त्रिजुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड

  1. Aastha : उत्तराखंड में है दुनिया का एकमात्र मंदिर, जहां शांत रूप में विराजमान हैं नृसिंह भगवान
  2. त्रियुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड
  3. त्रियुग नारायण मंदिर: यहीं हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह
  4. वेडिंग डेस्टिनेशन के रुप में लोकप्रिय हो रहा त्रियुगीनारायण मंदिर, शिव पार्वती की शादी से जुड़ा है इतिहास, triyuginarayan temple becoming popular as a wedding destination in rudraprayag
  5. भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर, त्रिजुगीनरायण
  6. अब पौराणिक मंदिरों के दर्शन कराएगी उत्तराखंड सरकार, प्लान है तैयार, uttarakhand government will provide darshan of mythological temples in off season
  7. नाग दोष की पूजा त्र्यंबकेश्वर में ही क्यों की जाती है?
  8. भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर, त्रिजुगीनरायण
  9. त्रियुग नारायण मंदिर: यहीं हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह


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त्रियुगी

त्रियुगीनारायण मंदिर ( त्रियुगीनारायण गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। प्राचीन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान् नारायण भूदेवी तथा लक्ष्मी देवी के साथ विराजमान हैं। इस प्रसिद्धि को इस स्थान पर विष्णु द्वारा देवी पार्वती के शिव से विवाह के स्थल के रूप में श्रेय दिया जाता है और इस प्रकार यह एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। विष्णु ने इस दिव्य विवाह में पार्वती के भ्राता का कर्तव्य निभाया था, जबकि ब्रह्मा इस विवाहयज्ञ के आचार्य बने थे। इस मंदिर की एक विशेष विशेषता एक अखंड ज्योति है, जो मंदिर के सामने जलती है। माना जाता है कि लौ दिव्य विवाह के समय से जलती है जो आज भी अनुक्रम • 1 व्युत्पत्ति • 2 किंवदंती • 3 संरचना • 4 भूगोल • 5 पहुंच • 6 सन्दर्भ व्युत्पत्ति [ ] "त्रिजुगी नारायण" शब्द तीन शब्दों "त्र" से बना है जिसका अर्थ है तीन, "युगी" काल का प्रतीक है - युग और " नारायण " विष्णु का दूसरा नाम है। तीर्थयात्रियों में आग करने के लिए लकड़ी की पेशकश की गई है हवाना (चिमनी) -kund के बाद से तीन युगों - इसलिए जगह का नाम "Triyugi नारायण" दिया जाता है। हिंदू दर्शन में युग चार युगों के चक्र के भीतर एक युग या युग का नाम है। चार युग सत्य युग (1,728,000 मानव वर्ष), त्रेता युग (1,296,000 वर्ष), द्वापर युग (864,000 वर्ष) और अंत में कलियुग (432,000 वर्ष) हैं, जो वर्तमान युग है। "अखंड धुनी मंदिर" नाम भी शाश्वत ज्योति कथा से उत्पन्न हुआ है, "अखंड" का अर्थ है सदा और "धुनि" का अर्थ है ज्योति। किंवदंती [ ] हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती हिमावत या हिमवान की बेटी थीं - हिमालय की पहचान। वह सती का पुनर्जन्म था , जो शिव की पहली पत्नी थीं - जिनके पिता ने शिव का अपमान किया था। पार्वती ने शुरू म...

Aastha : उत्तराखंड में है दुनिया का एकमात्र मंदिर, जहां शांत रूप में विराजमान हैं नृसिंह भगवान

सोनिया मिश्रा/चमोली/जोशीमठ.वैसे तो पूरे भारत वर्ष में भगवान नृसिंह के कई मंदिर हैं, जहां भगवान रौद्र रूप में पूजे जाते हैं लेकिन एक उत्तराखंड की देवभूमि में बद्रीनाथ मार्ग पर भगवान नृसिंह का एक ऐसा मंदिर भी है. जहां भगवान नृसिंह शांत रूप में पूजे जाते हैं. इतना ही नहीं इस मंदिर का संबंध बद्रीनाथ धाम से भी है, जिस कारण बद्रीनाथ जाने से पहले श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं. उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में गंधमादन पर्वत पर भगवान नृसिंह का मंदिर है. यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान नृसिंह को शांत रूप में पूजा जाता है. मंदिर में उनकी प्रतिमा 10 इंच की है, जिसमें भगवान कमल पर विराजमान हैं.मान्यता है कि इनके दर्शनों से दुख, दर्द, शत्रु बाधा का नाश होता है. मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की बाईं भुजा बीतते वक्त के साथ घिस रही है. मान्यताओं के अनुसार, भुजा के घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है. जानिए क्या है सनत कुमार संहिता की मान्यता केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार, जिस दिन भगवान नृसिंह की बाईं भुजा खंडित हो जाएगी, उस दिन विष्णु प्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर नर और नारायण पर्वत (जिन्हें जय और विजय पर्वत के नाम से भी जाना जाता है) ढहकर एक हो जाएंगे और तब बद्रीनाथ मंदिर का मार्ग सदा के लिए बंद (अगम्य) हो जाएगा. तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे. नृसिंह अवतार का कारण चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में विराजमान हैं. नृसिंह अर्थात सिर शेर का और धड़ मनुष्य का. यह स्वरूप भगवान विष्णु का चौथा अवतार है. इसी मंदिर में भगवान नृसिंह के साथ उद्धव और कुबेर के ...

त्रियुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड

देवों की भूमि से प्रशिद्ध उत्तराखंड अपनी पौराणिक कथाव संस्कृति व प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण अपनी अलौकिक छवि प्रदर्शित करता है यहां के कण- कण में देवी देवताओ का वास है जो समय समय पर देवी-देवताओ द्वारा अवतार लिए जाते है। यह देवभूमि में अनेक धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त विभिन प्रकार की पवित्र नदियों का उद्गम स्थल भी रहा है उन्ही ऐतिहासिक स्थलों में से एक है त्रियुगीनारायण मंदिर जो भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र स्थल है। त्रिजुगी नारायण मंदिर कहां है यह भव्य धार्मिंक स्थल भगवन विष्णु जी को समर्पित उत्तरखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के त्रिजुगीनारायण गाँव में स्थित है। यह प्राचीन धार्मिक स्थल पगडण्डी मार्ग गुटठुर माध्यम से यह श्री केदारनाथ को जोड़ता है। इस मंदिर में जो भी भक्तजन श्रद्धा भावना से आता है यह मंदिर में स्थानियों लोगो में बहुत अधिक लोकप्रिय मान्यता है की इस मंदिर पर भगवन विष्णु द्वारा देवी पार्वती के शिव से विवाह के स्थल के रूप में श्रेय दिया जाता है। इस मंदिर की बनावट श्री केदारनाथ धाम मंदिर पर जैसी प्रदर्शित होती हैं। त्रिजुगी नारायण मंदिर मान्यताये त्रिजुगी नारायण मंदिर यह स्थान में भगवन शिव व माता पार्वती का विवाह सम्पन हुआ था। इस मंदिर कि एक मुख्य विशेषता है कि मंदिर के अंतर्गत अग्नि ज्योत तीन युगो से जलते हुए आ रही है। इसलिए इस मंदिर को त्रियुगी कहा जाता है। मान्यता है कि इस ज्योती को साक्षी मानकर विवाह करने वाले जोड़े एक जीवनभर खुशाल जीवन यापन करते है व जीवन भर खुश रहते है। त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास त्रियुगीनारायण मंदिर का इतिहास पौराणिक काल से मन जाता है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है की त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान शिव जी एवं ...

त्रियुग नारायण मंदिर: यहीं हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह

(ममता त्रिपाठी) नई दिल्ली. उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता. यहां पग पग पर मन मोहने वाले दृश्य और सदियों पुराने मंदिर हैं जिनका धार्मिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है, आज भी ये मंदिर तमाम आपदाओं के बाद सीना ताने खड़े देखने को मिल जाते हैं. उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन तो है ही साथ ही साथ अपनी संस्कृति को नजदीक से देखने और जानने का भी मौका मिलता है. यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तो चार धाम में गिने जाते हैं मगर इनके अलावा भी कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी काफी मान्यता है और जहां दर्शन पूजन करने से मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है. शिव और पार्वती का हुआ था विवाह ऐसा ही एक मंदिर है त्रियुग नारायण मंदिर, जो केदारनाथ क्षेत्र में ही स्थित है. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की आधार शिला रखी थी. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुग नारायण मंदिर के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान शिव और पार्वती का विवाह यहीं हुआ था. ये मंदिर भगवान विष्णु का था और वो यहां वामन अवतार में मौजूद हैं जिनको साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने यहां विवाह किया था. मंदिर प्रांगण में यहां एक धूनी जलती दिखती है जिसके बारे में मंदिर में मौजूद पंडितों का कहना है कि ये धूनी वो अग्नि है जिसके इर्द गिर्द भगवान शिव और माता पार्वती ने फेरे लिए थे, तीन युगों (सतयुग,त्रेता,द्वापर) से ये यूं ही निरंतर जल रही है. इसीलिए इस मंदिर का नाम त्रियुग नारायण रखा गया है. कई टीवी स्टार्स ने यहां आकर किया विवाह उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने इसे डेस्टिनेशन वेडिंग प्लेस के तौर पर अपनी साइट पर प्राथमिकता के साथ रखा है. मंदिर में स्थित धर्मशिला पर बिठाकर ही शादियां करवाई जाती हैं. मान्यता है कि ...

वेडिंग डेस्टिनेशन के रुप में लोकप्रिय हो रहा त्रियुगीनारायण मंदिर, शिव पार्वती की शादी से जुड़ा है इतिहास, triyuginarayan temple becoming popular as a wedding destination in rudraprayag

देहरादून: रुद्रप्रयाग जिले में स्थित शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप काफी लोकप्रिय हो रहा है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग यहां आकर शादियां कर रहे हैं. वेडिंग डेस्टिनेशन के रुप में लोकप्रिय हो रहे त्रियुगीनारायण मंदिर को विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग इस ओर ज्यादा ध्यान दे रहा है. त्रियुगीनारायण मंदिर को लेकर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड पर भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का ही आशीर्वाद है. युवा दंपतियों की दिलचस्पी त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह करने की बढ़ी है. नई पीढ़ी पुरातन परम्पराओं में विश्वास रखती है. स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए भी यह अच्छा है. ऐसे में उम्मीद हैं कि भविष्य में अधिक से अधिक लोग इस मंदिर में दर्शनों के लिए या विवाह के लिए आएंगे और भगवान-भगवती का आशीष ग्रहण करेंगे. पढ़ें- सात PCS अधिकारियों को दी गई हरिद्वार कुंभ की अतिरिक्त जिम्मेदारी, IAS पंकज कुमार को मिला अतिरिक्त प्रभार शांति व अध्यात्म का सुरम्य प्रदेश हिमालयी प्रदेश उत्तराखंड आदिकाल से पवित्र रहा है. देश व दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री और पर्यटक मुसाफिर शांति व अध्यात्म के लिए इस सुरम्य प्रदेश के मंदिरों व तीर्थस्थानों पर आते रहे हैं. इन पवित्र स्थानों के प्रति लोगों की भक्ति और विश्वास इतने प्रगाढ़ हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक तमाम धार्मिक संस्कारों -क्रियाओं के लिए वे उत्तराखंड की धरती पर आते रहते हैं. इन अनुष्ठानों में एक और चीज जुड़ गई है और वह है बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतों की पृष्ठभूमि में मंदिर के प्रांगण में विवाह की रस्में. नया वेडिंग डेस्टिनेशन त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड का एक प्राचीन मंदिर जो हाल के द...

भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर, त्रिजुगीनरायण

उत्तराखंड।देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे भी मंदिर हैं जो सतयुग,से अभी तक अपनी परंपरा और अस्तित्व को बनाए हुए हैं।इनमे से एक त्रिजुगी नारायण मंदिर भी है। अगिनत दुनियाभर से सनातनी तथा गैर सनातनी यहां विवाह की रस्में पूरी करते हैं।दुनियाभर में विश्वास है, यहां पर हुए विवाह कभी नही टूटते हैं और ऐसा देखा भी गया है। भगवान विष्णु को समर्पित यह शानदार मंदिर, त्रिजुगीनरायण गांव में स्थित है, प्राचीन पगडण्डी मार्ग घुटूर से होते हुए यह श्री केदारनाथ को जोड़ता है। इस मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर के जैसी है जो इस गांव को एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान का केंद्र बनाता हैं।एक पौराणिक कथा के अनुसार, त्रियुगिनरायण पौराणिक हिमवत की राजधानी थी और जहां भगवान शिव ने सतयुग में पार्वती से विवाह किया था। इस दिव्य विवाह के लिए चार कोनो में विशाल हवन कुंड जलाया गया था। सभी ऋषियों ने भी इस विवाह में भाग लिया, जिसमें विष्णु भगवन द्वारा खुद समारोहों की देख रेख की गयी।माना जाता है कि दिव्य अग्नि के अवशेष आज भी हवन कुंड में जलते हैं। अग्नि में तीर्थयात्री लकड़ी डालते है यह कुंड तीन युग से यंहा पर है , इसलिए इसे त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है। इस आग की राख को विवाहित जीवन के लिए वरदान मन जाता है।इस गांव में तीन अन्य कुंड हैं, रुद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मकुंड। ये कुंड हैं जहां भगवान शिव-पार्वती विवाह के विवाह के दौरान भगवां स्नान किया करते थे । इन कुंडों का पानी सरस्वती कुंड से बहता है जो कि विष्णु के नाभि से उगता है। यहां पर बच्चों की चाह रखने वाली महिलाएं स्नान करती है विश्वास है कि इससे उनका बांझपन दूर हो जाता है।लेखक (योगी मदन मोहन ढौंडियाल)

अब पौराणिक मंदिरों के दर्शन कराएगी उत्तराखंड सरकार, प्लान है तैयार, uttarakhand government will provide darshan of mythological temples in off season

उत्तराखंड से पीएम मोदी के अगाध स्नेह और आस्था के चलते केदारनाथ पुनर्निर्माण और फिर बदरीनाथ मास्टर प्लान जमीन पर उतारा जा रहा है. जल्द ही चारधाम के अलावा अन्य पौराणिक महत्व के मंदिरों की कायापलट का भी प्लान तैयार किया रहा है, जिससे ऑफ सीजन में भी श्रद्धालुओं आस्था में डुबकी लगा सकें. पेश है खास रिपोर्ट. देहरादून: पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में पर्यटन और धार्मिक तीर्थाटन को लेकर लोगों का बहुत क्रेज देखने को मिला है. केवल सीजन में ही नहीं बल्कि ऑफ सीजन में भी अब पर्यटक और श्रद्धालु उत्तराखंड का रुख कर रहे हैं. खासतौर से चारधाम यात्रा में कपाट बंद होने के बाद प्रदेश में मौजूद उन मंदिरों में जो कि शीतकालीन मौसम में भी खुले रहते हैं, वहां पर शीतकालीन यात्रा की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. यही वजह है कि शीतकाल में उत्तराखंड आने वाले श्रद्धालुओं के लिए इन मंदिरों में के दर्शन को लेकर प्लान तैयार किया जा रहा है. शीतकाल में बाबा केदार की डोली के दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु: बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उत्तराखंड में शीतकालीन यात्रा की अपार संभावनाएं हैं. जिस पर प्रदेश सरकार लगातार प्रयत्नशील है. उन्होंने बताया कि शीतकाल के दौरान बाबा केदारनाथ के गद्दी स्थल या फिर जहां पर भगवान केदारनाथ की डोली रखी जाती है और पूजा होती है वह उखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर है. केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उखीमठ में स्थित इस ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार की डोली के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन केदारनाथ धाम जैसा भव्य मंदिर परिसर ना होने के चलते उखीमठ मंदिर में वह भव्यता नहीं है. इसे देखते हुए उखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर क...

नाग दोष की पूजा त्र्यंबकेश्वर में ही क्यों की जाती है?

1. उज्जैन (मध्य प्रदेश), ब्रह्मकपाली (उत्तराखंड), त्रिजुगी नारायण मंदिर (उत्तराखंड), प्रयाग (उत्तर प्रदेश), त्रिनेगेश्वर वासुकी नाग मंदिर (तमिलनाडु) आदि स्थानों पर कालसर्प दोष की पूजा की जाती है, लेकिन त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र) को माना जाता है। . विशेष स्थान के रूप में। 2. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक के पास गोदावरी के तट पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। विशेष दिनों में यहां नाग पंचमी और काल सर्प दोष की पूजा की जाती है। इस पूजा के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। 4. कहा जाता है कि इस मंदिर में 3 शिवलिंगों की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास 3 पहाड़ हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और गंगा द्वार कहा जाता है। ब्रह्मगिरि पर्वत भगवान शिव का अवतार है, नीलगिरि पर्वत नीलाम्बिका देवी और भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है और गोदावरी मंदिर गंगा द्वार पर्वत पर है।

भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर, त्रिजुगीनरायण

उत्तराखंड।देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे भी मंदिर हैं जो सतयुग,से अभी तक अपनी परंपरा और अस्तित्व को बनाए हुए हैं।इनमे से एक त्रिजुगी नारायण मंदिर भी है। अगिनत दुनियाभर से सनातनी तथा गैर सनातनी यहां विवाह की रस्में पूरी करते हैं।दुनियाभर में विश्वास है, यहां पर हुए विवाह कभी नही टूटते हैं और ऐसा देखा भी गया है। भगवान विष्णु को समर्पित यह शानदार मंदिर, त्रिजुगीनरायण गांव में स्थित है, प्राचीन पगडण्डी मार्ग घुटूर से होते हुए यह श्री केदारनाथ को जोड़ता है। इस मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर के जैसी है जो इस गांव को एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान का केंद्र बनाता हैं।एक पौराणिक कथा के अनुसार, त्रियुगिनरायण पौराणिक हिमवत की राजधानी थी और जहां भगवान शिव ने सतयुग में पार्वती से विवाह किया था। इस दिव्य विवाह के लिए चार कोनो में विशाल हवन कुंड जलाया गया था। सभी ऋषियों ने भी इस विवाह में भाग लिया, जिसमें विष्णु भगवन द्वारा खुद समारोहों की देख रेख की गयी।माना जाता है कि दिव्य अग्नि के अवशेष आज भी हवन कुंड में जलते हैं। अग्नि में तीर्थयात्री लकड़ी डालते है यह कुंड तीन युग से यंहा पर है , इसलिए इसे त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है। इस आग की राख को विवाहित जीवन के लिए वरदान मन जाता है।इस गांव में तीन अन्य कुंड हैं, रुद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मकुंड। ये कुंड हैं जहां भगवान शिव-पार्वती विवाह के विवाह के दौरान भगवां स्नान किया करते थे । इन कुंडों का पानी सरस्वती कुंड से बहता है जो कि विष्णु के नाभि से उगता है। यहां पर बच्चों की चाह रखने वाली महिलाएं स्नान करती है विश्वास है कि इससे उनका बांझपन दूर हो जाता है।लेखक (योगी मदन मोहन ढौंडियाल)

त्रियुग नारायण मंदिर: यहीं हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह

(ममता त्रिपाठी) नई दिल्ली. उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता. यहां पग पग पर मन मोहने वाले दृश्य और सदियों पुराने मंदिर हैं जिनका धार्मिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है, आज भी ये मंदिर तमाम आपदाओं के बाद सीना ताने खड़े देखने को मिल जाते हैं. उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन तो है ही साथ ही साथ अपनी संस्कृति को नजदीक से देखने और जानने का भी मौका मिलता है. यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तो चार धाम में गिने जाते हैं मगर इनके अलावा भी कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी काफी मान्यता है और जहां दर्शन पूजन करने से मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है. शिव और पार्वती का हुआ था विवाह ऐसा ही एक मंदिर है त्रियुग नारायण मंदिर, जो केदारनाथ क्षेत्र में ही स्थित है. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की आधार शिला रखी थी. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुग नारायण मंदिर के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान शिव और पार्वती का विवाह यहीं हुआ था. ये मंदिर भगवान विष्णु का था और वो यहां वामन अवतार में मौजूद हैं जिनको साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने यहां विवाह किया था. मंदिर प्रांगण में यहां एक धूनी जलती दिखती है जिसके बारे में मंदिर में मौजूद पंडितों का कहना है कि ये धूनी वो अग्नि है जिसके इर्द गिर्द भगवान शिव और माता पार्वती ने फेरे लिए थे, तीन युगों (सतयुग,त्रेता,द्वापर) से ये यूं ही निरंतर जल रही है. इसीलिए इस मंदिर का नाम त्रियुग नारायण रखा गया है. कई टीवी स्टार्स ने यहां आकर किया विवाह उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने इसे डेस्टिनेशन वेडिंग प्लेस के तौर पर अपनी साइट पर प्राथमिकता के साथ रखा है. मंदिर में स्थित धर्मशिला पर बिठाकर ही शादियां करवाई जाती हैं. मान्यता है कि ...