सूरदास के दोहे

  1. 20+ सूरदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित
  2. सूरदास के प्रसिद्ध दोहे
  3. Surdas Ke Dohe
  4. Surdas ke Dohe
  5. Surdas Dohe: मैया मोरी मैं नही माखन खायो, पढ़ें सूरदास के दोहे
  6. सूरदास


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20+ सूरदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित

सूरदास का जीवन परिचय (Surdas Biography in Hindi) महाकवि सूरदास ने जनमानस को भगवान श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं से परिचय करवाया था, इनके पदों के माध्यम से लोगों में वात्सल्य के भाव का उदय हुआ। कृष्ण भक्तों में सूरदास का नाम अग्रणी हैं, सूरदास जन्म से ही अंधे थे लेकिन जो सूरदास ने देखा वो आँख वालों को भी नसीब नहीं होता हैं। सूरदास ने अपने गुरु वल्लभाचार्य के सानिध्य में कृष्ण की बाल-लीला सुनी और गुरु की ऐसी कृपा हुई कि जो उन्होंने देखा उसको शब्दों में चित्रित होते हम आज भी देख रहे हैं। 16वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि सूरदास का जन्म 1478 सिरी नाम के गांव जो कि दिल्ली के पास स्थित है, वहां का माना जाता है। लेकिन कुछ लोगों सूरदास का जन्म बृज में हुआ मानते हैं। इनके जन्म की तिथि के अभी तक पक्के प्रमाण नहीं है। इनका जीवन काल 100 वर्ष से भी अधिक का है। सूरदास का परिवार बहुत गरीब था और ये 6 वर्ष की उम्र में परिवार से अलग हो गये थे। सूरदास जी एक महान संत, संगीतकार और कवि थे। सूरदास जी अपने दोहों, रचनाओं, धार्मिक भजनों और कविताओं के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। सूरदास जी बचपन से ही देख नहीं पाते थे और उनकी लगभग सभी रचनाएं श्री कृष्ण पर लिखी हुई है। सूरदासजी ने अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की प्रशंसा का इस प्रकार वर्णन किया है कि उन पर संदेह किया जाता था कि वो सब देख सकते हैं। एक इतिहासकार का मानना है कि एक बार जब रात में सूरदासजी सो रहे थे तो उनके स्वप्न में भगवन श्री कृष्ण आये और उनको यह कहा कि वो वृन्दावन में जाकर अपने पूरे जीवन को भगवान के लिए समर्पित कर दें। सूरदास का जीवन परिचय विस्तार से पढ़ने के लिए यहां पर आज हम यहां पर सूरदास जी के छोटे दोहे हिंदी अर्थ स...

सूरदास के प्रसिद्ध दोहे

Surdas ke dohe in hindi – सूरदास(Surdas) हिन्दी साहित्य और वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। सूरदास जन्म से ही नेत्रहीन थे, लेकिन उनकी रचनाओं में कृष्ण लीलाओं का जो वर्णन मिलता हैं उससे उनके जन्म से अंधा होने पर संदेह होता है। सूरदास की सूरसागर एक सबसे प्रसिद्ध रचना हैं जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे, लेकिन वर्तमान में आठ-दस हजार पद ही मिलते हैं। सूरदास के दोहे भी बहुत प्रसिद्ध हैं। आज हम सूरदास के दोहे/ Surdas Ke Dohe in hindi लेकर आये हैं उम्मीद हैं आपको उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा- Read More– इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै। जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥ चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥ मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो। मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥ तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै। मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥ सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥ बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥ मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै। तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥ सोभित कर नवनीतलिए। कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥ काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी। सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥ कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात। पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥ सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत। सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥ गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल। चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै...

Surdas Ke Dohe

Surdas Ke Dohe: सूरदास जी भक्ति काल के सगुण समय के महाकवि थे। एक ऐसे इंसान जो श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। और यही नहीं, सूरदास जी को हिन्दी साहित्य की अच्छी जानकारी थी। सूरदास जी की रचनाओं में कृष्ण भक्ति का भाव दिखाई देता हैं। जो एक बार भी सूरदास जी की रचनाओं को पढ़ता है, वो कृष्ण की भक्ति में डूब जाता है। आज हम आपको अपने इस लेख में महाकवि सूरदास जी द्वारा रचित सूरदास के दोहे और अर्थ, Surdas Ke Dohe with Meaning के बारे में बताएंगे। यहां आपको सूरदास जी के 5 दोहे नहीं अपितु 12 लोकप्रिय दोहे दिए गए है जो आपको जरूर पसंद आएंगे। यह लेख Class 8 तथा Class 10 के विद्यार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। न सिर्फ सूरदास की रचना इन्हे प्रेम भाव समझाती है बल्कि एक बेहतर नज़रियाँ देती है चीज़ों को देखने का। Surdas का जीवन परिचय। इतिहासकारों के अनुसार Surdas / सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकता नामक गाँव (वर्तमान का आगरा जिला) के एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सूरदास के पिता का नाम रामदास था, जो कि एक गायक थे। सूरदास को आमतौर पर वल्लभ आचार्य की शिक्षाओं से अपनी प्रेरणा प्राप्त करने के रूप में माना जाता है। सूरदास का बचपन मथुरा और आगरा के बीच स्थित गऊघाट पर ही बिता था। सूरदास जी कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे इन्हे उनकी प्रसिद्ध रचना “ सूर सागर” के लिए जाना जाता है। ये ब्रजभाषा भाषा के कवि थे, जिन्हे ब्रजभाषा का महान कवि बताया जाता है। सूरदास द्वारा रचित 5 प्रमुख रचनाओं में सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयंती, ब्याहलो आदि शामिल है। Surdas जी की मृत्यु 1642 विक्रमी (1580 ईस्वी) को गोवर्धन के पास पारसौली गाँव में हुई थी। सम्राट महाराणा प्रताप एवं अकबर सूरदास जी...

Surdas ke Dohe

प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो। समदरसी है नाम तिहारो चाहो तो पार करो|| एक लोहा पूजा में राखत एक रहत ब्याध घर परो| पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो|| एक नदिया एक नाल कहावत मैलो ही नीर भरो| जब दौ मिलकर एक बरन भई सुरसरी नाम परो|| एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो| अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो|| अंखियां हरि-दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि-दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फांसी। केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन हांसी। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ¸ करवत लैहौं कासी।। निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।। अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे। कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥ आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे। ‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥ मधुकर! स्याम हमारे चोर। मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।। पकरयो तेहि हिरदय उर-अंतर प्रेम-प्रीत के जोर। गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।। सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर। सूर¸ स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।। बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं। तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं। बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं। पवन¸ पानी¸ धनसार¸ संजीवनि दधिसुत किरनभानु भई भुंजैं। ये ऊधो कहियो माधव सों¸ बिरह करद करि मारत लुंजैं। सूरदास प्रभु को मग जोवत¸ अंखियां भई बरन ज्यौं गुजैं। प्रीति करि काहू सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों आपै प्रान दह्यो।। अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों¸ संपति हाथ गह्यो। सारंग प्रीति करी जो नाद सों¸ सन्मुख ...

Surdas Dohe: मैया मोरी मैं नही माखन खायो, पढ़ें सूरदास के दोहे

Surdas Dohe: मैया मोरी मैं नही माखन खायो, पढ़ें सूरदास के दोहे Surdas Dohe: मैया मोरी मैं नही माखन खायो, पढ़ें सूरदास के दोहे Surdas Dohe: संत सूरदास (Sant Surdas) दृष्टिहीन थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कृष्ण भक्ति में पगे बेहद सुंदर महाकाव्य और दोहों की रचना की.भगवान कृष्ण ने स्वयं सूरदास की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की थी • Last Updated :April 24, 2021, 11:15 IST 01 Surdas Dohe: संत सूरदास (Sant Surdas) का नाम विश्व-विख्यात है. सूरदास जी भगवान कृष्ण (God Krishna) के अनन्य भक्त थे. सूरदास जी दृष्टिहीन थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कृष्ण भक्ति में पगे बेहद सुंदर महाकाव्य और दोहों को अपनी कलम से गद्य की माला में पिरोया. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने स्वयं सूरदास की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की थी जिस कारण से नेत्रज्योति ना होने के बावजूद सूरदास महाकाव्य की रचना कर लेते थे और किसी के मन में क्या चल रहा है ये भी बड़ी आसानी से समझ जाते थे. सूरदास जी ने ब्रज भाषा में कृष्ण की लीलाओं को बेहद सजीव और सुन्दर तरीके से उकेरा है. सूर की रचनाओं में भक्ति रस और श्रृंगार रस का सुंदर समायोजन है. आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरदास के कुछ दोहे जिनमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का सुन्दर वर्णन है... 02 मैया मोरी मैं नही माखन खायौ ।भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो ।चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो ।।मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो ।ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो ।।तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो ।जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो ।।यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।सूर...

सूरदास

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में मतभेद • 2.1 अष्टछाप के कवि का नाम है • 3 हिंदी काव्य • 4 सूरदास की काव्यगत विशेषताएँ • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय [ ] महाकवि श्री सूरदास का जन्म 1478 ई में रुनकता क्षेत्र में हुआ था| यह गाँव रामदास बैरागी सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में मतभेद [ ] सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है - मुनि पुनि के रस लेख। दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख॥ इसका अर्थ संवत् 1607 ईस्वी में माना गया है, अतएव "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् 1607 वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाण मिलता है कि सूर के गुरु श्री वल्लभाचार्य थे। सूरदास का जन्म सं० 1540 ईस्वी के लगभग ठहरता है, क्योंकि श्री गुरु बल्लभ तत्त्व सुनायो लीला भेद बतायो। सूरदास की आयु " अष्टछाप के कवि का नाम है [ ] सूरदास श्रीनाथ की "संस्कृतवार्ता मणिपाला", श्री हरिराय कृत "भाव-प्रकाश", श्री गोकुलनाथ की "निजवार्ता" आदि ग्रंथों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। लेकिन राधा-कृष्ण के रूप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते। हिंदी काव्य [ ] सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं: • (1) • (2) • (3) • (4) नल-दमयन्ती • (5) ब्याहलो साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर की सारावली। श्रीकृष्ण जी की बाल-छवि पर लेखनी अनुपम चली।। • सूरसागर का मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण की लीलाओं का गान ...