सप्तम कालरात्रि मंत्र

  1. सप्तम देवी
  2. कालरात्रि माता – नवरात्री पूजा सप्तमी दिन माता कालरात्रि
  3. सप्तम कालरात्रि
  4. माँ कालरात्रि, माता के सप्तम स्वरूप कालरात्रि का महत्व और शक्तियां
  5. सप्तम स्वरूप कालरात्रि


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सप्तम देवी

मां दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निरूसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की भंयकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले हाथ में कांटा है। मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अतरू इनसे किसी प्रकार भक्तों भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। ध्यान करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्। अभयंवरदांचौवदक्षिणोर्ध्वाघरूपाणिकाम्घ् महामेघप्रभांश्यामांतथा चौपगर्दभारूढां। घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्घ् सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्। एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्घ् स्तोत्र हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती। कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विताघ् कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी। कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनीघ् क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी। कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमाघ् कवच घ् क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि। ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणीघ् रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम कहौपृष्ठेमहेशान...

कालरात्रि माता – नवरात्री पूजा सप्तमी दिन माता कालरात्रि

नवरात्री पूजा सप्तमी दिन माता कालरात्रि की पूजा एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में कालो का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन ‘गर्दभ (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। अतः भक्तों को इनसे भयभीत नहीं होना चाहिए । दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। साधक के लिए सभी सिध्दैयों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरा...

सप्तम कालरात्रि

उपासना मंत्र : एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता. लम्बोष्ठी कणिर्काकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा. वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ सातवां स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है. इन्हें ‘शुभंकरी’ भी कहा जाता है. ‘कालरात्रि’ केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं. यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं. यह वर्ण और वेश में अद्र्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं. इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है. एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकडक़र दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं. इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है.

माँ कालरात्रि, माता के सप्तम स्वरूप कालरात्रि का महत्व और शक्तियां

माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri): माँ कालरात्रि को माता दुर्गा के नौ रूपों में सातवां स्वरूप माना जाता है। इसलिए कालरात्रि को सातवीं दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। इन्हे देवी पार्वती के समकक्ष माना जाता है। देवी के नाम का अर्थ, काल का अर्थ है मृत्यु / समय और रात्री का अर्थ है रात। देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधकार का नाश करने वाला है। माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri), महत्व और शक्तियां Maa Kaalratri नवरात्रि का सातवां दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति का नाम कालरात्रि है। देवी कालरात्रि श्याम रंग की हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबकि बाएँ दो हाथों में क्रमशः तलवार और खडग हैं। वे गधें की सवारी करती हैं। मां कालरात्रि को लाल रंग प्रिय है। जहां तक ​​संभव हो, भक्त को पूजा के समय उसी रंग के कपड़े पहनने चाहिए। सातवें दिन की पूजा में योगी का मन ‘सहस्रार’ चक्र में प्रविष्ट करता हैं। यह उनकी योग साधना का सातवां दिन होता है। इसके सिद्ध होने से समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है तथा साधक को अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। महत्व मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में तो बहुत डरावना है, इसलिए भक्तों को किसी भी तरह से घबराने या आतंकित होने की जरूरत नहीं है। लेकिन वह हमेशा शुभ फल देती हैं। इसलिए उनका एक नाम ‘ शुभंकारी‘ भी है। मां कालरात्रि दुष्टों का नाश करने वाली हैं। ये ग्रह बाधाओं को दूर करने वाले भी हैं। दैत्य, दानव, भूत, प्रेत आदि उनको याद करने मात्र से ही भय से भाग जाते हैं। माँ के उपासकों को कभी भी अग्नि का भय, जल का भय, पशुओं का भय, शत्रुओं का भय, रात्रि का भय आदि नहीं होता। उनकी कृपा से वह पूर्णतः भयमुक्त हो जाता है। कालरात्रि...

सप्तम स्वरूप कालरात्रि

भगवती का सतवां स्वरूप कालरात्रि है। उनके शरीर का रंग घनघोर अंधकार की तरह एकदम काला है। कालरात्रि माता के सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र है और ये ब्रह्माण्ड के सदृश गोल हैं। इनमें विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सूत होती रहती हैं। नासिका की स्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती हैं। इनका वाहन गदर्भ है। दाहिने तरफ के ऊपर उठे हाथ में वरमुद्रा धारण किए हैं, जबकि नीचे वाले हाथ में खड्ग अभय मुद्रा है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा नीचे की ओर और नीचे वाले हाथ में खड्ग यानी कटार धारण किए हैं। भगवती का यह स्वरूप बेशक देखने में भयानक है, लेकिन भगवती भक्तों का सदा ही कल्याण करती हैं। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी विख्यात है। Advertisment नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक के मन में सहस्त्रार चक्र स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों का द्बार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से भगवती कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके सभी पाप व विध्नों का नाश हो जाता है। साथ ही उसे अक्षय पुण्य लोकों की प्राप्ति होती है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। भक्त की ग्रह बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। अपने कल्याण के लिए भक्त को एक निष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए। यम, नियम व संयम उसे पूर्णतय पालन करना चाहिए। मन, वचन व काया की पवित्रता रखनी चाहिए। मां कालरात्रि के स्वरूप विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके भक्त कष्टों से मुक्ति पा लेता है। सप्तम नवरात्रि में पूजन विधान नवरात्र के सातवे...