शांत रस का उदाहरण

  1. रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण
  2. शांत रस की परिभाषा और 20+ शांत रस के उदाहरण
  3. शांत रस की परिभाषा और उदाहरण
  4. Ras In Hindi, रस
  5. शांत रस ( परिभाषा, भेद, उदाहरण ) पूरी जानकारी
  6. शांत रस
  7. रस हिंदी व्याकरण, भेद, अंग, उदाहरण, ras hindi vyakaran
  8. रस


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रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण

प्रस्तुत लेख के माध्यम से आप रस की विस्तृत जानकारी हासिल कर पाएंगे। इस लेख में रस की परिभाषा उदाहरण भेद अथवा प्रकृति पर विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।यह लेख विद्यालय, विश्वविद्यालय अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप तैयार किया गया है। यह सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी। जिसमें रस का विस्तृत अथवा सटीक ब्यौरा दिया गया है। यह लेख रस के पूर्ण अवलोकन में सहायक सिद्ध होगी। इस लेख को आप अंत तक पढ़ें जिसके माध्यम से आप 11 रस की सटीक जानकारी उदाहरण सहित प्राप्त करेंगे। रस क्या है – अर्थ और परिभाषा रस का सामान्य अर्थ आनंद है। जब व्यक्ति को रस की प्राप्ति होती है तो वह आनंद की चरम सीमा पर होता है। अनेक साहित्यकारों का मानना है कि रस अलौकिक है। रस को ग्रहण करने के लिए साहित्यकारों ने पाठक अथवा श्रोता को सहृदय होना अनिवार्य माना है। रस या आनंद उसी व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है जो, रस ग्रहण करने की इच्छा शक्ति रखता हो।सामान्य अर्थ में काव्य के पढ़ने अथवा सुनने से जो भाव व्यक्ति विशेष के मन में जागृत होते हैं, उसी भाव को रस माना गया है।रस की उत्पत्ति व्यक्ति विशेष के मन में होती है यह लौकिक या भौतिक नहीं है। रस की प्राप्ति उसे ही होती है जो हृदय की सत्वोद्रेक-दशा को प्राप्त कर लेता है। आधुनिक साहित्य में रस को काव्य का प्राण तत्व माना गया है। साहित्य की रचना किसी भाव की अनुभूति कराने के लिए की जाती है। भाव को ग्रहण करना रस के माध्यम से ही संभव है।प्राचीन आचार्यों ने रस को अलौकिक मानते हुए इसे ब्रह्मानंद सहोदर माना है। अभिनव गुप्त ने भी नाट्यशास्त्र में विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करते हुए रस को अलौकिक माना है। आधुनिक विद्वानों ने रस को अलौकिक मानने से इनकार किया है। इन ...

शांत रस की परिभाषा और 20+ शांत रस के उदाहरण

Shant Ras in Hindi: हिंदी व्याकरण जिसमें बहुत सारी इकाइयां पढ़ने को मिलती है। विद्यार्थी शुरू से हिंदी ग्रामर की पढ़ाई शुरू करता है, जो आगे तक निरंतर चलती रहती है। हिंदी ग्रामर में बहुत सारी इकाइयां है, जिसमें रस इकाई भी महत्वपूर्ण है। यह इकाई कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों से शुरू होती है, जो उच्च शिक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए मुख्य अतिथि के रुप में मानी जाती है। आज के इस लेख में शांत रस की परिभाषा उदाहरण सहित (Shant Ras Ki Paribhasha Udaharan Sahit) समझने वाले है और शांत रस के छोटे उदाहरण सहित शांत रस की पूरी जानकारी जानेंगे। विषय सूची • • • • • • • • • • • • • शांत रस की परिभाषा (Shant Ras Ki Paribhasha) अन्य सभी रसों की अनुपस्थिती ही शांत रस है। शांत रस एक ऐसा रस है, जिसमें किसी भी रस का अनुभव ना हो। अथवा एक ऐसी स्थिती या मनोभाव जिसमें राग, द्वेष, क्रोध, प्रेम, घृणा, हास्य, मोह किसी भी तरह का भाव उत्पन्न ना होकर एक ऐसा भाव हो, जिसमें इन सभी भावों की अनुपस्थिती का भाव या अनुभूति हो वही शांत रस है। शांत रस परिचय शांत रस का काव्य के सभी नौ रसों में एक बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है। वीर रस, वीभत्स रस, श्रृंगार रस तथा रौद्र रस ही प्रमुख रस हैं तथा शांत रस, भयानक, वात्सल्य, करुण, भक्ति, हास्य रसों की उत्पत्ति इन्हीं प्रमुख चार रसों से हुई है। शांत रस की उपस्थिती ऐसे काव्य में होती है, जिस काव्य में काव्य की विषय वस्तु में चाहे किसी भी प्रकार के उद्दीपन व अलाम्बनों का का समावेश हो परन्तु लक्षित व्यक्ति या चरित्र की उदासीन होती है। शांत रस चरित्र की उस मनःस्थिती को बताता है जब उसमें आलंबन के प्रति या विरुद्ध कोई आसक्ति या विरक्ति किसी भी तरह का भाव नहीं होता। किसी परस्थिती में...

शांत रस की परिभाषा और उदाहरण

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Ras In Hindi, रस

ras in hindi साहित्य शास्त्र में रस शब्द का प्रयोग ‘ काव्यानंद या काव्यास्वाद‘ के लिए किया गया है। रस का शाब्दिक अर्थ होता है आनंद। रस को ‘ काव्य की आत्मा या काव्य का प्राण’ माना जाता है। जब हम किसी भी कविता या काव्य को पढ़ते या सुनते हैं या फिर देखते समय हमें जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे ही रस कहा जाता है। रस शब्द का सबसे पहले उल्लेख नाटक के संबंध में किया जाता था। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में रस शब्द का उल्लेख किया है। नाट्यशास्त्र को पंचम वेद भी कहा जाता है। भरतमुनि के अनुसार विभाव, अनुभव व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती हैं। भरत मुनि ने अपने रस सूत्र में स्थायी भाव का उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार भरतमुनि रस की संख्या 8 बताया है। १.श्रृंगार २.हास्य ३.करुण ४.रौद्र ५.वीर ६.भयानक ७.वीभत्स और ८.अद्भुत। उद्भट ने इसमें शांत नामक एक रस और छोड़ दिया। ये ही 9(नौ) रस साहित्य में चिरकाल तक स्वीकार्य रहे। बाद में विश्वनाथ ने वात्सल्य नामक एक नवीन रस का उल्लेख किया। पीछे चल कर रूप गोस्वामी ने अपनी पुस्तक ‘हरिभक्तिरसामृतसिंधु’ में भक्ति को भी स्वतंत्र रस मानने के तर्क दिए। इस प्रकार वर्तमान में 11 रसों की चर्चा की जाती है १.श्रृंगार २.हास्य ३.करुण ४.रौद्र ५.वीर ६.भयानक ७.वीभत्स ८.अद्भुत ९. शांत १०.वात्सल्य ११. भक्ति। रस के कितने अंग होते हैं उनके नाम लिखिए या रस के अवयव कितने होते है(ras in hindi) रस के चार अंग या अवयव होते हैं उनके नाम इस प्रकार है- १.स्थायी भाव २.विभाव ३.अनुभाव ४.संचारीभाव (व्याभिचारी भाव) रस के मूलभूत कारण को स्थायी भाव कहते हैं मानव मन में या हृदय में स्थायी भाव पहले से विद्यमान होते हैं भाव हमारे हृदय में सदैव अज्ञात अवस्था में मौजूद रहते...

शांत रस ( परिभाषा, भेद, उदाहरण ) पूरी जानकारी

इस लेख में शांत रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि का विस्तृत रूप से व्याख्यात्मक रूप प्रस्तुत है। विद्यार्थी इस लेख को पढ़कर संबंधित विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं , क्योंकि यह विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर की पहचान करके लिखा गया है। विद्यार्थी को जहां कठिनाई महसूस होती है , उसे चिन्हित कर सरल बनाया गया है। परिभाषा:- जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन से मोहभंग होता है वहां शांत रस की निष्पत्ति मानी जाती है। तत्वज्ञान और वैराग्य से शांत रस की उत्पत्ति मानी गई है। जो अपने अनुरूप विभाव ,अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर आस्वाद्य का रूप धारण करके शांत रस में परिणत हो जाता है। स्थायी भाव:- इसका स्थाई भाव निर्वेद या शम है। Table of Contents • • • • • शांत रस का स्थाई भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव रस का नाम शांत रस रस स्थाई भाव निर्वेद आलम्बन संसार की क्षणभंगुरता ,कालचक्र की प्रबलता , अनुभाव स्वार्थ-त्याग , सयंम-नियम ,अपना सबकुछ बाँट देना ,सत्संग करना ,प्रपंचों से बचना ,गृह त्याग ,संसार के प्रति मन न लगना ,उच्चाटन का भाव या चेष्टाएँ संचारी भाव धृति ,मति ,विबोध ,चिंता ,हर्ष ,स्मृति ,संतोष ,विश्वास ,आशा। उद्दीपन जीवन की अनित्यता , सत्संग , धार्मिक-ग्रंथों का अध्ययन- श्रवण , तीर्थाटन आदि मन में किसी अपार खुशी के त्याग या जगत से वैराग्य भाव जागृत होने के उपरांत मन में अपार शांति की अनुभूति होती है। जो सभी सुख-दुख आदि का शमन करती है , जिसे निर्वेद कहा जाता है। अतः शांत रस का स्थाई भाव निर्वेद माना गया है। रस पर आधारित अन्य लेख शांत रस के उदाहरण 1 मन पछितैहै अवसर बीते। दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु , करम वचन भरु...

शांत रस

Shant Ras – Shant Ras Ki Paribhasha शान्त रस – Shant Ras अर्थ–तत्त्व–ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है। जहाँ न दुःख है, न सुख, न द्वेष है, न राग और न कोई इच्छा है, ऐसी मन:स्थिति में उत्पन्न रस को मुनियों ने ‘शान्त रस’ कहा है। शांत रस के अवयव (उपकरण ) • स्थायी भाव–निर्वेद। • आलम्बन विभाव–परमात्मा का चिन्तन एवं संसार की क्षणभंगुरता। • उद्दीपन विभाव–सत्संग, तीर्थस्थलों की यात्रा, शास्त्रों का अनुशीलन आदि। • अनुभाव–पूरे शरीर में रोमांच, पुलक, अश्रु आदि।। • संचारी भाव–धृति, हर्ष, स्मृति, मति, विबोध, निर्वेद आदि। शांत रस के उदाहरण – Shant Ras ka Udaharan (Example Of Shant Ras In Hindi) कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो। श्री रघुनाथ–कृपालु–कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।। जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो। परहित–निरत–निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहौंगो॥ – तुलसीदास स्पष्टीकरण–इस पद में तुलसीदास ने श्री रघुनाथ की कृपा से सन्त–स्वभाव ग्रहण करने की कामना की है। ‘संसार से पूर्ण विरक्ति और निर्वेद’ स्थायी भाव हैं। ‘राम की भक्ति’ आलम्बन है। साधु–सम्पर्क एवं श्री रघुनाथ की कृपा उद्दीपन है। ‘धैर्य, सन्तोष तथा अचिन्ता ‘अनुभाव’ हैं। ‘निर्वेद, हर्ष, स्मृति’ आदि’ संचारी भाव हैं। इस प्रकार यहाँ शान्त रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।

रस हिंदी व्याकरण, भेद, अंग, उदाहरण, ras hindi vyakaran

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • रस हिंदी व्याकरण, भेद, अंग, उदाहरण, ras hindi vyakaran रस हिंदी व्याकरण का अंतर्गत आता है जिसका सीधा संबंध साहित्य से होता है| साहित्यिक आनंद को रस कहते हैं। साहित्य अथवा काव्य की आत्मा रस है इसी रस का स्वाद लेने के लिए पाठक श्रोता या दर्शकसाहित्य पढ़ते सुनते या देखते हैं। यदि कविता या साहित्य में रस ही न मिले तो उसका कोई मूल्य नहीं। इसीलिए संस्कृत के आचार्य विश्वनाथ ने कहा है ‘ वाक्यम रसात्मक काव्यम’ अर्थात रसात्मक वाक्य ही काव्य कहा जाता है। ras hindi vyakaran भरत मुनि के अनुसार रस की परिभाषा ‘विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्ति रसः’ अर्थात विभाव अनुभाव व्यभिचारी भाव के सहयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के अंग रस के चार अंग होते हैं। 1-विभाव 2-अनुभाव 3- संचारी भाव 4-स्थायी भाव विभाव किसे कहते हैं व उसके प्रकार विभाव वे निमित्त या कारण जो काव्य आदि में हृदय की अनुभूतियों को तरंगित करते हैं। विभाव कहलाते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं । 1-आलंबन विभाव 2-उद्दीपन विभाव 1- आलंबन विभाव- इसका शाब्दिक अर्थ है आधार या सहारा जिसके ऊपर उस भाव का उत्पन्न होना अवलंबित रहे आलंबन कहते हैं ।जैसे लक्ष्मण मूर्छा के समय राम उन्हें गोद में लिए बैठे हैं। इसमें लक्ष्मण आलंबन है आश्रय- जिसमें रस जागृत होता है उसे आश्रय कहा जाता है यदि नायिका आश्रय है तो नायक आलम्बन होगा। उपर्युक्त उदाहरण में राम आश्रय हैं। 2 उद्दीपन विभाव- इसका शाब्दिक अर्थ है उद्दीप्त करना या बढ़ाना जो रस को उद्दीप्त करते हैं या बढ़ाते हैं वह उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।जैसे चांदनी रात, सुगंध, माला, सरोवर, वाटिका इत्यादि अनुभाव किसे कहते हैं व उसके प्रकार / भेद अनुभाव...

रस

रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण: रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण रस रस का शाब्दिक अर्थ है – आनन्द। भरतमुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के स्वरूप को स्पष्ट किया था। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है – “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस प्रकार काव्य पढ़ने, सुनने या अभिनय देखने पर विभाव आदि के संयोग से उत्पन्न होने वाला आनन्द ही ‘रस’ है। साहित्य को पढ़ने, सुनने या नाटकादि को देखने से जो आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस’ कहते हैं। रस के चार अंग रस के मुख्य रुप से चार अंग माने जाते हैं, जो निम्न प्रकार हैं – स्थायी भाव – हृदय में मूलरूप से विद्यमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते हैं। ये चिरकाल तक रहने वाले तथा रस रूप में सजित या परिणत होते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ है – संख्या स्थायी भाव रस • रति श्रृंगार • हास हास्य • शोक करूण • क्रोध रौद्र • उत्साह वीर • भय भयानक • जुगुप्सा(घृणा) वीभत्स • विस्मय अद्भुत • निर्वेद (वैराग) शांत विभाव – जो व्यक्ति वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं (i) आलम्बन विभाव जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं; जैसे – नायक – नायिका। आलम्बन के दो भेद हैं – आश्रय – जिस व्यक्ति के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं। आलम्बन (विषय) – जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आलम्बन या विषय कहते हैं। उद्दीपन विभाव – स्थायी भाव को तीव्र करने वाले कारक उद्दीपक विभाव कहलाते है। अनुभाव – आ...