शिक्षा का अधिकार कानून क्या है

  1. Right To Education: जानिए क्या है' शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' और इससे जुड़े विवाद
  2. शिक्षा अधिकार कानून के 12 साल: नाम बड़े और दर्शन छोटे
  3. Right to Education in Hindi
  4. शिक्षा का अधिकार
  5. क्या है भारत में शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान तथा सरकारी पहलें?
  6. English to Hindi Transliterate
  7. शिक्षा का अधिकार कानून: आठवीं के बाद कहां जाएंगे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चे


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Right To Education: जानिए क्या है' शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009' और इससे जुड़े विवाद

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • Introduction “संसद ने 86वां संवैधानिक संशोधन पारित किया, जिसमें कहा गया है कि राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को इस तरह से मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा जैसा कि राज्य कानून द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।” संसद ने 86वें संविधान संशोधन के साथ 2002 में कला 21ए को भी शामिल किया, जिसने शिक्षा के अधिकार को एक मौलिक अधिकार बना दिया, जिसके कारण नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू हुआ। शिक्षा का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा 4 अगस्त 2009 को अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ और इसने भारत को उन 135 देशों में से एक बना दिया, जिन्होंने हर बच्चे के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया है। • शिक्षा का अधिकार अधिनियम की विशेषताएं • शिक्षा का अधिकार अधिनियम केंद्र सरकार और सभी स्थानीय सरकारों की उनकी शिक्षा प्रणालियों की मरम्मत और देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। • 6 से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा • किसी भी बच्चे को किसी भी शुल्क या शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी जो उसे प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने से रोके। • यह सभी निजी स्कूलों को अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और विकलांग बच्चों के वंचित वर्गों के लिए 25% सीटें आरक्षित करने का निर्देश देता है। • यह सुझाव देता है कि आरटीई अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार वित्तीय जिम्मेदारियों को साझा करें। • यह उचित रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों को रखता है। • यह शारीरिक और मानसिक उत्पीड़...

शिक्षा अधिकार कानून के 12 साल: नाम बड़े और दर्शन छोटे

अगस्त 2009 में भारत की संसद द्वारा निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पर सहमति की मुहर लगायी गयी थी और 1 अप्रैल 2010 से यह कानून पूरे देश में लागू हुआ। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों की कानूनी रूप से यह बाध्यता हो गयी कि वे 6 से 14 आयु समूह के भारत के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएं। आरटीई का अस्तित्व में आना निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम था। आजादी के 62 वर्षों बाद पहली बार एक ऐसा कानून बना था जिससे 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार हासिल हो सका। निश्चित रूप से इस कानून की अपनी सीमाएं रही हैं, जैसे 6 वर्ष से कम और 14 वर्ष से अधिक आयु समूह के बच्चों को इस कानून के दायरे से बाहर रखना, शिक्षा की गुणवत्ता पर पर्याप्त जोर नहीं देना और 25 प्रतिशत आरक्षण के साथ प्राइवेट स्कूलों की तरफ भगदड़ में और तेजी लाना। इसी तरह से इस कानून की परिकल्पना और पिछले दस वर्षों के दौरान जिस तरह से इसे अमल में लाया गया है उसमें काफी फर्क है। आज दशक बीत जाने के बाद यह सही समय है जब शिक्षा अधिकार कानून के क्रियान्वयन की समीक्षा की जाए जो महज आंकड़ों के मकड़जाल से आगे बढ़ते हुए शिक्षा अधिकार कानून के बुनियादी सिद्धांतों पर केन्द्रित हो। आरटीई का सफर- उपलब्धि और चुनौतियां आरटीई का सफर घुटनों पर चलने की तरह रहा है। एक दशक बाद शिक्षा अधिकार कानून की उपलब्धियां सीमित हैं, उलटे इस पर सवाल ज्यादा खड़े हुए हैं। इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार केंद्र और राज्य सरकारें ही पिछले दस साल के दौरान इससे अपना पीछा छुड़ाती हुई दिखाई पड़ी हैं। चूंकि हमारे देश के राजनीति में शिक्षा कोई मुद्दा नहीं है इसलिए पिछले दस वर्षों के दौरान क...

Right to Education in Hindi

शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार (RTE) एक महत्वपूर्ण कानून है जो भारत की शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। संविधान (86वां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अनुच्छेद 21-एA को शामिल किया, ताकि राज्य के रूप में मौलिक अधिकार के रूप में छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा सके। इसके लागू होने के बाद से शिक्षा का अधिकार देश में एक मौलिक अधिकार बन गया है। 2009 में, आरटीई अधिनियम पारित किया गया था। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) बीपीएससी या यूपीपीएससी में सामान्य अध्ययन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है à¤...

शिक्षा का अधिकार

विवरण शिक्षा किसी भी व्यक्ति एवं समाज के सभी दिशाओं के विकास तथा सशक्तीकरण के लिए आधारभूत मानव मौलिक अधिकार है। जिसे देश के उन सभी नागरिकों को उपलब्ध होना चाहिये जो लोग इस शिक्षा के लिए योग्य हैं, आमतौर पर शिक्षा देश के युवाओं और बच्चों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे लोग ही आगे चलकर देश का भविष्य तय करते हैं। यूनेस्को की शिक्षा के लिए वैश्विक मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के अनुसार विश्व के लगभग 135 देशों ने अपने संविधान में शिक्षा के अधिकार को अनिवार्य कर दिया है, तथा मुफ्त एवं भेदभाव रहित शिक्षा देश के सभी युवाओं को प्रदान कराने का प्रावधान भी किया है। हमारे देश भारत ने भी अपने देश के नव युवकों तथा शिशुओं के लिए बर्ष 1950 में 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा देने के लिए संविधान में प्रतिबद्धता का प्रावधान किया था। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत राज्यों के नीति निर्देशक सिद्धातों में शामिल किया गया है। 12 दिसंबर 2002 को भारत की संसद द्वारा भारतीय संविधान में 86 वां संशोधन किया गया और इसके अनुच्छेद 21 'ए' को संशोधित करके शिक्षा को नव युवकों तथा शिशुओं के लिए मौलिक अधिकार बना दिया गया था। बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह केंद्र तथा राज्यों के लिए कानूनी बाध्यता है, कि छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सभी को सुलभ हो सके। यदि कोई भी राज्य की सरकार या कोई व्यक्ति केंद्र के इस आदेश की अवमानना करता है, या करने का प्रयास करता है, तो ...

क्या है भारत में शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान तथा सरकारी पहलें?

शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान • भारतीय संविधान के भाग IV, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषित समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान है। • वर्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन द्वारा शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया। • वर्ष 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा को अनुच्छेद 21(A) के तहत प्रवर्तनीय अधिकार बना दिया गया। • शिक्षा से संबंधित कानून , शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है।यह समाज के वंचित वर्गों के लिये 25% आरक्षण को भी अनिवार्य करता है। शिक्षा के विकास की ओर सरकार की पहलें

English to Hindi Transliterate

क्या है यह अधिनियम? • 6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाया गया है। • सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करायेंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंध समितियों (एसएमसी) द्वारा किया जायेगा। निजी स्कूल न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को बिना किसी शुल्क के नामांकित करेंगे। • गुणवत्ता समेत प्रारंभिक शिक्षा के सभी पहलुओं पर निगरानी के लिए प्रारंभिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया जायेगा। अधिनियम का इतिहास दिसंबर 2002- अनुच्छेद 21 ए (भाग 3) के माध्यम से 86वें संशोधन विधेयक में 6 से 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया। अक्तूबर 2003- उपरोक्त अनुच्छेद में वर्णित कानून, मसलन बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2003 का पहला मसौदा तैयार कर अक्तूबर 2003 में इसे वेबसाइट पर डाला गया और आमलोगों से इस पर राय और सुझाव आमंत्रित किये गये। 2004- मसौदे पर प्राप्त सुझावों के मद्देनजर मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2004 का संशोधित प्रारूप तैयार कर जून 2005- केंद्रीय शिक्षा सलाहकार पर्षद समिति ने शिक्षा के अधिकार विधेयक का प्रारूप तैयार किया और उसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे नैक के पास भेजा, जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी हैं। नैक ने इस विधेयक को प्रधानमंत्री के ध्यानार्थ भेजा। 14 जुलाई, 2006- वित्त समिति और योजना आयोग ने विधेयक को कोष के अभाव का कारण बताते हुए नामंजूर कर दिया और एक मॉडल विधेयक तैयार कर आवश्यक व्यवस्था करने के लिए राज्यों को भेजा। (76वें संशोधन के बाद राज्यों ने राज्य...

शिक्षा का अधिकार कानून: आठवीं के बाद कहां जाएंगे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चे

शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्ग (ईडब्लूएस/डीजी) के बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश स्तर पर 25 फीसद सीटों पर दाखिले के माध्यम से आठवीं तक मुफ्त शिक्षा का अवसर देता है, लेकिन 2010 से लागू इस कानून के तहत उस समय पहली कक्षा में दाखिला लेने वाले बच्चों के सामने इस साल एक अप्रैल से एक गंभीर समस्या आ गई है कि वे 9वीं में उसी स्कूल में भारी फीस जमा कर पढ़ाई जारी रखें या फिर स्कूल छोड़ने को मजबूर हों। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दो बार केब (केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड) की बैठक में अध्यादेश के माध्यम से कानून में बदलाव कर इन बच्चों को 12वीं तक मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किए जाने की अनुशंसा की थी, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई। इस हफ्ते दिल्ली हाई कोर्ट ने गैर-सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की जनहित याचिका पर दिल्ली की सरकारी जमीन पर चलने वाले निजी स्कूलों (लगभग 400 स्कूल) को निर्देश दिया है कि वे ईडब्लूएस के तहत दाखिल बच्चों को 12वीं तक निशुल्क शिक्षा देंगे। संगठन की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा था कि स्कूल 8वीं से 9वीं कक्षा में आने वाले ईडब्लूएस के छात्रों से फीस मांग रहे हैं और फीस जमा नहीं करने वाले छात्रों को स्कूल से निकाला जा रहा है। हालांकि कोर्ट का यह फैसला दिल्ली की सरकारी जमीन पर बने स्कूलों पर ही लागू है, दिल्ली के ही अन्य निजी स्कूल और देशभर के मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों के ईडब्लूएस/डीजी के बच्चे इस फैसले का लाभ नहीं उठा सकेंगे। अलगे दो सालों में इन बच्चों की संख्या और बढ़ेगी क्योंकि कई स्कूलों में प्रवेश स्तर पहली कक्षा की जगह नर्सरी और केजी है। ईडब्लूएस कोटे के तहत केजी में दाखिला लेने ...