तुंगनाथ ट्रेक

  1. तुंगनाथ मंदिर और चोपता से तुंगनाथ ट्रेक
  2. तुंगनाथ मंदिर
  3. Tungnath Temple
  4. चोपता तुंगनाथ ट्रेक


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तुंगनाथ मंदिर और चोपता से तुंगनाथ ट्रेक

तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्व पंचकेदार मंदिरों में से दूसरा मंदिर है। उत्तराखंड के पहाड़ी जिले रुद्रप्रयाग में पड़ने वाला तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित धाम है। उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक चोपता से तुंगनाथ मंदिर के लिए पैदल ट्रेक निकलता है। लगभग 3600 मीटर की ऊंचाई तुंगनाथ स्थान का इतिहास भगवान राम से भी जुड़ा है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन के कुछ पल यहां एकांत में बिताए थे। तुंगनाथ मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। महाभारत युद्ध के बाद पांडव काफी परेशान थे क्योंकि युद्ध में उन्हें अपनो को मारना पड़ा था। इस परेशानी और व्याकुलता को लेकर पांडव महर्षि व्यास के पास पहुंचे जिन्होंने पांडवो को बताया कि अपने भाइयों और गुरुओं को मारने से उन पर ब्रह्महत्या का पाप लगा है। महर्षि व्यास ने पांडवों को बताया कि इस पाप से उन्हें मात्र महादेव शिव ही बचा सकते हैं। इसके बाद पांडव भगवान शिव से मिलने हिमालय पहुंचे। महाभारत युद्ध के बाद से भगवान शिव पांडवो से नाराज थे। भगवान शिव ने भैंसे का रूप धारण कर लिया। जब पांडव समझ गए तो भीम ने भैसों के झुंड का पीछा किया। एक पहाड़ी के बीच भीम ने दोनों पैर दोनों तरफ लगा कर झुंड को रोकना चाहा। सभी भैंसे भीम के पैरों के नीचे से निकल गए लेकिन भगवान शिव रूपी भैंस भीम के नीचे से नहीं निकले और वहीं धरती में समा गए। माना जाता है कि भगवान शिव रूपी भैंस के शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छूटे। यही पांच स्थान केदारधाम, अर्थात पंचकेदार कहलाये। प्रसिद्ध केदारनाथ धाम में भैंस का कूबड़ है। तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा किया गया था। पंचकेदार मंदिरों में तुंगनाथ सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ के पास...

तुंगनाथ मंदिर

तुंगनाथ मंदिर | तुंगनाथ ट्रेक 2022 | Tungnath in Hindi | Tungnath Trek in Hindi | Tungnath Trek Complete Travel Guide | Tungnath History | Tiimings | Entry Fees तुंगनाथ मंदिर का इतिहास – Tungnath Temple History in Hindi Tungnath Temple | Click on image for credits हिन्दू धर्म में भगवान शिव विनाश के भगवान माने जाते है। भारत और विश्व के कई अन्य देशों में भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए है। भारत या दुनिया के किसी भी कोने में स्थित भगवान शिव के सभी प्राचीन मंदिरों की अलग-अलग धार्मिक महत्ता है। आज में भगवान शिव के जिस प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ उस मंदिर को तुंगनाथ महादेव कहा जाता है साथ मे ही यह प्राचीन शिव मंदिर विश्व में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर है। उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के पाँच प्राचीन मंदिर केदारनाथ , तुंगनाथ , रुद्रनाथ , मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर महादेव भगवान शिव के इन सभी प्राचीन मन्दिरो को पंचकेदार के नाम से जाना जाता है। सभी पंच केदार मंदिरों में तुंगनाथ महादेव मंदिर को तीसरे नंबर पर रखा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन सभी प्राचीन शिव मंदिरों का निर्माण पांडवों ने महाभारत के युद्ध के बाद करवाया था। महाभारत के बारे में बताने से पहले में आपको बताना चाहूँगा की तुंगनाथ मंदिर का इतिहास सिर्फ महाभारत काल से नहीं जुड़ा हुआ है बल्कि इस स्थान का सीधा संबंध भगवान राम और रावण से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि भगवान राम ने तुंगनाथ से थोड़ी ही दूरी पर स्थित चंद्रशिला नाम की जगह पर ध्यान लगाया था। और जिस समय भगवान इस स्थान पर निवास करते थे उस समय रावण ने भी इस स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। अब हम एक बार वापस...

Tungnath Temple

भारत के उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में प्रसिद्ध Tungnath Temple (तुंगनाथ मंदिर) स्थित है। शिवजी को समर्पित यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना और दुनिया का सबसे उंचाई पे स्थित शिव मंदिर है। Tungnath Temple केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच में स्थित है। यहा भगवान शिव के पंचकेदार रूप में से एक की पूजा की जाती है। 10 तुंगनाथ मंदिर की कहानी क्या है? Tungnath Temple यह मंदिर 3640 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जिसको ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है। हिमालय की अनहद प्राकृतिक सुंदरता के बीच बना यह मंदिर आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। चारधाम यात्रियों के लिए तुंगनाथ एक बेहद पवित्र स्थान है। सर्दियों के मौसम में यहां मंदिर के चारों और बर्फ की सफेद चादर बिछी होती है। उस समय इस मंदिर तक ट्रैक करके आना स्वर्ग की यात्रा करना जैसा अद्भुत लगता है। यदि आप भी Tungnath Temple की यात्रा करना चाहते हैं तो इस लेख में हम तुंगनाथ मंदिर से जुड़ी सारी जानकारी देने वाले हैं तो कृपया इसे अंत तक अवश्य पढ़ें। Tungnath Temple कैसे पहुंचे? यदि आप ट्रेन के माध्यम से आना चाहते हैं तो ऋषिकेश या हरिद्वार के लिए ट्रेन ले सकते हैं। देश के सभी प्रमुख शहरों से ऋषिकेश और हरिद्वार के लिए ट्रेन उपलब्ध रहती है। ऋषिकेश से Tungnath Temple की दूरी लगभग 210 और हरिद्वार से यह दूरी 228 किलोमीटर की रहती है। इन दोनों शहरों से आप बस, टैक्सी या बाइक रेंट पर लेकर चोपता तक आ जाइए। देश के विभिन्न बड़े शहरों से आप हरिद्वार,ऋषिकेश या देहरादून के लिए बस ले सकते हैं। जिसके बाद राज्य परिवहन की बस या टैक्सी से द्वारा चोपता तक पहुंच सकते हैं। आप अपनी खुद की कार से भी नेशनल हाईवे होते हुए विभिन्न...

चोपता तुंगनाथ ट्रेक

देवरिया ताल ट्रैक चोपता उत्तराखंड - Deoria Tal Trek Chopta Uttarakhand देवरिया ताल झील उत्तराखंड में मस्तुरा और सारी के गांवों (Sari Village) से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लगभग 2387 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद ये ट्रैक काफी छोटा है, लेकिन लोगों को इसे पूरा करने में बेहद मजा आता है। बता दें, देवरिया ताल झील का उल्लेख कई धार्मिक किताबों में भी किया गया है। अगर आप ट्रैकिंग के लिए एकदम नए-नए हैं, तो यकीनन इस ट्रैक में आपको किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने वाली। देवरिया ताल न केवल अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है, बल्कि ये चोपटा उत्तराखंड में एक बहुत लोकप्रिय कैम्पिंग स्पॉट के रूप में भी प्रसिद्ध है। ज्यादातर ट्रैकर्स देवरिया ताल तक ट्रैकिंग करते हैं और फिर पहुंचने के बाद कैंपिंग का मजा लेते हैं। (फोटो साभार : EConomic times) कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभ्यारण्य - Kanchula Korak Musk Deer Sanctuary चोपता घाटी के पास स्थित ये सेंचुरी लुप्तप्राय कस्तूरी मृग और कुछ अन्य लुप्तप्राय हिमालयी जीवों का घर है। बता दें, इस अभयारण्य की शुरुआत दुर्लभ जीवों की संख्या बढ़ाने के लिए की गई थी। चोपटा से 7 किमी की दूरी पर स्थित कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभयारण्य उत्तराखंड के सबसे छोटे, लेकिन प्रमुख वन्यजीव सेंचुरी में से एक है। चोपटा के पास स्थित ये जगह वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र मानी जाती है। चंद्रशिला ट्रेक - Chandrashila Trek चोपता घाटी के प्रमुख आकर्षणों में से एक, इस ट्रैक को थोड़े मुश्किल ट्रैक में गिना जाता है। ये जगह रोमांच प्रेमियों को बेहद पसंद आती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने यहीं तपस्या की थी। नंददेवी, त्रिशूल, केदार चोट...