शूद्र का अर्थ

  1. शूद्र के अर्थ
  2. महाभारत में शूद्र
  3. हिन्दू धर्मशास्त्रों में आए शब्दों का अर्थ जानिए
  4. शूद्र
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शूद्र के अर्थ

महर्षि मनु और मनुस्मृति के सबन्ध में आज सर्वाधिक ज्वलन्त विवाद शूद्रों को लेकर है। पाश्चात्य और उनके अनुयायी लेखकों तथा डॉ. अम्बेडकर र ने आज के दलितों के मन में यह भ्रम पैदा कर दिया है कि मनु ने अपनी स्मृति में उनको घृणित नाम ‘शूद्र’ दिया है और उनके लिए पक्षपातपूर्ण एवं अमानवीय विधान किये हैं। गत शतादियों में शूद्रों के साथ हुए भेदभाव एवं पक्षपातपूर्ण व्यवहारों के लिए उन्होंने मनुस्मृति को भी जिमेदार ठहराया है। इस अध्याय में मनुस्मृति के आन्तरिक प्रमाणों द्वारा इस तथ्य का विश्लेषण किया जायेगा कि उपर्युक्त आरोपों में कितनी सच्चाई है, क्योंकि अन्तःसाक्ष्य सबसे प्रभावी और उपयुक्त प्रमाण होता है। सर्वप्रथम ‘शूद्र’ नाम को लेकर जो गलत धारणाएं बनी हुई हैं, उन पर विचार किया जाता है। (क) जैसे आज की सरकारी सेवाव्यवस्था में चार वर्ण निर्धारित किये हुए हैं-1. प्रथम श्रेणी अधिकारी, 2. द्वितीय श्रेणी अधिकारी, 3. तृतीय श्रेणी कर्मचारी, 4. चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। इनमें समान, सुविधा, वेतन, कार्यक्षेत्र निर्धारण पृथक्-पृथक् है। इन वर्गों के नामों से सबोधित करने में किसी को आपत्ति भी नहीं होती। इसी प्रकार वैदिक काल में समाज व्यवस्था में चार वर्ग थे जिन्हें ‘वर्ण’ कहा जाता था। किसी भी कुल में जन्म लेने के बाद कोई भी बालक या व्यक्ति अभीष्ट वर्ण के गुण, कर्म, योग्यता को ग्रहण कर उस वर्ण को धारण कर सकता था। उनमें ऊंच-नीच, छूत-अछूत आदि का भेदभाव नहीं था। समान, सुविधा, वेतन (आय), कार्यक्षेत्र का निर्धारण पृथक्-पृथक् था। आज के समान तब भी किसी को वर्णनाम से पुकारने पर आपत्ति नहीं थी, न बुरा माना जाता था। आज हम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को पीयन, क्लास फोर, सेवादार, अर्दली, श्रमिक, मजदूर, चपरासी, श्रम...

महाभारत में शूद्र

विवरण उत्पत्ति शूद्र शब्द मूलत: विदेशी है और संभवत: एक पराजित अनार्य जाति का मूल नाम था। पौराणिक संदर्भ वैदिक परंपरा ऐतिहासिक संदर्भ शूद्र जनजाति का उल्लेख डायोडोरस, आर्थिक स्थिति मध्य काल आधुनिक काल वेबर, संबंधित लेख अन्य जानकारी पद से उत्पन्न होने के कारण पदपरिचर्या शूद्रों का विशिष्ट व्यवसाय है। द्विजों के साथ आसन, शयन वाक और पथ में समता की इच्छा रखने वाला शूद्र दंड्य है। शूद्र आर्य थे? दूसरा प्रश्न यह है कि शूद्र आर्य थे या आर्य-आगमन से पहले की जनजाति थे और यदि वे आर्य थे, तो भारत में किस समय आए। शूद्र जनजाति के मानवजातीय वर्गीकरण (एथनोलॉजिकल क्लासीफ़िकेशन) के विषय में परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किये गए हैं। पहले यह माना जाता था कि पहले-पहल जो आर्य आए उनमें से कुछ शूद्र जनजाति के थे, शूद्रों का आगमन यदि शूद्र भारतीय आर्यों से सम्बद्ध थे, तो वे भारत में कब आये? कहा गया है कि वे भारत में आने वाले आर्यों के किसी आरम्भ के दल के थे। यह ज़ोर देकर कहा गया है कि ब्राह्मणों के साथ दीर्घकाल तक संघर्ष करते रहने के फलस्वरूप क्षत्रियों को शूद्र की स्थिति में पहुँचा दिया गया और ब्राह्मणों ने अपने शत्रु क्षत्रियों को अन्तत: उपनयन (यज्ञोपवीत संस्कार) के अधिकार से वंचित कर दिया। • प्रथमत:, ऋग्वेद काल में क्षत्रियों का ऐसा वर्णन कहीं नहीं मिलता है, जिससे पता चले की उनका एक निश्चित वर्ण था तथा उनके कर्तव्य और अधिकार अलग थे। सम्पूर्ण जनजाति के लोग युद्ध और सार्वजनिक कार्यों के प्रबन्ध को अपना कर्तव्य समझते थे। यह कुछ गिने-चुने योद्धाओं का काम नहीं समझा जाता था। आरम्भ से ही विकसित हो रहे योद्धाओं और पुरोहितों के समुदाय ने आर्यों और आर्येतर लोगों के साथ युद्ध में विश् का मार्गदर्शन किया और ...

हिन्दू धर्मशास्त्रों में आए शब्दों का अर्थ जानिए

हिन्दू शास्त्रों में आए बहुत से शब्दों के अर्थ का अनर्थ किए जाने के कारण समाज में भटकाव, भ्रम और विभाजन की‍ स्थिति बनी है। आओ जानते हैं किस शब्द का क्या सही अर्थ है। 1. शूद्र : यह शब्द अक्सर गलत संदर्भों में प्रचारित किया जाता रहा है और इसके अर्थ भी गलत निकाले जाते रहे हैं। 'वेदांत सूत्र' में बादरायण ने 'शूद्र' शब्द को दो भागों में विभक्त किया गया- 'शुक्’ और ‘द्र’, जो ‘द्रु’ धातु से बना है और जिसका अर्थ है, दौड़ना। शंकर ने इसका अर्थ निकाला 'वह शोक के अंदर दौड़ गया’, ‘वह शोक निमग्न हो गया’ (शुचम् अभिदुद्राव)। शूद्र शब्द निकला है शुक् (दुःख)+द्र (बेधित) अर्थात जो दुख से बेधित है वह शूद्र है। हालांकि कुछ विद्वान कहते हैं कि जिसका शुद्ध आचरण न हो उन्हें शूद्र कहा जाता था। ऐसी कई जातियां थीं, जो मांसभक्षण के अलावा शराबादि का सेवन करती थीं उनको शूद्र मान लिया गया था और ऐसे भी लोग थे जिन्होंने समाज के नियमों को तोड़कर अन्य से रोटी-बेटी का संबंध रखा उनको भी शूद्र मान लिया गया और जो काले या मलिच होते थे उनको भी शूद्र मान लिया गया। दूसरा, समाज के वे बहिष्कृत लोग जिन्हें शूद्र माना गया। ऐसा हर देश और धर्म में होता रहा है, जहां इस तरह के लोगों को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। अक्सर यह पढ़ने को मिलता है- 'शूद्र वर्ण'। इस शूद्र शब्द को ही इतिहास को बिगाड़ने वालों ने क्षुद्र, दास, अनार्य में वर्णित किया। वेदों में सबसे बाद में अथर्ववेद लिखा गया जिसमें समाज के ऊंच-नीच की चर्चा मिलती है लेकिन शूद्र शब्द की चर्चा नहीं मिलती। वैदिककाल के अंत के बाद यह शब्द अस्तित्व में आया। वास्तविकता यह है कि आर्थिक तथा सामाजिक विषमताओं के कारण आर्य और आर्येतर दोनों के अंदर श्रमिक समुदाय का उदय हुआ और ये श...

शूद्र

शूद्र संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शूद्रा, शूद्री]१. प्राचीन आर्यों केलोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा औरअंतिम वर्ण ।विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा करना और शिल्प-कला के काम करना माना गया है । यजुर्वेद में शूद्रों कीउपमा समाजरूपी शरीर के पैरों से दी गई है; इसीलिये कुछलोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते हैं । इनके लियेगृहस्थाश्रम के अतिरिक्त और किसी आश्रम में जाने कानिषेध है । आजकल इनमें से कुछ लोग अछूत और अंत्यजसमझे जाते हैं । साधारणतः कोई इस वर्ण के लोगों का अन्नग्रहण नहीं करना ।पर्या०—अवर वर्ण । वृषल । दास । पादज । अंत्यजन्मा । जघन्य ।द्विजसेवक । अंत्यवर्ण । द्विजदास । उपासक । जघन्यज ।२. शूद्र जाति का पुरुष । ३. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश कानाम । ४. बहुत ही खराब । निकृष्ट । ५. सेवक । दास ।

शूद्र

[ ] प्रकाशितकोशों से अर्थ [ ] शब्दसागर [ ] शूद्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ शूद्रा, शूद्री] १. प्राचीन आर्यों के लोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा और अंतिम वर्ण । विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा करना और शिल्प- कला के काम करना माना गया है । यजुर्वेद में शूद्रों की उपमा समाजरूपी शरीर के पैरों से दी गई है; इसीलिये कुछ लोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते है । पर्या॰—अवर वर्ण । वृषल । दास । पादज । अंत्यजन्मा । जघन्य । द्विजसेवक । अंत्यवर्ण । द्विजदास । उपासक । जघन्यज । २. शूद्र जाति का पुरुष । ३. नैऋत्य कोण में स्थित एक देश का नाम । ४. बहुत ही खराब । निकृष्ट । ५. सेवक । दास ।

शूद्र

शूद्र भारतीय वर्ण व्यवस्था में चार वर्गों में से अंतिम था। शूद्र बाद के वैदिक युग में, उन लोगों को संदर्भित करते थे जो मजदूर थे। वेदों के अनुसार, वे भारतीय समाज का आधार बनाते हैं। उन्हें भारतीयों में नौकरों के पद पर नियुक्त किया गया था। यही कारण है कि किसान, कुम्हार, मोची और विक्रेता इस समुदाय के थे। सुद्र जाति व्यवस्था की सबसे निचली श्रेणी है। वर्ण व्यवस्था की अन्य जातियाँ वैश्य (व्यापारी), क्षत्रिय (योद्धा) और ब्राह्मण (पुजारी) हैं; जो भारतीय समाज में उत्तरोत्तर उच्च स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं। शूद्रों की व्युत्पत्ति शूद्र शब्द संस्कृत के शब्द “शुचत द्रवनम” से निकला है जिसका अर्थ है एक व्यक्ति जो पीड़ा या शोक में है। शूद्र शब्द मूल रूप से वैदिक काल में एक जनजाति का था। शब्द ऋग्वेद में भी पाया जा सकता है। ऋग्वेद में शूद्र का पहला और एकमात्र उल्लेख एक पुरुषसूक्त में है। शूद्रों की उत्पत्ति ऋग्वेद के अनुसार शूद्रों की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा के चरणों से हुई है। शूद्रों की उत्पत्ति वर्ग को स्वयं के महत्व के साथ प्रस्तुत करती है। पैर या आधार एक समाज के लिए महत्वपूर्ण है। शूद्रों की सामाजिक स्थिति शूद्रों ने किसी भी तरह का काम किया जो अन्य तीन उच्च वर्गों ने करने से इनकार कर दिया। उन्होंने समाज की सेवा इस तरह से की जैसे कोई दूसरा समुदाय नहीं कर सकता। उन्होंने प्राचीन भारतीय समाज की सहायता प्रणाली का गठन किया। आर्य समाज में शूद्रों को एकदास माना जाता था। बाद में वैदिक युग अपने सामाजिक लचीलेपन के लिए जाना जाता था। कड़ी मेहनत और अच्छी सेवा की सराहना की गई। इसलिए, प्राचीन भारत में शूद्रों को मंदिरों में जानेकी अनुमति दी गई थी और वेदों का प्रचार करने के लिए सुनने की अनुमति दी गई ...