Swami vivekanand ke vichar

  1. स्वामी विवेकानंद के 25 ओजस्वी विचार जो युवाओं में भर देंगे जोश और उत्साह
  2. स्वामी विवेकानंद जी के सुविचार
  3. स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, विवेकानन्द की शिक्षा को देन
  4. Swami Vivekananda ke 101 Suvichar Anmol Vachan Vichar in Hindi
  5. स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, आधारभूत सिद्धांत » Hindikeguru
  6. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार
  7. कर्म का चरित्र पर प्रभाव
  8. स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, विवेकानन्द की शिक्षा को देन
  9. Swami Vivekananda ke 101 Suvichar Anmol Vachan Vichar in Hindi
  10. स्वामी विवेकानंद जी के सुविचार


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स्वामी विवेकानंद के 25 ओजस्वी विचार जो युवाओं में भर देंगे जोश और उत्साह

राष्ट्र के दीन-हीन लोगों की सेवा को ही विवेकानंद ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। उन्होंने युवाओं के हृदय को जितना झंकृत किया, उतना शायद किसी और ने किया हो। विवेकानंद जी ने करोड़ों देशवासियों को समृद्ध करना ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया था। उन्होंने 4 जुलाई सन्‌ 1902 को देह त्याग किया था। वे भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। पिता के महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए हर साल विश्वभर में फादर्स डे (father's day) मनाया जाता है। इस साल फादर्स डे 14 जून को मनाया जाएगा। अगर आपने अभी तक अपने पिता के लिए कोई भी गिफ्ट नहीं लिया है तो आप इन लास्ट मिनट गिफ्ट आईडिया की मदद से गिफ्ट चुन सकते हैं। चलिए जानते हैं क्या हैं ये गिफ्ट आईडिया... 21 June yoga day 2023 : शरीर में सर्वप्रथम गंदगी तीन जगह पर जमती है। पहला आहार नाल में और दूसरा पेट में और तीसरा आंतों में। इन तीनों जगह यदि गंदगी ज्यादा समय तक बनी रही तो यह फैलेगी। तब यह किडनी में, फेंफड़ों में और हृदय के आसपास भी जमने लगेगी। अंत में यह खून को गंदा कर देगी। अत: इस गंदगी को साफ करना जरूरी है। 'बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है' दंगल फिल्म का आपने यह गाना तो ज़रूर सुना होगा। साथ ही आपने कई बार 'पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा' गाना भी गाया होगा। आपके पापा कहे न कहे पर फिल्म देखना सबको बहुत पसंद होता है। फिल्म हमारे जीवन और दुनिया की सच्चाई को दर्शाती है।आप अपने पिता के साथ ये फादर स्पेशल फिल्म देख सकते हैं। Dato par jama kalapan kaise hataye : दांतों पर धीरे धीरे एक पीली परत जम जाती है। इस परत को प्लाक कहते हैं। यह प्लाक बैक्टीरिया की एक चिपचिपी परत होती है। बैक्टीरिया एसिड पैदा करते हैं। ये एसिड दांतों के इने...

स्वामी विवेकानंद जी के सुविचार

स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरणादायक सुविचार | Swami Vivekananda Thoughts In Hindi “विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु। प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच। अतएव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है। जो प्रेम करता है, वह जीता है, जो स्वार्थी है, वह मरता है। अतएव प्रेम के लिए ही प्रेम करो, क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है। “सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा।” Swami Vivekananda Ke Anmol Vachan swami Vivekananda thoughts in Hindi “भारत को कम से कम अपने सहस्त्र तरुण मनुष्यों की बलि की आवश्कता है, पर ध्यान रहे-‘मनुष्यों की बलि (दान) ‘पशुओं’ की नहीं। “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।” Swami Vivekananda Thoughts on Love swami vivekananda thoughts on love “मुक्ति उसी के लिए है, जो दुसरों के लिए सब कुछ त्याग देता है और दुसरे, जो दिन-रात ‘मेरी मुक्ति, मेरी मुक्ति’ कहकर माथापच्ची करते रहते हैं। वे वर्तमान और भविष्य में होने वाले अपने सच्चे कल्याण की सम्भावना को नष्ट कर यत्र-तत्र भटकते फिरते हैं। मैंने स्वयं अपनी आंखों ऐसा अनेक बार देखा है। “पीड़ितों की सेवा के लिए आवश्यकता पड़ने पर हम अपने मठ की भूमि तक भी बेच देंगे। हजारों असहाय नर नारी हमारे नेत्रों के सामने कष्ट भोगते रहें और हम मठ में रहें, यह असम्भव है। हम सन्यासी हैं,वृक्षों के नीचे निवास करेंगे और भिक्षा मांगकर जीवित रह लेंगे।” Saying of Swami Vivekananda Saying of Swami Vivekananda “यदि हम अपनी प...

स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, विवेकानन्द की शिक्षा को देन

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय (SWAMI VIVEKANAND) जीवन परिचय (Life Sketch)- भारत की अमर विभूति स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। वे कलकत्ता के प्रसिद्ध वकील थे। इनके पिता अत्यन्त बुद्धिमान, ज्ञानी, उदार मन वाले व्यक्ति थे। इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी भी अत्यंत बुद्धिमती, गुणवती एवं परोपकारी महिला थी। स्वामी जी पर अपनी माँ के व्यक्तित्व की अमिट छाप पड़ी। ये बाल्यावस्था से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते हुए ध्यानमग्न हो जाते थे। पाँच वर्ष की अवस्था में स्वामी जी को पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया किन्तु नरेन्द्र की पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं थी। मैट्रिक पास करने के पश्चात् इन्होंने कालेज में प्रवेश लिया। इनके प्रखर प्रतिभा सुन्दर शरीर और बातचीत के सुन्दर तरीके ने महाविद्यालय में सभी को प्रभावित किया और उन्हें अति लोकप्रिय बना दिया। चूँकि धर्म एवं सेवा कार्य में इनकी जन्म से ही रुचि थी। अतः उन्होंने सेवा का व्रत लेकर सन्यास ले लिया। सन् 1893 ई० में इन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया और अमेरिका गए। देश की गरीबी एवं दुःख को इन्होंने भारत की अशिक्षा का प्रमुख कारण बताया तथा भारतीय शिक्षा का स्वरूप कैसा हो इस पर अपने विचार भी दिए। शिक्षा-सम्बन्धी इनके ये विचार शिक्षा के क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। 4 जुलाई सन् 1902 में इस महामानव ने संसार से विदा ली और स्वर्ग सिधार गए। स्वामी विवेकानन्द की रचनाएँ (Compositions of Swami Vivekanand) स्वामी जी ने भारतीय धर्म, दर्शन, वेदान्त एवं संयोग आदि से सम...

Swami Vivekananda ke 101 Suvichar Anmol Vachan Vichar in Hindi

|| 101 Quotes of Swami Vivekananda in Hindi || 1: उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये। 2: उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो। 3: ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! 4: जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है। 5: किसी की निंदा ना करें. अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये। 6: कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं. 7: अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है. 8: जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है। 9: उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। 10: हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। 11: जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आ...

स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, आधारभूत सिद्धांत » Hindikeguru

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (swami vivekanand ka jivan parichay) swami vivekananda biography in hindi स्वामी विवेकानंद का जन्म सन् 1863 ई. में कलकाता में हुआ था। उनका पहले का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र थे। उनके विषय में उनके प्रधानाचार्य हैस्ट्री ने कहे थे ” मैंने विश्व के विभिन्न देशों की यात्राएं की है परंतु किशोरावस्था में ही इसके समान योग्य एवं महान क्षमताओं वाला युवक मुझे जर्मन विश्वविद्यालय में नहीं मिला।” स्वामी जी मिस्टर हैस्ट्री द्वारा दी गई प्रेरणा पर दक्षिणेश्वर पहुंचे। उसी मंदिर में उन्हें रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई। स्वामी जी ने उनसे साक्षात्कार किया। यह साक्षात्कार उनके जीवन की अपूर्व घटना थी। स्वामी जी को रामकृष्ण परमहंस के उत्तरो से संतोष मिली। नरेंद्र नाथ जब दूसरी बार अपने गुरु के दर्शन करने के लिए गए तो उन्हें दिव्य शक्ति का अनुभव हुआ। रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क में नरेंद्र जी 6 वर्ष रहे तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद पर गए। सन 1886 ईस्वी में स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की स्मृति में रामकृष्ण मिशन स्थापित किया तथा उनके द्वारा दिए गए वेदांत के उद्देश्यों को एशिया यूरोप तथा मेरी का की जनता में आजीवन प्रचार किया। संक्षेप में स्वामी जी ने पश्चात्म देशों में भावात्मक तथा भारत में क्रियात्मक वेदांत का प्रचार करके हिंदू धर्म की महानता को फैलाया। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में विश्व बंधुत्व के लिए भी प्रचार किया। सन् 1902 विषय में स्वामी जी का देहांत हो गया। स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन मानव के लिए अत्यंत गौरवपूर्ण एवं प्रेरणादायक हैं। उन्होंने बताया...

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ते के उच्च न्यायालय में एटर्नी (वकील) थे। वे बड़े बुद्धिमान, ज्ञानी, उदार, परोपकारी एवं गरीबों की रक्षा करने वाले थे। स्वामी जी की माँ श्रीमती भुवनेश्वर देवी भी बड़ी बुद्धिमती, गुणवती, धर्मपरायण एवं परोपकारी थीं। स्वामी जी पर इनका अमिट प्रभाव पड़ा। ये बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते थे और ध्यानमग्न हो जाते थे। इनकी इसी प्रवृत्ति ने आगे चलकर इन्हें नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बना दिया। नरेंद्रनाथ की शिक्षा का आरंभ इनके अपने घर पर ही हुआ। ये बड़े कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के बालक थे। सात वर्ष की आयु तक इन्होंने पूरा व्याकरण रट डाला था। सात वर्ष की अवस्था में इन्हें मेट्रोपोलिटन काॅलिज में भर्ती किया गया। इस विद्यालय में इन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेल-कूद, व्यायाम, संगीत और नाटक में रुचि ली और इन सभी क्षेत्रों में ये आगे रहे। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने मैट्रीकुलेशन (हाईस्कूल) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इन्होंने पे्रसीडेंसी काॅलेज में प्रवेश लिया और उसके बाद जनरल एसेम्बलीज इन्स्टीट्यूशन में पढ़ने लगे। इस समय इन्होंने काॅलेज के पाठ्य विषयों के अध्ययन के साथ-साथ साहित्य, दर्शन और धर्म का भी अध्ययन किया। इस क्षेत्र में इन्हें अपने माता-पिता और अध्यापकों से बड़ा सहयोग मिला। 1881 में इन्हें कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर के मंदिर में जाने और श्री रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। परमहंस इनकी आभा से प्रभावित हुए, परंतु एपफ.ए. (इंटर) की परीक्षा की तैयारी में लग जाने के कारण नर...

कर्म का चरित्र पर प्रभाव

हिन्दीपथ.कॉम की कोशिश है कि संपूर्ण विवेकानन्द साहित्य को हिंदी भाषा में लाया जाए। लेख पढ़ें और टिप्पणी करके अपने विचार व्यक्त करना न भूलें। कर्मयोग का अगला अध्याय पढ़ने के लिए यहाँ जाएँ – कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाय, तो इसका अर्थ कभी कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परन्तु कर्मयोग में ‘कर्म’ शब्द से हमारा मतलब केवल ‘कार्य’ ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञान-लाभ है। प्राच्य दर्शन-शास्त्र हमारे सम्मुख एकमात्र यही लक्ष्य रखता है। मनुष्य का अन्तिम ध्येय सुख नहीं वरन् ज्ञान है; क्योंकि सुख और आनन्द का तो एक न एक दिन अन्त हो ही जाता है। अत: यह मान लेना कि सुख ही चरम लक्ष्य है, मनुष्य की भारी भूल है। संसार में सब दुःखों का मूल यही है कि मनुष्य अज्ञानवश यह समझ बैठता है कि सुख ही उसका चरम लक्ष्य है। पर कुछ समय के बाद मनुष्य को यह बोध होता है कि जिसकी ओर वह जा रहा है, वह सुख नहीं वरन् ज्ञान है, तथा सुख और दुःख दोनों ही महान् शिक्षक हैं, और जितनी शिक्षा उसे सुख से मिलती है, उतनी ही दुःख से भी। सुख और दुःख ज्यों ज्यों आत्मा पर से होकर जाते रहते हैं, त्यों त्यों वे उसके ऊपर अनेक प्रकार के चित्र अंकित करते जाते है। और इन चित्रों अथवा संस्कारों की समष्टि के फल को ही हम मानव का ‘चरित्र’ कहते हैं। यदि तुम किसी मनुष्य का चरित्र देखो, तो प्रतीत होगा कि वास्तव में वह उसकी मानसिक प्रवृत्तियों एवं मानसिक झुकाव की समष्टि ही है। तुम यह भी देखोगे कि उसके चरित्र-गठन में सुख और दुःख दोनों ही समान रूप से उपादानस्वरूप हैं। चरित्र को ए...

स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, विवेकानन्द की शिक्षा को देन

Table of Contents • • • • • • • • • • • • • स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय (SWAMI VIVEKANAND) जीवन परिचय (Life Sketch)- भारत की अमर विभूति स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। वे कलकत्ता के प्रसिद्ध वकील थे। इनके पिता अत्यन्त बुद्धिमान, ज्ञानी, उदार मन वाले व्यक्ति थे। इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी भी अत्यंत बुद्धिमती, गुणवती एवं परोपकारी महिला थी। स्वामी जी पर अपनी माँ के व्यक्तित्व की अमिट छाप पड़ी। ये बाल्यावस्था से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते हुए ध्यानमग्न हो जाते थे। पाँच वर्ष की अवस्था में स्वामी जी को पाठशाला में प्रवेश दिलाया गया किन्तु नरेन्द्र की पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं थी। मैट्रिक पास करने के पश्चात् इन्होंने कालेज में प्रवेश लिया। इनके प्रखर प्रतिभा सुन्दर शरीर और बातचीत के सुन्दर तरीके ने महाविद्यालय में सभी को प्रभावित किया और उन्हें अति लोकप्रिय बना दिया। चूँकि धर्म एवं सेवा कार्य में इनकी जन्म से ही रुचि थी। अतः उन्होंने सेवा का व्रत लेकर सन्यास ले लिया। सन् 1893 ई० में इन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया और अमेरिका गए। देश की गरीबी एवं दुःख को इन्होंने भारत की अशिक्षा का प्रमुख कारण बताया तथा भारतीय शिक्षा का स्वरूप कैसा हो इस पर अपने विचार भी दिए। शिक्षा-सम्बन्धी इनके ये विचार शिक्षा के क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। 4 जुलाई सन् 1902 में इस महामानव ने संसार से विदा ली और स्वर्ग सिधार गए। स्वामी विवेकानन्द की रचनाएँ (Compositions of Swami Vivekanand) स्वामी जी ने भारतीय धर्म, दर्शन, वेदान्त एवं संयोग आदि से सम...

Swami Vivekananda ke 101 Suvichar Anmol Vachan Vichar in Hindi

|| 101 Quotes of Swami Vivekananda in Hindi || 1: उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये। 2: उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो। 3: ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! 4: जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है। 5: किसी की निंदा ना करें. अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये। 6: कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं. 7: अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है. 8: जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है। 9: उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। 10: हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। 11: जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आ...

स्वामी विवेकानंद जी के सुविचार

स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरणादायक सुविचार | Swami Vivekananda Thoughts In Hindi “विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु। प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच। अतएव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है। जो प्रेम करता है, वह जीता है, जो स्वार्थी है, वह मरता है। अतएव प्रेम के लिए ही प्रेम करो, क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है। “सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा।” Swami Vivekananda Ke Anmol Vachan swami Vivekananda thoughts in Hindi “भारत को कम से कम अपने सहस्त्र तरुण मनुष्यों की बलि की आवश्कता है, पर ध्यान रहे-‘मनुष्यों की बलि (दान) ‘पशुओं’ की नहीं। “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।” Swami Vivekananda Thoughts on Love swami vivekananda thoughts on love “मुक्ति उसी के लिए है, जो दुसरों के लिए सब कुछ त्याग देता है और दुसरे, जो दिन-रात ‘मेरी मुक्ति, मेरी मुक्ति’ कहकर माथापच्ची करते रहते हैं। वे वर्तमान और भविष्य में होने वाले अपने सच्चे कल्याण की सम्भावना को नष्ट कर यत्र-तत्र भटकते फिरते हैं। मैंने स्वयं अपनी आंखों ऐसा अनेक बार देखा है। “पीड़ितों की सेवा के लिए आवश्यकता पड़ने पर हम अपने मठ की भूमि तक भी बेच देंगे। हजारों असहाय नर नारी हमारे नेत्रों के सामने कष्ट भोगते रहें और हम मठ में रहें, यह असम्भव है। हम सन्यासी हैं,वृक्षों के नीचे निवास करेंगे और भिक्षा मांगकर जीवित रह लेंगे।” Saying of Swami Vivekananda Saying of Swami Vivekananda “यदि हम अपनी प...