साम दाम दंड भेद मीनिंग

  1. italki
  2. Saam Daam Dand Bhed Meaning: साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ
  3. कामन्दकीय नीतिसार
  4. साम दाम दंड भेद क्या है? » Saam Daam Dand Bhed Kya Hai


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साम, दाम, दंड, भेद - चाणक्य नीति राजनीति की एक बड़ी पुरानी नीति है ‘साम, दाम, दंड, भेद’. ‘साम’ अर्थात् ‘समता’ से या ‘सम्मान देकर’, ‘समझाकर’; ‘दाम’ अर्थात् ‘मूल्य देकर’ या आज की भाषा में ‘खरीदकर’; ‘दंड’ अर्थात् ‘सजा देकर’ और ‘भेद’ से तात्पर्य ‘तोड़ना’ या ‘फूट डालना’ है. मतलब किसी से अपनी बातें मनवाने के चार तरीके हो सकते हैं – पहले शांतिपूर्वक समझाकर, सम्मान देकर अपनी बातें मनवाने का प्रयास करो. मान जाए अच्छा है, आपकी भी लाज रहे, मानने वाले की भी. पर अगर न माने, उसे मानने का मूल्य दो. मतलब जो भी उसकी अड़चन हो, उसके अनुसार मूल्य देकर उसे मनाओ. तब भी बात न बने, तो उसे इस मूर्खता के लिए दंडित करो. सितम उन्हें तोड़ेगा. लेकिन फिर भी बात न बने तो आखिरी रास्ता, ‘राजनीति का ब्रह्मास्त्र’ ‘भेद’ का प्रयोग करो; उनमें आपसी वैमनस्य पैदा करो, फूट डालो, वे जरूर मानेंगे. चाणक्य की यह नीति राजनीति शास्त्र की कुछ मूल नीतियों में है.

Saam Daam Dand Bhed Meaning: साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ

Table of Contents • • • • • हममें से अधिकांश ने कभी-न-कभी साम-दाम-दंड भेद Saam Daam Dand Bhed की नीति के संबंध में सुना होगा। किसी कार्य को पूर्णरूप देने के लिये अकसर इसका प्रयोग कहावत के रूप में किया जाता है कि इस काम को साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर कैसे भी पूर्ण करें। शास्त्रों में कहा गया है कि जो उपायों को बतलाये या पथ प्रदर्शन करे वही नीति है। साम – नीति का वर्णन (Saam Daam Dand Bhed) मनु ने पूछा – “भगवन ! अब आप साम आदि उपायों का वर्णन कीजिये। देवश्रेष्ठ ! साथ ही उनका लक्षण और प्रयोग भी बताइये।” मत्स्य भगवान बोले – “राजन ! साम (स्तुति – प्रशंसा), दान (दाम), दंड, भेद, उपेक्षा, माया तथा इन्द्रजाल – ये सात प्रयोग बतलाये गए हैं। उन्हें मैं बता रहा हूँ, सुनिए —” साम तथ्य और अतथ्य दो प्रकार का कहा गया है। उनमें भी अतथ्य ( झूठी प्रशंसा ) साधु पुरुषों की अप्रसन्नता का ही कारण बन जाती है इसलिए सज्जन व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक सच्ची प्रशंसा से वश में करना चाहिए। जो कुलीन, सरलप्रकृति, धर्मपरायण और जितेन्द्रिय हैं वे सच्ची प्रशंसा से ही प्रसन्न होते हैं, अतः उनके प्रति झूठी प्रशंसा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उनके प्रति तथ्य साम (सच्ची प्रशंसा) का प्रयोग, उनके कुल और शील स्वभाव का वर्णन, किये गए उपकारों की चर्चा तथा अपनी कृतज्ञता की बात कहनी चाहिए। इस प्रकार के साम से अपने धर्म में तत्पर रहने वालों को वश में करना चाहिए। दुर्जन मनुष्यों के लिए इस प्रकार की नीति उपकारी नहीं होती। दुष्ट मनुष्य साम की बातें करने वाले को बहुत डरा हुआ समझते हैं, इसलिए उनके प्रति इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। हे राजन ! जो पुरुष शुद्ध वंश में उत्पन्न, विनम्र, धर्मनिष्ठ, सत्यवादी एवं सम्मानी हैं, वे ही निरंतर सा...

कामन्दकीय नीतिसार

वंशे विशालवंश्यानाम् ऋषीणामिव भूयसाम्। अप्रतिग्राहकाणां यो बभूव भुवि विश्रुतः ॥ जातवेदा इवार्चिष्मान् वेदान् वेदविदांवरः। योधीतवान् सुचतुरः चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥ यस्याभिचारवज्रेण वज्रज्वलनतेजसः। पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥ एकाकी मन्त्रशक्त्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः। आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्।। नीतिशास्त्रामृतं धीमान् अर्थशास्त्रमहोदधेः। समुद्दद्ध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ॥ इति ॥ अनुक्रम • 1 रचनाकाल • 2 संरचना • 3 कौटिल्य का अर्थशस्त्र तथा कामन्दकीय नीतिसार • 4 कुछ श्लोक • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ रचनाकाल [ ] इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध कामंदक की प्राचीनता का एक और प्रमाण भी दृष्टिगोचर होता है। कामंदकीय नीतिसार की मुख्यत: पाँच टीकाएँ उपलब्ध होती हैं: उपाध्याय निरक्षेप, आत्मारामकृत, जयरामकृत, वरदराजकृत तथा शंकराचार्यकृत। संरचना [ ] कामन्दकीय नीतिसार में कुल मिलाकर २० सर्ग (अध्याय) तथा ३६ प्रकरण हैं। प्रथम सर्ग राजा के इंन्द्रियनियंत्रण सम्बन्धी विचार द्वितीय सर्ग शास्त्रविभाग, वर्णाश्रमव्यवस्था व दंडमाहात्म्य तृतीय सर्ग राजा के सदाचार के नियम चौथा सर्ग राज्य के सात अंगों का विवेचन पाँचवाँ सर्ग राजा और राजसेवकों के परस्पर सम्बन्ध छठा सर्ग राज्य द्वारा दुष्टों का नियन्त्रण, धर्म व अधर्म की व्याख्या सातवाँ सर्ग राजपुत्र व अन्य के पास संकट से रक्षा करने की दक्षता का वर्णन आठवें से ग्यारहवाँ सर्ग विदेश नीति; शत्रुराज्य, मित्रराज्य और उदासीन राज्य; संधि, विग्रह, युद...

साम दाम दंड भेद क्या है? » Saam Daam Dand Bhed Kya Hai

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