शास्त्रों में किस किस नाम से प्रतिष्ठित है

  1. मां दुर्गा की उत्पत्ति और स्वरूप के बारे में किस शास्त्र में लिखा है क्या, जानिए
  2. Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF
  3. यश कामना से रहित दान की सार्थकता : The Dainik Tribune
  4. HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः – Haryana Board Solutions
  5. नैतिकता
  6. BSEB Solutions for नौबतखाने में इबादत Class 10 Hindi Matric Godhuli
  7. पाठ 16 नौबतखाने में इबादत MCQ Online Test
  8. यश कामना से रहित दान की सार्थकता : The Dainik Tribune
  9. मां दुर्गा की उत्पत्ति और स्वरूप के बारे में किस शास्त्र में लिखा है क्या, जानिए
  10. नैतिकता


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मां दुर्गा की उत्पत्ति और स्वरूप के बारे में किस शास्त्र में लिखा है क्या, जानिए

1. आगम-शास्त्र के अनुसारः-आगम-शास्त्र शक्ति-तत्व एवं शक्ति-उपासना सम्बन्धी सर्वोत्कृष्ट, अत्यन्त विशद, अप्रतिम एवं प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। इनके अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व भी देवी थी जो अकेली ही प्रकट हुई थी। ‘देवी ह्येकाग्रे आसीत्’। तब कहीं कुछ भी नहीं था। अतः देवी को केवल अपनी ही छाया दिखाई दी। ‘एतस्मिन्नेव काले तु, स्वबिम्बं पश्यति शिवा’ इसी स्वबिम्ब (छाया) से माया बनी जिससे मानसिक शिव हुए यद्यपि देवी ने अपने पति आदिनाथ को सृष्टि रचना हेतु अपने मन से उत्पन्न किया तथा उन्हें अपने पतिरूप में स्वीकार करके सृष्टि रचना की परन्तु वह कभी भी उनके अधीन नहीं रही बल्कि शिव ही उनके अधीन रहते हैं। इसके अनेकों प्रमाण आगम ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। श्री ललिता सहस्रनाम में देवी का एक नाम ‘स्वाधीनवल्लभा’ भी है जिसका अर्थ है कि शिव जी उनके अधीन रहते हैं। वह पूर्ण स्वतंत्र हैं। 3. वहवृचोपनिषद के अनुसारः-सृष्टि से पूर्व (सृष्टि के प्रारम्भ में) देवी ही थी। पराशक्ति सर्वव्यापी तथा सत्, चित् एवं आनन्दरूपा है। पराशक्ति, चित्शक्ति, परमेश्वर, ब्रह्मान्डजननी तथा आद्याशक्ति, ब्रह्म तथा आत्मा सब इसी के नाम हैं। वह ‘आद्या’ इसीलिए कही जाती है कि इनसे पहले कोई नहीं था। देवी ने ही ब्रह्मान्ड की रचना की। ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत समस्त प्राणिमात्र को जन्म दिया। ब्रह्मान्ड में जो कुछ भी है सब देवी में ही ओत-प्रोत है। यह शक्ति स्वयं प्रकाशित होती है। यही आत्मा है। यही शक्ति नित्य-निर्विकार परमात्मा की चेतना की द्योतक है। यही महात्रिपुरसुन्दरी है। इसी पराशक्ति को दशमहाविद्याओं यथा काली, तारा, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, छिन्नमस्ता, बगुलामुखी, मातंगी तथा कमला एवं प्रत्यंगिरा,...

Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF

Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF | एमपी बोर्ड अभ्यास प्रश्न पत्र परीक्षा पेपर 2023 कक्षा 10वीं हिन्दी Class 10th hindi abhyas prashn Patra solution 2023 PDF-इस बार आपको अभ्यास प्रश्न पत्र दिए जाएंगे वर्ण को आपको सॉल्व करना रहेगा तो इस पर हम अभ्यास प्रश्न पत्र 2023 सेट अ कक्षा 10 वीं का हिंदी विषय कर सेट आ है जो आपका ठीक है इसको हम सॉल्व करेंगे इसलिए देखते हैं सभी प्रश्न और इनके आन्सर तो यहाँ पर देश के काफी की दृष्टि यहाँ पर मैं आपको आगे लिखित उत्तर भी दूंगा तो Mp Board Abhyas prashn Patra 2023 Class 10th Hindi समय 3 घंटा निर्देश- 1. सभी प्रश्न करना अनिवार्य हैं। 2. प्रश्न क्र. 01 से 05 तक वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं। जिनके लिए 1x30=30 अंक निर्धारित है। 3. प्रश्न क्र. 06 से 17 तक प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 30 शब्द है। 4. प्रश्न क्र. 18 से 20 तक प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 75 शब्द है। 5. प्रश्न क्र. 21 से 23 तक प्रत्येक प्रश्न 4 अंक का है। शब्द सीमा लगभग 120 शब्द है। 6. प्रश्न क्र. 06 से 23 तक सभी प्रश्नों के आंतरिक विकल्प दिए गए हैं।Hindi 10th A set pdf 1. सही विकल्प का चयन कर लिखिए 1. काव्य की दृष्टि से रीतिकाल को बाँटा गया है- (अ) दो भागों में (ब) तीन भागों में (स) चार भागों में (द) सात भागों में ॥ सूर के पदों में तेल की गागरी कहा गया है- (स) गोपियों को (अ) श्रीकृष्ण को (ब) उद्धव को ii. चरणों में निहित मात्राओं के आधार पर दोहा है. अभ्यास प्रश्न पत्र (सेट अ)-2023 कक्षा 10वीं विषय हिन्दी (अ) सममात्रिक छंद (ब) विषममात्रिक छंद (स) अर्द्ध मात्रिक छंद (द) अर्द्धसममात्रिक छंद iv. नेताजी का चश्मा' कहानी का मूलभाव है - (अ) शिक्षा का...

यश कामना से रहित दान की सार्थकता : The Dainik Tribune

सीताराम गुप्ता शास्त्रों में कहा गया है कि सैकड़ों हाथों से एकत्र करो और हजारों हाथों से बांटो। जो बांटता है वही पाता है। दान वस्तुतः प्राप्ति का ही दूसरा नाम है। आप जो देते हैं वही आपका है, शेष कुछ भी आपका नहीं। गुरु नानक देव जी भी कहते हैं कि जो भी आप देते हैं आपका है जो भी आप रख लेते हैं आपका नहीं है। इसीलिए उन्होंने पिता द्वारा व्यापार के लिए दिए गए पैसे भी साधु-संतों की सेवा में लगा दिए। भौतिक जगत में भी यही होता है। दुनिया का नियम है इस हाथ दे उस हाथ ले। लेने के लिए, प्राप्त करने के लिए पहले देना पड़ेगा। फसल काटने के लिए फसल बोनी पड़ेगी। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या हमें देना आता है? दान का वास्तविक स्वरूप क्या है? दान ही देना हो तो सात्विक दान देना चाहिए। राजसिक अथवा तामसिक दान का कोई महत्त्व नहीं होता। श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय के बीसवें श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं—‘जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है वह सात्विक दान माना जाता है।’ खलील जिब्रान लिखते हैं : ‘ऐसे भी लोग हैं जिनके पास बहुत थोड़ा है और वे सारा का सारा दे डालते हैं। ये जीवन में और जीवन की संपन्नता में आस्था रखने वाले लोग होते हैं और इनका भंडार कभी खाली नहीं होता। कुछ लोग हैं जो प्रसन्न होकर दान करते हैं और यही प्रसन्नता उनका पुरस्कार है। दूसरे लोग हैं जो कष्ट से दान करते हैं और यही कष्ट उनका ईमान है। ऐसे लोग भी हैं जो दान करते हैं लेकिन उन्हें दान करते कष्ट नहीं होता। न उन्हें प्रसन्नता की कामना होती है, न पुण्य कमाने की।’ यही वास्तविक दान है। दान में राशि का भी महत्व नहीं होता। यदि महत्त्व होता है तो वह है भावनाओं का। श...

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः – Haryana Board Solutions

Haryana State Board Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 2 रघुकौत्ससंवादः HBSE 12th Class Sanskrit रघुकौत्ससंवादः Textbook Questions and Answers 1. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत (क) कौत्सः कस्य शिष्यः आसीत् ? (ख) रघुः कम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म ? (ग) कौत्सः किमर्थं रघु प्राप ? (घ) मन्त्रकृताम् अग्रणीः कः आसीत् ? (ङ) तीर्थप्रतिपादितद्धिः नरेन्द्रः कथमिव आभाति स्म ? (च) चातकोऽपि कं न याचते ? (छ) कौत्सस्य गुरुः गुरुदक्षिणात्वेन कियद्धनं देयमिति आदिदेश ? (ज) रघुः कस्मात् परीवादात् भीतः आसीत् ? (झ) कस्मात् अर्थं निष्क्रष्टुम् रघुः चकमे ? (ञ) हिरण्मयीं वृष्टिं के शशंसुः ? (ट) कौ अभिनन्धसत्वौ अभूताम् ? उत्तरम्: (क) कौत्सः महर्षेः वरतन्तोः शिष्यः आसीत्। (ख) रघुः ‘विश्वजित्’-नामकम् अध्वरम् अनुतिष्ठति स्म। (ग) कौत्सः गुरुदक्षिणार्थं धनं याचितुं रघु प्राप। (घ) मन्त्रकृताम् अग्रणी: महर्षिः वरतन्तुः आसीत्। (ङ) तीर्थप्रतिपादितर्द्धिः नरेन्द्रः स्तम्बेन अवशिष्टः नीवारः इव आभाति स्म। (च) चातकोऽपि निर्गलिताम्बुग) शरद्घनं न याचते। (छ) कौत्सस्य गुरु: गुरुदक्षिणात्वेन चतुर्दशकोटी: सुवर्णमुद्राः प्रदेयाः इति आदिदेश। (ज) ‘कश्चित् याचक: गुरुप्रदेयम् अर्थं रघोः अनवाप्य अन्यं दातारं गतः’ इति परीवादात् रघुः भीतः आसीत्। (झ) कुबेरात् अर्थं निष्क्रष्टुम् रघुः चकमे। (ञ) हिरण्मयीं वृष्टिं गृहकोषे नियुक्ताः अधिकारिणः शशंसुः । (ट) द्वौ रघुकौत्सौ अभिनन्द्यसत्त्वौ अभूताम्। 2. कोष्ठकात् समुचितं पदमादाय रिक्तस्थानानि पूरयत (क) यससा ………………… अतिथिं प्रत्युज्जगाम। (प्रकाशः, कृष्णः, आतिथेयः) (ख) मानधनाग्रयायी ……………….. तपोधनम् उवाच। (विशाम्पतिः, अकृताञ्जलिः, कौत्सः) (ग) कुशाग्रबुद्धे ! ………………… ...

नैतिकता

नैतिक शास्त्र या आचारशास्त्र (एथिक्स) क॑ व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान, नीतिशास्त्र आदि नाम भी देलऽ जाय छै. यद्यपि आचारशास्त्र केरऽ परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग मं॑ मतभेद केरऽ विषय रहलऽ छै, फिर भी व्यापक रूप सं॑ इ कहलऽ जाय सकै छै कि आचारशास्त्र मं॑ वू सामान्य सिद्धांतऽ के विवेचन होय छै जेकरऽ आधार पर मानवीय क्रिया आरू उद्देश्यऽ केरऽ मूल्याँकन संभव हुऐ सकलै. अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। विषय सूची • १ परिचय • २ नीतिशास्त्र केरऽ मूलप्रश्न • ३ नीतिशास्त्र केरऽ समस्या • ४ परम श्रेय अथवा शुभ-अशुभ के ज्ञान का साधन • ५ कर्तृ-स्वातंत्र्य बनाम निर्धारणवाद • ६ इ भी देखऽ • ७ बाहरी कड़ी परिचय [ | ] मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन अनेक शास्त्रों में अनेक दृष्टियों से किया जाता है। मानवव्यवहार, प्रकृति के व्यापारों की भांति, कार्य-कारण-शृंखला के रूप में होता है और उसका कारणमूलक अध्ययन एवं व्याख्या की जा सकती है। नीतिशास्त्र केरऽ मूलप्रश्न [ | ] नीतिशास्त्र का मूल प्रश्न क्या है, इस संबंध में दो महत्वपर्ण मत पाए जाते हैं। एक मंतव्य के अनुसार नीतिशास्त्र की प्रधान समस्या यह बतलाना है कि मानव जीवन का परम श्रेय (समम बोनम) क्या है। परम श्रेय का बोध हो जाने पर हम शुभ कर्म उन्हें कहेंगे जो उस श्रेय की ओर ले जानेवाले हैं; विपरीत कर्मों को अशुभ कहा जाएगा। दूसरे मंतव्य के अनुसार नीतिशास्त्र का प्रधान कार्य शुभ या धर्मसंमत (राइट) की धारणा को स्पष्ट करना है। दूसरे शब...

BSEB Solutions for नौबतखाने में इबादत Class 10 Hindi Matric Godhuli

नौबतखाने में इबादत - यतीन्द्र मिश्र प्रश्नोत्तर Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न) प्रश्न 1. बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कब और कहाँ हुआ था? उत्तर बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 1916 ई० में डुमराँव में हुआ था। प्रश्न 2. बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि कैसे हुई ? उत्तर बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि रसूलनबाई और बतूलनबाई के टप्पे, ठुमरी और दादरा को सुनकर हुई। प्रश्न 3. शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को कहाँ मिली? उत्तर शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को अपने ननिहाल काशी में अपने ममाद्वय सादिक और अलीबख्श से मिली। प्रश्न 4. बिस्मिल्ला खां बचपन में किनकी फिल्में देखते थे। था, विस्मिल्ला खाँ बचपन में किरकी फिल्मों के दीवाने थे? उत्तर बिस्मिल्ला खाँ बचपन में गीताबाली और सुलोचना की फिल्मों के दीवाने थे। प्रश्न 5. अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को किसमें अत्यधिक प्रद्धा थी ? उत्तर अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को काशी, विश्वनाथ और बालाजी में अगाध श्रद्धा थी। प्रश्न 6. बिस्मिल्ला खाँ किसको जन्नत मानते थे ? उत्तर बिस्मिल्ला खाँ शहनाई और काशी को जन्नत मानते थे। प्रश्न 7. बिस्मिल्ला खाँ किसके पर्याय थे? उत्तर बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के पर्याय थे और शहनाई उनका। प्रश्न 8. बिस्मिल्ला खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर किसका अफसोस रहा? उत्तर बिस्मिल्ला.खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर संगतियों के लिए गायकों के मन में आदर न होने, चैता कजरी के गायब होने और मलाई, शुद्ध घी की कचौड़ी न मिलने का अफ़सोस रहा। Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न) प्रश्न 1. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है ? उत्तर महान शहनाई वादक भारतरत्व बिस्मिल्ल खाँ की जन्मस्थली और उनके पैतृक निवास होने क...

पाठ 16 नौबतखाने में इबादत MCQ Online Test

MCQ Online Test 2 for पाठ -16 नौबतखाने में इबादत – यतींद्र मिश्र (Naubatkhane me Ibadat) Class 10th Hindi Kshitij-II प्रश्न : 1. बिस्मिल्ला किसे छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं? (क) भारत (ख) आगरा (ग) दिल्ली (घ) काशी 2. काशी किसकी पाठशाला है? (क) संस्कृत की (ख) संस्कृति की (ग) संगीत की (घ) नृत्य की 3. शास्त्रों में काशी किस नाम से प्रतिष्ठित है? (क) आनंदवन (ख) सोमवन (ग) स्वर्गमार्ग (घ) आनंदकानन 4. अमीरूद्दीन के शहनाई गुरू कौन थे? (क) बिस्मिल्लाह खाँ (ख) रसलूनबाई (ग) अलीबख्श खाँ (घ) पिता 5. काशी का संगीत-आयोजन किस अवसर पर होता है? (क) हनुमान-जयंती के अवसर पर (ख) जन्माष्टमी के अवसर पर (ग) रामलीला के अवसर पर (घ) इनमें से कोई नहीं 6. बिस्मिल्लाह खाँ शहनाई और काशी को इस धरती पर क्या मानते थे? (क) बोझ (ख) जन्नत (ग) नरक (घ) इनमें से कोई नहीं 7. बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई में किस-किसका योगदान है? (क) ईश्वर का (ख) गंगा माँ का (ग) उस्ताद की सीख (घ) उपर्युक्त तीनों का 8. शिष्या द्वारा टोके जाने पर बिस्मिल्ला खाँ ने कैसी प्रतिक्रिया दी? (क) क्रोधित हो गए (ख) मुस्कुराने लगे (ग) लज्जित हो गए (घ) प्रसन्न हो गए 9. गंगा-जमुनी संस्कृति का आशय है- (क) हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति (ख) मिली-जुली संस्कृति (ग) भ्रष्ट संस्कृति (घ) इनमें से कोई नहीं 10. संगीत-साहित्य की लुप्त परंपराओं का दुख किन्हें होता है? (क) सच्चे सुर साधक को (ख) सामाजिकों को (ग) बिस्मिल्ला खाँ को (घ) उपर्युक्त सभी को

यश कामना से रहित दान की सार्थकता : The Dainik Tribune

सीताराम गुप्ता शास्त्रों में कहा गया है कि सैकड़ों हाथों से एकत्र करो और हजारों हाथों से बांटो। जो बांटता है वही पाता है। दान वस्तुतः प्राप्ति का ही दूसरा नाम है। आप जो देते हैं वही आपका है, शेष कुछ भी आपका नहीं। गुरु नानक देव जी भी कहते हैं कि जो भी आप देते हैं आपका है जो भी आप रख लेते हैं आपका नहीं है। इसीलिए उन्होंने पिता द्वारा व्यापार के लिए दिए गए पैसे भी साधु-संतों की सेवा में लगा दिए। भौतिक जगत में भी यही होता है। दुनिया का नियम है इस हाथ दे उस हाथ ले। लेने के लिए, प्राप्त करने के लिए पहले देना पड़ेगा। फसल काटने के लिए फसल बोनी पड़ेगी। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या हमें देना आता है? दान का वास्तविक स्वरूप क्या है? दान ही देना हो तो सात्विक दान देना चाहिए। राजसिक अथवा तामसिक दान का कोई महत्त्व नहीं होता। श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय के बीसवें श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं—‘जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है वह सात्विक दान माना जाता है।’ खलील जिब्रान लिखते हैं : ‘ऐसे भी लोग हैं जिनके पास बहुत थोड़ा है और वे सारा का सारा दे डालते हैं। ये जीवन में और जीवन की संपन्नता में आस्था रखने वाले लोग होते हैं और इनका भंडार कभी खाली नहीं होता। कुछ लोग हैं जो प्रसन्न होकर दान करते हैं और यही प्रसन्नता उनका पुरस्कार है। दूसरे लोग हैं जो कष्ट से दान करते हैं और यही कष्ट उनका ईमान है। ऐसे लोग भी हैं जो दान करते हैं लेकिन उन्हें दान करते कष्ट नहीं होता। न उन्हें प्रसन्नता की कामना होती है, न पुण्य कमाने की।’ यही वास्तविक दान है। दान में राशि का भी महत्व नहीं होता। यदि महत्त्व होता है तो वह है भावनाओं का। श...

मां दुर्गा की उत्पत्ति और स्वरूप के बारे में किस शास्त्र में लिखा है क्या, जानिए

1. आगम-शास्त्र के अनुसारः-आगम-शास्त्र शक्ति-तत्व एवं शक्ति-उपासना सम्बन्धी सर्वोत्कृष्ट, अत्यन्त विशद, अप्रतिम एवं प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। इनके अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व भी देवी थी जो अकेली ही प्रकट हुई थी। ‘देवी ह्येकाग्रे आसीत्’। तब कहीं कुछ भी नहीं था। अतः देवी को केवल अपनी ही छाया दिखाई दी। ‘एतस्मिन्नेव काले तु, स्वबिम्बं पश्यति शिवा’ इसी स्वबिम्ब (छाया) से माया बनी जिससे मानसिक शिव हुए यद्यपि देवी ने अपने पति आदिनाथ को सृष्टि रचना हेतु अपने मन से उत्पन्न किया तथा उन्हें अपने पतिरूप में स्वीकार करके सृष्टि रचना की परन्तु वह कभी भी उनके अधीन नहीं रही बल्कि शिव ही उनके अधीन रहते हैं। इसके अनेकों प्रमाण आगम ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। श्री ललिता सहस्रनाम में देवी का एक नाम ‘स्वाधीनवल्लभा’ भी है जिसका अर्थ है कि शिव जी उनके अधीन रहते हैं। वह पूर्ण स्वतंत्र हैं। 3. वहवृचोपनिषद के अनुसारः-सृष्टि से पूर्व (सृष्टि के प्रारम्भ में) देवी ही थी। पराशक्ति सर्वव्यापी तथा सत्, चित् एवं आनन्दरूपा है। पराशक्ति, चित्शक्ति, परमेश्वर, ब्रह्मान्डजननी तथा आद्याशक्ति, ब्रह्म तथा आत्मा सब इसी के नाम हैं। वह ‘आद्या’ इसीलिए कही जाती है कि इनसे पहले कोई नहीं था। देवी ने ही ब्रह्मान्ड की रचना की। ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत समस्त प्राणिमात्र को जन्म दिया। ब्रह्मान्ड में जो कुछ भी है सब देवी में ही ओत-प्रोत है। यह शक्ति स्वयं प्रकाशित होती है। यही आत्मा है। यही शक्ति नित्य-निर्विकार परमात्मा की चेतना की द्योतक है। यही महात्रिपुरसुन्दरी है। इसी पराशक्ति को दशमहाविद्याओं यथा काली, तारा, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, छिन्नमस्ता, बगुलामुखी, मातंगी तथा कमला एवं प्रत्यंगिरा,...

नैतिकता

नैतिक शास्त्र या आचारशास्त्र (एथिक्स) क॑ व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान, नीतिशास्त्र आदि नाम भी देलऽ जाय छै. यद्यपि आचारशास्त्र केरऽ परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग मं॑ मतभेद केरऽ विषय रहलऽ छै, फिर भी व्यापक रूप सं॑ इ कहलऽ जाय सकै छै कि आचारशास्त्र मं॑ वू सामान्य सिद्धांतऽ के विवेचन होय छै जेकरऽ आधार पर मानवीय क्रिया आरू उद्देश्यऽ केरऽ मूल्याँकन संभव हुऐ सकलै. अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। विषय सूची • १ परिचय • २ नीतिशास्त्र केरऽ मूलप्रश्न • ३ नीतिशास्त्र केरऽ समस्या • ४ परम श्रेय अथवा शुभ-अशुभ के ज्ञान का साधन • ५ कर्तृ-स्वातंत्र्य बनाम निर्धारणवाद • ६ इ भी देखऽ • ७ बाहरी कड़ी परिचय [ | ] मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन अनेक शास्त्रों में अनेक दृष्टियों से किया जाता है। मानवव्यवहार, प्रकृति के व्यापारों की भांति, कार्य-कारण-शृंखला के रूप में होता है और उसका कारणमूलक अध्ययन एवं व्याख्या की जा सकती है। नीतिशास्त्र केरऽ मूलप्रश्न [ | ] नीतिशास्त्र का मूल प्रश्न क्या है, इस संबंध में दो महत्वपर्ण मत पाए जाते हैं। एक मंतव्य के अनुसार नीतिशास्त्र की प्रधान समस्या यह बतलाना है कि मानव जीवन का परम श्रेय (समम बोनम) क्या है। परम श्रेय का बोध हो जाने पर हम शुभ कर्म उन्हें कहेंगे जो उस श्रेय की ओर ले जानेवाले हैं; विपरीत कर्मों को अशुभ कहा जाएगा। दूसरे मंतव्य के अनुसार नीतिशास्त्र का प्रधान कार्य शुभ या धर्मसंमत (राइट) की धारणा को स्पष्ट करना है। दूसरे शब...