स्वामी दयानंद का जन्म कहां हुआ था

  1. स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय
  2. सिद्धेश्वर स्वामी
  3. समाज सुधारक और सच्चे देशभक्त, स्वामी दयानंद सरस्वती की कहानी
  4. स्वामी दयानंद सरस्वती, दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ? दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई? आर्य समाज की उत्पत्ति कैसे हुई? आर्य किसकी पूजा करते थे?
  5. महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय


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स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय

दयानंद सरस्वती ब्रह्म को निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ मानते हैं। साथ ही वे जीवात्माओं एवं पदार्थों के स्वतंत्र अस्तित्व को भी स्वीकार करते है। उनके अनुसार ब्रह्म या ईश्वर इस ब्रह्माण्ड का कर्ता है, पदार्थ जन्य इसके उपादान का कारण है और जीवात्माएँ इसके सामान्य कारण। अर्थात् पदार्थ जन्म जगत भी वास्तविक है, यर्थाथ है। दयानंद मूर्तिपूजा के घोर विरोधी तथा एकेश्वरवाद के कट्टर समर्थक थे। चौदह वर्ष की अवस्था में (1837 ई0 में) एक ऐसी घटना घटी जिसने बालक मूलशंकर के मानस को ही बदल दिया। शिवरात्रि के त्योहार पर उपवास का व्रत किए लोग रात्रि-जागरण कर रहे थे। मूलशंकर भी उनमें से एक था। रात बीतती गई- अन्य भक्तों के साथ उनके पिता भी सो गए। तभी एक घटना घटी। एक छोटी-सी चुहिया शिव जी की मूर्ति पर चढ़ कर प्रसाद खाने लगी। किशोर मूलशंकर के मन में प्रश्न उठा क्या यही सर्वशक्तिमान शंकर है? अगर ये शंकर है तो इन पर चुहिया कैसे चढ़ सकती है? उसकी आस्था डगमगा गई। उसने निश्चय किया कि इस बलहीन, प्राणहीन मूर्ति की जगह वह सच्चे शिव का दर्शन करेगा। कालान्तर में यही किशोर उन्नीसवीं सदी के एक प्रखर और जुझारू समाज-सुधारक के रूप में विख्यात हुआ। चारों ओर फैले पाखण्ड, दम्भ और अन्धविश्वासों पर चोट करता हुआ उसने भारत को वैज्ञानिक युग में ले जाने की राह दिखाया। जिस समय मूलशंकर के हृदय में प्रश्नाकुलता उमड़-घुमड़ रही थी भारत पर अंग्रेजो का आधिपत्य स्थापित हो चुका था। विदेशी शासकों के साथ उनकी सभ्यता एवं संस्कृति भी आई थी। वे भारतीयों को‘असभ्य’ मानते थे तथा इन्हें‘सभ्य’ बनाने हेतु उन्होंने दो मार्ग अपनाए- एक था, ईसाई धर्म की श्रेष्ठता दिखाने के लिए हिन्दू धर्म पर उसकी कुरीतियों का प्रदर्शन करके सीधा ...

सिद्धेश्वर स्वामी

अनुक्रम • 1 प्रारंभिक जीवन • 2 धार्मिक जीवन • 3 व्यक्तिगत जीवन व मृत्यु • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ प्रारंभिक जीवन [ ] स्वामी का जन्म सिद्दागोंडा ओगप्पा बिरादर के रूप में 5 सितंबर 1940 को कृषकों के लिंगायत परिवार में हुआ था। उनके पिता एक जमींदार थे और उनके छह बच्चे थे - तीन बेटे और तीन बेटियाँ, जिनमें स्वामी सबसे बड़े थे। छोटी उम्र से ही उन्हें आध्यात्मिक मामलों में गहरी दिलचस्पी थी और उन्होंने अपना अधिकांश समय धार्मिक जीवन [ ] स्वामी ने अपनी दीक्षा के बाद कई वर्षों तक हिंदू शास्त्रों, विशेष रूप से स्वामी ज्ञानयोगश्रम के प्रमुख थे, जो भारतीय राज्य कर्नाटक में विजयपुरा (पूर्व में बीजापुर) में एक आश्रम था। विभिन्न योगिक सिद्धांतों, और सरल भाषा का उपयोग करते हुए जटिल दार्शनिक विषयों पर उनके प्रवचनों ने धार्मिक बाधाओं से परे बड़ी संख्या में अनुयायियों को आकर्षित किया। उनके प्रवचन बासवन्ना के शरणा साहित्य और स्थानीय भाषा के अन्य महाकाव्यों के उपाख्यानों पर आधारित थे। उन्हें व्यक्तिगत जीवन व मृत्यु [ ] स्वामी ज्ञानयोगश्रम आश्रम के भीतर दो कमरों के मकान में रहते थे। उनकी 2 जनवरी 2023 को मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी वसीयत में अनुरोध किया कि उनके लिए कोई स्मारक नहीं बनाया जाए। बाद में आश्रम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। सन्दर्भ [ ] • '". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2018-01-28 . अभिगमन तिथि 2023-06-07. • 'Burn my body sans any rituals and don't build any memorial': Siddeshwara Swamy of Karnataka, who refused Padma Shri, is no more". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2023-01-03 . अभिगमन तिथि 2023-06-07. • The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2023-01-03. . अभिगमन तिथि 2023-06-07. ...

समाज सुधारक और सच्चे देशभक्त, स्वामी दयानंद सरस्वती की कहानी

Story of Swami Dayanand Saraswati स्वामी दयानंद सरस्वती को आर्य समाज के संस्थापक और आधुनिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्त्रोत के तौर पर जाना जाता है। इन्होंने धार्मिक कर्मकांडों, सामाजिक कुप्रथा और अंग्रेजों का जमकर विरोध किया। इसलिए स्वामी दयानंद को धर्म सुधारक, समाज सुधारक और राष्ट्रप्रेमी के रूप में जाना जाता है। जानते हैं स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात में हुआ। बताते हैं कि स्वामी दयानंद का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था इसलिए इनके माता पिता ने मूलशंकर नाम रख दिया। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति थे। स्वामी दयानंद बचपन से ही बुद्धिमान बालक थे जिसका परिचय उन्होंने कुछ इस तरह दिया। उन्होंने मात्र पांच साल की उम्र में ही देवनागरी लिपि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था साथ ही सारे वेद याद कर लिये। अपने जीवन से जुड़ी जरूरी घटनाओं के चलते ही वे समाज सुधारक बने। पहली घटना स्वामी दयानंद सरस्वती के पिता काफी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। एक दिन बचपन में दयानंद अपने पिता के साथ शिवरात्रि के दिन मंदिर में रूक गए। उनका सारा परिवार सो चुका था। लेकिन वे जागते रहे। उन्हें लगा कि भगवान शिव आयेंगे और प्रसाद ग्रहण करेंगे। लेकिन उन्होंने देखा कि भगवान तो नहीं आये, चूहे जरूर आये। जिनमें से एक बड़ा सा चूहा शिव की मूर्ति के आगे रखा भोग खाने लगा। ये देखकर वे हैरान हो गए। तब उनकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी। वे सोचने लगे कि जो ईश्वर स्वयं को चढ़ाये गये प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता वह मानवता की रक्षा क्या करेगा? इस बात पर उनका अपने पिता से तर्क वितर्क भी हुआ। उन्होंने क...

स्वामी दयानंद सरस्वती, दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ? दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई? आर्य समाज की उत्पत्ति कैसे हुई? आर्य किसकी पूजा करते थे?

दर्शन वेदों की ओर चलो, आधुनिक भारतीय दर्शन खिताब/सम्मान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रणेता धर्म हिन्दू स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई? स्वामी दयानंद सरस्वती का निधन एक वेश्या के कुचक्र से हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती को जोधपुर के महाराज यशवंत सिंह ने आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। स्वामी दयानंद जोधपुर गए और एक दिन वहां के दरबार में महाराज की वेश्या नन्हींजान को समीप देखकर उसकी कड़ी आलोचना कर दी। दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ? 12 फ़रवरी 1824 दयानंद सरस्वती ने शिक्षा पर विशेष जोर क्यों दिया? समाज सुधारक व शिक्षा के पक्षधर थे महर्षि दयानंद सरस्वती सरला भारद्वाज ने कहा कि महर्षि दयानंद समाज सुधारक, योगी और समाज एवं राष्ट्र को दिशा देने वाले महापुरूष थे। उन्होंने वेदों के आधार पर घोषणा की कि जन्म से सब शुद्ध होते है। संस्कारों से ही व्यक्ति श्रेष्ठ होते है। … उन्होंने नारी शिक्षा पर विशेष जोर दिया। दयानंद सरस्वती के अनुसार संस्कार कितने प्रकार के हैं? इसमें प्रथम ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना, पुनः स्वस्तवाचन, शान्तिपाठ, तदनन्तर सामान्य-प्रकरण, पश्चात् गर्भाधानादि अन्त्येष्टिपर्यन्त सोलह संस्कार क्रमशः लिखे हैं और यहाँ सब मन्त्रों का अर्थ नहीं लिखा है, क्योंकि इसमें कर्मकाण्ड का विधान है, इसलिए विशेषकर क्रिया-विधान लिखा है और जहाँ-जहाँ अर्थ करना आवश्यक है, वहाँ- … बीमार अवस्था में दयानंद जी को जोधपुर से कहाँ ले जाया गया? बाद में जब स्वामी दयानंद को जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। बाद में जब स्वामी दयानंद की तबीयत बहुत खराब होने लगी तो उन्हें अजमेर के अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन तब तक काफी विलम्ब हो चुका था। राजतंत्र पर दयानंद सरस्वती के वि...

महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय

स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय – आज की इस पोस्ट में स्वामी महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनमोल विचार, राजनितिक विचार, स्वामी की जीवनी, स्वामी के गुरु, स्वामी द्वारा लिखित पुस्तकें, स्वामी के गुरु का नाम, स्वामी के द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण सुधार कार्य इत्यादि पर विस्तृत लिखा गया है। स्वामी दयानंद सरस्वती एक समाज सुधारक और व्यावहारिकता में विश्वास रखने वाले थे। उन्होंने हिंदू धर्म के कई अनुष्ठानों के खिलाफ अभियान चलाया। उन अनुष्ठानों के खिलाफ अभियान चलाने के कुछ मुख्य कारण थे मूर्ति पूजा, जातिगत भेदभाव, पशु बलि, और महिलाओं को वेद पढ़ने की अनुमति नहीं देना। • • • • • • • • • • • • • • • • • • • स्वामी दयानंद सरस्वती का सामान्य परिचय • पूरा नाम: – महर्षि दयानंद सरस्वतीं • बचपन का नाम – मूल शंकर अम्बाशंकर तिवारी • पिता – अम्बाशंकर • माता – अमृतबाई • जन्म: – 12 फरवरी 1824 • जन्म स्थान: – टंकारा • मृत्यु: – 30 अक्टूबर 1883 • कार्य: – समाज सुधारक, सन्यासी, देशभक्त • शिक्षा – वैदिक ज्ञान • गुरु – विरजानन्द • उपलब्धि – आर्य समाज के संस्थापक, ‘स्वराज्य’ का नारा देने वाले पहले व्यक्ति। स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मूलशंकर था। उनके पिता एक कर संग्रहकर्ता थे और माता एक गृहिणी थीं। स्वामी जी का बचपन समृद्धशाली था और उनमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने शुरू से ही वेद-शास्त्र, धार्मिक पुस्तकें और संस्कृत भाषा का अध्ययन किया। एक घटना के बाद उनके जीवन में बदलाव आया और 1846 में 21 साल की उम्र में उन्होंने तपस्या का जीवन चुना और अपना घर छोड़ दिया। जीवन के सत्य को जानने की इच्छा उनमें प्रब...