सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिंदी में अनुवाद

  1. श्री सिद्ध कुंजिका स्त्रोत तंत्र प्रयोग
  2. क्या है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि
  3. siddha kunjika stotram can solve these problems of human
  4. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, हिंदी अनुवाद सहित
  5. परम कल्याणकारी है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, अवश्य पढ़ें...
  6. kunjika stotram in hindi


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श्री सिद्ध कुंजिका स्त्रोत तंत्र प्रयोग

Powered by श्री सिद्ध कुंजिका स्त्रोत तंत्र प्रयोग सिद्ध कुंजिका स्त्रोत वास्तव में सफलता की कुंजी ही है। सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है। परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोड़ न लिया जाए तब तक इसके पूर्ण प्रभाव कम ही दिख पाते है। आज हम यहां सिद्ध कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगों के विषय में चर्चा करेंगे। सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है।साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करें। समय रात्रि 10 बजे के बाद का हो और 11:30 बजे के बाद कर पाये तो और भी उत्तम होगा। लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा कि ओर मुख करके बैठ जाये। सामने बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछा दें और उस पर मां दुर्गा का चित्र स्थापित करें। अब मां का सामान्य पूजन करें, तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करें। किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करें, और हाथ में जल लेकर संकल्प लें, कि मैं आज से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हुं, मैं नित्य 9 दिनों तक 51 पाठ करूंगा, मां मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करें तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दें। जल भूमि पर छोड़ दें और साधक 51 पाठ आरम्भ करें। इसी प्रकार साधक 9 दिनों तक यह अनुष्ठान करें। प्रसाद नित्य स्वयं खाए, इस प्रकार कुंजिका स्तोत्र साधक के लिये पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है आसन, स्वयं के वस्त्र, पूजा के वस्त्र, लाल चुनरी सब कुछ लाल, कुमकुम, लाल अक्षत, लाल पुष्प, धूप, घी का दीपक, लाल अनार काट के प्रसाद अब दाहिने हाथ में जल,कुंकुम, अक्षत ले कर निम्न कुंजिका विनियोग करें :-ॐ अस्य श्...

क्या है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि

विशेष रूप से जब अष्टमी तिथि और नवमी तिथि की संधि हो तो अष्टमी तिथि के समाप्त होने से 24 मिनट पहले और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट बाद तक का जो कुल 48 मिनट का समय होता है उस दौरान की माता ने देवी चामुंडा का रूप धारण किया थाऔर चंद तथा मुंड नाम के राक्षसों को मृत्यु के घाट उतार दिया था। यही वजह है कि इस दौरान कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम फलदायी माना जाता है। इस समय को नवरात्रि का सबसे शुभ समय माना गया है क्योंकि इसी समय के समाप्त होने के बाद देवी वरदान देने को उद्यत होती हैं। इसके अतिरिक्त स्त्रोत्र का पाठ दिन में किसी भी समय किया जा सकता है लेकिन विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त के दौरान इसका पाठ करना सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। ब्रह्म मुहूर्त सूर्य उदय होने से एक घंटा 36 मिनट पहले प्रारंभ होता है और सूर्य देव के समय से 48 मिनट पहले ही समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यह कुल 48 मिनट का समय होता है। नवरात्रि के दिनों में तो इस पाठ का सबसे अधिक प्रभाव रहता है। यह एक छोटा सा स्तोत्र है जो संस्कृत में लिखा है। यदि आप संस्कृत भाषा नहीं जानता इस पाठ को संस्कृत भाषा में नहीं कर सकते तो हिंदी में इसका अर्थ जानकर हिंदी भाषा में भी इसका पाठ कर सकते हैं। यदि आप यह भी नहीं कर सकते तो आप केवल इस स्तोत्र को सुन सकते हैं। यदि किसी विशेष कार्य के लिए आप कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं तो आप को शुक्रवार के दिन से प्रारंभ करना चाहिए और संकल्प लेकर ही इसका पाठ करें तथा जितने दिन के लिए आपने पाठ करने का संकल्प लिया था, उतने दिन पाठ करने के बाद माता को भोग लगाकर छोटी कन्याओं को भोजन कराएं और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। इससे आपकी मन वांछित इच्छाएं पूर्ण होंगी। Janta Se Rishta is a l...

siddha kunjika stotram can solve these problems of human

मां दुर्गा को शक्ति शक्ति का रूप माना जाता है और भक्त तरह- तरह के उपाय करके मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं और मां जगदम्बा भक्तों के सभी कष्टों को दूर करतीं हैं। कुछ भक्त नियमित दुर्गा शप्तसती का पाठ करते हैं लेकिन दुर्गा शप्तसती का पाठ करने के लिए समय बहुत अधिक लगता है। साथ ही यह कठिन भी बहुत है और किसी भी स्त्रोत का पाठ करने के लिए उच्चारण शुद्ध होना बहुत जरूरी है। यहां हम आज बात करने जा रहे हैं सिद्ध कुंजिका स्त्रोत की, जिसको परम कल्याणकारी और चमत्कारिक माना जाता है। इस स्त्रोत के पाठ से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के मन्त्र से सिद्ध है और इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती। साथ ही मात्र कुंजिका स्तोत्र के पाठ से सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है। सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करने के लाभ: सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभकारी है। इस पाठ को करने से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। साथ ही उसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस स्त्रोत के पाठ से व्यक्ति को ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति के ऊपर तंत्र- मंत्र के नकारात्मक प्रभाव का असर नहीं होता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ ऐसे करें: इस स्त्रोत का पाठ रात्रि में सबसे उत्तम माना गया है। सर्वप्रथम मां दुर्गा का एक चित्र रखें और फिर एक घी का दीपक जलाएं। इसके बाद लाल आसन पर बैठें। लाल या पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। इसके बाद स्त्रोत करने का संकल्प लें। फिर कुंजिका स्त्रोत का पाठ शुरू करें। श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र शिव ...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, हिंदी अनुवाद सहित

सिद्ध कुंजिका, श्री दुर्गा सप्तसती नामक पुस्तक में अत्यंत एवं अति दुर्लभ गोपनीय से भी अति गोपनीय रहस्यों का भी रहस्य है। इस मंत्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है। इसमें कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, ध्यान, न्यास, पूजा-अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंञ्जिका के पाठ मात्र से ही दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। इस कुंजिका को हमेशा गोपनीय रखना चाहिए। जगत जननी जगदम्बा के विशेष भक्तो को ही देना चाहिए। इस अति उत्तम कुंजिका स्त्रोत के केवल पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यो को सिद्ध करता है। (मारण – काम, क्रोध का नाश, मोहन – ईस्ट देव का मोहन, वशीकरण – मन का वशीकरण, स्तम्भन – इन्द्रियों के विषयो के प्रति उदासीन, उच्चाटन – मोक्ष प्राप्ति के लिए छटपटाहट) इस उद्देश्य से ये सभी, इस स्त्रोत्र का सेवन करने से सफल होते है। सिद्ध कुंजिका मंत्र :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥ नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि। जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ २ ॥ ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका । क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥ चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी। विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥ धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं कूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ ५॥ हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ ६ ॥ ...

परम कल्याणकारी है सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, अवश्य पढ़ें...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। मां दुर्गा के इस पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है उसके समस्त कष्टों का अंत होता है। प्रस्तुत है श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र-

kunjika stotram in hindi

Siddha kunjika stotram | सिद्ध कुंजिका स्तोत्र शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।। न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।। कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।। गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम। पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।। अथ मंत्रः ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।। । इति मंत्रः । नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।। नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि । जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।। ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका । क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते।।३।। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी । विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।। धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।५।। हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी । भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।६।। अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं । धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।। पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा । सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।। इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे । अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्व...