सामाजिक परिवर्तन का अर्थ व परिभाषा

  1. सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, कारक एंव इसके रूप
  2. सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का उल्लेखकरते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का विवेचन कीजिए। Answer... B
  3. आर्थिक विकास
  4. भाषाविज्ञान/अर्थ परिवर्तन के कारण और दिशाएँ
  5. समाजशास्त्र क्या है
  6. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर


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सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, कारक एंव इसके रूप

अनुक्रम (Contents) • • • • • • सामाजिक गतिशीलता का अर्थ एवं परिभाषा गतिशीलता का तात्पर्य है व्यक्ति की किसी सामाजिक ढाँचे में गति। इस दृष्टि से सामाजिक गतिशीलता का अर्थ किसी व्यक्ति व समूह के सामाजिक पद में होने वाला परिवर्तन है। सामाजिक ढाँचे में पद व स्थान ऊँच-नीचे होते रहते हैं और अपनी स्थिति को ऊँचा व नीचा कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि एक उदाहरण के लिए, एक शहर से दूसरे शहर जाना भौतिक गतिशीलता है, जबकि छोटे बाबू से बड़ा बाबू बन जाना सामाजिक गतिशीलता कहलाएगी। पी० सोरोकिन के शब्दों में- “सामाजिक गतिशीलता सामाजिक समूहों व स्तरों में किसी व्यक्ति का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में पहुँच जाना है।” सामाजिक गतिशीलता के कारक (Factors Affecting Social Mobility) सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक हैं, जो इस प्रकार से हैं- (1) सामाजिक संरचना- सामाजिक गतिशीलता का जनसंख्या के वितरण, आकार व घनत्व में गहरा सम्बन्ध होता है। जन्म-दर के कम अथवा अधिक तथा ग्रामीण लोगों के नगरों में स्थानान्तरण होने से सामाजिक गतिशीलता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। जिन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है वहाँ पर बाहर से आए हुए लोग नीची स्थितियों में कार्य करने तैयार हो जाते हैं। (2) आर्थिक सफलता- आर्थिक दृष्टि से समाज में तीन वर्ग होते हैं- (1) धनाढ्य, (2) मध्यम, (3) निम्न । उक्त तीनों वर्गों में धनवान लोगों का अधिक सम्मान होता है। इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसका सम्बन्ध किसी वर्ग से हो, अधिक-से-अधिक धन कमाने का प्रयास करता है जिससे उसकी सामाजिक स्थिति ऊपर उठ जाये। (3) व्यावसायिक उन्नति- कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनको सामाजिक दृष्टि से प्रतिपादित तथा ऊँचा समझा ...

सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का उल्लेखकरते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का विवेचन कीजिए। Answer... B

Que : 9. सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का विवेचन कीजिए। Answer: सामाजिक परिवतेन का अर्थ : सामाजिक परिवर्तन में दो शब्द हैं- प्रथम सामाजिक और दूसरा परिवर्तन। सामाजिक शब्द से आशय है- समाज से सम्बन्धित। मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल बताया है। परिवर्तन से अभिप्राय भिन्नता का होना समझा जाता है। प्रत्येक वस्तु का एक पूर्व रूप होता है। कुछ समय पश्चात् उसमें भिन्नता आ जाती है। फिशर ने परिवर्तन की परिभाषा इस प्रकार से की है- “परिवर्तन को संक्षेप में, पहले की अवस्था अथवा अस्तित्व के प्रसार के अन्तर के रूप में परिभाषित किया गया है।” सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बन्धित होता है। कुछ विद्वानों के विचार में, सामाजिक ढांचे में होने वाला परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान सामाजिक सम्बन्धों में अन्तर को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा : विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की है। उनमें से कुछ के विचार इस प्रकार हैं - 1. जॉनसन- “अपने मौलिक अर्थ में, सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य होता है सामाजिक संरचना में परिवर्तन।” 2. गिलिन और गिलिन- “सामाजिक परिवर्तन जीवन की स्वीकृत विधियों में परिवर्तन को कहते हैं। चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन से हुआ हो अथवा सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना अथवा सिद्धान्तों में परिवर्तन से हुआ हो अथवा ये प्रसार में अथवा समूह के अन्दर आविष्कार से हुआ हो।" सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं : सामाजिक परिवर्तन की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं - 1. परिवर्तन- समाज का एक मौलिक तत्व- परिवर्तन समाज का मौलिक तत्व है।...

आर्थिक विकास

नव आर्थिक विकास कहते हैं। नीति निर्माण की दृष्टि से आर्थिक विकास उन सभी प्रयत्नों को कहते हैं जिनका लक्ष्य किसी जन-समुदाय की आर्थिक स्थिति व जीवन-स्तर के सुधार के लिये अपनाये जाते हैं। वर्तमान युग की सबसे महत्वपूर्ण समस्या 'आर्थिक विकास' की समस्या है। आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनैतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व (उपयोग) नहीं है। विकास और उससे जुड़े हुए इसके इस महत्व के कारण ही अर्थशास्त्र]के क्षेत्र में [विकास-अर्थशास्त्र]नामक एक अलग विषय का ही उदय हो गया। किन्तु पिछले कुछ वर्षों से विकास-अर्थशास्त्र के एक स्वतंत्र विषय के रूप में अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न-सा उभरता दिखाई दे रहा है। कई अर्थशास्त्री हैं जो "विकास-अर्थशास्त्र" नामक अलग विषय की आवश्यकता से ही इनकार करने लगे हैं, इनमें प्रमुख हैं- स्लट्ज, हैबरलर, बार, लिटिल, वाल्टर्स आदि। अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग "विकास-अर्थशास्त्र" को ही समाप्त कर देने की मांग करने लगा है।कुछ अर्थशास्त्रियों ने 'आर्थिक विकास' (इकनॉमिक डेवलपमेन्ट), 'आर्थिक प्रगति' (इकनॉमिक ग्रोथ) और दीर्घकालीन परिवर्तन (सेक्युलर डेवलपमेन्ट) की अलग-अलग परिभाषाएँ की हैं। किन्तु मायर और बोल्डविन ने इन तीनों श्ब्द-समूहों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है तथा अलग-अलग अर्थ निकालने को 'बाल की खाल निकालना' कहा है। उनके अनुसार आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी अर्थव्यवस्था की अनुक्रम • 1 विकास का अर्थ एवं माप • 2 आर्थिक विकास के माप तथा विकास के सूचक • 2.1 आर्थिक सूचक • 2.1.1 सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) • 2.1.2 प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. • 2.1.3 प्रति व्यक्ति उपभोग • 2.1.4 आर्थिक कल्याण • 2.1.5 समायोजित सकल राष्ट्रीय उत्पाद माप • 2.1.6 अन्य मापदण्ड • 2.2 गैरआर...

भाषाविज्ञान/अर्थ परिवर्तन के कारण और दिशाएँ

• • • • • • • • • • • • • • • • • भाषा मानव व्यवहार का प्रमुख साधन है। मनुष्य स्वयं परिवर्तनशील है इसलिए उनका प्रमुख व्यवहार भाषा भी परिवर्तनशील है। भाषा में परिवर्तन की यह प्रक्रिया उसके अंगों को भी प्रभावित करती है। अर्थ भी उससे अप्रभावित नहीं रहता। अर्थ परिवर्तन के कारण और दिशाओं का यहां संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत है। अर्थ परिवर्तन की दिशाएँ [ | ] अर्थविज्ञान के प्रमुख चिंतक ब्रील के अनुसार अर्थ का विकास अथवा परिवर्तन की मुख्यतः तीन दिशाओँ 1) अर्थ विस्तार (expansion of meaning) वे शब्द जो पहले सीमित अर्थ में प्रयोग होते हों, लेकिन बाद में उनके अर्थ में विस्तार देखने को मिलता है और उनका अर्थ व्यापक हो जाता है। इसे ही अर्थ विस्तार कहते हैं। प्रवीण का अर्थ पहले केवल वीणा बजानेवाले के लिए प्रयुक्त होता था किंतु धीरे-धीरे इस शब्द का अर्थ विस्तार हुआ और बाद में चल कर किसी भी काम में निपुण व्यक्ति को प्रवीण कहा जाने लगा। इसी प्रकार कुशल शब्द का अर्थ था 'कुश लाने वाला', लेकिन बाद में यह 'चतुर' का पर्याय बन गया। 2) अर्थ संकोच (contraction of meaning) जिस प्रकार अर्थ का विस्तार होता है उसी प्रकार कई बार व्यापक अर्थ वाले शब्दों के अर्थों में संकोच भी होता है। जैसे- जलज अर्थ होता है 'जल से उत्पन्न' पर जल से उत्पन्न होने वाली सभी चीजों को जलज नहीं कहेंगे, यह शब्द कमल के अर्थ में रूढ़ हो चुका है। 3) अर्थादेश (transference of meaning) अर्थ विस्तार और अर्थ संकोच के अलावा कई बार शब्द के अर्थ बिल्कुल बदल भी जाते हैं। जैसे असुर शब्द देवता का वाचक था पर आज वह दैत्यों का वाचक हो गया है। इसी तरह आकाशवाणी का अर्थ देववाणी था पर अब वह भारतीय रेडियो के लिए इस्तेमाल होता है। इसके साथ अर्थोत्कर्ष ...

समाजशास्त्र क्या है

आज हम आपको समाजशास्त्र के बारे में बताने वाले हैं। समाजशास्त्र को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। तो आज हम यह जानेंगे कि Samajshastra kya hai ? समाजशास्त्र की परिभाषा क्या है ? समाजशास्त्र शब्द का अर्थ क्या होता है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई ? (Meaning and Definition of Sociology in Hindi) इसके अलावा समाजशास्त्र की प्रकृति, विशेषताएं एवं महत्व के बारे में भी आपको जानकारी मिलेगी। समाजशास्त्र का अर्थ (Meaning of Sociology) समाजशास्त्र को अंग्रेजी में Sociology कहा जाता है। Sociology शब्द Socius और logos दो शब्दों से मिलकर बना है। Socius लैटिन भाषा का एक शब्द हैं जिसका अर्थ होता है - समाज। Logos एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ होता है - विज्ञान या अध्ययन। इसप्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ होता है - समाज का विज्ञान या समाज का अध्ययन। समाज का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों के ताने-बाने से है जबकि विज्ञान किसी भी विषय के व्यवस्थित एवं क्रमवद्ध ज्ञान को कहते है। समाजशास्त्र को एक नवीन विज्ञान के रूप में स्थापित करने का श्रेय फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान आगस्त कॉम्टे (Auguste Comte) को जाता है। कॉम्टे ने ही 1838 में इस नए विषय को Sociology नाम दिया था। इसलिए आगस्त कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक (Father of Sociology) कहा जाता है। आगस्त कॉम्टे को सिर्फ इसलिए Samajshastra का जनक नहीं कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समाजशास्त्र नाम दिया बल्कि समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में स्थापित करने में उनके अहम योगदान के कारण उन्हें समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है। चूँकि Sociology दो भाषाओं के शब्दों से मिलकर बना है इसलिए जॉन स्टुअर्ट मिल ने समाजशास्त्र को दो भाषाओं की अवैध संतान...

वैराग्य

• शीर्षक • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • इ-पत्रिका • • Language • English Set language to English (Except News) • नेपाली सबै सुचना तथा लिंक नेपालीमा हेर्नुहोस् • सम्पर्क ठेगाना • कान्तिपुर पब्लिकेशन्स् लि. सेन्ट्रल बिजनेस पार्क, थापाथली काठमाडौं, नेपाल +977-01-5135000 +977-01-5135001 • घामको ताप सहन सकिने दूरीमा बसेको हुनाले मानव र अन्य जीवको जीवन र सभ्यता सम्भव भएको हो । तर तापको अर्थलाई नबुझी जब अझै राम्रो होला भनेर हामी घामनजिक जान्छौं, तब जलेर नष्ट हुन्छौं ।’ देशमा हुने गरेका भ्रष्टाचारलाई इंगित गर्दै सप्तरीका एक वृद्धले भनेको कुरा हो यो । झट्ट सुन्दा यो भनाइ सामान्यजस्तै लाग्न सक्छ, तर घोत्लिएर सोच्यौं भने हामी अहिलेजस्तो सामाजिक डिलमा उभिएका छौं, त्यहाँ यो अत्यन्त अर्थपूर्ण छ । नेपाली समाजमा देखिएको प्रवृत्तिलाई मैले शून्यता, स्वामित्वहीनता र वैराग्य–नैराश्य गरी तीनवटा कोणबाट केलाउने प्रयास गरेको छु । शून्यता चिकित्सा विज्ञानसँग सम्बन्धित शब्द हो । स्नायु प्रणाली या अन्य समस्याले गर्दा शरीरका अंग–प्रत्यंगले तातो, चिसो, स्पर्श या दुखाइको अनुभूति गर्न नसक्नु शून्यता हो । अर्को शब्दमा, शरीरको सम्पूर्ण भागले पूर्ण रूपमा काम गर्न छोड्नु । यो शब्दलाई यस लेखमा सामाजिक–राजनीतिक अर्थमा व्याख्या गर्दै म व्यक्तिगत र सामाजिक शून्यता र यसको प्रभावबारे केन्द्रित भएको छु । ऐतिहासिक दृष्टिकोणबाट व्यक्तिगत तथा सामाजिक शून्यता निश्चित कालखण्ड र परिस्थितिसँग गाँसिएको पाइन्छ । कालखण्ड र परिस्थितिलाइ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक र वैचारिक अवस्थाका रूपमा बुझ्दा सहज हुन्छ । उदाहरणका लागि, श्रीमान्ले श्रीमतीलाई ‘दुईचार थप्पड लाउनु’ लाई एउटा ‘तथ्य’ का रूपमा स्वीकार गरेर यस खाल...

सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर

प्रत्येक समाज परिवर्तनशील है, क्योंकि उसमें निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। समाज में यह परिवर्तन क्यों होते है, इसका स्पष्टीकरण करके हुये ग्रीन (Green) ने लिखा है कि, – “परिवर्तन समाज में विद्यमान रहता है, क्योंकि प्रत्येक समाज में कुछ न कुछ असन्तुलन पाया ही जाता है। किसी विद्वान ने उचित ही कहा है कि एक नदी में दो बार घुसना असम्भव है। यह कथन उचित है। वैसे तो एक बार नदी में घुसने वाला व्यक्ति उसमें कई बार घुस सकता है, किन्तु एक बार नदी से बाहर निकल आने पर उस व्यक्ति में भी परिवर्तन आ जाता है और नदी का जल भी वही नहीं रह पाता। स्पष्ट है कि परिवर्तन एक शाश्वत एवं निरन्तर होने वाली प्रक्रिया है। जिस प्रकार दो व्यक्ति परस्पर एक जैसे नहीं होते, उसी प्रकार दो समाज भी। प्रत्येक समाज अलग-अलग भी समय के साथ-साथ परिवर्तित होता जाता है। प्रत्येक समाज अपने-अपने उद्देश्यों के अनुसार अपने व्यवहारों तथा सम्बन्धों में भी परिवर्तन करता रहता है। राबर्ट बीरस्टीड के अनुसार – “भिन्न-भिन्न समाजों की राहें (Tracks) एक ही मार्ग का अनुकरण नहीं करती। भिन्न-भिन्न मार्गों से वे भिन्न-भिन्न मंजिलों पर पहुँचती है।” सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा के ही सन्दर्भ में समाजशास्त्री ऑगबर्न एवं निमकॉफ ने भी कहा है, – “प्रत्येक समाज में कुछ ऐसी शक्तियाँ भी विद्यमान रहती है, जो कि स्थापित संगठन में हास करती है, उनके कार्यों को विदीर्ण करके सामाजिक समस्याओं को जन्मती हैं। उदाहरण के तौर पर आर्थिक संगठन में हास होने पर बेरोजगारी आदि अनेक आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।” समाज में कुछ प्रतिकारक शक्तियाँ भी विद्यमान होती है जो समाज के सामंजस्य की प्रक्रिया को क्रियाशील बनाए रखती है, जिनके द्वारा समाज प्रगति की दिशा में ...