Shimla samjhota kab hua

  1. शिमला समझौता
  2. Shimla Samjhota Kab Hua? Doubt Answers
  3. History of india : Shimla samjhota शिमला समझौता


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शिमला समझौता

शिमला समझौता – आज़ादी के बाद से इससे पहले 1971 में भारत पर जबरन युद्ध भी थोपा, मगर अफसोस की इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और बुरी तरह हारने के बाद दोनों देशों के बीच 2 जुलाई, 1972 को शिमला में एक संधि हुई थी जिसे शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है. शिमला समझौता के लिए भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे. युद्ध के बाद दोनों देशों की ओर से रिश्ते में सुधार के लिए 2 जुलाई, 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर किया गया जिसे शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है. इस मौके पर 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए मुद्दों पर दोनों देशों के प्रमुख और उच्चस्तरीय अधिकारियों के बीच चर्चा हुई. इसके अलावा युद्ध बंदियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को अलग देश की मान्यता, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाना, व्यापार फिर से शुरू करना और कश्मीर में नियंत्रण रेखा स्थापित करना जैसे मुद्दों पर भी बातचीत हुई. – दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा. – यातायात की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग असानी से आ-जा सकें. – जहां तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक सहयोग जल्द ही फिर से स्थापित किए जाएंगे. – स्थाई शांति के हित में दोनों सरकारें इस बात के लिए सहमत हुईं कि भारत और पाकिस्तान दोनों की सेनाएं अपने-अपने प्रदेशों में वापस चली जाएंगी. दोनों देशों ने 17 सितंबर, 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा के रूप में मान्यता दी और यह तय हुआ कि इस समझौते के बीस दिन के अंदर सेनाएं अपनी-अपनी सीमा से पीछे ...

गाँधी

लंदन में आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता और असहयोग आन्दोलन की व्यापकता ने सरकार के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस और गाँधी के बिना भारत की राजनीतिक समस्या का समाधान आसान नहीं है. इसलिए लॉर्ड इरविन ने मध्यस्थता द्वारा गाँधीजी से समझौते की बातचीत प्रारम्भ कर दी. गाँधीजी 26 जनवरी, 1931 को जेल से रिहा कर दिए गये. 17 फ़रवरी से दिल्ली में इरविन और गाँधी जी के बीच वार्ता चलने लगी. 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौते (दिल्ली पैक्ट)/ Gandhi-Irwin Pact के मसविदे पर हस्ताक्षर किये गये. यदि आपने प्रथम गोलमेज सम्मेलन और असहयोग आन्दोलन के विषय में नहीं पढ़ा तो नीचे पढ़ लें – Click for > प्रथम गोलमेज सम्मेलन Click for > असहयोग आन्दोलन गाँधी-इरविन पैक्ट (दिल्ली पैक्ट)/ Gandhi-Irwin Pact गाँधी-इरविन समझौते के अनुसार सरकार ने निम्नलिखित वायदे किये – • सरकार सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर देगी. • जिन लोगों की संपत्ति आंदोलन के दौरान जब्त की गई थी, उसे वापस कर दिया जाएगा . • सरकार दमन बंद कर आंदोलन के दौरान जारी किए गए सभी अध्यादेशों और उनसे संबंधित मुकदमों को वापस ले लेगी. • भारतीयों को नमक बनाने की छूट दी जाएगी. • जिन लोगों ने आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरियों से त्याग-पत्र दे दिया था, उन्हें सरकार पुनः वापस लेने का विचार करेगी. इन आश्वासनों के बदले गाँधीजी सविनय अवज्ञा आंदोलन बंद कर लेने, दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने, पुलिस अत्याचारों की जाँच-पड़ताल नहीं करवाने, ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार नहीं करने और बहिष्कार की नीति को त्यागने पर सहमत हो गए. गाँधी-इरविन समझौते प्रतिक्रियाएँ गाँधी-इरविन समझौते पर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ हुईं. • “काँग्रेस की स्वतंत्रता का प्रस्ताव और 26 जनवर...

Shimla Samjhota Kab Hua? Doubt Answers

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History of india : Shimla samjhota शिमला समझौता

यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से बेनजीर भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गाँधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। इस समझौते से भारत को पाकिस्तान के सभी 93000 से अधिक युद्धबंदी छोड़ने पड़े और युद्ध में जीती गयी 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटानी पड़े। इसके बदले में भारत को क्या मिला यह कोई नहीं जानता। यहाँ तक कि पाकिस्तान में भारत के जो 54 युद्धबंदी थे, उनको भी भारत वापस नहीं ले सका और वे 41 साल से आज भी अपने देश लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अपना सब कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक थोथा-सा आश्वासन भारत को दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने स...