शुक्लोत्तर युग के लेखक हैं

  1. छायावादोत्तर युग/शुक्लोत्तर युग
  2. शुक्लोत्तर युग के किसी एक लेखक का नाम? » Shuklottar Yug Ke Kisi Ek Lekhak Ka Naam
  3. छायावादी युग
  4. शुक्लोत्तर युग के आलोचना
  5. MP Board Class 10th Special Hindi गद्य की विविध विधाएँ – MP Board Solutions
  6. बाबू गुलाबराय
  7. UP Board Solutions for Class 11 गद्य
  8. रामचन्द्र शुक्ल


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छायावादोत्तर युग/शुक्लोत्तर युग

छायावादोत्तर युग या शुक्लोत्तर युग (1936 ई. के बाद) का साहित्य अनेक अमूल्य रचनाओं का सागर है, छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग) सन् 1936 ईo से 1947 ईo तक के काल को शुक्लोत्तर युग या छायावादोत्तर युग कहा गया। छायावादोत्तर युग में हिन्दी काव्यधारा बहुमुखी हो जाती है। छायावादोत्तर युग में हिन्दी काव्यधारा दो भागों में विभक्त हो जाती है- • पुरानी काव्यधारा • नवीन काव्यधारा पुरानी काव्यधारा पुरानी काव्यधारा के कवियों को दो धाराओं “राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा” और “उत्तर-छायावादी काव्यधारा” में वर्गीकृत किया गया है। • राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा -सियाराम शरण गुप्त, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सोहन लाल द्विवेदी, श्याम नारायण पाण्डेय आदि। • उत्तर-छायावादी काव्यधारा– निराला, पंत, महादेवी, जानकी वल्लभ शास्त्री आदि। नवीन काव्यधारा नवीन काव्यधारा के कवियों को भी “वैयक्तिक गीति कविता”, “प्रगतिवादी काव्य”, “प्रयोगवादी काव्य” और “नयी कविता” आदि धाराओं में वर्गीकृत किया गया है। • वैयक्तिक गीति कविता धारा (प्रेम और मस्ती की काव्य धारा)– बच्चन, नरेंद्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, भगवती चरण वर्मा, नेपाली, आरसी प्रसाद सिंह आदि। • • • छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग की मुख्य रचना एवं रचयिता या रचनाकार इस list में नीचे दिये हुए हैं। छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग के कवि और उनकी रचनाएँ- छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग के कवि और उनकी रचनाएँ क्रम रचनाकार छायावादोत्तर युगीन रचना 1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हुंकार, रेणुका, द्वंद्वगीत, कुरुक्षेत्र, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, धूप और धुआँ, दिल्ली, रसवंती, उर्वशी। 2. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, ह...

शुक्लोत्तर युग के किसी एक लेखक का नाम? » Shuklottar Yug Ke Kisi Ek Lekhak Ka Naam

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। जी नमस्कार आपका प्रश्न है शुक्लोत्तर युग के किसी एक लेखक का नाम लिखिए शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध लेखक के नाम में हम आपको बता देना चाहिए रामधारी सिंह दिनकर जी शरण गुप्त धर्मवीर भारती रामविलास शर्मा आदि लोग आते हैं धन्यवाद ji namaskar aapka prashna hai shuklottar yug ke kisi ek lekhak ka naam likhiye shuklottar yug ke prasiddh lekhak ke naam mein hum aapko bata dena chahiye ramdhari Singh dinkar ji sharan gupt dharmveer bharati ramvilash sharma aadi log aate hain dhanyavad जी नमस्कार आपका प्रश्न है शुक्लोत्तर युग के किसी एक लेखक का नाम लिखिए शुक्लोत्तर युग के प्

छायावादी युग

Chhayavadi Yug छायावादी युग (1918 ई०-1936 ई०) हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में विभिन्न मतभेद है। छायावाद का अर्थ मुकुटधर पांडे ने “रहस्यवाद, सुशील कुमार ने “अस्पष्टता” महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “अन्योक्ति पद्धति” रामचंद्र शुक्ल ने “शैली बैचित्र्य “नंददुलारे बाजपेई ने “आध्यात्मिक छाया का भान” डॉ नगेंद्र ने “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह”बताया है। छायावाद–“द्विवेदी युग” के बाद के समय को छायावाद कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। “द्विवेदी युग” की प्रतिक्रिया का परिणाम ही “छायावादी युग” है। नामवर सिंह के शब्दों में, ‘छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936 ई० (‘उच्छवास’ से ‘युगान्त’) तक लिखी गई। सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह ‘छायावादी कविता’ है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी : कहो कौन तुम दमयंती सी इस तरु के नीचे सोयी, अहा तुम्हें भी त्याग गया क्या अलि नल-सा निष्ठुर कोई।। छायावादी युग में हिन्दी साहित्य में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर...

शुक्लोत्तर युग के आलोचना

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MP Board Class 10th Special Hindi गद्य की विविध विधाएँ – MP Board Solutions

MP Board Class 10th Special Hindi गद्य की विविध विधाएँ भावों एवं विचारों की स्वाभाविक एवं सरल अभिव्यक्ति गद्य के द्वारा ही होती है। इसी कारण सामाजिक, साहित्यिक तथा वैज्ञानिक आदि समस्त विषयों के लिखने का माध्यम प्रायः गद्य है। Students can also download छन्द, विधान एवं लय के बन्धन से मुक्त रचना गद्य कहलाती है। हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने गद्यकाल कह कर पुकारा है। इस प्रकार हिन्दी में प्रथम बार हिन्दी साहित्य का विकास गद्यात्मक और पद्यात्मक दो प्रकार से हुआ है। – हिन्दी गद्य के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं। गद्य साहित्य की अनेक विधाएँ हैं। उनका विभाजन इस प्रकार है- पाठ्यक्रम के अनुरूप प्रमुख विधाओं का संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है। 1. निबन्ध गद्य की उस रचना को कहते हैं जिसमें लेखक किसी विषय पर अपने विचारों को सीमित सजीव, स्वच्छन्द, सुव्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त करता है। हिन्दी निबन्धों का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है। निबन्ध के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं • वर्णनात्मक, • विवरणात्मक, • विचारात्मक, • भावात्मक, • विवेचनात्मक, • आलोचनात्मक, • व्यंग्यात्मक, • अलंकारिक निबन्ध। 2. कहानी कहानी गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय मनोरंजक विधा है। कहानी साहित्य की वह गद्य रचना है जिसमें जीवन के किसी एक पक्ष का कल्पना प्रधान हृदयस्पर्शी एवं सुरुचिपूर्ण कथात्मक वर्णन होता है। कहानी एक कलात्मक गद्य विद्या है। कहानी के प्रमुख छः तत्त्व निम्नलिखित हैं • कथानक, • पात्र चरित्र-चित्रण, • कथोपकथन (संवाद), • देशकाल तथा वातावरण, • भाषा-शैली, • उद्देश्य। मुंशी प्रेमचन्द तथा जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल आदि कहानीकारों में लोकप्रिय हैं। 3. ...

बाबू गुलाबराय

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 वर्ण्य विषय • 3 भाषा-शैली • 4 कृतियाँ • 5 विरासत • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] बाबू गुलाबराय का जन्म मैनपुरी प्रारंभिक शिक्षा, बसे इटावा जाकर। एम०ए०, डी०लिट हुई आगरा, लिखा 'प्रबंध प्रभाकर'॥ नवरस', 'तर्कशास्त्र', 'ठलुआ क्लब', 'कुछ उथले कुछ गहरे। व्यवहारिक, संस्कृत गर्भित, भाषा शब्द सुनहरे ॥ आलोचना, व्यंग, भाषात्मक, परिचय, आत्मक और व्यंजक। शैली के छः रूप मनोहर, क्रमशः है व्याख्यात्मक ॥ बाबू जी थे प्रथम मनीषी, कलाकार आलोचक। दर्शन के पण्डित प्रकाण्ड थे, थे उच्च व्यंग के लेखक ॥ वर्ण्य विषय [ ] गुलाब राय जी की रचनाएँ दो प्रकार की हैं- दार्शनिक और साहित्यिक। गुलाब राय जी की दार्शनिक रचनाएँ उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम है। उन्होंने सर्व प्रथम हिंदी को अपने दार्शनिक विचारों का दान दिया। उनसे पूर्व हिंदी में इस विषय का सर्वथा अभाव था। गुलाबराय जी की साहित्यिक रचनाओं के अंतर्गत उनके आलोचनात्मक निबंध आते हैं। ये आलोचनात्मक निबंध सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों ही प्रकार के हैं। गुलाबराय जी ने सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक आदि विविध विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाकर हिंदी साहित्य की अभिवृद्धि की है। भाषा-शैली [ ] Read this गुलाबराय जी की भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ी बोली है। उसके मुख्यतः दो रूप देखने को मिलते हैं - क्लिष्ट तथा सरल। विचारात्मक निबंधों की भाषा क्लिष्ट और परिष्कृत हैं। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, भावात्मक निबंधों की भाषा सरल है। उसमें हिंदी के प्रचलित शब्दों की प्रधानता है साथ उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कहावतों और मुहावरों को भी अपनाया गया है। गुलाबराय जी की भाषा आडंबर शून्य है। संस्क...

UP Board Solutions for Class 11 गद्य

प्रश्न 4: प्राचीन ब्रज भाषा गद्य की दो रचनाओं के नाम लिखिए। उत्तर: गोकुलनाथ कृत ‘चौरासी वैष्णवन की वार्ता’ और बैकुण्ठमणि कृत ‘अगहन माहात्म्य’; प्राचीन ब्रज भाषा गद्य की रचनाएँ हैं। प्रश्न 5: खड़ी बोली गद्य की प्रथम प्रामाणिक रचना तथा उसके लेखक का नाम व समय लिखिए। या खड़ी बोली गद्य की प्रामाणिक रचनाएँ कब से प्राप्त होती हैं? उत्तर: रचना – गोरा बादल की कथा। लेखक – जटमल। समय – सन् 1623 ई० (सत्तरहवीं शताब्दी से)। • सदल मिश्र तथा • पं० लल्लूलाल। प्रश्न 8: भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य के चार प्रवर्तकों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए। या कलकत्ता स्थित फोर्ट विलियम कॉलेज के उन दो हिन्दी-शिक्षकों के नाम लिखिए, जिन्हें खड़ी बोली गद्य का प्रारम्भिक उन्नायक माना जाता है। या लल्लूलाल किस कॉलेज में हिन्दी-अध्यापक थे? उनकी प्रसिद्ध रचना का नाम लिखिए। या खड़ी बोली के प्रारम्भिक उन्नायकों में विशेष रूप से जिन चार लेखकों का उल्लेख किया जाती है, उनमें से किन्हीं दो की एक-एक रचना का नाम लिखिए। या नासिकेतोपाख्यान’ के रचयिता कौन हैं? फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना कहाँ हुई थी? उत्तर: भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य के चार प्रवर्तकों के नाम निम्नलिखित हैं • इंशाअल्ला खाँ-रानी केतकी की कहानी। • सदासुखलाल सुखसागर।। • लल्लूलाल-प्रेमसागर। • सदल मिश्र – नासिकेतोपाख्यान। इनमें सदल मिश्र तथा लल्लूलाल कलकत्ता के ‘फोर्ट विलियम कॉलेज में अध्यापक थे। प्रश्न 9: भारतेन्दु युग से पूर्व किन दो राजाओं ने हिन्दी गद्य के निर्माण में योग दिया? या हिन्दी गद्य की उर्दूप्रधान तथा संस्कृतप्रधान शैलियों के पक्षधर दो राजाओं के नाम लिखिए। या भारतेन्दु के उदय से पूर्व की खड़ी बोली के दो भिन्न शैलीकार गद्य-लेखकों के नाम लिखिए...

रामचन्द्र शुक्ल

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 कृतियाँ • 2.1 मौलिक कृतियाँ • 2.2 अनूदित कृतियाँ • 2.3 सम्पादित कृतियाँ • 3 भाषा • 4 शैली • 5 साहित्य में स्थान • 5.1 नोट • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 ईस्वी में उत्तर प्रदेश [ अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए 1903 से 1908 तक आनन्द कादम्बिनी के सहायक संपादक का कार्य किया। 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। इसी समय से उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे-धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में काशी शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय रामचंद्र शुक्ल को प्राप्त है। वे 2 फरवरी 1941 को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल का देहांत हो गया। कृतियाँ [ ] इस अनुभाग में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (मई 2023) स्रोत खोजें: · · · · शुक्ल की कृतियाँ तीन प्रकार की हैं: मौलिक कृतियाँ [ ] तीन प्रकार की हैं-- आलोचनात्मक ग्रंथ निबन्धात्मक ग्रन्थ उनके निबन्ध मित्रता, अध्ययन आदि निबन्ध सामान्य विषयों पर लिखे गये निबन्ध हैं। मित्रता निबन्ध जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया उच्चकोटि का निबन्ध है जिसमें शुक्लजी की लेखन शैली गत विशेषतायें झलकती हैं। क्रोध निबन्ध में उन्होंने सामाजिक जीवन मे...