स्वामी दयानंद सरस्वती का संबंध राजस्थान के किस जिले से रहा था

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  5. सत्यार्थ प्रकाश: स्वामी दयानंद सरस्वती जी का मुख्य साहित्य
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स्वामी दयानन्द सरस्वती का सम्बन्ध राजस्थान के किस जिले से रहा था? Archives

(A) अजमेर (B) जयपुर (C) कोटा (D) भरतपुर Answer: A स्वामी दयानन्द सरस्वती का प्रारम्भिक नाम मूलशंकर अंबा शंकर तिवारी था। इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा गुजरात में हुआ था। दयानंद सरस्वती पहली बार जून 1865 में करौली के राज्य अतिथि के रूप में राजस्थान आए थे। उन्होंने किशनगढ़, जयपुर, पुष्कर, और अजमेर … Categories Tags

दयानंद सरस्वती

12:32, 25 सितम्बर 2011 (IST) महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (जन्म- परिचय प्राचीन ऋषियों के वैदिक सिद्धांतों की पक्षपाती प्रसिद्ध संस्था, जिसके प्रतिष्ठाता स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म • घर का जीवन(1824-1845), • भ्रमण तथा अध्ययन (1845- • प्रचार तथा सार्वजनिक सेवा। (1863- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ स्वामी दयानन्द जी के प्रारम्भिक घरेलू जीवन की तीन घटनाएँ धार्मिक महत्त्व की हैं: • चौदह वर्ष की अवस्था में मूर्तिपूजा के प्रति विद्रोह (जब • अपनी बहिन की मृत्यु से अत्यन्त दु:खी होकर संसार त्याग करने तथा मुक्ति प्राप्त करने का निश्चय। • इक्कीस शिक्षा बहुत से स्थानों में भ्रमण करते हुए इन्होंने कतिपय आचार्यों से शिक्षा प्राप्त की। प्रथमत: दयानन्द सरस्वती हुई। Dayanand Saraswati फिर इन्होंने योग को अपनाते हुए वेदान्त के सभी सिद्धान्तों को छोड़ दिया। स्वामी विरजानन्द के शिष्य सच्चे ज्ञान की खोज में इधर-उधर घूमने के बाद मूलशंकर , जो कि अब स्वामी दयानन्द सरस्वती बन चुके थे, हरिद्वार में गुरु की आज्ञा शिरोधार्य करके महर्षि स्वामी दयानन्द ने अपना शेष जीवन इसी कार्य में लगा दिया। हिन्दी में ग्रन्थ रचना आर्यसमाज की स्थापना के साथ ही स्वामी जी ने इन्होंने आर्य समाज की स्थापना हिन्दी भाषा का प्रचार स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए अन्य रचनाएँ स्वामी दयानन्द द्वारा लिखी गयी महत्त्वपूर्ण रचनाएं - सत्यार्थप्रकाश ( महापुरुषों के विचार स्वामी दयानन्द सरस्वती के योगदान और उनके विषय में विद्वानों के अनेकों मत थे- • डॉ. भगवान दास ने कहा था कि स्वामी दयानन्द हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता थे। • • • • फ्रेञ्च लेखक रोमां रोलां के अनुसार स्वामी दयानन्द राष्ट्रीय भावना और जन-जागृति क...

दयानंद सरस्वती(Dayanand Saraswati)

दयानंद सरस्वती(Dayanand Saraswati) प्रश्न =1 दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ ? (अ) 1824✔ (ब) 1825 (स) 1826 (द) 1827 प्रश्न =2 स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम क्या था ? (अ) रमा शंकर (ब) देवीशंकर (स) मूलशंकर✔ (द) आदि शंकर प्रश्न =3 “दयानंद इलियड अथवा गीता के प्रमुख नायक के समान थे, जिसने हरक्यूलिस कि सी शक्ति के साथ हिंदू अंधविश्वासों पर प्रबल प्रहार किये । वस्तुत: शंकराचार्य के बाद इतनी महान बुद्धि का संत दूसरा नहीं जन्मा |” निम्न कथन किसका है (अ) एनी बेसेंट (ब) रोमा रोला✔ (स) रामधारी सिंह दिनकर (द) महात्मा गाँधी प्रश्न =4 आर्य समाज की स्थापना कब हुई ? (अ) 10 अप्रैल 1874✔ (ब) 10 अप्रैल 1835 (स) 10 अप्रैल 1875 (द) 10 अप्रैल 1834 प्रश्न =5 ” वेद हमारे लिए मनुष्य कि बुद्धि के सबसे प्राचीन परिच्छेद को दिखाने वाले है |” निम्नांकित कथन किस विद्वान का है (अ) मैकडोनाल्ड (ब) विल्सन (स) जैकोबी (द) मैक्समुलर✔ प्रश्न =6 निम्न में से कौन सी पुस्तक दयानंद की कृतियों में सम्मिलित नहीं है :- (अ) सिद्धांत कौमुदी✔ (ब) ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका (स) वेदांग प्रकाश (द) अष्टाध्यायी भाषा प्रश्न =7 दयानंद नें वेदों में वर्णित ज्ञान के विशाल भंडार को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है, ये चार श्रेणियां है :- (अ) कर्म, चिंतन, उपासना व ज्ञान (ब) ब्रह्म ज्ञान, परा, अपरा व कर्म (स) विज्ञान, कर्म, उपासना व ज्ञान✔ (द) विज्ञान, ज्ञान, उपासना व ब्रह्म विद्या | प्रश्न =8 निम्न में से कौन सा, राष्ट्रवाद के संबंध में दयानंद के आग्रहो से संगत नहीं है :- (अ) स्वदेशी और विदेशी के मध्य विवेक सम्मत संतुलन✔ (ब) सामाजिक एकता के माध्यम से राष्ट्र की सुदृढता पर बल (स) हिन्दी भाषा के प्रयोग पर बल (द) भारतीयों में निर्भिक...

Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi

Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी Swami Dayanand Saraswati स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1825 ईस्वी को गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ के मौरवी राज्य के टंकारा ग्राम में हुआ था | उनका बचपन का नाम मूलशंकर था | Swami Dayanand Saraswati स्वामी दयानंद के पिता का नाम करसनजी तिवाडी और माँ का नाम यशोदाबाई था | करसनजी एक बड़े जमींदार और सरकार के राजस्व विभाग में तहसीलदार थे | अपने आस पास के क्षेत्रो में उनका अच्छा ख़ासा प्रभाव था और वो शैव मत के अनुयायी थे | विवाह के पन्द्रह वर्ष तक सन्तान नही होने के कारण यशोदाबाई की बहन से करसनजी के दुसरे विवाह की चर्चा होने लग गयी थी लेकिन तभी यशोदाबाई गर्भवती हो गयी थी | जब यशोदाबाई ने पुत्र को जन्म दिया तो पुरे परिवार में खुशियां छा गयी | बालक के जन्म के 100 दिन बाद उसका नामकरण हुआ | माता वैष्णव होने के कारण बालक का नाम विष्णु पर जबकि पिता शैव होने के कारण उसका नाम शिव रखना चाहते थे | अंत में बालक का नाम दयाराम मूलशंकर रखा गया था | जब मूलशंकर पांच वर्ष के हुए तब करसनजी उन्हें अपने हाथो से पकडकर लिखना पढना सिखाते थे | उनको प्रतिदिन रामायण ,महाभारत और पुरानो की कथाये सुनाई जाती थी | जब मूलशंकर आठ वर्ष के हुए तब उनका यज्ञोपवीत संस्कार बड़ी धूमधाम से कराया गया | मूलशंकर बड़ी ही तीव्र बुद्धि का बालक था जिसे जो भी पढ़ाया जाता था उसे कभी नही भूलता था | करसनजी मूलशंकर को संस्कृत व्याकरण और वेदों का पाठ भी पढ़ाते थे | 14 वर्ष की आयु में मूलशंकर को सम्पूर्ण यजुर्वेद सहिंता और कुछ अन्य वैद स्मरण हो गये थे | जब कभी शिवपुराण की कथा होती थी तो पिता मूल शंकर को अपने साथ बैठ...

सत्यार्थ प्रकाश: स्वामी दयानंद सरस्वती जी का मुख्य साहित्य

स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म भारत के गुजरात राज्य में सन 1824 ईस्वी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । वे बचपन से ही हिंदू धर्म के मूल को जानने के उत्सुक थे व इसी कारण उन्होंने 22 वर्ष की आयु में ही अपना घर परिवार छोड़कर सन्यास ले लिया था (Satyarth Prakash in Hindi)। वे लगभग 25 वर्षों तक सत्य की खोज में वनों, जंगलों, पहाड़ों पर घूमें। इस दौरान उन्होंने हिंदू धर्म के सभी वेदों, शास्त्रों, संस्कृत भाषा व अन्य सभी धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने केवल हिंदू धर्म ही नही अपितु अन्य सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकें जैसे कि बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहिब, कुरान इत्यादि पढ़ डाली थी। अंत में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्मों में जीवन जीने की सर्वोत्तम पद्धति वेदों में ही मिलती हैं व इसी में जीवन का सारा सार हैं। उन्होंने हिंदू धर्म की मूर्ति पूजा, आडंबर व कुछ नीतियों का विरोध किया किंतु वेदों व शास्त्रों का पुरजोर समर्थन किया। वे पूरे विश्व को हिंदू धर्म के वेदों का ज्ञान देना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने भारत की आम भाषा हिंदी में लोगों को वेदों को समझाने तथा आडंबरों व कुरीतियों से दूर रखने के लिए स्वयं का साहित्य लेखन शुरू किया। सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक की रचना (Who wrote the Satyarth Prakash what was the aim of this book) स्वामी दयानंद सरस्वती ने लगभग 60 से अधिक पुस्तकों की रचना की जिसमें उनके द्वारा लिखी गयी सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई। इस पुस्तक के नाम सत्यार्थ प्रकाश का अर्थ हैं सत्य के अर्थ का प्रकाश अर्थात लोगों को सरल भाषा में क्या सत्य हैं उसको समझाना व उनके अंधकारमय जीवन में प्रकाश फैलाना। इसे भी पढ़ें: सत्यार्थ प्रकाश की रचना कब व किस भाषा में की ...

स्वामी दयानन्द सरस्वती जीवनी

नाम : मूलशंकर अंबाशंकर तिवारी. जन्म : 12 फरवरी 1824 टंकारा (मोखी संस्थान, गुजरात). पिता : अंबाशंकर. माता : अमृतबाई. उन्नीसवीं शताब्दी के महान समाज-सुधारकों में स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम अत्यंत श्रध्दा के साथ लिया जाता है. जिस समय भारत में चारों ओर पाखंड और मुर्ति-पूजा का बोल-बाला था, स्वामी जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए 1876 में हरिव्दार के कुंभ मेले के अवसर पर पाखण्डखंडिनी पताका फहराकर पोंगा-पंथियों को चुनौती दी. उन्होंने फिर से वेद की महिमा की स्थापना की. उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे,जिसे उन्होंने आर्यसमाज के नाम से पुकारा. स्वामी दयानंद जी का कहना था कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं होता. स्वामी जी महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक थे. समाज-सुधार के संबंध में गांधी जी ने भी उनके अनेक कार्यक्रमों को स्वीकार किया. कहा जाता है कि 1857 में स्वतंत्रता-संग्राम में भी स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वह राष्ट्र के कर्णधारों के लिए सदैव मार्गदर्शन का काम करता रहेगा. स्वामी जी ने विष देने वाले व्यक्ति को भी क्षमा कर दिया, यह बात उनकी दया भावना का जीता-जागता प्रमाण है. आरंभिक जीवन : दयानंद सरस्वती का जन्म १२ फ़रवरी टंकारा में सन् १८२४ में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आरा...