Tansen ka janm

  1. स्वामी हरिदास
  2. जन्म दर
  3. Birbal
  4. महाभारत की कहानी: कर्ण के जन्म की कथा
  5. भगवान शिव का जन्म कैसे और कहां हुआ?
  6. Biography Of Tansen


Download: Tansen ka janm
Size: 46.27 MB

स्वामी हरिदास

यह लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि स्वामी हरिदास का जन्म 1480 में हुआ था। इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। राजपुर ग्राम , वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) इनका जन्म स्थान माना जाता है।इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है। ये महात्मा वृन्दावन में निंबार्क सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य यह प्रसिद्ध है कि अकबर बादशाह साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की। अनुक्रम • 1 हरिदासीय आश्रम (कोलकाता) • 2 स्वामी श्री वृन्दावन दास • 2.1 व्रज • 2.2 स्वामी श्री राधा प्रसाद देवजूं महाराज • 2.3 संदर्भ • 2.4 इन्हेंभीदेखें • 2.5 बाहरीकड़ियाँ हरिदासीय आश्रम (कोलकाता) [ ] निम्बार्क सखी संप्रदाय एवं स्वामी हरिदास परंपरा के अंतर्गत एक स्थान पश्चिम बंगाल राज्य में कोलकाता के माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी की यह परंपरा लगभग 543 वर्षों पुराना है। जिनमें श्री स्वामी हरिदास जी महाराज ने श्रीधाम वृन्दावन में भगवान बांकेबिहारी जी को प्रकट किया था। स्वामी श्याम चरण दास जी इन्हीं की परंपरा के 18 वीं पीढ़ी के महंत श्री राधा चरण दास जी महाराज, टाटिया स्थान श्रीधाम वृन्दावन के परम कृपापात्र शिष्य थे। स्वामी श्याम चरण दास जी एक विरक्त संत थे व उनके गुरु श्री राधा...

जन्म दर

janm dar ek kaileandar varsh mean prati sahasr janm-maran ka lekha desh ke vibhinn nagaroan tatha gramoan mean sarvatr pratyek vyakti ke janm-maran ka nagarapalika, gram panchayat tatha any nikayoan dvara lekha rakha jata hai. parivar ke mukhy sadasy dvara janmamaran ki soochana dena anivary hai. is prakar ke prapt aank doan ke tulanatmak adhyayan dvara janata ki svasthy dasha ki janakari prapt ki jati hai. do ya adhik sthanoan ki janasankhya ki nyoonadhikata ke adhar par paraspar tulana ki ja sakati. jis sthan ki janasankhya adhik hogi vahaan adhik balak janm leange. is karan janasankhya ki apeksha janm dar dvara tulana karana adhik samichin hota hai, jo janmasankhya aur janmasankhya ke paraspar anupat ke adhar par nirdharit ki jati hai. janaganana • REDIRECT kisi nagar ya vishesh gram ki janmasankhya ka pata janaganana dvara lagaya jata hai, jo prati das varsh ke aantar par vyavasthit riti se ki jati hai. us sthan mean prati varsh pahili janavari se ikatis disanbar tak poore varsh bhar mean jivit avastha mean janm lenevale sabhi balak-balikaoan ki sankhya nagarapalika tatha gram panchayat se prapt ki jati hai. jis balak ne janmate hi ek bar bhi saans liya ho vah jivitajat mana jata hai, bhale hi vah kuchh hi der bad mar jae. uparyukt janasankhya tatha janmasankhya ke aank doan se sadharan ganit dvara janm dar ka parikalan kiya jata hai. janaganana prati das varsh mean ek bar ki jati hai. janmamaran tatha avagaman ke karan janmasankhya nirantar ghatati-badhati rahati hai....

Birbal

Born Mahesh Das Brahmabhatt 1528 Died 16 February 1586 (aged 57-58) Occupation Main advisor in the Birbal ( IPA: Mahesh Das; 1528 – 16 February 1586 Raja Birbal, was a Saraswat Hindu Mukhya Senapati) of army in the court of the Local folk tales emerged primarily in 19th century involving his interactions with Akbar, portraying him as being extremely clever and witty. However, it is highly unlikely that they are true considering the strict court etiquette of the Mughals, which would not have tolerated outspoken attitude of anyone like Birbal, and these tales are not mentioned in any official Mughal document. As the tales gained popularity in India, he became even more of a semi-fictional legendary figure across the Indian subcontinent. These most probably fictional tales involve him outsmarting rival courtiers and sometimes even Akbar, using only his intelligence and cunning, often with giving witty and humorous responses and impressing Akbar. Early life Birbal was born as Mahesh Das in 1528, to a :29in a called Ghoghra. :29 that had a previous association with poetry and literature. [ bettersourceneeded] Educated in At the imperial court Titles and name origin The details and year of his first meeting with Akbar and his employment at the court are disputed but estimated to be between 1556 and 1562. Birbal comes from Bir Bar or Vir Var which means hasir javab or quick thinker. Akbar gave titles to his Hindu subjects according to their traditions and S. H. Hodivala writes th...

महाभारत की कहानी: कर्ण के जन्म की कथा

यह कहानी ऐसे योद्धा की जिसे लोग दानवीर कर्ण के नाम से जानते हैं। कर्ण पांडवों में सबसे बड़े थे और इस बात का पता सिर्फ माता कुंती को ही था। कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले ही हो गया था। इसलिए, लाेकलाज के डर से कुंती ने कर्ण को छोड़ दिया था, लेकिन कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले कैसे हो गया, इसके पीछे भी एक कहानी है। बात उस समय की है जब कुंती का विवाह नहीं हुआ था और वह सिर्फ राजकुमारी थीं। उसी दौरान ऋषि दुर्वासा पूरे एक वर्ष के लिए राजकुमारी कुंती के पिता के महल में अतिथि के रूप में ठहरे। कुंती ने एक वर्ष तक उनकी खूब सेवा की। राजकुमारी की सेवा से ऋषि दुर्वासा प्रसन्न हो गए और उन्होंने कुंती को वरदान दिया कि वो किसी भी देवता को बुलाकर उनसे संतान की प्राप्ती कर सकती हैं। एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न वरदान की परीक्षा की जाए। ऐसा सोचकर उन्होंने सूर्य देव की प्रार्थना करके उन्हें बुला लिया। सूर्य देव के आने और वरदान के प्रभाव से कुंती विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो गईं। कुछ समय बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जो सूर्य देव के समान ही प्रभावशाली था। साथ ही जन्म के समय से ही उस शिशु के शरीर पर कवच और कुंडल थे। कुंवारी अवस्था में पुत्र की प्राप्ति के कारण लोकलाज के डर से कुंती ने उसे एक डिब्बे में बंद करके नदी में बहा दिया। बक्सा एक सारथी और उसकी पत्नी को मिला, जिनकी कोई संतान नहीं थी। वो दोनों कर्ण के रूप में पुत्र को पाकर बहुत खुश और उसका लालन पालन करने लगे। यही सूर्य पुत्र आगे चलकर दानवीर कर्ण कहलाए और कई वर्षों बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांचों पांडवों के सामने वह एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में खड़े रहे।

भगवान शिव का जन्म कैसे और कहां हुआ?

वेद कहते हैं कि जो जन्मा है, वह मरेगा अर्थात जो बना है, वह फना है। वेदों के अनुसार ईश्वर या परमात्मा अजन्मा, अप्रकट, निराकार, निर्गुण और निर्विकार है। अजन्मा का अर्थ जिसने कभी जन्म नहीं लिया और जो आगे भी जन्म नहीं लेगा। प्रकट अर्थात जो किसी भी गर्भ से उत्पन्न न होकर स्वयंभू प्रकट हो गया है और अप्रकट अर्थात जो स्वयंभू प्रकट भी नहीं है। निराकार अर्थात जिसका कोई आकार नहीं है, निर्गुण अर्थात जिसमें किसी भी प्रकार का कोई गुण नहीं है, निर्विकार अर्थात जिसमें किसी भी प्रकार का कोई विकार या दोष भी नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि फिर शिव क्या है? वे किसी न किसी रूप में जन्मे या प्रकट हुए तभी तो उन्होंने विवाह किया। तभी तो उन्होंने कई असुरों को वरदान दिया और कई असुरों का वध भी किया। दरअसल, जब हम 'शिव' कहते हैं तो वह निराकर ईश्वर की बात होती है और जब हम 'सदाशिव' कहते हैं तो ईश्वर महान आत्मा की बात होती है और जब हम शंकर या महेश कहते हैं तो वह सती या पार्वती के पति महादेव की बात होती है। बस, हिन्दूजन यहीं भेद नहीं कर पाते हैं और सभी को एक ही मान लेते हैं। अक्सर भगवान शंकर को शिव भी कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार भगवान सदाशिव और पराशक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) से ही भगवान शंकर की उत्पत्ति मानी गई है। उस अम्बिका को प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। वह शक्ति की देवी कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी दुर्गा हैं। उस सदाशिव से दुर्गा प्रकट हुई। काशी के आनंदरूप वन में रमण ...

Biography Of Tansen

Tansen को भारत के महानतम संगीतकारों में से एक माना जाता है, जिन्हें शास्त्रीय संगीत की रचना का श्रेय दिया जाता है। जो भारत के उत्तर पर हावी है। तानसेन एक गायक और वादक थे जिन्होंने कई रागों की रचना की। वह शुरू में रीवा राज्य के राजा राम चंद के दरबारी गायक थे। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने अपने असाधारण संगीत कौशल को सीखने के बाद उन्हें अपने संगीतकारों में शामिल किया। वह मुगल सम्राट तानसेन का जीवन परिचय ( Tansen Ka Jivan Parichay ) नाम तानसेन असली नाम रामतनु जन्म 1506 पिता मुकुंद पांडे पत्नी हुसैनी बच्चों के नाम हमीरसेन, सुरतसेन, तानरास खान, सरस्वती देवी और बिलास खान मृत्यु 1589 ( आगरा ) पुरूस्कार अकबर द्वारा मियाँ शीर्षक उन्हें प्रदान किया गया था. गुरु हरिदास पेशा गायक, संगीत संगीतकार, वाद्य यंत्र तानसेन का जन्म कब और कहा हुआ था ? ( Tansen Ka Janm Kab Hua Tha ) Biography Of Tansen तानसेन का जन्म 1506 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक कुलीन हिंदू परिवार में हुआ था। तानसेन के पिता का नाम मुकुंद मिश्रा था और वे एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ एक धनी व्यक्ति भी थे। जन्म के समय तानसेन का नाम रमत था। पांच साल की उम्र तक तानसेन ‘आवाजहीन’ थे। ऐसा कहा जाता है कि तानसेन ने एक बार एक बाघ की नकल की थी और बाद में एक प्रसिद्ध संत और संगीतकार और कवि स्वामी हरिदास द्वारा देखा गया था। स्वामी हरिदास ने तानसेन के उन्हें कौशल को पहचाना अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। तानसेन की शिक्षा कब और कहा की थी ? तानसेन ने अपनी संगीत यात्रा बहुत कम उम्र में शुरू की, और जब स्वामी हरिदास द्वारा उन्हें एक शिष्य के रूप में चुना गया, तो तानसेन ने अपने अमूल्य जीवन के दस वर्षों तक संगीत का अध्ययन किया। ह...