शमशाद बेगम के पुराने गाने

  1. शमशाद बेगम अब अपने गीतों में याद की जाएंगी !!
  2. Shamshad Begum Birth Anniversary: कभी बुर्के में गाती थीं शमशाद बेगम, और फिर बनीं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका
  3. सुरीली आवाज की मल्लिका थीं शमशाद बेगम, जिन्होंने 14 बार देखी थी देवदास
  4. अपने दौर की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली सिंगर थीं शमशाद बेगम, परिवार से लड़कर की थी हिंदू से शादी
  5. शमशाद बेगम : रोशनी की तरह बिखर जाने वाली आवाज
  6. सुरों की मलिका शमशाद बेगम Shamshad Begum Biography in Hindi


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शमशाद बेगम अब अपने गीतों में याद की जाएंगी !!

• • • Shamshad Begum Death हिन्दी सिनेमा के लिए मेरे पिया गए रंगून, कजरा मोहब्बत वाला, कभी आर-कभी पार, लेके पहला-पहला प्यार और सइयां दिल में आना रे जैसे मशहूर गाने गाने वाली गायिका शमशाद बेगम का निधन हो गया है. 94 साल की शमशाद बेगम( Shamshad Begum)ने अपनी अंतिम सांस अपने मुंबई के घर में ही ली. शमशाद बेगम के निधन के पीछे का कारण उनकी बीमारी को बताया जा रहा है. शमशाद बेगम( Shamshad Begum)की बेटी ऊषा का कहना है कि वो पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ थीं जिस कारण उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था पर अस्पताल से आने के बाद भी वो अस्वस्थ ही महसूस करती रहीं. बेटी ऊषा ने अफसोस जताते हुए यह भी कहा कि उनकी मां के जनाजे में सिर्फ उनके कुछ खास मित्र ही मौजूद थे. Read: Shamshad Begum Awards शमशाद बेगम( Shamshad Begum)को हिन्दी सिनेमा की ऐसी गायिका माना जाता था जिनकी गायकी की तुलना किसी भी गायक या गायिका से नहीं की जा सकती थी. 2009 में शमशाद बेगम को उनकी गायकी के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था. शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ था और उन्होंने अपने गायन की शुरुआत रेडियो से की थी. साल 1937 में शमशाद बेगम ने लाहौर रेडियो पर अपना पहला गीत पेश किया था फिर साल 1944 में उन्होंने अपना पहला कदम मुंबई में रखा था. 16 दिसंबर, 1947 को पूरी दुनिया ने शमशाद बेगम( Shamshad Begum)की आवाज के जादू को महसूस किया था. शमशाद बेगम ने हिन्दी सिनेमा के मशहूर गायक नौशाद अली, राम गांगुली, एसडी बर्मन, सी रामचन्द्रन, खेमचंद प्रकाश और ओपी नय्यर जैसे तमाम गायकों के साथ गीत गाए हैं. Read: Tags: Shamshad Begum Biography, Shamshad Begum Padma Shri, Shamshad Begum Biography, Shamshad Begum ...

Shamshad Begum Birth Anniversary: कभी बुर्के में गाती थीं शमशाद बेगम, और फिर बनीं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका

अंबाती रायडू का बड़ा खुलासा, पूर्व सेलेक्टर ने अपने बेटे के कारण मेरा करियर बर्बाद कर दिया © Good News Today द्वारा प्रदत्त Shamshad Begum Birth Anniversary: कभी बुर्के में गाती थीं शमशाद बेगम, और फिर बनीं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका शमशाद बेगम का नाम भले ही आज की पीढ़ी के लिए जाना-पहचाना न हो, लेकिन उनके गीतों का हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री के में एक महत्वपूर्ण स्थान है. साल 1947 की पतंग से "मेरे पिया गए रंगून", 1949 की सीआईडी ​​से "लेके पहला पहला प्यार" और "कहीं पे निगाहें", 1951 की बहार से "सइयां दिल में आना रे", 1954 की आर पार से "कभी आर कभी पार", 1957 की नया दौर का "रेशमी सलवार", 1957 की मदर इंडिया का "होली आई रे कन्हाई", 1960 की फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म का "तेरी महफ़िल में" जैसे गानों के लिए वह आज भी जानी जाती हैं. शमशाद बेगम हिंदी फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में बड़ी हिट रहीं. 1968 की फिल्म किस्मत से "कजरा मोहब्बत वाला" गाना उनके आखिरी हिट गानों में से एक था. पांच भाषाओं में 5000 से अधिक गाने गाने के बावजूद, शमशाद ने 1960 के दशक के अंत में संन्यास ले लिया क्योंकि उन्हें इंडस्ट्री की पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अपने एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा था कि इंडस्ट्री बदलने लगी थी और किसी के काम से ज्यादा महत्व लोग चालाकी और राजनीति को दे रहे थे. ऐसे में, उन्होंने इससे निकलना ही बेहतर समझा. आज हम आपको बता रहे हैं अपने जमाने की सबसे महंगी गायिका शमशाद बेगम के म्यूजिक इंडस्ट्री में सफर के बारे में. स्कूल के प्रिंसिपल ने पहचानी प्रतिभा शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. शमशाद की प्रतिभा को पहली बार उनके प्रिंसि...

सुरीली आवाज की मल्लिका थीं शमशाद बेगम, जिन्होंने 14 बार देखी थी देवदास

लखनऊ। शमशाद बेगम, जिनके गाए गीत अभी भी लोग गुनगुनाते हैं, वो हिन्दी फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्व गायिकाओं में से एक थीं। पिछले कुछ साल में शमशाद बेगम के जितने गीतों को दोबारा रीमिक्स किया गया, शायद ही किसी गायिका के गीतों को किया गया हो। शमशाद बेगम का जन्म आज ही के दिन 14 अप्रैल, सन 1919 को पंजाब राज्य के अमृतसर में हुआ था। वे केएल सहगल की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक़ शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसम्बर, 1947 को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। उस समय में शमशाद बेगम को हर गीत गाने पर पन्द्रह रुपए मिलते थे। संगीतकार नौशाद ने दिया पहला मौका शमशाद बेगम की सम्मोहक आवाज़ ने महान संगीतकार नौशाद और ओ. पी. नैय्यर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था और इन्होंने फ़िल्मों में पार्श्वगायिका के रूप में इन्हें गायन का मौका दिया। इसके बाद तो शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने लोगों को इनका दीवाना बना दिया। पचास, आठ और सत्तर के दशक में शमशाद बेगम संगीत निर्देशकों की पहली पसंद बनी रहीं। शमशाद बेगम ने 'ऑल इंडिया रेडियो' के लिए भी गाया। शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उन्होंने इन्हें अपनी शिष्या बना लिया। लाहौर के संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने इनकी जादुई आवाज़ का इस्तेमाल फ़िल्म 'खजांची' (1941) और 'खानदान' (1942) में किया। वर्ष 1944 में शमशाद बेगम ग़ुलाम हैदर की टीम के साथ मुंबई आ गई थीं। यहां इन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गाया। पिछले ...

अपने दौर की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली सिंगर थीं शमशाद बेगम, परिवार से लड़कर की थी हिंदू से शादी

हिंदी सिनेमा में कालजयी गाने "मेरे पिया गये रंगून" और "कजरा मोहब्बत" जैसे गीतों को अपनी आवाज देने वाली गायिका शमशाद बेगम की आज पुण्यतिथि है। वह 23 अप्रैल 2013 को दुनिया को अलविदा कहकर चली गई थीं लेकिन उनके सुरीले सुर आज भी लोगों के कानों में गूजते हैं। शमशाद बेगम की पुण्यतिथि पर आइए बात करते हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में...

शमशाद बेगम : रोशनी की तरह बिखर जाने वाली आवाज

कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला, मेरी नींदों में तुम, मेरे ख्वाबों में तुम, तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर, हम भी देखेंगे और लेके पहला-पहला प्यार जैसे सदाबहार गीतों की फिल्में और संगीतकार भले ही अलग हैं, लेकिन इनमें एक बात समान है कि इन सभी गीतों को शमशाद बेगम ने अपनी खनकदार आवाज बख्शी है। अपनी पुरकशिश आवाज से हिंदी फिल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सचाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं। करीब चार दशकों तक हिन्दी फिल्मों में एक से बढ़कर एक लोकप्रिय गीतों को स्वर देने वाली शमशाद बेगम बहुमुखी प्रतिभा की गायिका रहीं। साफ उच्चारण, सुरों पर पकड़ और अनगढ़ हीरे सी चारों तरफ रोशनी की तरह बिखर जाने वाली शमशाद की आवाज जैसे सुनने वाले को बाँध ही लेती थी। उन्होंने फिल्मी गीतों के अलावा भक्ति गीत, गजल आदि भी गाए। गायकों और संगीतकारों पर प्राय: यह आरोप लगाया जाता है कि वे संगीत के चक्कर में शब्दों को पीछे धकेल देते हैं या उच्चारण के मामले में समझौता करते हैं। लेकिन शमशाद बेगम के गानों में यह तोहमत कभी नहीं लगाई जा सकी। उस दौर के बेहद मशहूर संगीतकार ओपी नय्यर ने तो एक बार यहाँ तक कहा था कि शमशाद बेगम की आवाज मंदिर की घंटी की तरह स्पष्ट और मधुर है। सीआईडी फिल्म में लोकधुनों पर आधारित गीत ‘‘ बूझ मेरा क्या नाम रे ’’ गाने वाली शमशाद ने संगीतकार सी रामचन्द्रन के लिए ‘‘ आना मेरी जान.. संडे के संडे ’’ जैसा पश्चिमी धुनों पर आधा...

सुरों की मलिका शमशाद बेगम Shamshad Begum Biography in Hindi

सुरों कि मलिका शमशाद बेगम अपने अनोखे स्वर सौन्दर्य से मंत्र मुग्ध करने वाली Shamshad Begum हिन्दुस्तान की सुनहरी पहचान हैं। हिन्दुस्तानी सिनेमा में गीत संगीत का वजूद अपनी स्थापना से ही चला आ रहा है। जिस दौर में, के.एल.सहगल, सुरैया, नूरजहाँ जैसी शख्शीयतों ने हिन्दी सिनेमा में गायकी के नये युग की शुरुवात की। उसी दौर में अर्थात चालीस के दशक में शमशाद बेगम ने पार्श्व गायन के क्षेत्र में अपनी आवाज का जादू इस तरह बिखेरा कि उस आवाज की खनक सिने जगत की पहचान बन गई। उनके गाये गीतों को सुनकर आज भी यही लगता है कि मानों कल की बात हो। जबकी उनके गीतों की उम्र सत्तर सालों से भी अधिक हो चुकी है।शमशाद बेगम की आवज ने कई गीतों को उजियारे से भर दिया। उनकी आवाज एक ऐसी भोर है जहाँ अँधियारे का नामों निशा भी नही है। Shamshad Begum Biography in Hindi शमशाद बेगम की जीवनी 14 अप्रैल 1919 को Shamshad Begum का जन्म अविभाजित भारत के लाहौर शहर में हुआ था। घर परिवार में कोई गवैया नही था, परंतु आमतौर पर शादी-विवाह तथा पर्व-त्योहार पर गाने बजाने का रिवाज लगभग सभी घरों में था। बचपन से ही शमशाद इस तरह के गानों में बढ-चढ कर हिस्सा लेती थीं। उनकी आवाज में एक अज़ब सी कशिश थी, जो हर किसी को आकर्षित कर लेती थी। बचपन से ही ढोलक की संगत में लोकगीतों पर अपनी आवाज को लहराना तथा रमजान पर “नात” एवं मुर्हरम पर “मरसिये” गाकर उन्होने ने अपनी गायकी को जीवन के अलग-अलग भावों तथा रंगो से सजाना शुरू कर दिया था। पाँच वर्ष की उम्र में ही शमशाद अपने स्कूल तथा शहर में जाना-पहचाना नाम बन गईं थीं। कक्षा में शमशाद जब गाना गाती तो कोरस के रूप में कक्षा की सभी लड़कियां उनका साथ देतीं थीं। उनकी गायकी खुदा की नियमत है, जो किसी भी तालीम और ...