सूरदास के पद की व्याख्या class 10

  1. सूरदास के पद
  2. Ncert Solutions For Hindi Class10 Chapter 1 Surdas
  3. सूरदास के विनय पद /Surdas ke vinay pad
  4. सूरदास के पद प्रश्न उत्तर
  5. सूरदास के पदों की व्याख्या
  6. सूरदास के पद का भावार्थ या व्याख्या


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सूरदास के पद

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Ncert Solutions For Hindi Class10 Chapter 1 Surdas

Ncert Solutions for hindi class10 chapter 1 Surdas free Hindi Anuvaad with Vyakhya given in this section. Hindi Class 10 chapter 1 Surdaas Ke Pad काव्य खंड सूरदास के पद के माध्यम से कवि ने श्री कृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश के बारे में बताया है। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास सन्देश भेजा था। इस सन्देश के बारे में कवि ने इन पदों के माध्यम से बताया है। class 10 Hindi kshitij chapter 1 Sprasang Vyakhya and question answer available free in eteacherg.com। Here We learn what is in this lesson in class 10 hindi ncert solutions in hindi Surdas and solve questions एनसीइआरटी class 10 Hindi kshitij chapter 1 question answer. Ncert Solutions for hindi class10 chapter 1 Surdas is a part NCERT class 10 hindi kshitij are part of class 10 hindi kshitij chapter 1 Hindi Anuwaad. Here we have given ncert solutions for class 10 hindi kshitij chapter 1 prashan uttr Surdaas. hindi class 10 chapter 1 ncert kshitij chapter 1 hindi arth below. These solutions consist of answers to all the important questions in NCERT book chapter 1. Here we solve Ncert Solutions for hindi class10 chapter 1 Surdas Questions and Answers concepts all questions with easy method with expert solutions. It help students in their study, home work and preparing for exam. Soon we provide Sanskrit class 10 ncert solutions Shemushi chapter 1 hindi anuvaad. is provided here according to the latest NCERT (CBSE) guidelines. Students can easily access the hindi translation which include impor...

सूरदास के विनय पद /Surdas ke vinay pad

सूरदास के पद / BA 1st Sem /Surdas ke pad सूरदास के विनय पद अबिगत गति कछु कहति न आवै। ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥ परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥ रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै। सब बिधि अगम बिचारहिं, तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥1॥ प्रभु कौ देखौ एक सुभाइ। अति-गम्भीर-उदार-उदधि हरि , जान-सिरोमनि राइ। तिनका सौं अपने जन कौ गुन मानत मुरू-समान। सकुचि गनत अपराध-समुद्रहिं बूंद-तुल्य भगवानं बदन-प्रसन्न कमल सनमुख है देखत हॉ हरि जैसें। बिमुख भए अकृपा न निमिष हूँ , फिरि चितयौं तो तैसे। भक्त-विरह कातर करूनामय , डोलत पाछै लागे। सूरदास ऐसे स्वामी कौं देहिं पीठि सो अभागे॥2॥ जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं। ता दिन तेरे तन-तरुवर के सबै पात झरि जैहैं। या देही कौ गरब न करियै, स्‍यार-काग-गिध खैहैं। तीननि मैं तन कृमि, कै बिष्‍टा, कै ह्वै खाक उड़ैहैं। कहँ वह नीर, कहाँ वह सोभा, कहँ रँग-रूप दिखैहैं। जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देखि घिनैहैं॥3॥ घर के कहत सबारे काढ़ौ, भूत होइ धरि खै‍हैं। जिन पुत्रनिहिं बहुत प्रतिपाल्‍यौ, देवी-देव मनैहैं। तेई लै खोपरी बाँस दै, सीस फोरि बिखरैहैं। अजहूँ मूढ़ करौ सतसंगति, संतनि मैं कछु पैहैं। नर-बपु धारि नाहिं जन हरि कौं, जम की मार सो खैहैं। सूरदास भगवंत-भजन बिनु बृथा सु जनम गँवैहैं॥4॥ प्रभु हौं सब पतितन कौ टीकौ। और पतित सब दिवस चारि के , हौं तौ जनमत ही कौ। बधिक अजामिल गनिका तारी और पूतना ही कौ। मोहिं छाँड़ि तुम और उधारे , मिटै सूल क्यौं जी कौ। कोऊ न समरथ अघ करिबे कौं , खैंचि कहत हौं लीको। मरियत लाज सूर पतितन में , मोहुँ तैं को नीकौ ! ॥5॥ मो सम कौन कुटिल खल कामी। तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबक...

सूरदास के पद प्रश्न उत्तर

आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10 का पाठ-1 (NCERT Solutions For Hindi Class 10 Chapter 1) के सूरदास के पद पाठ का प्रश्न-उत्तर (Surdas ke Pad Hindi Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है जो कि सूरदास (Surdas) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं। Hindi Class 10 Chapter 1 : Surdas ke Pad Class 10 Question Answer सूरदास के पद पाठ का प्रश्न-उत्तर प्रश्न : 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ? उत्तर :- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि वे उद्धव के हृदय में प्रेम की भावना का अभाव है । यही कारण है कि कृष्ण से बिछड़े हुए गोपियों की विरह वेदना को वे समझ नही पा रहे है। गोपियों द्वारा उद्धव की भाग्यवान कहना ,ऐसा लगता है कि वे प्रशंसा कर रही हैं किंतु वास्तव में कहना चाह रही हैं कि उद्धव बड़े अभागे है कि वे प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न किसी के हो सके, न किसी को अपना बना सके।इसलिए गोपियाँ व्यंग्य रुप में उद्धव को भाग्यवान कहती है। प्रश्न : 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ? उत्तर :- उद्धव के व्यवहार की तुलना दो वस्तुओं से की गई है • कमल के पत्ते से जो पानी में रहकर भी गीला नहीं होता है। • तेल में डूबी गागर से जो तेल के कारण पानी का उसपर कोइ असर नही होता। प्रश्न : 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ? उत्तर :- गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं । उद्धव जब मथुरा से गोपियों के लिए योग संदेश लेकर आते हे, तब गोपियाँ उन्हहें उलाह...

सूरदास के पदों की व्याख्या

प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ' क्षितिज (भाग-2)' में संकलित सूरसागर के भ्रमरगीत संबंधी पदों से लिया गया है। इसके रचयिता अनन्य कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी हैं। इस पद में गोपियां कृष्ण-सखा उद्धव को व्यंग करते हुए कहती हैं कि वह बड़ा भाग्यवान है, जो प्रेम के फेर में नहीं पड़ा अन्यथा उसे भी प्रेम की व्यथा को उन्हीं की भांति सहना पड़ता। व्याख्या: इन छंदों में गोपियाँ ऊधव से अपनी व्यथा कह रही हैं। वे ऊधव पर कटाक्ष कर रही हैं , क्योंकि उन्हें लगता है कि ऊधव तो कृष्ण के निकट रहते हुए भी उनके प्रेम में नहीं बँधे हैं। गोपियाँ कहती हैं कि ऊधव बड़े ही भाग्यशाली हैं क्योंकि उन्हें कृष्ण से जरा भी मोह नहीं है। ऊधव के मन में किसी भी प्रकार का बंधन या अनुराग नहीं है बल्कि वे तो कृष्ण के प्रेम रस से जैसे अछूते हैं। वे उस कमल के पत्ते की तरह हैं जो जल के भीतर रहकर भी गीला नहीं होता है। जैसे तेल से चुपड़े हुए गागर पर पानी की एक भी बूँद नहीं ठहरती है, ऊधव पर कृष्ण के प्रेम का कोई असर नहीं हुआ है। ऊधव तो प्रेम की नदी के पास होकर भी उसमें डुबकी नहीं लगाते हैं और उनका मन पराग को देखकर भी मोहित नहीं होता है। गोपियाँ कहती हैं कि वे तो अबला और भोली हैं। वे तो कृष्ण के प्रेम में इस तरह से लिपट गईं हैं जैसे गुड़ में चींटियाँ लिपट जाती हैं। प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ' क्षितिज (भाग-2)' में संकलित सूरसागर के भ्रमरगीत संबंधी पदों से लिया गया है। इसके रचयिता अनन्य कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी हैं। इस पद में गोपियां कृष्ण-सखा उद्धव के समक्ष यह स्वीकार करके कि उनके मन की अभिलाषाए मन में ही रह गई, कृष्ण के प्रति अपने प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती हैं। व्याख्या: इस छंद में गोपियाँ अपन...

सूरदास के पद का भावार्थ या व्याख्या

संदर्भ: प्रस्तुत पद कृष्ण भक्तिधारा के अन्यतम कवि, वात्सल्य सम्राट ‘सूरदास’ जी द्वारा रचित ‘वात्सल्य के पद’ से अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तिका‘हिन्दी पाठ-संचयन’ में संकलित है। प्रसंग : प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने श्री कृष्ण की बाल लीला का बड़ा हीं सुंदर और मनोरम चित्र प्रस्तुत किया है। बालक श्री कृष्ण माता यशोदा से अपने बड़े भाई बलराम की शिकायत करते हैं। जब बलराम और अन्य ग्वाल-बाल उन्हे उनके साँवले रूप को लेकर चिढ़ाते हैं, तो वे माता यशोदा से उनकी शिकायत करते हैं। व्याख्या : बालक श्री कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि हे मैया! मुझे बलराम भैया बहुत चिढ़ाते हैं। वे मुझसे कहते हैं कि तुम्हें माता यशोदा ने जन्म नहीं दिया है, तुम तो खरीद कर लाये गए हो। मैं इसी क्रोध के कारण खेलने भी नहीं जाता हूँ। वे बार-बार मुझसे पूछते हैं कि मेरे माता-पिता कौन हैं? नन्द बाबा और यशोदा मैया दोनों हीं गोरे हैं, फिर तुम साँवले क्यों हो? सभी ग्वाल-बाल चुटकी बजा-बजा कर मुझपे हँसते हैं और मुसकुराते हैं। श्रीकृष्ण चिढ़कर कर कहते हैं कि तुम तो केवल मुझे हीं मारना सीखी हो, बलराम भैया पर तो कभी क्रोध भी नहीं करती हो। बालक कृष्ण के मुख से ये क्रोधपूर्ण बातें सुन कर माता यशोदा मन हीं मन बहुत प्रसन्न होती हैं। वे स्नेहपूर्वक कृष्ण से कहती हैं कि बलराम तो जन्म से हीं चुगलखोर और धूर्त है। मैं गोधन की सौगंध खा कर कहती हूँ कि मैं हीं तुम्हारी माँ हूँ और तुम हीं मेरे प्रिय पुत्र हो। कृष्ण के प्रति माता यशोदा का यह वात्सल्य देखते हीं बनता है। काव्य सौंदर्य/विशेष: 1. प्रस्तुत पद में श्री कृष्ण के बाल स्वभाव का सजीव चित्रण है। 2. प्रस्तुत पद से यह ज्ञात होता है कि सूरदास जी बाल-मनोवृत्ति के कुशल पारखी हैं।...