझने का काम कर रही है और इन्हीं महिलाओं के साथ-साथ बदलती रही है, ताकि वे पूरी दुनिया को ख़ुद जान सकें, समझ सकें. और यहां यह मौक़ा है आपके लिए कि आप सितारों से लेकर फ़ैशन तक, सौंदर्य से लेकर सेहत तक और लाइफ़स्टाइल से लेकर रिश्तों तक सभी के बारे में ताज़ातरीन जानकारियां सीधे अपने इनबॉक्स में पा सकें. इसके अलावा आप पाएंगे विशेषज्ञों की सलाह, सर्वे, प्रतियोगिताएं, इन्टरैक्टिव आर्टिकल्स और भी बहुत कुछ! Image:Shutterstock ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे पर ऐसा कभी नहीं हुआ था सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे ग़लती पकड़ में ही नहीं आ रही थी आख़िर उन्होंने खीझ कर रजिस्टर इतने ज़ोर से बंद किया कि मक्खी चपेट में आ गई उसे निकालते हुए वे बोले, महाराज, रिकार्ड सब ठीक है भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा धर्मराज ने पूछा, और वह दूत कहाँ है? महाराज, वह भी लापता है इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बदहवास वहाँ आया उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे, अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है? यमदूत हाथ जोड़ कर बोला, दयानिधान, मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम का...

अलंकार (साहित्य)

अलंकार या फेनु सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics) संवेदनात्म-भावनात्मक गुण-धर्म आरू मूल्यऽ के अध्ययन छेकै. सौन्दर्यशास्त्र वू शास्त्र छेकै जेकरा मं॑ कलात्मक कृति, रचना आदि सं॑ अभिव्यक्त होय वाला अथवा ओकरा सीनी मं॑ निहित रहै वाला सौंदर्य केरऽ तात्विक, दार्शनिक आरू मार्मिक विवेचन होय छै. कोनो सुंदर चीजो क देखी क हमरा मोन म जे आनन्ददायिनी अनुभूति होय छै ओकरो स्वभाव आरू स्वरूप केरो विवेचन आरू जीवन केरो बहुत्ते अनुभूति सिनी के साथ ओकरो समन्वय स्थापित करना एकरो मुख्य उद्देश्य होय छै। पश्चिमी विचार-जगत में एक दार्शनिक गतिविधि के तौर पर सौंदर्यशास्त्र की पृथक संकल्पना अट्ठारहवीं सदी में उभरी जब कला-कृतियों का अनुशीलन हस्त-शिल्प से अलग करके किया जाने लगा। इसका नतीजा सिद्धांतकारों द्वारा उन्नीसवीं सदी के बारे में कहा जा सकता है कि वह सौंदर्यशास्त्र की शताब्दी थी। सौंदर्यशास्त्रीय चिंतन की जर्मन परम्परा बीसवीं सदी में भी जारी रही। घटनाक्रियाशास्त्र, व्याख्याशास्त्र और बीसवीं सदी के मध्य तक सौंदर्यशास्त्र की उपयोगिता पर सवाल उठने लगे। सदी की शुरुआत में दिये गये अपने कुछ व्याख्यानों में एडवर्ड बुलो यह प्रश्न पूछ चुके थे कि कहीं कला और सौंदर्य की परिभाषाएँ कलाकार की सृजन- क्षमता का क्षय तो नहीं कर रही हैं। ये व्याख्यान 1957 में छपे और साठ के दशक में अमेरिकी कलाकार बारनेट न्यूमैन ने एलान कर दिया कि सौंदर्यशास्त्र का उपयोग कला के लिए वही है जो पक्षीशास्त्र का पक्षियों के लिए है। अर्थात् सौंदर्यशास्त्र से अनभिज्ञ कलाकार ही अच्छा है। संस्कृति-अध्ययन के तहत सौंदर्यशास्त्र के अभिजनोन्मुख रुझानों की कड़ी परीक्षा की गयी है। पिएर बोर्दियो ने संस्कृति के समाजशास्त्र के तहत कला के विचारधारात्मक आधार की न...

कला और साहित्य से क्या अभिप्राय है? » Kala Aur Sahitya Se Kya Abhipray Hai

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। नमस्कार बंधु आपका सवाल कला और साहित्य से क्या अभिप्राय है कला यदि आर्ट और साहित्य लिट्रेचर आर्ट और लिटरेचर से अभिप्राय यही है कि किसी व्यक्ति में है इसकी क्षमता है कि नहीं क्षमता का मतलब रचना करने की क्षमता है कि नहीं तो यह जो है रचना करने वाले लोग जो होते हैं वह कला और साहित्य के जानकार होते हैं क्योंकि साहित्य में बहुत सारी विधाएं होती है कविता कहानी से लेकर के फिल्म राइटिंग और सब होता है नाटक ही होता है रेडियो नाटक होता है यह को पड़ता है तो उसमें जो है रचना करने की क्षमता आ जाती है समाज को अपने नजरिए से यह देख करके उसमें सुधार लाने के लिए वह रखना कर डालता है और उसका उसका नाटक बनाता है फिल्म बनाती है बनाता है और रेडियो नाटक भी बनाता है वह घर वगैरह तो कला और साहित्य का मतलब यही होता है धन्यवाद namaskar bandhu aapka sawaal kala aur sahitya se kya abhipray hai kala yadi art aur sahitya literature art aur literature se abhipray yahi hai ki kisi vyakti me hai iski kshamta hai ki nahi kshamta ka matlab rachna karne ki kshamta hai ki nahi toh yah jo hai rachna karne waale log jo hote hain vaah kala aur sahitya ke janakar hote hain kyonki sahitya me bahut saari vidhaen hoti hai kavita kahani se lekar ke film writing aur sab hota hai natak hi hota hai radio natak hota hai yah ko padta hai toh usme jo hai rachna karne ki kshamta aa jaati hai samaj ko apne nazariye se yah dekh karke usme sudhaar lane ke liye vaah rakhna kar dalta hai aur uska uska natak banata hai ...