Sarvnam ki paribhasha udaharan sahit

  1. वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित
  2. ras ki paribhasha udaharan sahit
  3. संबंधवाचक सर्वनाम


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वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित

वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित : शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दीनों की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने और धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह मन में उमड़ता है वही वीर रस का स्थाई भाव है। जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है। उदाहरण (1) मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे, यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा मानो मुझे, है और कि तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं, मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं वीर रस की परिभाषा : शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दीनों की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने और धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह मन में उमड़ता है वही वीर रस का स्थाई भाव है। जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है। अवयव : स्थाई भाव : उत्साह। आलंबन (विभाव) : अत्याचारी शत्रु। उद्दीपन (विभाव) : शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि। अनुभाव : गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि। संचारी भाव : आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि। उदाहरण (1) स्पष्टीकरण : अभिमन्यु का ये कथन अपने साथी के प्रति है। इसमें कौरव- आलंबन, अभिमन्यु-आश्रय, चक्रव्यूह की रचना-उद्दीपन तथा अभिमन्यु के वाक्य- अनुभाव है। गर्व, औत्सुक्य, हर्ष आदि संचारी भाव हैं। इन सभी के संयोग से वीर रस के निष्पत्ति हुई है। उदाहरण 2 साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि, सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं। भूषन भनत नाद बिहद नगारन के, नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।। स्पष्टीकरण : प्रस्तुत पद में शिवाजी कि चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण है। इसमें शिवाजी के ह्रदय का उत्साह स्थाई भाव है। युद्ध को जीतने कि इच्छा आलंबन है। नगाड़ों का बजना उद्दीपन है। हाथियों के मद का बहना अनुभाव है तथा उग्रता संचारी भाव है। इनमें सबस...

ras ki paribhasha udaharan sahit

स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव। प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है। स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है। अतएव रसों की संख्या भी 9 हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है। मूलत: नवरस ही माने जाते हैं। बाद के आचार्यों ने वात्सल्य और भगवद विषयक रति को स्थायी भाव की मान्यता दी है। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या 11 तक पहुँच जाती है और तदनुरूप रसों की संख्या भी 11 तक पहुँच जाती है। किसी वस्तु अथवा जीव को देखकर जहाँ घृणा का भाव उत्पन्न हो वहाँ वीभत्स रस होता है। वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है। वीभत्स का स्थायी भाव जुगुप्सा है। अत्यंत गंदे और घृणित दृश्य वीभत्स रस की उत्पत्ति करते हैं। गंदी और घृणित वस्तुओं के वर्णन से जब घृणा भाव पुष्ट होता है तब यह रस उत्पन्न होता है।

संबंधवाचक सर्वनाम

संबंधवाचक सर्वनाम किसे कहते हैं – Sambandh Vachak Sarvanam kise Kahate Hain जो सर्वनाम शब्द दो व्यक्ति या वस्तु के बीच संबंध को दर्शाता है वह संबंधवाचक सर्वनाम कहलाता है। जिन शब्दों से दो वाक्यों के बीच का संबंध पता चलता है उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहा जाता है। संबंधवाचक सर्वनाम की परिभाषा – Sambandh Vachak Sarvanam Ki Paribhasha जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का किसी अन्य संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध स्पष्ट करते है उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं। सम्बन्धवाचक सर्वनाम का प्रयोग वाक्यों में दो शब्दों को जोङने के लिए किया जाता है। संबंधवाचक सर्वनाम की पहचान – Sambandh Vachak Sarvanam ki Pahchan जोकि, जो-सो, जैसा-वैसा, जैसी-वैसी, जिसकी-उसकी, जिसने, तैसी, जहाँ-वहाँ, जितना-उतना। जो, वह, जिसकी……उसकी, जैसा……वैसा, जब……तब आदि सर्वनाम शब्द शब्दों का संबंध स्पष्ट करने का काम कर रहे हैं इसलिए ये संबंधवाचक सर्वनाम है। संबंधवाचक सर्वनाम एक शब्द नहीं होता बल्कि दो सर्वनाम शब्द संबंध दिखाने का काम करते है। संबंधवाचक शब्द संबंधवाचक सर्वनाम कारक एकवचन बहुवचन कर्ता जो, जिसने जो, जिन्होंने कर्म जिसे, जिसको जिन्हें, जिनको करण जिससे, जिसके द्वारा जिनसे, जिनके द्वारा सम्प्रदान जिसको, जिसके लिए जिनको, जिनके लिए अपादान जिससे (अलग होने) जिनसे (अलग होने) संबंध जिसका, जिसकी, जिसके जिनका, जिनकी, जिनके अधिकरण जिस पर, जिसमें जिन पर, जिनमें संबंधवाचक सर्वनाम के उदाहरण – Sambandh Vachak Sarvanam ke Udaharan ‘ यह वही लङकी है जो गाँव गयी थी।’ इस वाक्य में यह और जो का प्रयोग करके लङकी और गांव का आपस में सम्बन्ध बताया गया है। यह वही बाइक है जो मुझे अच्छी लगती है। इस वाक्य में यह और जो का प्रयोग करके दो वस्...