शुक्ल युग के गद्य की दो प्रमुख विशेषताएं

  1. द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
  2. UP Board Class 10th Hindi
  3. रामचन्द्र शुक्ल
  4. आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
  5. UP Board Class 10th Hindi
  6. द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
  7. आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
  8. द्विवेदी युग के हिन्दी गद्य की विशेषताएँ लिखिए।
  9. रामचन्द्र शुक्ल


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द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

द्विवेदी युग के कवि और उनके ग्रंथ आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन्1903से1916)को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। डॉ. नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल’भी कहा जाता है और इसकी समयावधि1900से1918ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को ‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन्1893से1918ई. तक माना है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है। सन्1903ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने, संपादक बनने के बाद द्विवेदी जी हिंदी भाषा के परिष्कार पर विशेष ध्यान दिया। इन्होंने सरस्वती के माध्यम से कवियों को नायिका भेद जैसे विषय से हट कर अन्य विषयों पर कविता लिखने के लिए प्रेरित किया तथा ब्रजभाषा के स्थान पर काव्यभाषा के रूप में खड़ीबोली का प्रयोग करने का सुझाव दिया ताकि गद्य और काव्य की भाषा में एकरूपता आ सके। द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार,व्याकरण शुद्धता और विराम चिन्हों के प्रयोग पर बल देकर हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की, ‘खड़ीबोली के पद्य पर द्विवेदी जी का पूरा-पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी ऐसे कवियों की भेजी हुई कविताओं की भाषा आदि दुरुस्त करके सरस्वती में छापा करते थे। इस प्रकार कवियों की भाषा साफ होती गई और द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।’ द्विवेदी जी की हिंदी साहित्य में भूमिका एक सर्जक के रूप में उतना नहीं है जितना कि विचारक,दिशा निर्देशक,चिंतक एवं नियामक के रूप में। इस युग में अधिकतर कवियों ने द्विवेदी जी के दिशा-निर्देश के अनुसार काव्य रचना कर रहे थे। किन्तु कुछ कवि ऐसे भी थे जो...

UP Board Class 10th Hindi

विशेष-पाठ्यक्रम के नवीनतम प्रारूप के अनुसार हिन्दी गद्य के विकास का संक्षिप्त परिचय’ के अन्तर्गत केवल शुक्ल और शुक्लोत्तर युग (छायावादोत्तर युग) ही निर्धारित हैं, किन्तु अध्ययन की दृष्टि से यहाँ सभी युगों के विकास से सम्बन्धित प्रश्नों को संक्षेप में दिया जा रहा है, क्योंकि एक-दूसरे से घनिष्ठता के कारण कभी-कभी निर्धारित युग से अलग प्रश्न भी पूछ लिये जाते हैं। लघु उत्तरीय प्रश्न, केवल विस्तृत अध्ययन के लिए दिये गये हैं। इससे प्रायः अतिलघु उत्तरीय प्रश्न ही पूछे जाते हैं, जिसके लिए कुल 5 अंक निर्धारित है। प्रश्न 1 गद्य का अर्थ लिखिए। उत्तर गद्य हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली भाषा का नाम है। इसकी विषय-वस्तु हमारी बोध-वृत्ति पर आधारित होती है तथा इसमें किसी विषय को विस्तार से कहने की प्रवृत्ति या भावना होती है। गद्य वास्तविकता और व्यावहारिकता से ओत-प्रोत होता है। प्रश्न 2 गद्य और पद्य (काव्य) में अन्तर बताइट। उत्तर गद्य मस्तिष्क के तर्कप्रधान चिन्तन की उपज होता है और छन्दबद्ध, भावपूर्ण तथा ओजयुक्त रचनाएँ काव्य कहलाती हैं। गद्य में विस्तार, वास्तविकता तथा व्यावहारिकता अधिक होती है, जबकि काव्य में संकेत-रूप में बात कही जाती है। इसमें काल्पनिकता का प्राधान्य होता है। /> गद्य के द्वारा हम अपने विचारों या भावों को सरल या सहज भाषा के रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं। ज्ञान-विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों की सफल, सरल और बोधगम्य अभिव्यक्ति का माध्यम गद्य ही है। प्रश्न 7 हिन्दी खड़ी बोली गद्य का आविर्भाव किस शताब्दी में हुआ ? उत्तर हिन्दी खड़ी बोली गद्य का आविर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के नवजागरण काल में हुआ। प्रश्न 8 हिन्दी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग किस भाषा में मिलते हैं ? उत्तर हिन्दी ग...

रामचन्द्र शुक्ल

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 कृतियाँ • 2.1 मौलिक कृतियाँ • 2.2 अनूदित कृतियाँ • 2.3 सम्पादित कृतियाँ • 3 भाषा • 4 शैली • 5 साहित्य में स्थान • 5.1 नोट • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ईस्वी में उत्तर प्रदेश [ अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए 1903 से 1908 तक आनन्द कादम्बिनी के सहायक संपादक का कार्य किया। 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। इसी समय से उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे-धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में काशी शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय रामचंद्र शुक्ल को प्राप्त है। वे 2 फरवरी 1941 को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल का देहांत हो गया। कृतियाँ [ ] इस अनुभाग में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (मई 2023) स्रोत खोजें: · · · · शुक्ल की कृतियाँ तीन प्रकार की हैं: मौलिक कृतियाँ [ ] तीन प्रकार की हैं-- आलोचनात्मक ग्रंथ निबन्धात्मक ग्रन्थ उनके निबन्ध मित्रता, अध्ययन आदि निबन्ध सामान्य विषयों पर लिखे गये निबन्ध हैं। मित्रता निबन्ध जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया उच्चकोटि का निबन्ध है जिसमें शुक्लजी की लेखन शैली गत विशेषतायें झलकती हैं। क्रोध निबन्ध में उन्होंने सामाजिक जीवन मे...

आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास

• (1) पूर्व भारतेंदु युग(प्राचीन युग): 13 वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक. • (2) भारतेंदु युग(नवजागरण काल): 1868ईस्वी से 1900 ईस्वी तक। • (3) द्विवेदी युग: 1900 ईस्वी से 1922 ईस्वी तक. • (4) शुक्ल युग(छायावादी युग): 1922 ईस्वी से 1938 ईस्वी तक • (5) शुक्लोत्तर युग(छायावादोत्तर युग): 1938 ईस्वी से 1947 तक। • (6) स्वातंत्र्योत्तर युग: 1947 ईस्वी से अब तक। अनुक्रम • 1 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य • 2 भारतेंदु पूर्व युग • 3 भारतेंदु युग • 4 द्विवेदी युग • 5 शुक्ल युग • 6 शुक्लोत्तर युग • 7 इसे भी देखें • 8 बाहरी कड़ियाँ 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य [ ] हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरुआत 19वीं सदी से ही मानते हैं जबकि कुछ अन्य हिन्दी गद्य की परम्परा को 11वीं-12वीं सदी तक ले जाते हैं। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य की निम्न परम्पराएं मिलती हैं- • (1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है।आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्त्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. • (2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है। इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है। • (3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नहीं होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " ...

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विशेष-पाठ्यक्रम के नवीनतम प्रारूप के अनुसार हिन्दी गद्य के विकास का संक्षिप्त परिचय’ के अन्तर्गत केवल शुक्ल और शुक्लोत्तर युग (छायावादोत्तर युग) ही निर्धारित हैं, किन्तु अध्ययन की दृष्टि से यहाँ सभी युगों के विकास से सम्बन्धित प्रश्नों को संक्षेप में दिया जा रहा है, क्योंकि एक-दूसरे से घनिष्ठता के कारण कभी-कभी निर्धारित युग से अलग प्रश्न भी पूछ लिये जाते हैं। लघु उत्तरीय प्रश्न, केवल विस्तृत अध्ययन के लिए दिये गये हैं। इससे प्रायः अतिलघु उत्तरीय प्रश्न ही पूछे जाते हैं, जिसके लिए कुल 5 अंक निर्धारित है। प्रश्न 1 गद्य का अर्थ लिखिए। उत्तर गद्य हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली भाषा का नाम है। इसकी विषय-वस्तु हमारी बोध-वृत्ति पर आधारित होती है तथा इसमें किसी विषय को विस्तार से कहने की प्रवृत्ति या भावना होती है। गद्य वास्तविकता और व्यावहारिकता से ओत-प्रोत होता है। प्रश्न 2 गद्य और पद्य (काव्य) में अन्तर बताइट। उत्तर गद्य मस्तिष्क के तर्कप्रधान चिन्तन की उपज होता है और छन्दबद्ध, भावपूर्ण तथा ओजयुक्त रचनाएँ काव्य कहलाती हैं। गद्य में विस्तार, वास्तविकता तथा व्यावहारिकता अधिक होती है, जबकि काव्य में संकेत-रूप में बात कही जाती है। इसमें काल्पनिकता का प्राधान्य होता है। /> गद्य के द्वारा हम अपने विचारों या भावों को सरल या सहज भाषा के रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं। ज्ञान-विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों की सफल, सरल और बोधगम्य अभिव्यक्ति का माध्यम गद्य ही है। प्रश्न 7 हिन्दी खड़ी बोली गद्य का आविर्भाव किस शताब्दी में हुआ ? उत्तर हिन्दी खड़ी बोली गद्य का आविर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के नवजागरण काल में हुआ। प्रश्न 8 हिन्दी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग किस भाषा में मिलते हैं ? उत्तर हिन्दी ग...

द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

द्विवेदी युग के कवि और उनके ग्रंथ आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन्1903से1916)को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। डॉ. नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल’भी कहा जाता है और इसकी समयावधि1900से1918ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को ‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन्1893से1918ई. तक माना है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है। सन्1903ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने, संपादक बनने के बाद द्विवेदी जी हिंदी भाषा के परिष्कार पर विशेष ध्यान दिया। इन्होंने सरस्वती के माध्यम से कवियों को नायिका भेद जैसे विषय से हट कर अन्य विषयों पर कविता लिखने के लिए प्रेरित किया तथा ब्रजभाषा के स्थान पर काव्यभाषा के रूप में खड़ीबोली का प्रयोग करने का सुझाव दिया ताकि गद्य और काव्य की भाषा में एकरूपता आ सके। द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार,व्याकरण शुद्धता और विराम चिन्हों के प्रयोग पर बल देकर हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की, ‘खड़ीबोली के पद्य पर द्विवेदी जी का पूरा-पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी ऐसे कवियों की भेजी हुई कविताओं की भाषा आदि दुरुस्त करके सरस्वती में छापा करते थे। इस प्रकार कवियों की भाषा साफ होती गई और द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।’ द्विवेदी जी की हिंदी साहित्य में भूमिका एक सर्जक के रूप में उतना नहीं है जितना कि विचारक,दिशा निर्देशक,चिंतक एवं नियामक के रूप में। इस युग में अधिकतर कवियों ने द्विवेदी जी के दिशा-निर्देश के अनुसार काव्य रचना कर रहे थे। किन्तु कुछ कवि ऐसे भी थे जो...

आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास

• (1) पूर्व भारतेंदु युग(प्राचीन युग): 13 वीं शताब्दी से 1868 ईस्वी तक. • (2) भारतेंदु युग(नवजागरण काल): 1868ईस्वी से 1900 ईस्वी तक। • (3) द्विवेदी युग: 1900 ईस्वी से 1922 ईस्वी तक. • (4) शुक्ल युग(छायावादी युग): 1922 ईस्वी से 1938 ईस्वी तक • (5) शुक्लोत्तर युग(छायावादोत्तर युग): 1938 ईस्वी से 1947 तक। • (6) स्वातंत्र्योत्तर युग: 1947 ईस्वी से अब तक। अनुक्रम • 1 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य • 2 भारतेंदु पूर्व युग • 3 भारतेंदु युग • 4 द्विवेदी युग • 5 शुक्ल युग • 6 शुक्लोत्तर युग • 7 इसे भी देखें • 8 बाहरी कड़ियाँ 19वीं सदी से पहले का हिन्दी गद्य [ ] हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरुआत 19वीं सदी से ही मानते हैं जबकि कुछ अन्य हिन्दी गद्य की परम्परा को 11वीं-12वीं सदी तक ले जाते हैं। आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य की निम्न परम्पराएं मिलती हैं- • (1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है।आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्त्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. • (2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है। इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है। • (3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नहीं होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " ...

द्विवेदी युग के हिन्दी गद्य की विशेषताएँ लिखिए।

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रामचन्द्र शुक्ल

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 कृतियाँ • 2.1 मौलिक कृतियाँ • 2.2 अनूदित कृतियाँ • 2.3 सम्पादित कृतियाँ • 3 भाषा • 4 शैली • 5 साहित्य में स्थान • 5.1 नोट • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ईस्वी में उत्तर प्रदेश [ अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए 1903 से 1908 तक आनन्द कादम्बिनी के सहायक संपादक का कार्य किया। 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। इसी समय से उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे-धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में काशी शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय रामचंद्र शुक्ल को प्राप्त है। वे 2 फरवरी 1941 को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल का देहांत हो गया। कृतियाँ [ ] इस अनुभाग में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (मई 2023) स्रोत खोजें: · · · · शुक्ल की कृतियाँ तीन प्रकार की हैं: मौलिक कृतियाँ [ ] तीन प्रकार की हैं-- आलोचनात्मक ग्रंथ निबन्धात्मक ग्रन्थ उनके निबन्ध मित्रता, अध्ययन आदि निबन्ध सामान्य विषयों पर लिखे गये निबन्ध हैं। मित्रता निबन्ध जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया उच्चकोटि का निबन्ध है जिसमें शुक्लजी की लेखन शैली गत विशेषतायें झलकती हैं। क्रोध निबन्ध में उन्होंने सामाजिक जीवन मे...