शीतला माता की कहानी इन हिंदी

  1. सप्तमी और अष्टमी पर शीतला माता की पूजा की विधि Shitla Ashtami Pujan Vidhi
  2. चमत्कारों से भरा है मां शीतला का यह मंदिर, जानें क्यों नहीं भरता देवी का यह घड़ा
  3. Sheetala Ashtami 2021: शीतला अष्टमी पर मां शीतला को प्रसन्न करने के लिए पढ़ें पौराणिक व्रत कथा
  4. शीतला अष्टमी की कहानी हिंदी में
  5. शीतला अष्टमी व्रत कथा महत्व स्टोरी Sheetala Ashtami 2022 Ki Vrat Katha


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सप्तमी और अष्टमी पर शीतला माता की पूजा की विधि Shitla Ashtami Pujan Vidhi

शीतला सप्तमी-अष्टमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी, सब्जी आदि बना लें. कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें. पूजन के पूर्व मुंह जूठा नहीं करना चाहिए. व्रत करने वाली महिलाओं को हमेशा इस बात कर ध्यान रखना चाहिए कि पूजा के लिए ऐसी रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर पूजा करें. इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता. शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए. Shitla Ashtami Pujan Vidhi व्रत करने वाली महिलाओं को बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाना चाहिए. जिसके बाद एक थाली में कंडवारे भरें. कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो, वह रखें. एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मौली), वस्त्र, होली वाली बड़कुले की एक माला व सिक्का रखें. जल कलश भर कर रखें. यह भी पढ़े : पानी से बिना नमक के आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें. जिसके बाद दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें. खास बात है कि यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता है. पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए. पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें. खुद भी टीका लगाना चाहिए. हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना करें : हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना. शीतल आशीष प्रदान करना. घर में प्रेम, सुख, शांति और शीतलता बनी रहे. आरोग्य की देवी सात पीढ़ियों तक प्रसन्न रहें. जिसके बाद मंदिर में जाकर पूजा करें. यदि शीतला माता घर पर...

चमत्कारों से भरा है मां शीतला का यह मंदिर, जानें क्यों नहीं भरता देवी का यह घड़ा

क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है, जिसमें मौजूद एक घड़े में जितना भी पानी डालो लेकिन वह भरता नही है। यह चमत्कारी मंदिर राजस्थान के पाली जिले में मौजूद है। माता शीतला के इस प्राचीन मंदिर में होने वाले चमत्कार को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पर पहुंचते हैं। शीतला माता के इस मंदिर में मौजूद इस घड़े के बारे में मान्यता है कि यह घड़ा पिछले 800 सालों से अभी तक भर नही पाया है। साल में सिर्फ दो बार होते हैं घड़े के दर्शन इस चमत्कारी घड़े के दर्शन के लिए इसे साल में दो बार भक्तों के सामने लाया जाता है। यह घड़ा एक पत्थर से ढंका हुआ है। जिसे भी साल में सिर्फ दो बार शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को ही हटाया जाता है। इन दो दिनों में माता के भक्त कलश भर-भर कर हजारों लीटर पानी इसमें डालते हैं। भक्तों का मानना है कि इस चमत्कारी घड़े में अब तक कई लाख लीटर पानी डाला जा चुका है, लेकिन घड़ा है कि भरने का नाम ही नहीं ले रहा है। मान्यता है कि इस स्थान पर तकरीबन 800 साल पहले बाबरा नामक का एक राक्षस था। जिससे आस-पास के तमाम गांव वाले आतंकित थे, क्योंकि जब कभी भी यहां रहने वाले किसी ब्राह्मण के घर में शादी होती तो राक्षस दूल्हे को मार देता। उस राक्षस से मुक्ति के लिए यहां के ग्रामीणों ने मां शीतला की पूजा साधना की। जिससे प्रसन्न होकर माता शीतला ने एक ब्राह्मण के स्वप्न में आकर कहा कि जब उसकी बेटी की शादी होगी, तब वह उस राक्षस का संहार करेंगी। विवाह के समय यहां शीतला माता एक छोटी सी कन्या के रूप में मौजूद थीं और उन्होंने अंतत: अपने घुटनों से राक्षस को दबोचकर मार दिया। अपने अंत समय में राक्षस ने मां शीतला से वरदान मांगा कि गर्मी में उसे प्यास बहुत ज्यादा लगती है, इसलिए केवल सा...

Sheetala Ashtami 2021: शीतला अष्टमी पर मां शीतला को प्रसन्न करने के लिए पढ़ें पौराणिक व्रत कथा

Sheetala Ashtami 2021 Katha- आज शीतला अष्टमी व्रत है. आज भक्त मां शीतला की पूजा-अर्चना करेंगे और उन्हें बसौड़ा का भोग लगाएंगे. शीतला अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. इस दिन माता शीतला को दही, रबड़ी, मीठे चावल और पुआ का भोग लगाया जाता है. ये सभी सामान सप्तमी की रात में ही बनाकर रख लिया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला चेचक और अन्य संक्रामक रोगों से भक्तों की रक्षा करती हैं. आइए जानते हैं शीतला अष्टमी की कथा शीतला अष्टमी की कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे. दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं. दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे. इतने में शीतला सप्तमी (जहां अष्टमी को पर्व मनाया जाता है वे इसे अष्टमी पढ़ें) का पर्व आया. घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया. दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी,बेटे भी अभी छोटे हैं. इस कुविचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली. सास-बहू शीतला की पूजा करके आई,शीतला माता की कथा सुनी. इसे भी पढ़ें: बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई. दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई. दाने के बरतन से गरम-गरम रोटला निकाले,चूरमा किया और पेटभर कर खा लिया. सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा. बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई. सास ने कहा,”बच्चे कब के सोए हुए हैं,उन्हे जगाकर भोजन करा लो’.. बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेंटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृतप्रायः पाया. ऐ...

शीतला अष्टमी की कहानी हिंदी में

लेख सारणी • • • • • • • शीतला अष्टमी की कहानी शीतला अष्टमी की कहानी – आइए हम आपको बताते हैं शीतला अष्टमी की कहानी के बारे में, शीतला अष्टमी का अर्थ बासोड़ा होता है।और शीतला अष्टमी चैत्र मास में कृष्ण पक्ष कि अस्टमी यानि होली के आठवे दिन मनाई जाती है। बासोड़ा से एक दिन पहले राधा पूजा होती है। सप्तमी के दिन घरो में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। जैसे कि राबड़ी, पकोड़े, पुअे , गुंजिया, सक्करपारे, नमकपारे आदि बनाये जाते है। शीतला अष्टमी की कहानी – अगले दिन शीतला अष्टमी की कहानी का महत्व शीतला अष्टमी की कहानी – शीतला माता की पूजा के बाद शीतला माता की कथा भी सुनी जाती है। और इस कथा के अनुसार एक बार एक गांव में बुढ़िया रहती थी। वह शीतला माता जी की भक्त थी। और वह शीतला माता जी की पूजा नियमित रूप से करती थी। अचानक से एक दिन गांव में आग लग जाती है। बुड़िया के घर को छोड़कर और बाकी के सभी घरों में आग लग जाती है।और सबके घर जल जाते हैं। इसको देखकर गांव वाले आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वह उस बुढ़िया के पास जाते हैं और पूछते हैं कि तुम्हारा ही घर जलने से कैसे बच गया? तभी बुढ़िया ने उन लोगों को बताया कि मैं रोज शीतला माता जी की पूजा करती हूं और शीतला माता जी कि कृपया से ही मेरा घर बचा है। उसके बाद गांव वालों ने भी शीतला माता जी कि पूजा करना शुरू कर दिया।पूजा के दिन वे सभी बासी खाना खाते।इससे वह सभी गांव वाले सूखे पूर्वक रहने लगे। माता जी की कृपा से उसके बाद उन पर कोई विपत्ति नहीं आई। शीतला अष्टमी की कहानी – शीतला माता जी की एक और कहानी बासोड़ा पर सुनाई जाती है। एक बार एक गांव में बूढ़ी कुम्हारी रहती थी।वह बासोड़े के दिन शीतला माता जी की पूजा करती थी और बासा खाना खाती थी। एक बार उनके गांव...

शीतला अष्टमी व्रत कथा महत्व स्टोरी Sheetala Ashtami 2022 Ki Vrat Katha

शीतला अष्टमी व्रत कथा महत्व स्टोरी Sheetala Ashtami 2022 Ki Vrat Katha : सभी पाठकों को शीतला अष्टमी 2022 पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं. शीतला माँ हिन्दू धर्म की एक प्राचीन देवी हैं, जिनका बहुत बड़ा महत्व रहा हैं. स्कन्द पुराण में माता शीतला के बारें में विस्तृत विवरण मिलता हैं. इन्हें चेचक की देवी भी कहा जाता हैं. इनका वाहन गधा है तथा ठंडे भोजन का इन्हें भोग लगाया जाता हैं. माताजी का सबसे बड़ा मंदिर तथा मेला चाकसू जयपुर में भरता हैं. हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किये हुए शीतला माता को दर्शाया जाता हैं. मान्यता है कि शीतलासप्तमी तथा अष्टमी तिथि को व्रत रखकर व्रत कथा का पाठ करने से देवी प्रसन्न हो जाती हैं. Sheetala Ashtami Ki Vrat Katha शीतला अष्टमी 2022 व्रत कथा महत्व बताया जाता हैं कि शीतला माता ने राजस्थान के एक डूंगरी नामक गाँव में कदम रखा, तो उन्होंने पाया कि उस गाँव में उसका एक भी मंदिर नहीं है और ना ही कोई व्यक्ति उसकी पूजा करता हैं. विचारों के इसी उड़दबुन में वह एक संकरी गली से गुजर रही थी, तभी ऊपर रहने वाले किसी मकान वाले ने गर्म चावलों का पानी देवी पर उड़ेल दिया. शरीर पर गर्म जल गिरने से पूरा बदल असहाय कष्ट पाने के साथ ही शरीर से फफोले निकलने लगे. तथा पूरे शरीर में जलन होने लगी. वह दर्द के मारे चिल्लाकर मदद की गुहार लगाने लगी, मुझे किसी ने गर्म जल से जला दिया मेरी मदद करों शरीर जल रहा हैं मुझे बचाओं, मगर कोई भी गाँव वाला माताजी की मदद के लिए आगे नहीं आया. Telegram Group तभी उनकी यह आवाज एक बूढी कुम्हारिन के कानों में पड़ी जो घर के बाहर बैठी थी. वह तुरंत माताजी के पास गई और उन्हें ठंडी छाँव में बिठाकर बोली मैया थोड़ा साहस रखो, घर में ठंडा ...