सावित्रीबाई फुले का इतिहास

  1. सावित्रीबाई फुले: भारत की पहली शिक्षिका, जिन्होंने खोले स्त्री शिक्षा के द्वार
  2. हमारे स्कूलों से क्यों नदारद है सावित्रीबाई फुले की कहानी?
  3. सावित्रीबाई फुले : पहली मुकम्मिल भारतीय स्त्री विमर्शकार
  4. जाने सावित्रीबाई फुले का इतिहास
  5. पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय
  6. सावित्रीबाई फुले


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सावित्रीबाई फुले: भारत की पहली शिक्षिका, जिन्होंने खोले स्त्री शिक्षा के द्वार

“यदि पत्थर पूजने से होते बच्चे तो फिर नाहक नर-नारी शादी क्यों रचाते?” ये पंक्तियाँ सावित्रीबाई फुले के मराठी कविता संग्रह ‘काव्य फुले’ से एक कविता का साल 1852 में ‘काव्य फुले’ प्रकाशित हुआ था। यह वह समय था, जब भारत में लड़कियों, शूद्रों और दलितों को शिक्षा प्राप्त करने पर मनाही थी। दलितों और महिलाओं के इस शोषण के खिलाफ़ सावित्री बाई फुले ने आवाज़ उठाई। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के समाज सुधार कार्यों में उनका कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फूले ज्योतिबा फुले उस समय के महान सुधारकों में से एक थे। उन्होंने दलित उत्थान और स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किये और इसकी शुरुआत की अपने ही घर से। सबसे पहले ज्योतिबा ने अपनी पत्नी सावित्री को शिक्षित किया और फिर सावित्री उनके साथ दलित एवं स्त्री शिक्षा की कमान सम्भालने लगी। महाराष्ट्र के पुणे में ज्योतिबा ने 13 मई 1848 को लड़कियों की शिक्षा के लिए पहला स्कूल ‘बालिका विद्यालय’ खोला। इस स्कूल को आगे बढ़ाया सावित्री बाई फुले ने। सावित्री न सिर्फ़ इस स्कूल की बल्कि देश की पहली शिक्षिका बनीं। साल 1848 से 1851 के बीच सावित्री और ज्योतिबा के निरंतर प्रयासों से ऐसे 18 कन्या विद्यालय पूरे देश में खोले गये। देश में महिला शिक्षा के दरवाज़े खोलने वाली इस महान समाज सुधारिका, सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। मात्र 9 वर्ष की उम्र में उनकी शादी ज्योतिराव फुले से कर दी गयी। ज्योतिराव ने उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया और पढ़ने के लिए प्रेरित किया। सावित्री ने न केवल शिक्षा ग्रहण की बल्कि समय के साथ वे एक विचारक, लेखिका और समाजसेवी के रूप में उभरीं। जब सावित्री ने कन्या विद्यालय में पढ़ाना शुरू किया, त...

हमारे स्कूलों से क्यों नदारद है सावित्रीबाई फुले की कहानी?

सावित्रीबाई फुले हमारे देश की पहली शिक्षिका रही हैं। वह शिक्षिका जिन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी इस देश की लड़कियों और औरतों के शिक्षा के अधिकार के लिए। लेकिन क्या हमारे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में उनके ओहदे और कद के मुताबिक उनकी बात की जाती है, उनसे हमारा परिचय बतौर देश की पहली शिक्षिका क्या हमारे स्कूलों और कॉलेजों में करवाया जाता है? ब्रिटिश शासन के उस दौर में जब अंग्रेज भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहे थे और भारतीय पुरुष अपनी महिलाओं को केवल घर के चौका बर्तन तक सीमित रखना चाहते थे। ऐसे समय में सावित्रीबाई ने न केवल लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया बल्कि विधवा विवाह, गर्भवती बलात्कार पीड़ितों का पुनर्वास और छुआछूत मिटाने के लिए भी योगदान दिया। सावित्रीबाई और » और पढ़ें: हालांकि, महाराष्ट्र के कुछ विश्वविद्यालयों में सावित्रीबाई फुले को एक हद तक दर्ज ज़रूर किया गया है। लेकिन पूरे भारत के विश्वविद्यालयों में नहीं। इसका एकमात्र कारण जाति व्यवस्था का प्रभुत्व कहा जा सकता है क्योंकि सावित्रीबाई फुले किसी तथाकथित उच्च ब्राह्मण कुल से नहीं आती थीं बल्कि वह बहुजन समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। जिस तरह भारत में प्रभुत्वशाली उच्च वर्गों ने अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक लाभ के लिए जाति व्यवस्था का गठन किया उसी तरह उन्होंने इतिहास भी अपने लाभ के हिसाब से गढ़ दिया है। अगर आप स्कूलों या स्नातक का इतिहास या राजनीतिक विज्ञान के सिलेबस को देखें, तो ब्रिटिश शासन के दौरान सशक्त महिलाओं में मात्र » और पढ़ें: शिक्षक दिवस आज भी आधिकारिक तौर पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को समर्पित क्यों? हालांकि, महाराष्ट्र के कुछ विश्वविद्यालयों में सावित्रीबाई फुले को एक हद तक दर्ज ज़रूर किया गया है। ल...

सावित्रीबाई फुले : पहली मुकम्मिल भारतीय स्त्री विमर्शकार

सावित्रीबाई फुले : पहली मुकम्मिल भारतीय स्त्री विमर्शकार स्त्रियों के लिए भारतीय समाज हमेशा सख्त रहा है। इसके जातिगत ताने-बाने ने स्त्रियों को दोहरे बंदिशों मे जकड़ रखा था। उन्हें मानवीय अधिकारों से भी वंचित रखा गया था। स्वयं सावित्रीबाई फुले काे भी इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। बता रही हैं डॉ. संयुक्ता भारती (3 जनवरी, 1831-10 मार्च, 1897) पर विशेष आज की हर भारतीय स्त्री जब अपने को आधुनिक शिक्षित होने पर गर्व करेगी तब उसे सावित्रीबाई फुले का स्मरण करना ही पड़ेगा। उसे यह समझना ही पड़ेगा कि कैसे एक महिला ने मनुवादी विचारों को ठोकर मारते हुए इस अवधारणा को बदल दिया कि ज्ञान पर केवल मनुवादी पुरूषों का अधिकार है। इस लिहाज से देखें तो यह कहना गैर-वाजिब नहीं कि यदि भारत में स्त्री विमर्श का प्रस्थान बिंदू है तो वह सावित्रीबाई फुले की क्रांति ही है। जब हम भारतीय समाज का समाजशास्त्रीय अध्ययन करते हैं तो सावित्रीबाई फुले का जीवनकाल (3 जनवरी, 1831-10 मार्च, 1897) एक मानक कालखंड के रूप में सामने आता है। इस कालखंड के पहले मध्यकाल में बेशक मीराबाई का नाम आता है, लेकिन उनकी पूरी जद्दोजहद व्यक्तिगत आराधना तक सीमित रही। उन्होंने सावित्रीबाई फुले की तरह भौतिक रूप से समाज में संघर्ष नहीं किया। इसलिए मीराबाई की गणना केवल मध्यकाल के साहित्यकारों में की जाती है। जबकि दूसरी ओर सावित्रीबाई फुले एक ऐसी महिला के रूप में सामने आती हैं, जिन्होंने भले ही अध्यात्म के क्षेत्र में कोई उपलब्धि हासिल न किया हो, लेकिन महिलाओं के शिक्षा के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिए। उन्नीसवीं सदी का दौर एक ऐसा दौर था, जब भारत में अंग्रेजी शासन भारत के सामाजिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रक्रिया में जुट गई थी।...

जाने सावित्रीबाई फुले का इतिहास

भारत की पहली शिक्षक सावित्रीबाई फुले की जयंती • देश की पहली शिक्षक सावित्रीबाई फुले का जन्म आज ही के दिन 3 जनवरी को महाराष्ट्र 'नयागाँव सतारा' में हुआ था • 3 जनवरी को समाज सुधारक और नारीवादी आइकन सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती मनाई जा रही है • इनके पिता जी का नाम खण्डोजी नेवसे था और माता जी का नाम लक्ष्मीबाई था • इनका विवाह 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फूले से कर दिया गया था जो कि एक विख्यात विचारक समाजसेवी लेखक दार्शनिक थे • वह अपने परिवार में सबसे छोटी थी उनके 3 भाई बहन थे • इनकी उपलब्धियों के कारण इन्हें भारत की पहली महिला शिक्षा के रूप में जाना जाता है • विवाह के बाद उन्होंने पढ़ना और लिखना सीखा • वर्ष 1848 में अपने पति के साथ मिलकर इन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान पूणे में देश का पहला कन्या विद्यालय खोला • इन्होंने भारत में वर्ष 1854-55 में साक्षरता मिशन भी शुरू किया ...

पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय

सावित्रीबाई फुले की जीवनी, महिला सशक्तिकरण एवं महिलाओं को शिक्षित करने के लिये किया संघर्ष व योगदान, savitribai Phule Biography hindi Savitribai Phule motivational story, first women education in india hindi आइये जाने कौन थी? भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जिन्होंने दलित महिलाओं को हक दिलाने के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। महिला सशक्तिकरण व शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कई कार्य किये। 19वीं शताब्दी के समाज में कई रुढ़िवादी कुरितिओं व प्रथाएं व्याप्त थी। इन सबका सावित्रीबाई ने पूरजोर विरोध किया। उन्होंने महिलाओं के हक दिलाने के लिये डटी रही, संघर्ष किया लेकिन हार नहीं मानी। Advertisements सावित्रीबाई फुले भारत की सबसे महान हस्तियों में से एक थी। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर के महाराष्ट्र तथा पूरे भारत में महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्हें मुख्य तौर पर इंडिया के फेमिनिस्ट मूवमेंट का केंद्र माना जाता था। सावित्रीबाई फुले बहुत ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्त्री थी। तथा उनके बारे में और भी कई ऐसी बातें हैं जो हमें पता होनी चाहिए। इसीलिए आज के इस लेख में हम आपको सावित्रीबाई फुले के बारे में और उनके जीवन के बारे में बहुत सी ऐसी बातें बताएंगे जिन्हें जान करके आपके मन में सावित्रीबाई फुले के लिए इज्जत और भी बढ़ जाएगी। विषय–सूची • • • • • • • • • शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का सक्षिप्त परिचय (Social Reformer Savitribai Phule Biography in hindi) पूरा नाम(Full Name) सावित्रीबाई फुले प्रसिद्ध नाम भारत की प्रथम महिला शिक्षिका एवं समाजसेविका पिता (Father Name) खन्दोजी नैवेसे माता (Mother Name) लक्ष्मी जन्म (Date of Birth) 03 जनवरी 1831 जन्म स्थान (Birth Plac...

सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। वे एक ऐसे घर में जन्मी थीं, जहां पिता लड़की के किताब उठाने तक के खिलाफ थे। इस बात की पुष्टि सावित्री के जीवन में घटी उस घटना से स्पष्ट होती है, जब वे एक बार अपने घर में बचपन में किसी अँग्रेजी किताब के पन्ने यूं ही कौतुहलवश पलट रही थीं, तब अचानक उनके पिता ने उनको ऐसा करते देख लिया और उनको बहुत फटकार लगाई। विश्व के किसी भी कोने में जब मानवीय व सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठानी होती है, तब दो बातें मायने रखती हैं- एक उस सामाजिक व्यवस्था की रीतियों के कुप्रभाव को अनुभव करने की समझ और दूसरी सावित्रीबाई फुले महत्वपूर्ण बात कि समझने के बाद निडरता के साथ उसका प्रतिरोध कर सकने की क्षमता का होना। इसके बाद वह विषय भी अर्थ रखता है जिसके विरुदध आवाज उठती है। समस्त विश्व ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, चाहे वह यूरोप व अमरीका में पूँजीवाद के विकास के साथ-साथ पारिवारिक संरचना में आए परिवर्तनों का दौर रहा हो या फिर एशिया में बराबरी के अधिकार को लेकर उभरे नारी आंदोलन रहे हों। आमतौर पर हर समाज ने प्राकृतिक नारीवाद के नारी सिद्धांतों के तहत स्त्रियों को महज पारिवारिक पालन पोषण करने की बेड़ियों में जकड़कर उनकी प्राकृतिक बौद्धिकता के साथ अन्याय किया। लेकिन वास्तव में जब प्राकृतिक नारीवाद जैसी कोई प्रवृत्ति है ही नहीं, तब उनका कैसा परिसीमन और कैसी बंदिशें। यही वह अनुभूति होती है, जो सावित्री बाई फुले जैसी वीरांगना को समाज में सशक्त आवाज बनने के लिए बाध्य करती है। भारतवर्ष में वैदिककाल में स्त्रियों को देवी के रुप में सम्मान की द़ृष्टि से देखा जाता था। वे अध्ययनों में पारंगत व निपुण थीं। ...