सच्चियाय माता

  1. सचियाय माता
  2. राजस्थान के लोक देवी
  3. सिसोदिया वंश की कुलदेवी बाणेश्वरी माता
  4. Video: प्रसिद्ध सच्चियाय माता मंदिर में लगी भीषण आग, ऊंची लपटें उठती देखकर मची अफरातफरी
  5. करणी माता मन्दिर, राजस्थान


Download: सच्चियाय माता
Size: 6.23 MB

सचियाय माता

sachiyay Mata temple Osian Rajasthan सचियाय (सच्चिवाय) माता का भव्य मंदिर जोधपुर से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर ओसियॉ में स्थित है। इसीलिये इसे ओसियॉ माता भी कहा जाता है। ओसियां प्राचीनकाल से धार्मिक व कला का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ पर 8 वीं व 12 वीं सदी के जैन व ब्राह्मणों के कलात्मक मंदिर व उत्कृष्ट शिल्प में बनी मूर्तियाँ विद्यमान है। खजुराहो और भुवनेश्वर के मंदिरों की भाँती महत्त्वपूर्ण ओसियां के मंदिरों में परमार क्षत्रिय राजवंश की कुलदेवी सचियाय माता जिसे ओसवाल समाज भी कुलदेवी के रूप में पूजता है, वास्तु व मूर्तिकला के उत्कृष्ट शिल्प के उदाहरण है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ओसियां नगर का प्राचीन काल में मेलपुरपट्टन नाम था। जो उपकेश या उकेश नाम से भी जाना जाता था। जनश्रुतियों के अनुसार यह नगर कभी ढुण्ढिमल नाम के एक साधू द्वारा शाप देने के चलते उजड़ गया था। जिसे उप्पलराज या उप्पलदेव परमार राजकुमार द्वारा पुनः बसाया गया। राजस्थान में ई. 400 के करीब राजस्थान के नागवंशियों के राज्यों पर परमारों ने अधिकार कर पश्चिमी राजस्थान में अपने राज्य स्थापित कर लिए थे। परमारों के मारवाड़ (पश्चिमी राजस्थान) में नौ दुर्ग क्रमशः मण्डोर, साम्भर, पूंगल, लोद्रवा, धाट, पारकर, किराडू, आबू व जालौर थे। परमारों के इन्हीं राज्यों में से किराडू का एक राजकुमार उप्पलराज जिसे जैन ग्रन्थों में भीनमाल का राजकुमार बताया गया है, ने ओसियां नगर में ओसला लिया था अर्थात् शरण ली थी। इसी कारण इस स्थान का नाम ओसियां पड़ा। हालाँकि इतिहासकारों में ओसियां बसाने वाले के नाम को लेकर मतभेद है, पर इतना तय है कि राजकुमार उप्पलराज ओसियां आया और उसने यहाँ माता का मंदिर बनवाया था। ‘‘प्राप्त श...

राजस्थान के लोक देवी

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • करणी माता सुआप गाँव के चारण परिवार में। देशनोक (बीकानेर)। करणीजी के काबे :इनके मंदिर के चूहे। यहाँ सफेद चूहे के दर्शन • करणीमाता ने रखी। • करणीमाता की गायों का ग्वाला- दशरथ मेघवाल • राव कान्ह ने इनकी गायों पर हमला किया। • चांदी के किवाड़ भेंट किया। • करणी माता के बचपन का नाम रिद्धुबाईथा। • करणी माता के मठ –देवी के मन्दिर को मठ कहते हैं। • करणी माता अवतार – जगत माता • करणी माता का उपनाम – काबा वाली माता, चूहों की देवी। • करणी जी की इष्ट देवी ‘ तेमड़ा जी’ हैं। करणी जी के मंदिर के पास तेमड़ा राय देवी का भी मंदिर है। करणी देवी का एक रूप ‘ सफेद चील’ भी है। • नेहड़ी’ नामक दर्शनीय स्थल है जो करणी माता के मंदिर से कुछ दूर स्थित है। • करणी जी के मठ के पुजारी चारण जाति के होते हैं। • करणी जी के आशीर्वाद एवं कृपा से ही राठौड़ शासक ‘ नोट –चरजा चारण देवियों की स्तुति चरजा कहलाती है। जो दो प्रकार की होती है। जीण माता राजा हट्टड़ द्वारा। • जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढ़ाई प्याला मदिरापान करती है। इसे प्रतिदिन ढाई प्याला शराब पिलाई जाती है। • जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्रों में लगता है। • जीण माता तांत्रिक शक्तिपीठ है। इसकी अष्टभुजी प्रतिमा के सामने घी एवं तेल की दो अखण्ड ज्योति सदैव प्रज्वलित रहती हैं। जीण माता का गीत राजस्थानी लोक साहित्य में सबसे लम्बा है। यह गीत कनफटे जोगियों द्वारा डमरू एवं सारंगी वाद्य की संगत में गाया जाता है। जीण माता का अन्य नाम भ्रामरी देवी है। कैला देवी करौली के यदुवंश (यादव वंश) की कुल देवी। इनकी आराधना में लागुरिया गीत गाये जाते हैं। पर्वत की घाटी (करौली) में। यहाँ नवरात्रा ...

सिसोदिया वंश की कुलदेवी बाणेश्वरी माता

Rajput Hostel and Rajput Sabha provides the best possible residential facility to students along with other aids for the betterment of their study and personal grooming. The hostel also tries to help financially incapable students to enhance the level of education in youth.This App has been designed to keep you informed of our current news and events. सिसोदिया वंश की कुलदेवी बाणेश्वरी माता सिसोदिया वंश की कुलदेवी का नाम ''बायण माता'' है, जिन्हें बाण माता भी कहते हैं l इतिहासिक सूत्रों के मुताबिक सिसोदिया-गुहिलोत वंश की कुलदेवी का नाम बायण माता इसलिए है क्योंकि जब हमारे पूर्वज सौराष्ट्र[गुजरात] से यहाँ चित्तोड़गड़ आए तब वहां गुजरात में नर्मदा नदी से जो पाषाण निकलते थे उनसे शिवजी की जो स्थापना होती थी उन्हें बाण-लिंग कहा जाता था, जिनके नाम से मेवाड़ में बाणेश्वर्जी का मंदिर भी है l उन्ही बाणेश्वर महादेव की देवी पार्वती जी का एक अंश माँ बायण के रूप में प्रकट हुआ मानते हैं जिन्होंने प्राचीन काल में बाणासुर देत्य का वध किया था और इसी लिए माँ दुर्गा का वह स्वरुप बायण माता के नाम से विख्यात है l जिनके उपासक सिसोदिया वंश के सभी कुल हैं जिनमे चूण्डावत कुल भी है l मेवाड़ में माँ बायण की प्राचीन मूर्ति एक पुरोहित परिवार के पास रहती है जो की नागदा जाती के ब्राह्मण हैं l यह व्यवस्था इसलिए स्थापित की गयी थी क्यूंकि मेवाड़ के कई महाराणाओ को शत्रुओं से युद्ध के लिए महलों से बाहर रहना पड़ता था और किलों पर दुश्मन का कब्जा होने पर बायण माता की मूर्ति को खतरा होने की वजह से ही नागदा ब्राह्मणों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी थी l एतिहासिक स्त्रोत यह भी साबित करते हैं के बायण माता के नवमी के दिन बकर...

Video: प्रसिद्ध सच्चियाय माता मंदिर में लगी भीषण आग, ऊंची लपटें उठती देखकर मची अफरातफरी

यह मंदिर देश के प्राचीनतम मंदिरों की श्रेणी में आता है मंदिर का निर्माण 9वीं या 10वीं सदी में राजा उपेन्द्र ने करवाया था मंदिर में आग लगने के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हो पाया है जोधपुर. पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर (Jpodhpur) जिले के ओसियां कस्बे में स्थित प्रसिद्ध श्री सच्चियाय माताजी मंदिर (Sacchiaya Mataji temple Osian) परिसर में मंगलवार देर रात को भीषण आग लग गई. आग लगने के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हो पाया है. लेकिन संभावना जताई जा रही है कि पटाखों की चिंगारी गिरने से मंदिर में लगे पर्दों और टेंट ने आग पकड़ ली. मंदिर परिसर में आग को धधकता देखकर वहां अफरातफरी मच गई. बाद में पुजारियों और स्थानीय लोगों ने आग पर बड़ी मुश्किल से काबू पाया. आग पर समय रहते काबू पा लेने से बड़ा हादसा होने से टल गया. जानकारी के अनुसार यह मंदिर करीब 11 सौ वर्ष पुराना है. श्री सच्चियाय माताजी मंदिर परिसर में आग लगने की घटना मंगलवार देर रात को हुई. मंदिर के ऊपरी हिस्से में लगी आग देखते ही देखते विकराल रूप लेने लगी. आग मंदिर में लगे पर्दो और टेंट तक फैल गई. आग लगने की घटना के दौरान मंदिर परिसर में भय का माहौल पैदा हो गया. आग बुझाने के लिए मंदिर में लगे फायर सिस्टम घटना के वक्त नाकाफी साबित हुए. " isDesktop="true" id="4799439"> मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की आमदरफ्त रहती है आग की लपटें कस्बे में दूर-दूर तक दिखाई देने लगी. बाद में मंदिर के आसपास रहने वाले और अन्य लोग मौके पर दौड़े. उन्होंने बड़ी मुश्किल से पानी की बाल्टियों और स्थानीय संसाधनों के माध्यम से आग पर काबू पाया. आग लगने के कारणों का फिलहाल पता नही चल पाया है. माना जा रहा है कि किसी पटाखे की चिंगारी के कारण आग लगी है. गनीमत य...

करणी माता मन्दिर, राजस्थान

करणी माता मन्दिर, राजस्थान (भारत) मानचित्र दिखाएँ भारत 27°47′26″N 73°20′27″E / 27.79056°N 73.34083°E / 27.79056; 73.34083 27°47′26″N 73°20′27″E / 27.79056°N 73.34083°E / 27.79056; 73.34083 वास्तु विवरण प्रकार हिन्दू मन्दिर स्थापत्यकला वेबसाइट https: करणी माता मंदिर, हिन्दू मान्यता अनुसार, करणी माता को सामान्यतः डाढ़ाली डोकरी और करणीजी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। करणी माता (मां करणी या करणीजी;) (करणी माता को महाई भी कहा जाता है) (सी। 2 अक्टूबर 1387- सी। 23 मार्च 1538,) चारण जाति में पैदा हुई एक हिन्दू योद्धाओं की पूज्य देवी है। श्री करणीजी महाराज के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें उनके अनुयायियों द्वारा देवी हिंगलाज के अवतार के रूप में पूजा जाता है। वह बीकानेर और जोधपुर के शाही परिवारों की मुख्य देवी हैं। वह एक तपस्वी जीवन जीती थी और अपने जीवनकाल के दौरान व्यापक रूप से पूजनीय थी। बीकानेर और जोधपुर के महाराजाओं के अनुरोध पर, उन्होंने बीकानेर किले और मेहरानगढ़ किले की आधारशिला रखी, जो इस क्षेत्र के दो सबसे महत्वपूर्ण किले हैं। उनके मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध राजस्थान में बीकानेर के पास देशनोक के छोटे से शहर में है, जो मंदिर अपने चूहों के लिए प्रसिद्ध है जिन्हें स्थानीय रूप से काबा के नाम से जाना जाता है, जिन्हें पवित्र माना जाता है और मंदिर में सुरक्षा दी जाती है। उनके जीवनकाल के दौरान उन्हें समर्पित एक और मंदिर इस मायने में अलग है कि इसमें उनकी कोई छवि या मूर्ति नहीं है, बल्कि उस स्थान पर उनकी यात्रा का प्रतीक एक पदचिह्न है। करणी माता को "दाढ़ी वाली डोकरी" या दाढाली डोकरी ("दाढ़ी वाली बूढ़ी महिला") के रूप में भी जाना जाता है। एक और प्रसिद्ध मंदिर है, जो बेसरोली रेलवे स्...