Samajik suraksha se aap kya samajhte hain

  1. आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)
  2. बाल्यावस्था क्या है? तथा बाल्यावस्था की मुख्य विशेषताएँ
  3. सामाजिक विघटन अर्थ, परिभाषा, स्वरूप
  4. समाजीकरण में परिवार की भूमिका
  5. सम्प्रेषण का अर्थ और परिभाषा
  6. समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
  7. समाजीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य


Download: Samajik suraksha se aap kya samajhte hain
Size: 54.49 MB

आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)

सभी Hindi Pdf Book यहाँ देखें सभी Audiobooks in Hindi यहाँ सुनें एन. सी. ई. आर. टी. कक्षा 10 आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र) पीडीऍफ़ पुस्तक का संछिप्त विवरण : विकास के कई पहलू हैं हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों को यही विचार समझाना है उनके लिए यह समझना आवश्यक है की लोगो की विकास के बारे में अलग अलग धारणाएँ है और ऐसे उपाय हैं जिनके द्वारा हम विकास के सामूहिक सूचकांकों को जान सकते हैं इसके लिए हमने ऐसी स्थितियों का प्रयोग किया है जिन पर वे सहजबुद्धि से प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं……. N.C.E.R.T Class 10th Arthik Vikas Ki Samajh PDF Pustak Ka Sankshipt Vivaran : vikaas ke kaee pahaloo hain hamaara uddeshy vidyaarthiyon ko yahee vichaar samajhaana hai unake lie yah samajhana aavashyak hai kee logo kee vikaas ke baare mein alag alag dhaaranaen hai aur aise upaay hain jinake dvaara ham vikaas ke saamoohik soochakaankon ko jaan sakate hain isake lie hamane aisee sthitiyon ka prayog kiya hai jin par ve sahajabuddhi se pratikriya dikha sakate hain…………. Short Description of N.C.E.R.T Class 10th Arthik Vikas Ki Samajh Hindi PDF Book : There are many facets of development: Our objective is to explain this idea to the students, for them it is necessary to understand that there are different perceptions about the development of the people and there are ways in which we can know the collective indices of development, Which they can instinctively respond to…………. 44Books का एंड्रोइड एप डाउनलोड करें “भाग्य निडर का साथ देता है।” वर्जल “Fortune favours the brave.” Virgil Related Posts: • परमाणु मुफ...

बाल्यावस्था क्या है? तथा बाल्यावस्था की मुख्य विशेषताएँ

अनुक्रम (Contents) • • • • बाल्यावस्था क्या है? : जीवन का अनोखा काल बाल्यावस्था वास्तव में मानव जीवन का वह स्वर्णिम समय है जिसमें उसका सर्वांगीण विकास होता है। फ्रायड यद्यपि यह मानते हैं कि बालक का विकास पाँच वर्ष की आयु तक हो जाता है। लेकिन बाल्यावस्था में विकास की यह सम्पूर्णता गति प्राप्त करती है और एक ओर परिपक्व व्यक्ति के निर्माण की ओर अग्रसर होती है। शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था का आरम्भ होता है। यह अवस्था, बालक के व्यक्तित्व के निर्माण की होती है। बालक में इस अवस्था में विभिन्न आदतों, व्यवहार, रुचि एवं इच्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होता है। ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार—“शैक्षिक दृष्टिकोण से जीवन चक्र में बाल्यावस्था से अधिक कोई महत्त्वपूर्ण अवस्था नहीं है। जो शिक्षक इस अवस्था के बालकों को शिक्षा देते हैं, उन्हें बालकों का, उनकी आधारभूत आवश्यकताओं का, उनकी समस्याओं एवं उनकी परिस्थितियों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए जो उनके व्यवहार को रूपान्तरित और परिवर्तित करती है। “ कोल व ब्रूस ने बाल्यावस्था को जीवन का ‘अनोखा काल’ बताते हुए लिखा है— “वास्तव में माता पिता के लिए बाल-विकास की इस अवस्था को समझना कठिन है।” कुप्पूस्वामी के अनुसार इस अवस्था में बालक में अनेक अनोखे परिवर्तन होते हैं, उदाहरणार्थ, 6 वर्ष की आयु में अनोखे परिवर्तन होते हैं, उदाहरणार्थ, 6 वर्ष की आयु में बालक का स्वभाव बहुत उग्र होता है और वह लगभग सब बातों का उत्तर ‘न’ या ‘नहीं’ में देता है। 7 वर्ष की आयु में वह उदासीन होता है और अकेला रहना पसन्द करता है। 8 वर्ष की आयु में उसमें अन्य बालकों से सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की भावना बहुत प्रबल होती हैं। 9 से 12 वर्ष तक की आयु में विद्यालय में उसके लि...

सामाजिक विघटन अर्थ, परिभाषा, स्वरूप

सामाजिक विघटन का अर्थ (samajik vighatan ka arth) सामाजिक विघटन का अर्थ सामाजिक विघटन के नाम से स्पष्ट हो जाता है। सामाजिक विघटन का अर्थ है सामाजिक संगठन के विपरीत दशा है। हम जानते है की हमारे सामाज का निर्माण विभिन्न व्यक्तियों, संस्थाओं, समूह, समितियों, प्रतिमानों आदि से मिलकर होता है और इन सबका समाज मे एक पद या स्थिति होती है। जब यह सभी अपने पदों और स्तिथि के अनुसार अपने-अपने कार्यों को सही ढंग से नही करते तो समाज का विघटन होने लगता है। जब किसी समाज में सामाजिक इकाइयों के बीच प्रकार्योत्मक संबंध टूट जाते हैं और समूह के स्वीकृत कार्यों को करने में बाधा पड़ने लगती है अथवा सामाजिक नियंत्रण प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाता तब इसे सामाजिक विघटन की स्थिति कहते है। सामाजिक विघटन के अर्थ को और भी सरल शब्दों में समझने के लिये मान लिजिए की आपका शरीर समाज है जिसके विभिन्न अंग है जैसे, हाथ, पैर, नाक, कान, आँख, मुंह आदि। अगर आपके शरीर का कोई अंग अपना काम न करें या वह खराब हो जाए तो आपके शरीर को कष्ट होने लगेगा या वह धीरे-धीरे नष्ट होने लगेगा। जैसा की मैने पूर्व मे कहा है कि हमारे समाज का निर्माण भी एक शरीर की तरह अनेक इकाइयों से मिलकर होता है और जब यह इकाइयां अपना कार्य सही ढंग से नही करती तो समाज का विघटन होने लगता है।वास्तविकता में समाज में संगठन का न रहना ही सामाजिक विघटन है। सामाजिक विघटन के बारें में थाॅमस तथा जननकी ने लिखा है, " सामाजिक विघटन कोई एक अलौकिक घटना नहीं है जो किन्हीं कालों या किन्हीं समाजों तक सीमित हो, इसमें से कुछ हमेशा और प्रत्येक स्थान पर सामाजिक नियम भंग करने की व्यक्तिगत घटनायें होती हैं जो सामाजिक संस्थाओं पर विघटित करने वाला प्रभाव डालती है और यदि उनका प्र...

समाजीकरण में परिवार की भूमिका

समाजीकरण के बारें में (Socialization In Hindi) : समाजीकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव शिशु आवश्यक कौशल हासिल कर सके ताकी वह अपने समाज मे एक सदस्य के रूप में शामिल हो सके। यह सीखने की सबसे प्रभावशाली प्रक्रिया है जो एक मानव अनुभव कर सकता हैं। कई अन्य जीवित प्रजातियों के विपरीत, जिसका व्यवहार जैविक रूप से स्थापित है, मनुष्य को अपनी संस्कृति को जानने के लिए और जीवित रहने के लिए समाजिक अनुभवों की जरूरत है। इसके अलावा कई वैज्ञानिकों का मानना है कि समाजीकरण जीवन में सीखने की प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व है। यह बच्चों और वयस्कों के व्यवहार, विश्वासों, और कार्यों पर एक केंद्रीय प्रभाव है। बालक जन्म के समय कोरा पशु होता है। जैसे-जैसे (socialization process) वह समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में आकर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता रहता है वैसे-वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करते हुए सामाजिक आदर्शों तथा मूल्यों को सीखता रहता है। बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। बालक के समाजीकरण में सहायक मुख्य कारक अथवा तत्व (types of socialization) निम्नांकित हैं... • परिवार • आयु समूह • पड़ोस • नातेदारी समूह • स्कूल • खेलकूद • जाति • समाज • भाषा समूह • राजनैतिक संस्थाएं • धार्मिक संस्थाएं समाजीकरण में परिवार की भूमिका : परिवार का योग्यदान समाजीकरण की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है ऐसा इसलिए क्योंकि यही से बालक सर्वप्रथम समाजीकरण आरंभ करता है। इसी कारण से परिवार बालक का सर्व प्रथम पाठशाला कहा जाता है। परिवार ही वो जगह है जहा से बालक आदर्श नगररिकता का पाठ सिखता है। बालक के समजीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं... • ...

सम्प्रेषण का अर्थ और परिभाषा

सम्प्रेषण का अर्थ और परिभाषा(Meaning and definition of communication in hindi) : संप्रेषण शिक्षण के लिए काफी आवश्यक तत्व है। सम्प्रेषण के बिना शिक्षण कार्य संभव नहीं है संप्रेषण के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी बातों एवं विचारों, अभिव्यक्तियों को एक दूसरे से साझा कर पाते हैं । आज hindivaani इस आर्टिकल के सम्प्रेषण का अर्थ ,सम्प्रेषण की परिभाषा , सम्प्रेषण के प्रकार, सम्प्रेषण के सिद्धांत , सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाले कारक आदि के बारे में जनाकारी प्रदान करेगा। तो आइए शुरू करते हैं पढ़ना – सम्प्रेषण का अर्थ और परिभाषा अनुक्रम • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • संप्रेषण का अर्थ (Meaning of communication) संप्रेषण शिक्षा की रीढ़ की हड्डी है। बिना सम्प्रेषण के अधिगम और शिक्षण नहीं हो सकता। संप्रेषण दो शब्दों से मिलकर बना हुआ हैं। सम + प्रेषण अर्थात समान रूप से भेजा गया। संप्रेषण को अंग्रेजी में कम्युनिकेशन कहते हैं। कम्युनिकेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के कम्युनिस शब्द से हुई है। जिसका अर्थ होता है सामान्य बनाना अर्थात संप्रेषण का अर्थ सूचना तथा विचारों का आदान प्रदान करना। ¶ यदि आप अपने जीवन मे सफल होना चाहते है। तो ये प्रेणादायक किताब जरूर पढ़ें ¶ सम्प्रेषण का अर्थ और परिभाषा(Meaning and definition of communication) संप्रेषण की परिभाषाएं (Definition of communication) संप्रेषण की परिभाषा इन निम्नलिखित शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार हैं। ई.जी.मेयर के अनुसार संप्रेषण की परिभाषा “संप्रेषण से तात्पर्य एक व्यक्ति के विचारों तथा शक्तियों से दूसरे व्यक्तियों को परिचित कराने से है।” श्रीमती आर. के अनुसार संप्रेषण की परिभाषा संप्रेषण विचार-विमर्श की वह विद्या है।...

समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

samajshastra arth paribhasha visheshta;ऑगस्त काॅम्टे को समाजशास्त्र का जन्मदाता कहा जाता हैं। ऑगस्त का विचार था कि जिस प्रकार भौतिकी वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवशास्त्र आदि विज्ञान हैं, ठीक उसी प्रकार सामाजिक जीवन का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता हैं। ऑगस्त कॉम्टे से इसे 'सामाजिक भौतिकशास्त्र का नाम दिया। इसके बाद सन् 1838 मे काॅम्टे ने ही इसे समाजशास्त्र के नाम दिया था। समाजशास्त्र का अर्थ (samajshastra kya hai) गिडिंग्स के शब्दों में, "समाजशास्त्र समग्ररूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या हैं।" गिडिंग्स की इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र समाज के बारे मे हैं। यह समाज का वर्णन अर्थात् सामाजिक संबंधों व घटनाओं का वर्णन करता है। यह वर्णन कल्पनात्मक एवं संशयात्मक नही बल्कि व्यवस्थित व क्रमबद्ध है। यह अन्तरात्मा की आवाज या भावना से उद्देलित नही अपितु व्यवस्थित निरीक्षण एवं परीक्षण पर आधारित है। इस संबंध मे दूसरी बात जिसकी ओर गिडिंग्स ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है वह यह है कि बल्कि यह उसकी क्रमबद्ध व्याख्या भी करता है। समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान के अन्य विषयों, जैसे अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की अपेक्षा, एक नया विषय है। हम कह सकते हैं कि यह विषय लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है, किन्तु इस विषय का तेजी से विकास पिछले 50-60 वर्षों में ही हुआ है। इसका एक कारण, खासतौर से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की सामाजिक स्थितियों में लोगों के व्यवहार को समझना हो सकता है। सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों का संबंध लोगों के व्यवहार से है, परन्तु इनमें से प्रत्येक विषय अलग-अलग पहलू का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र का संबंध सामान्य रू...

समाजीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य

Samajikaran arth paribhasha visheshta uddeshy;समाजीकरण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक जैविक प्राणी मे सामाजिक गुणों का विकास होता है और वह सामाजिक प्राणी बनता है। इस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति समाज और संस्कृति के बीच रहकर विभिन्न साधनों के माध्यम से सामाजिक गुणों को सीखता हैं, अतः इसे सीखने की प्रक्रिया भी कहते हैं। समाजीकरण द्वारा संस्कृति, सभ्यता तथा अन्य अनगिनत विशेषताएं पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती है और जीवित रहती है। समाज से बाहर व्यक्ति व्यक्ति नही हैं। समाज से पृथक वह असहाय है। समाज से दूर होकर वह चल-फिर नही सकता, बोल-चाल नही सकता। समाज के अभाव मे व्यक्ति का जीवन यदि असम्भव नही तो कठिन एवं दूभर अवश्य है, किन्तु समाज कोई ऐसा जादुई करिश्मा नही कर देता कि जन्म लेते ही बच्चा चलने-फिरने लगे, बोलने-चालने लगे, समझने-समझाने लगे। ऐसा तो सामूहिक जीवन के दौरान जीवन पर्यन्त चलने वाली एक प्रक्रिया के द्वारा सम्भव होता है। इस प्रक्रिया को समाजीकरण कहते है। समाजीकरण की परिभाषा (samajikaran ki paribhasha) ग्रीन के अनुसार," समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्म एवं व्यक्तित्व को प्राप्त करता हैं। फिचर के शब्दों में "समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को स्वीकार करता है और उसके साथ अनुकूलन करता हैं। गिलिन व गिलिन के अनुसार, " समाजीकरण से आश्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा एक व्यक्ति समाज के एक क्रियाशील सदस्य के रूप मे विकसित होता हैं, समूह की कार्यप्रणालियों से समन्वय करता है, उसकी परम्पराओं का ध्यान रखता है और सामाजिक स्थितियों मे व्यवस्थापन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना विकसित करता...