श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ

  1. Shree Suktam Path Vidhi
  2. Shri Suktam Path
  3. श्री लक्ष्मी सूक्त पढ़ें
  4. Sri Suktam: श्री सूक्त का पाठ हिंदी अर्थ सहित


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Shree Suktam Path Vidhi

श्री सूक्तम् – देवी लक्ष्मी जी की आराधना के लिए उनको समर्पित संस्कृत में लिखा मंत्र है जिसे हम श्री सूक्त पाठ भी कहते है या लक्ष्मी सूक्त भी कहते है | यह सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है | जो जातक जीवन में हर तरह से सुख भोगना चाहते है – जीवन से गरीबी दूर करना चाहते है | एश्वर्य प्राप्त करना चाहते है उन्हें Shree Suktam Path Vidhi को केवल अपने कानों से सुने और माँ लक्ष्मी का मनन करें | श्री सूक्त पाठ माँ लक्ष्मी जी को अति प्रिय है इसलिए मन में माँ लक्ष्मी जी के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हुए इस पाठ(स्त्रोत) को करें | Shree Suktam Path Vidhi श्री लक्ष्मीसूक्तम्‌ पाठ हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥ प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् । पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन...

Shri Suktam Path

श्री-सूक्त में पन्द्रह ऋचाएं हैं, माहात्म्य सहित सोलह ऋचाएं मानी गयी हैं क्योंकि किसी भी स्तोत्र का बिना माहात्म्य के पाठ करने से फल प्राप्ति नहीं होती । नीचे दिये श्री सूक्त के मंत्रों से श्री सूक्त पाठ – Shri Suktam Path पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि । विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ।। अर्थात- कमल के समान मुख वाली! कमलदल पर अपने चरणकमल रखने वाली! कमल में प्रीती रखने वाली! कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली! सारे संसार के लिए प्रिय! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करने वाली! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें । 1- ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।। 2- तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।। 3- अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् । श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। 4- कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।। 5- चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।। 6- आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः । तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।। 7- उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 8- क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।। 9- गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्व...

श्री लक्ष्मी सूक्त पढ़ें

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्। प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥ धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसुः। धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमस्तु मे॥ वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा। सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥ न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः। भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जापिनाम्॥ सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥ चन्द्रप्रभां लक्ष्मीमैशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमैश्वरीम्। चन्द्र सूर्याग्निसङ्काशां श्रियं देवीमुपास्महे॥ ॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम् सम्पूर्णम् ॥ विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर श्री लक्ष्मी सूक्त (Lakshmi Suktam) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह लक्ष्मीसूक्त (lakshmi suktam path) रोमन में– Read Shri Laxmi Suktam śrī gaṇeśāya namaḥ oṃ padmānane padmini padmapatre padmapriye padmadalāyatākṣi। viśvapriye viśvamano’nukūle tvatpādapadmaṃ mayi sannidhatsva ॥ padmānane padmaūru padmāśrī padmasambhave । tanme bhajasiṃ padmākṣi yena saukhyaṃ labhāmyaham ॥ aśvadāyai godāyai dhanadāyai mahādhane । dhanaṃ me juṣatāṃ devi sarvakāmāṃśca dehi me ॥ putrapautraṃ dhanaṃ dhānyaṃ hastyaśvādigaveratham । prajānāṃ bhavasi mātā āyuṣmantaṃ karotu me ॥ dhanamagnirdhanaṃ vāyurdhanaṃ sūryodhanaṃ vasuḥ । dhanamindro bṛhaspatirvaruṇo dhanamastu me ॥ vainateya somaṃ piba somaṃ pibatu vṛtrahā । somaṃ dhanasya somino mahyaṃ dadātu sominaḥ ॥ na krodho na ca mātsaryaṃ na lobho nāśubhā matiḥ । bhavanti kṛtapuṇyānā...

Sri Suktam: श्री सूक्त का पाठ हिंदी अर्थ सहित

sri suktam श्री सूक्त देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ sri lakshmi suktam भी कहते हैं। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। जो साधक श्री सूक्त का पाठ करता है उससे माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं। Sri Suktam: कैसे करें श्री सूक्त का पाठ Sri Suktam एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर गज लक्ष्मी अर्थात माता लक्ष्मी का वह चित्र जिसमें गजराज माला लेकर उनका अभिषेक कर रहे हैं उसे चौकी पर स्थापना करें। धूप, फल तथा पुष्प आदि अर्पित करें। तत्पश्चात माता को प्रणाम कर श्री सूक्त का पाठ sri suktam आरम्भ करें। प्रत्येक शुक्रवार मां को खीर का भोग लगाते रहें जिससे धन सम्पदा तो आती ही है साथ ही मंगल, शुक्र जैसे ग्रह भी शांत होते हैं तथा जिन जातकों के हाथों में भाग्य रेखा कमजोर होती है वे भी माता लक्ष्मी की कृपा से भाग्यवान सिद्ध होते हैं। श्रीसूक्त ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अन्त में उपलब्ध होता है। सूक्त में मन्त्रों की संख्या पन्द्रह है। सोलहवें मन्त्र में फलश्रुति है। बाद के मन्त्र परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध होते हैं। इनको ‘लक्ष्मीसूक्त’ sri lakshmi suktam के नाम से स्मरण किया जाता है। Sri Suktam: श्री सूक्त | श्री सूक्त के 16 मंत्र ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥१॥ अर्थ– हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंगवाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो। तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥ अर्थ– अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनक...